रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 9


बंगले से अपने घर ईदगाहभाठा में हम लोग रहने आ गये ।परीक्षा चल रही थी ।रोज दोपहर को मेरे घूमने का कार्यक्रम चलता था ।माँ दोपहर को काम निपटा कर सोती और मै धीरे से दरवाजा खोल कर मोहल्ले की गलियों में घूमने निकल जाती ।

माँ कहती कि बच्चा पकड़ने वाले एक दिन तुम्हें पकड़ कर ले जायेंगे । मुझे लगता माँ तो डराते रहती है ।एक दिन मैं दूसरे मोहल्ले सारथी पारा घूमने निकल गई ।माँ जहां जाने के लिये मना करती मैं वहीं जाने का सोचती थी ।

घर से निकली और हिन्दूस्पोर्टिंग ग्राऊंड तक गई थी कि मुझे कंधे पर बोरा लटकाये एक व्यक्ति दिखा मुझे तो लोगों से बात करना अच्छा लगता था बस मैं रूक गई ।उसने आने का ईशारा किया और जलेबी दिखाई ,मै रुक कर देखी और तुरंत माँ की बात याद आ गई ।मै आगे बढ़ गई ।वह व्यक्ति मेरे पीछे पीछे आने लगा।उसने एक आईना निकाल लिया था ।उसे मेरी तरफ फोखस करता था ।हम पश्चिम दिशा में थे इस कारण वह चमक नहीं पा रहा था । अब हम दोनों करीब करीब दौड़ रहे थे ।

आधा किलोमीटर जाने के बाद मै करीब पहुंच गई ।तुरंत दिमाग में आया कि इसके पास बोरा है ये मुझे पकड़ कर बोरे में डाल देगा ।भीख मागते बच्चे का चेहरा दिखने लगा और मैं वापस अपने घर की तरफ भागी । वह आदमी भी मेरी तरफ भागा पर वह ठिगना और थुलथुला सा था ,भाग नहीं पाया ।

घर आ कर सीधे माँ के पास लेट गई सांसे फूल रही थी ।मां को मेरी सांसो का आभास हुआ तो पूछने लगी "क्या हुआ"मै चुप आंखे बंद करके लेटी रही।नींद लग गई ।वह चेहरा और माँ की बात क्ई दिनों तक दिमाग मे घूमती रही ।

यह बातें अखबार में छपते रही कि आईने के द्वारा सम्मोहित करके बच्चों को पकड़ने वाला गैंग आया है ।बच्चे अकेले घर से बाहर न निकले ।एक सीख जीवन भर के लिये मिल गई कि खाने की चीज़े कोई भी बाहरी व्यक्ति दे तो नहीं लेना चाहिये ।

एक लालच और माँ कि बातें नहीं सुनने का परिणाम मैंने देख लिया था ।बाद में मैंने माँ को सारी बातें बताई तो फिर मैं हीरोईन बन गई ।बहुत से लोग आ आ कर मुझसे घटना के बारे में पूछते थे । मेरा अब बिना बताये बाहर जाना बंद हो गया था ।

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