शादी के बाद के
पांच माह ऐसे ही बीत गये ।धीरे से मै सुबह का टिफिन और बाद मे हम सब का खाना बनाना
शुरु कर दी थी ।शाम को रोज मुर्गा बनता था कभी मटन बनता था ।सुबह के खाने मे मिर्च
मसाला बहुत रहता था ।मै ,मेरे पति और मेरी
सास हम तीन लोग ही शाकाहारी थे बाकी सब लोग खाते थे ।
रोज सुबह मेरे
ससुर एक पुड़िया मे एक दिन के लायक खड़ा धनिया , खड़ी हलदी और खड़ी लाल मिर्च लेकर आत थे ।नमक भी लोकल वाला
आधा किलो ही आता था ।घर मे जेठ का एक चपरासी था गरीबा वह मसाला पिसता था । अवकभी
कभी जेठानी पिसती थी ।ननंंद कै मैने पिसते नहीं देखा था ।कभी मै पिसती थी ।खाने मे
सब्जी तो मै खा नहीं पाती थी ।दाल रोज बनती थी तो दाल चांंवल खा लेती थी ।
रात को जेठ अपने
कमरे मे खाते थे ।जेठानी मछली मटन वाली थाली सुबह बाहर निकाल कल रख देती थीं ।सास
उस पर पानी डाल देती थी ।सुबह छै बजे मै टिफिन बनाती तो गंदी बास आती थी क्ई बार
मै उल्टी भी कर देती थी ।सुबह चार बजे हमारे ससुर सिगड़ी मे भूसा भर कर जलाते थे और
उस पर नहाने का पानी गरम करते थे ।स्वयं नहाने के बाद सास के लिये पानी गरम करते
थे ।जलने वाली लकड़ी के कोयले को बाजू मे बने कोयले की सिगड़ी मे भरते थे और दाल चढ़ा
देते थे । उसमे दो आलू डाल देते थे बच्चों को नमक डाल कर खिलाते थे ।
छै बजे जब मै
उठती थी तो दाल पक कर तैयार रहता था ।भूसे की सिगड़ी मे सब्जी और रोटी बनाती थी
।कभी सास सब्जी कभी काट देती थी कभी मै काटती थी ।रोटी भी तवे परही कपड़े से दबा
दबा कर फूला कर सेका जाता था ।ऐसा वातावरण मेरे लिये एकदम नया था ।मैने ऐसा कहीं
भी नहीं देखा था।
मेरे दोनोंं पैर
के तलवे काले हो गये थे । उल्टियां इतनी हो रही थी कि पेटसमे तकलीफ होने लगी।लाल
मिर्च की तीखी सब्जी से मुझे एसीडिटी होने लगी ।हमेशा पेट मे दर्द होने लगा ।दो
महिने मे हालत खराब हो गई ।
नवम्बर मे हम लोग
घूमने जाने का कार्यक्रम बनाये ।मुझे बचपन से भेड़ाघाट का जल प्रपात देखने का शौक
था ।हम लोग घूमने निकल पड़े सुबह की रेल थी । मुझे किसी रेल की जानकारी नहीं थी ।हम
लोग जनरल बोगी मे बैठे थे ।मैने सोचा कि पैसा कम होगा इस कारण जनरल मे बैठे है ।मै
तो खुश थी कि भेड़ाघाट जा रहे है ।
रेल मे बहुत भीड़
थी ।मेरे पास एक सिंधी व्यक्ति बैठा था । मेरे पति जब कुछ खरीदने उतरते थे तो वह
मुझे एक सेब खाने को दे रहा था , मैने मना कर दिया । कभी पानी के लिये कभी समोसे केलिये तो
कभी खाना लाने के लिये उतरते थे तो वह हमेंशा मुझे कुछ न कुछ खाने के लिये देने की
कोशिश करता था ।रेल मे पेट दर्द शुरु हो गया क्योंकि कब तक बैठे रहती ।लेटने की
इच्छा हो रही थी ।आस पास के लोगों को पता चल गया कि मेरे पेट मे दर्द है ।
वह व्यक्ति मुझसे
पूछने लगा कि " आप ईलाज के लिये जा रहे हो क्या ?" मैने कहा घूमने
जा रहे है ।"हाँ अच्छा है घूमने से मन अच्छा लगता है। "मैने पूछा आप
कहाँ जा रहे हैं ? उसने कहा कल्याण
जा रहा हूँ ।
आप बाम्बे जा रहे
है ?
मै कुछ नही बोली
।पति जैसे ही आये तो मै बोली ये पूछ रहा था कि बाम्बे जा रहे है ? मै चुप थी ।मैने
कहा वह कल्याण जा रहा है ।उस समय मेरे पति ने बताया कि हम लोग बाम्बे जा रहे है
।वहां से भेड़ाघाट जायेंगे । अब मुझे घबराहट होने लगी क्योंकि वहां पर लोगों को
बेवकूफ बनाते है यह सुनी थी ।
इन्होने कहा कि
ऐसा नहीं है। मै एक बार और आ चुका हूँ ताज होटल मे चाय भी पी चुका हूँ ।तुमको यहां
घूमना अच्छा लगेगा ।बहुत सी जगह है घूमने के लिये ।रात को मै बैठ नहीं पा रही थी
तो उस सिंधी युवक ने कहा आप आराम से सो जाओ , हम लोग सामने सामने बैठ जायेंगे ।वैसा ही हुआ ।रात को नींद
तो आई नहीं पर उस युवक की आंखों को समझने की कोशिश करती रही साथ ही बाम्बे मे
हमारे सामान को फिल्मों की तरह कोई चुरा न ले यह सोचती रही ।सुबह बाम्बे पहुंच गये
।एक परिचित रास्ते की तरह मेरे पति चलते हुये सिटी गेस्ट हाउस मे मुझे लेकर आ गये
।
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