रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 19


ईदगाहभाठा में मुसलमान बहुत ही कम थे ।ब्राम्हण ,कुर्मी,ठाकुर.महार,और बरनी वाले रहा करते थे ईदगाह के पास कुछ मुसलमान परिवार रहते थे ।भाठा में याने मैंदान में बहुत से देवार लोग अपना डेरा बना कर रहते थे ।

मोहल्ले में एक मुसलमान परिवार था ।उनके घर पर मजार था ।नामी वैद्य थे दूर दूर से बेड़ियों में बंधे पागल ईलाज के लिये आया करते थे ।उस वैद्य के बेटे का नाम नजमुद्दीन था ।वह भी दवाई देते थे साथ ही साथ मजार का काम भी देखते थे ।लोगों का झाड़ फूंक भी करते थे ।वहां से सवारी निकलती थी । मंगल बाजार में अलाव जलाया जाता था ।अंगारों के ऊपर से बहुत से लोग दौड़ते हुये निकलते थे ।मै भी एक बार दौड़ी थी रमजान के महिने में शाम को शरबत पिलाया जाता था ।

एक बार मैं बीमार पड़ गई ।स्कूल में बेहोश हो गई ।चक्कर आता था ।तुरंत कोई नहीं था तो माँ मुझे वैद्य जी के पास ले गई ।बी पी कम होने के कारण तबियत खराब हो जाती थी ।नजमुद्दीन भैय्या ने बहुत ही प्यार से मुझे दवाईयां दी साथ ही मुझे बताया की मुझे कुछ धार्मिक चीजें भी पढ़नी चाहिये ।माँ को ये बातें सही लगी ।बहुत सी पुस्तकें खरीदा गया ।काका ने पुस्तक प्रतिस्ठान से किताबें लेकर आये ।

भेय्या हमारे घर आने लगे थे ।एक दिन मैं बैठक में बैठकर रामायण पढ़ रही थी भैय्या वहाँ से गुजर रहे थे।हमारे बैठक में आ गये चप्पल बाहर उतार कर आये ।मुझसे बोले हाथ आगे बढ़ा कर ,"दिखाओ क्या पढ़ रही हो ?" मै झिझकते हुये बोली "रामायण "।मै दे नहीं रही थी ,भैय्या ने कहा " क्यों मै रामायण नहीं छू सकता क्या ?" मैने दे दिया ।

मैने सोचा भी नहीं था कि उनको इतने सारे दोहे याद होंगे? मुझे सब कहानियां सुनाने लगे , दोहे सुनाये और बताये कि उन्होंने रामायण कई बार पढ़ी है मेरे मन का झिझक खतम हो गया ।उन्होंने एक दिन कहा कि मजार के लिये चादर पर कढ़ाई कर दो ।वे देखते थे कि मै स्वेटर बनाती थी ,कपड़े भी सिलती थी और कढ़ाई भी करती थी । मैने हाँ कह दिया ।

दूसरे दिन भैय्या टूविंकल का कपड़ा लेकर आये रेशम के लिये पैसा दे रहे थे पर माँ ने मना कर दिया ।पाक होकर कैसे कढ़ाई करना बताये तब मुझे "पाक "का मतलब समझ में आया ।पूरा चादर तैयार हो गया ।किसी खास दिन उसे चढ़ाया गया ।दिन याद नहीं आ रहा है शायद रमजान का महिना था ।

मै भी मजार गई थी ।भैय्या ने कहा कि शाम को शरबत पिला दिया करो तबियत अच्छी रहेगी ।मैं कुछ दिन तक एक गुंड पानी मे शक्कर घोल कर शरबत बनाती और बाई के साथ जाकर लोगों को पिलाती थी ।मन अच्छा लगता था ।

दोनों परिवार के बीच की दूरी खतम हो रही थी हम लोग वहाँ खाते नहीं थे सिर्फ मजार में जाते थे ।वहाँ पानी रखते थे ।दूसरे दिन लाकर नहाते थे ।कभी कभी ही करते थे पर भैय्या अक्सर आते और हमारी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ते थे और संस्कृत के श्लोक का अर्थ भी बताते थे ।मैने हिंदी और संस्कृत की धार्मिक पुस्तकों और कहानियों के प्रति प्यार एक मुसलमान में देखा ।जो कट्टर मुसलमान थे ।नमाज पढ़ना और मजार के प्रति श्रद्धा होने के बाद हिंदूयों के प्रति आदर और प्यार का होना मुझे आश्चर्य में डाल देता है ।

उस परिवार के प्रतिआदर तब बढ़ जाता है जब अचानक आयें और हम उन्हें प्रशाद दें,उस प्रशाद को ग्रहण करना ।

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