रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 8


आज एक बच्ची को अकेले घूमने नहीं देते हैं ।बच्ची ही क्यों लड़के भी अकेले नहीं घूम सकते है ।मोहल्ले में ,बस्ती में ही होता है कि लड़के लड़कियां अकेले पैदल या सायकिल पर स्कूल जाते है। बड़े शहरो में तो छोटे बच्चों को बस में ही स्कूल जाते देखते है ।

जितने खुश पैदल या सायकिल पर जाने वाले बच्चे रहते है उतने दूसरे बच्चे नहीं ।बस में बंद बच्चे भी अपनी खुशियाँ खोज ही लेते है ।ये बच्चे प्रकृति से दूर रहते है ।गाँव में रहने वाले बच्चे ही प्रकृति की खूब सूरती को आत्मसात करते है पर शहर का बच्चा बस के अंदर से दुनिया को देखता है ।जो बच जाता है उसे दूरदर्शन पर देखता है ।

मैं आज भी प्रकृति में ही जीती हूँ ।हम लोग जब चायपत्ती बंगला बैरनबाजार से रायपुर के दूसरे छोर ईदगाहभाठा में रहने आये तो समस्या मेरे स्कूल की हुई ।मैं शालेम स्कूल में थी ।हमारे चाचा जी भी साथ में थे ।चाचा जी स्कूल छोड़ देते थे कभी लेने आते थे कभी नहीं ।मैं उनका इंतजार भी नहीं करती थी ।स्कूल से सीधे नलघर चौक वहाँ से सदर बाजार फिर सत्तीबाजार ,ब्राम्णपारा चौक ,आमापारा चौक होते हुये घर आ जाती थी ।

माँ मुझे तीन आना देती थी कि रिक्शा करके आ जाऊं ।पर मुझे तो घूमना पसंद था ।रास्ते में लोगों को रुक रूक कर देखती थी।पैदल घर आने पर माँ डांडती थी और चिंतित दिखाई देती थी ।बच्चे पकड़ने वाले घूमा करते थे ।माँ डराया भी करती थी ।

अकेले जब घूमते हुये आती तो जेब के पैसे को बजाते रहती ।तीन आना याने दुनिया की खुशी ।इससे कौन सी खुशी खरीदूं? रास्ते में प्यास लगने पर कांतिलाल ज्वेलर की दुकान पर पानी पीती और स्टूल पर बैठ जाती थी कभी सीढ़ी पर बैठ जाती ।माँ की जान पहचान थी ।दुर्ग में हमारे नाना जी के परिवार के लोगों की खास दुकान थी ।

वहाँ से निकल कर आमापारा में नत्थू के ठेले पर बर्फ के गोले खाती ठंडियों में बिही खाती ।नत्थू नामी व्यक्ति था ।खाखी पेंट सफेद शर्ट और गांधी टोपी मे रहता था ।उसके बिही काट कर देने का अंदाज़ अनोखा था ।फूल बना कर काटता था उसे अलग करके नमक मिर्च डालकर फिर से बंद कर देता था ।खाने का मजा ही अलग था ।तीन आने का खा पी कर आराम से घर पहुँचती थी।तीन आने की खुशी खरीद कर ही घर जाती थी ।

मजे करने केबाद माँ से डांट खाती थी ।यह बचपन भूले नहींभूलता ।आज हमलोग जहाँ रहते है वहाँ के दस बारह परिवार को ही जानते हैं ।तब पूरा शहर एक दूसरे को जानता था ।मैं कभी घर से थोड़ी दूर निकल जाती तो मेरे घर तक खबर पहुँच जाती ।मुझे कोई न कोई घर वापस पहुंचा देता ।आज अकेले जाते बच्चे से भी लोग पूछते नहीं कि कहीं ये हमारे मत्थे न पड़ जाये।

आज रायपुर बढ़ते बढ़ते नया रायपुर और एम्स तक पहुँच गया पर दिलों की दूरियां बढ़ गई ।आपसी प्यार स्वार्थ में बदल गया ।संवेदनायें मर रही है ।आज हम किसी की दुकान पर पानी पीने नहीं जा सकते ।आज हमारे बच्चे को कोई घर नही पहुंचायेगा ।बेटियां बाजार तक और बेटे भीखारी तक पहुंच जायेंगे ।

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