रविवार, 24 जनवरी 2016

श्री रामचरित मानस नाटक (छत्तीसगढ़ी भाषा म)

ये दिन भी अपने थे - 80



मै एक बार मायके से आई तो देखी कि सीढ़ी पर कुछ बर्तन रखे थे । बर्तन भी एक डुआ दाल सब्जी निकालने का , दो चम्मच , दो गिलास , तीन कटोरी , एक पीतल की गंजी बस ।मै इसे देखकर अपनी जेठानी सभी पूछी तो उसने कहा कि तुम्हारा खाना अलग बनाना ।मै बर्तन ऊपर लेकर चली गई ।आने के बाद सास ससुर के पैर छुई तब उन लोगों ने कुछ नहीं कहा था ।

शाम को मै नीचे चौके मे बैठी थी तो जेठानी ने कहा कि तुम लोगों का खाना बनान के लिये मना की है । मुझे समझ मे नहीं आया कि अभी कुछ भी नहीं है तो मै अलग से खाना कैसे बनाऊंं? रात तक रूकी रही ।इस तरह की घटना मे देखी भी नहीं थी और सुनी भी नहीं थी ।मुझे कुछ समझ मे नहीं आया ।मुझे भूख लग रही थी तो जेठानी ने छुपा कर मुझे दे दिया था ।मै तो खा ली पर मुझे इनकि चिंता होने लगी ।रात को पति आये तो मैने सारी बात बताई ।उन्होने कहा कल काका से बात करता हूँ ।रात को भूखे ही सो गये ।फोन मोबाइल का जमाना था नहीं ।जेब में भी पैसे नहीं थे कि बाहर से खा कर आते ।पैसा भी डाक्टर देवर को भेज दिये थे ।

यह घटना तनख्वाह मिलने के तीन चार दिन पहले की थी ।सुबह काका याने ससुर से बात किये तो वह बोले कि नहीं अपना इंतजाम कर लो ।अब तीन दिन की बात थी ।ये यो बिना खाना खाये ओर बिना टिफीन के ही चले गये ।टिफीन दोस्तों ने खिला दिया ।मुझे बोल कर गये थे कि अपने मायके चले जाना पर मै नहीं गई ।दोपहर को सामने रहने वाले उनके। मुसलमान दोस्त के घर खाना खाकर आई ।उस भाभी को पूरी बात बताई ।रात को भंगू भैय्या रास्ते मे खड़े रहे और इनके आने पर जबरदस्ती अपने घर ले जाकर खाना खिलाये ।ऐसा दो दिन हुआ तीसरे दिन मै माँ के घर गई और सब हालचाल सुनाई ।

मेरा भाई बोला कि "मेरे कारण यदि तेरे को तंग कर रहे हैं तो मै मुन्नी से शादी कर लेता हूँ पर उसे शादी करके उसके मायके में छोड़ दूंगा।" मैने कहा यह तो और भी कष्टदायक रहेगा ।उसका पूरा खर्च तो हमे ही उठाना पड़ेगा ।माँ ने कहा चल बाजार से सामान खरीद ले ।मैने कहा पैसा नहीं है ।मां तो माँ होती है ।उसने अपना जमा पैसा निकाला और सामान खरीदने निकल पड़े ।

बेलन पटा दाल पकाने का लोटा चिमटा वैगरह लिये ।किराना दुकान से बिस्कुट का खाली पीपा लेकर उसमे चांवल आटा दाल और तेल खरीद कर रख दिये ।एक कोयले की सिगड़ी खरीदे ।शक्कर चायपत्ती और दूध का डब्बा लिये मसाला माँ ने अपने पास का ही दे दिया ।ससुराल मे घर के सामने ही कैंंडी कोयला मिलता था वहाँ से चार रूपये मे एक बोरी कोयला खरीदे ।लकड़ी का कोयला भी लिये ।अब मेरे पिस तवा नहीं था माँ देने वाली थी पर भूल गई ।यह सब सामान करीब एक सौ सत्तर रुपये का था ।

रात की तैयारी कर ली थी मैने अपनी सास से दहेज का पीतल का गुंंड और कुकर मांगा पर वह नहीं दी ।दाल पकाने का होटा तो लाई थी पर दो सिगड़ी नहीं थी । मै पीतल के गंंज मे चांवल पकाई और रस वाली सब्जी बनाई ।कामहो गया थाली नहीं थी मुझे लगा था सास कुकर थाली लोटा तो देगी पर ऐसा नहीं हुआ। रात को ये बैंक से उस दिन सात बजे ही आ गये और मेरी तैयारी देख कर खुश हो गये ।रात को इन्होंने कढ़ाई के ढक्कन मे खाना खाया और मै कढ़ाई मे खाना खाई ।परात भी नहीं था ।

दूसरे दिन सुबह मै सास का तवा लेकर आई और रोटी बना कर वापस कर दी ।दो दिन के बाद जेठानी ने सास का नाम लेकर ले जाने के लिये मना कर दिया ।मैने देखा था कि एक फुटे तवे पर राखड़ निकाल कर फेंकते है ।मै उस तवे को अच्छे से साफ करके रोटी बनाने के लिये ले आई ।पर वह भी मना हो गया ।जेठानी ने कहा कि उसे मत ले जाया कर हम लोग राखड़ निकालते है ।अब वह उस तवे को पीछे बाड़ी मे न रख के चुल्हे के पास ही रखती थी ।

दो दिन के बाद ही ससुर को पैसे नहीं मिले तो बोले कि तुम लोग इस महिना खाना खाये हो वह पैसा देना पूरा एक सौ पचास रुपये ।ये बोले कि अब मै अलग खाऊंगा तो पैसा कहांं से आयेगा ? मै इस महिने का पैसा थोड़ा थोड़ा दे दूंगा बोल कर चले गये ।रात को बताये तो मैने कहा कि माँ का पैसा बाद मे देंगे यहा काका का पैसा पहले दे दो ।पचहत्तर रुपये दे दिये ।

अब बिजली का बिल आया तो पहले आधा पैसा लिये बाद मे कहने लगे कि तुम लोग यहां रहते हो यो किराया नहीं लेता हूँ इस कारण बिजली का पूरा बिल और मकान का टेक्स तुम देना ।यह बात बाद मे मुझे बताये और कहने लगे कि एक बाप ऐसा होता है मै सोच भी नहीं सकता ।धीरे से कहने लगे कि तुम्हारे ऊपर मै अठ्ठारह हजार खर्च किया हूँ ।मैने इनसे कहा कि हो सकता है कि यह पैसा भी मांगे ।

घर के सामने ठेला आता तो सब्जी खरीद लेती थी एक बर्तन वाला भी आता था उससे कुछ कटोरी ली थी ।तब वह कटोरी तीन चार रुपये मे आ जाती थी ।एक ही कमरे मे रहते थे वहीं खाना बनाना और वहीं सोना ।कोई आये तो उसे भी वहीं बैठाना ।धीरे से ससुर का पैसा और माँ का पैसा दिये उसके बाद ओवर टाइम करके लक्षमी चेयर खरीदे ।कमरे मे पर्दा लगा कर दो हिस्से मे बांटे ,एक तरफ सामान और चौका तथा दूसरी तरफ पलंग और कुर्सी रखे थे ।एक कमरा चार हिस्से में हो गया था ।स्टोर , चौका , बैठक और सोने का कमरा ।अब कुछ राहत थी ।मै उनके आने के समय पर ही खाना बनाती थी ।

मै कुकर को मांगती रही पर सास ने नहीं दिया ।वह सारे बड़े बर्तन मुन्नी को देने के लिये रखी थी ।छोटे बर्तन थाली गिलास लोटा कटोरी सब बेच दी थी ।दो बहुयेंं आई थी पर घर में बर्तन नहीं था ।सोना भी मेरे पास था जिस पर नजर रखी थी ।जेठानी ने बताया था कि जेवर सास को मत देना वह बेच देगी ।"मेरा सब बेच दी है ।एक चेन अपने लिये बना ली है ।"मेरे जेवर बचे रहे ।मेरे से बात कम होती थी पर धीरे धीरे मै नीचे के चौके मे भी काम करने लगी अपना खाना बना कर नीचे मदद कर देती थी ।

मैने ये देखा कि यहां पर आपसी प्यार नहीं था ।सब भाई बहन एक जगह बैठते थे तो खाने के समय ,वह भी रविवार को । बहुत हंसी मजाक होता था पर अंंत पैसे की बात से होता था ।एक लड़की जिसने परिवार मे प्यार देखा था उसे बिखरे हुये प्यार के बीच रहना पड़ रहा था ।जहाँ पर आज इसके नाम की सब्जी तो उसके नाम की सब्जी सुनना पड़ता था ।आज की सब्जी जो खरीदेगा उसे ज्यादा खाने के लिये मिलेगा ।ब्रेड खाना है तो अपना खाओ ।उस घर मे सास ससुर नहीं देते थे तो कुछ खरीद कर दो तो पहले "नहीं तुम लोग खाओ "सुनने को मिलता था ।मिल बांंट कर बहुत कम खाते थे ।उसका कारण पैसा था ।

इंंसान खाने बैठे और कुत्ता भी आ जाये तो उसे भी एक टुकड़ा रोटी का दे देते हैं ।उस घर मे तीन दिन भूखा रहना पड़ा बहुत बड़ी बात थी ।एक माँ अपने बच्चे को भूखा सोते हुये कैसे देख सकती है ? यह बात मुझे कहावत लगती है ।मैने आंखों से बच्चे को भूखे सोते देखा है एक बार बहु भूखी सो जाये बात समझ मे आती है पर बेटा?

"एक कानी कौड़ी नहीं दिये , एक फूटा बर्तन नहीं दिये " इस कहावत को चरितार्थ होते देखी हूँ ।शायद कहावतेंं भी ऐसी ही बनती हैंं ।एक सौ सत्तर रुपये की गृहस्थी है मेरी ।यह मै आज भी सबको बताती हूँ ।

ये दिन भी अपने थे - 79



ठंड बहुत पड़ रही थी ।उस दिन मेरे पति रात को दस बजे आये ।कमरे मे कपड़ा बदलने के बाद लेट गये ।मैने कहा खाना नहीं खाना है क्या ? उन्होने कहा " नहीं , आज तुम निकाल कर दोगी तब खाना खाऊंंगा ।" मैने कहा भाभी तो देती है न । उन्होंने कहा नहीं मै स्वयं निकाल कर खाता हूँ ।मुझे आश्चर्य हुआ कि वह तो जागती है और जेठ को खाना देती है तो इनको भी देती होगी ऐसा मैने सोचा था ।

मै तुरंंत उनके साथ नीचे गई ।वे हाथ पैर धोने लगे और मै खाना निकाली ।भात बहुत ठंंडा हो चुका था ।भूसे के सिगड़ी का भूसा और लकड़ी के कोयले सब राख बन चुके थे ।भात निकालने के बाद दाल का लोटा उठा कर दाल पूरा ढाल दी क्योंकि और कोई तो खाने वाला था नहीं पर यह क्या ? बिल्कुल थोड़ा सा दाल था ।मैने लोटे के अंंदर के दाल को हाथ की उंगलियों से पूरा निकाला।सब्जी भी थोड़ी सी ही थी ।उन्होनें मुझसे कहा कि दो हरी मिर्च देना ।मै अंदर से दो हरी मिर्च लाकर दी ।

उन्होंने मिर्च को भात के उपर खड़ा रखा और मजे से खाने लगे ।वे खाते तक कभी पानी नहीं पीते थे ।पूरा दाल और भात को मिला लिये थे ।उसमे सब्जी भी मिला लिये और मजे से एक कौर भात खाते थे और मिर्च खाते थे ।मै तो चुपचाप देख रही थी ।मुझे लगा कि खेत से काम करके आने के बाद नौकर को बचा खाना देते है और वह हरी मिर्च क साथ चुपचाप खा लेता है , वैसे ही खा रहे है ।यह सिलसिला एक सप्ताह तक चला ।उस बीच रात का तापमान एक दिन आठ डिग्री हो गया था । इतनी ठंड और ठंडा खाना देखकर मै सोची कि रात को मै अलग से उनके लिये भात बना लिया करुं।मै अपनी जेठानी से बात की तो उसने मना कर दिया और कहा कि सास कहेगी कि अलग से खाना बनाना चाहती है ।मै चुप रही ।

एक दिन मै खाना परसने के बाद देखी कि भात कम है ।एक कटोरी ही था ।दाल को मै अलग कटोरी मे निकाल कर रख देती थी ।सब्जी का भी ध्यान रखती थी ।मै तो उपर चली गई ।रात को दस बजे आने के बाद मै साथ मे नीचे आई और भात निकालने लगी तो मैने देखा कि बहुत सा भात है ।उसे निकालने पर देखी कि पचपचा रहा था ।याने पानी छूट रहा था ।मुझे याद आया कि सुबह बहुत सा भात बचा था तो मै अंदर देखने गई ।मैने देखा कि बड़े से कटोरे मे भात नहीं था पर वह वैसे ही रखा था ।मै तुरंंत समझ गई कि यह भात सुबह का है ।अब मन मे कुछ सोच कर सो गई ।

दूसरे दिन मै अपनी सास से बोली कि भात छै बजे बनता है , यह रात को दस बजे तक ठंडा हो जाता है ।मै रात को भात पका लूं क्या? पहले तो वह चौकी , उसके चेहरे पर आश्चर्य का भाव आया और थोड़ा सोच कर बोली कि बना लेना ।मै उस दिन नहीं बनाई पर खाने का ध्यान रखी ।रात को इनके आने के बाद बात की कि कल से मै अलग से भात बना दूंगी ।वह भी पहले चौके फिर ठीक है बोले ।

मै खुश थी कि अब गरम खाना मै अपने पति को खिला सकुंगी । मै दूसरे दिन भात बनाने के पहले भूसे की सिगड़ी और कोयले की सिगड़ी को गोबर से लिपी ।मै वहा कभी भी चुल्हा और सिगड़ी कै लिपते नहीं देखी थी ।कभी कभी मेरी सास ही लिपती थी ।मै सिगड़ी भर कर साढ़े नो बजे चांवल चढ़ाई ।दस बजे तक बन गया ।दाल ओर सब्जी को भी गर्म कर ली ।

आने के बाद खाने बैठे तो बहुत खुश थे ।सुबह तो एकदम गर्म दाल भात खा कर जाते थे ।खाना सास ही देती थी ।एक कटोरे मे दाल देती थी । भात के उपर थोड़ा सा दाल डालते थे और बाकी दाल पीते थे ।सब्जी भी एक प्लेट भर कर देती थीं ।टिफीन मे छै रोटी और एक पाव भिन्डी या आलू बना कर रखते थे ।वे दोस्तों के साथ खाते थे ।

एक दिन मै पूछ ली कि दिन को इतना सारा खाते हैं और रात को सूखा भात मिर्च के साथ खाते है ।ऐसा क्यों? मै तो देख चुकी थी पर उनसे जानना चाह रही थी ।वे बोले सुबह माँ देती है रात को भाभी तो अंतर तो रहेगा ।मुन्नी जागती रहती थी मैने पूछा कि मुन्नी क्यों नहीं देती तो बोले देती थी मैने मना कर दिया ।इतनी रात को क्यो लोगों को परेशान करुं ।स्वयं निकाल लेता हूँ ।मैने कहा भाभी नहीं देती क्या ? तो बोले नहीं वह रात को अपने कमरे मे रहती है ।जागती है तब भी नही देती।हम तीनों भाई जब भी देर से आते हैं तो निकाल कर ही खाते है ।अब तो शादी हो गई है तो तुम देती हो तो अच्छा लगता है ।मै मुस्कुरा दी ।मुझे अफसोस हुआ कि अब तक मै ध्यान क्यों नहीं दी ।

धीरे धीरे जेठानी जब जेठ की थाली निकाल कर कमरे मे ले जाती थी तभी मै इनके लिये भी दाल और सब्जी अलग कर देती थी ।जेठ ये सब नहीं खाते थे पर उनकी थाली मे बहुत सी चीजे दिखनी चाहिये थी ।वे तो रोज रात को मुर्गा मटन ही खाते थे ।अब सास को भी अच्छा लगता था कि सुबह चौका साफ सुथरा गोबर से लिपा हुआ मिलता था ।

यह ज्यादा दिन नही चला ।मुन्नी की शादी न होने के कारण किसी न किसी बात पर गुस्सा होती तो कहने लगती कि बड़ी साफ सफाई वाली आई है ।भात अलग से बनाती है पानी अलग से भरती है ।कपड़े अलग से धोती है।मेरे कपड़े बाई नहीं धोती थी तो मै स्वयं धोती थी ।इनके कपड़े भी सास डुबा कर रख देती थी और मुझे धोने बोलती थी ।मै धोकर रखती थी तब ससुर उसे प्रेस करवा कर लाते थे ।

दो कमाने वाले बेटे थे ।पैसा ससुर के हाथ मे देते थे पर खाने मे भेद था ।कभी एक माँ ने भी नहीं देखा कि बेटा रात को क्या खाता है ।जेठानी पर सबका बहुत विश्वास था ।वह सबका करती हूँ कहती थी ।बेटे भाभी के विरुद्ध कभी आवाज नहीं उठाये ।छोटा देवर तो उसे भाभी माँ ही कहता था ।इस तरह कि घटनाये और घरों मे भी होता रहा होगा पर मैने नहीं देखा था ।हमारे घर मे सब बराबर खाते थे और सब को माँ परस कर देती थी ।

ये दिन भी अपने थे - 78



मेरा खाना दिनों दिन कम होने लगा था पर भूख बढ़ रही थी ।दिन मे थोड़ा थोड़ा खाने की ईच्छा होती थी ।डाक्टर ने भी क्ई बार खाने के लिये कहा था ।पर भेरी भूख कुछ अजीब सी थी ।रात को सोने के बाद भी उठ जाती थी कि कुछ खाने को चाहिये ।रात को एक कटोरे मे दाल चांवल सब्जी सब मिलाकर रख लेती थी कभी पूरा खा लेती थी या फिर कभी बच जाता था ।

शाम को सब लोग सात बजे खा लेते थे और सो जाते थे ।कभी मेरे जेठ देर से आते थे ।कभी मेरे पति ट्रेन के छुटने से या फिर ओवर टाइम करने के कारण देर से आते थे ।जिसके पति देर से आये उसे ही जागना पड़ता था ।मेरे पति देर से आते थे तो मै सोई रहती थी क्योंकि दस बजे तक जागने की आदत नहीं थी ।मै खाना भी नहीं देती थी ।

सुबह पति के टिफिन के लिये रोटी सब्जी बनाती थी तो मै भी उसमें से एक रोटी खाने लगी क्योंकि भूख लगती थी । फिर वही ग्यारह बजे दाल चांवल खाती थी ।उसके बाद बहुत देर तक पेट खाली रहता था क्योंकि शाम को आठ बजे खाते थे ।शाम को भी मै सात बजे सास ससुर को परसने के बाद खाने लगी ।क्ई बार सास कहती थी कि पति के खाने के बाद खाना ।शाम को सात बजे आते थे तो सब साथ खा लेते थे पर रात को दस बजे आने लगे तो मै भूख की वजह से शाम को ही खाने लगी ।

दोपहर को भूख लगने लगी तो मै जेठानी को बताई तो उसने कहा कि भात बचा रहता है तो खा लिया कर ।दाल सब्जी कभी कभी ही बचती थी तो मै खाली चांवल ही नमक के साथ खा लेती थी ।इसे सास ने भी कभी देखा तो कुछ बोली नहीं पर कहने लगी कि सब्जी बचा कर रख लिया कर ।यह ज्यादा दिन नहीं चला ।मेरे जेठ का लड़का गुड्डु करीब पांच साल का था ।वह मुझे खाते देख कर वह भी भात खाने की जिद करने लगा पर वह बिस्कुट खाने वाला बच्चा था भात कहाँ से खाता ? भात लेकर छोड़ देता था मै जुठा खाती नहीं थी तो सब गाय को दे देते थे । मेरा कमरा ऊपर था मै कहीं भी जाती थी तो सभी मेरे पायल की आवाज से जान जाते थे।मै सीढ़ी से उतरती थी तो गुड्डु सीधे भात पकाने के बर्तन से ही भात निकाल कर सुखा खाने लगता था ।अब मै उसे नही खाती थी और भूख से पेट जलने लगे तो पानी पीती थी ।वह किसी के कहने पर नहीं अपने मन से करता था ।

मैने यह बात अपनी माँ को बताई ।माँ ने कहा कुछ नास्ता बना देती हूँ ।मुझे तेल की चीजें मना थी तो कुछ नहीं बनाये । माँ ने काका से कहा और काका बहुत सा टोस्ट और काजू किशमिश लाकर रख दिये ।अगली बार जब मै माँ के पास गई तो यह सब लेकर आई ।काका ने कहा दूध बंधा लो पी लिया करो ।मैने कहा पैसा नहीं है तो काका ने कहा कि पैसा मै दूंंगा ।चौक मे घर था तो सब कुछ मिल जाता था ।सामने दूध का बूथ था ।एक पाव दूध मैने लेना शुरु कर दिया ।अब मै कमरे मे ही दूध टोस्ट खा लेती थी ।काका हर महिने एक पाव काजू , एक पाव बादाम , आधा किलो अखरोट और दूध का पैसा देने आते थे ।उनके साथ कोई बात नहीं करता था बैठने के लिये भी नहीं बोलते थे ।इसका कारण मुन्नी की शादी थी ।उस समय एक पाव दूध का महिने भर का साढ़े सात रुपये होते थे ।एक रुपये किलो दूध मिलता था ।

पानी के लिये भी मुझे परेशानी होने लगी तो मै अपने कमरे मे ही एक पीतल की बाल्टी मे पानी भर कर रखने लगी ।एक गुंड मे पानी भरते थे उसमे भी एक ही गिलास मे सभी पानी पीते तो कोई ऊपर से पीता तो कोई उसे जुठा करके पीता था । शरीर पौष्टिक आहार मांग रहा था पर मेरा खाना तो बिना सब्जी के दाल चांवल ही था । मेवे और टोस्ट उसकी जगह नहीं ले पा रहे थे ।अब तो रोज शाम को और रात को उल्टी होने लगी थी ।कभी कभी रात को भी दस ग्यारह बजे डाक्टर के पास जाना पड़ता था ।

एक दिन सास ने कहा कि कहाँ कि बिमार लड़की को बहु बना लिये ।हमारी लड़की को भी बहु नहीं बना रहे है ।कभी मायके कभी ससुराल आना जाना चलते रहता था । इसी बीच मैने शासकीय नौकरी के लिये फार्म भरा ।उसका साक्षात्कार भी हुआ और शासकीय शिक्षक की नौकरी मिल भी गई ।अभनपुर के पास खोरपा गांव मे ।इतनी तबियत खराब मे मै ज्वायन कर ली ।मै गाड़ी चलाती नहीं थी तो अभनपुर से बैलगाड़ी मे आती जाती थी ।

अब जेठानी ने भी तेवर दिखाये ,खाना बनाने के लिये तो मै चार बजे उठ कर सब खाना बना कर जाती थी और आने पर खा कर सो जाती थी ।इस परेशानी मे मुझे अल्सर हो ही गया और मै मेडिकल छुट्टी पर रहने लगी यह चार साल चला ओर मैने एक दिन काका के डांंटने पर इस्तीफा दे दिया ।

अधिकतर समय लेटे लेटे ही बीत रहा था ।खाना बनाते हुये भी जमीन पर लेट जाती थी ।सब लोग कहते कि खाना नहीं बनाने का बहाना है ।सुबह का खाना मै पूरा बनाती थी तो शाम का जेठानी बनाती थी ।अब काम बट गया था ।रात को मै आराम करती थी ।एक दिन मैने देखा कि रात को मेरे पति खाने के लिये उतर नहीं रह रहे थे , ठंड के दिन थे ।मैने पूछा कि खाने नहीं जा रहे हो? तो बहुत जिद किये कि आज तू निकाल कर देना ।

मै नीचे आकर खाना निकाली ।भूसे की सिगड़ी तो कब की ठंडी हो चुकी थी और उस पर रखा भात भी ।
बस उस रात जो देखा तो मै रोज खाना देने लगी ।आखीर मैने देखा क्या ?

जीवन कट रहा था ।एक साल एक युग बन गया ।दूसरा साल और भी कांंटो से भरा चल रहा था ।शादी मुझे एक बोझ लग रही थी ।खाना जब माँ देती तो नहीं नहीं बोलते थे ।दस बार दूध पी लो बोलती ।नास्ते से भरे डिब्बे अब सपने मे आते थे यहाँ कपड़े खुद धोते थे ।मायके मे एक दाग हो तो फाफी पर चिल्लाते थे ।घी के बिना दाल नहीं खाते थे ।हर दस दिन मे खीर पूड़ी बनती थी ।

कितना बदल गया था जीवन ? खुशियों को दूर से देखते थे छुने की कोशिश मे ऊंगलियां जलती थी । पेट की जलन पेट मे ही रही ।ऊंगलियों की जलन ऊंगली मे ही रही ।कभी मिले नहीं ।यह जलन कभी मन मे नहीं उठी , आंंखो पर नहीं आई ।पता नहीं तब क्या होता ?

ये दिन भी अपने थे - 77



मै होली के बाद जब मायके से ससुराल आई तो मेरे भाई के साथ मेरी ननंद मुन्नी को शादी के लिये बोलने लगे थे ।मेरी दीदी जीजाजी ने "हाँ ले लेंगे ऐसा कह दिया था ।"एक साल गुजरने के बाद ऐसी घटना हो गई की सब कुछ खतम हो गया ।

मेरे ससुराल के पीछे की तरफ मेरे पिताजी के मित्र दयाशंकर शुक्ला जी रहते थे ।उनका बेटा विजय शुक्ला मेरे भाई के साथ छटवीं से सेंटपॉल स्कूल मे पढ़ा था ।वह अक्सर वहाँ आता था। ।कालेज से आने के बाद आता था तो रात होने के कारण रुकता नहीं था इस कारण मेरे घर नहीं आता था।छुट्टी रहने पर चार पांच बजे आ जाता था। आने पर मेरी जेठानी ही उससे जादा बात करती थी ।कभी कभी चाय बिस्कुट मेरी ननंद देती थी ।थोड़ा बहुत हंसी मजाक चलते रहता था ।

मेरे ससुराल मे गाने का शौक जेठ जी को छोड़ कर सभी को था ।मेरो ननंंद और जेठानी दिन भर शेरो शायरी और और फिल्मी गाने गाते रहते थे पर बहुत धीमी आवाज मे ।हमारी सास फिल्म तो बहुत देखती थी पर वह भजन गाती थी ।बढ़िया डोलक भी बजाती थी ।आरती गाती तो थाली बजाती थी ।मेरे डाक्टर देवर को भी बहुत गाने का शौक था।फिल्म और गाने इन सब की कमजोरी थी ।ये लोग किसी बात पर बहस कर रहे थे तो जेठानी ने मुन्नी से कहा कि तुम रवि का कालर पकड़ सकती हो ? वह तुरंंत " हाँ "बोल दी। यह बात हिम्मत को लेकर हो रही थी । मुन्नी अकेले कहीं नहीं जाती थी असल मे उसे अकेले जाने नहीं देते थे ।दिखने मे गोरी और सुन्दर थी ।वह आठवीं तक ही स्कूल मे पढ़ी थी ।उसके बाद की पढ़ाई बी ए तक प्राइवेट ही की थी ।रास्ते मे चलती तो जेठानी का हाथ पकड़ कर चलती थी ।उसे हमेंशा लगता था कि लड़के उसको देखते है ।इस बात को लेकर मेरा एक देवर क्ई लोगों को पीट चुका था। उर्दू बहुत अच्छा समझती थी और बोलती भी थी ।मुसलमानों की अधिकता के कारण उसकी सहेलियां भी मुसलमान थी और वह अपनी छठवीं से आठवीं तक की पढ़ाई भी उर्दू स्कूल मे की थी ।

इस शर्त के पीछे उसे अपनी हिम्मत को दिखाना था।कॉलर पकड़ कर अपने को बोल्ड दिखाने का साहस था ।इत्तफाक से शनिवार के दिन मेरा भाई अपने एक दोस्त के साथ आया था। इनकी शर्त भाई के कालर पकड़ने के बदले दो सिनेमा दिखाने का था ।मै तो सिर्फ़ कालर पकड़ने की बात ही सुनी थी । वह चाय लेकर आ रही थी तो मैने उसे ऐसा करने के लिये मना किया पर वह मुस्कुरा दी । चाय देने के बाद कप उठाने आई उसके पहले वह रवि का कॉलर पकड़ ली और तुरंत छोड़ दी ।उसके बाद अंदर चली गई ।जेठानी बैठक के दरवाजे पर खड़ी हंस रही थी ।बार बार अंदर की ओर मुन्नी को देखती और बैठक मे भाई को देखती थी ।मै सहमी हुई खड़ी थी ।भाई ने मुझसे पूछा ये क्या था ।मै बोली उसने तेरी कॉलर पकड़ी थी ।उसके बाद जेठानी ने सारी बात बता दी ।

भाई झेंपते हुये मुस्कराया ।उसका दोस्त बार बार रवि की ओर देख रहा था। थोड़ी देर मे वे लोग उठ कर चले गये ।हमारे घर मे जेठानी और मुन्नी के बीच मजाक चलते रहा ।मुन्नी के चेहरे पर जीत की खुशी थी ।जेठानी शर्त हार कर भी खुश थी कि उसने तीर मार लिया है ।रात को मजाक चलता रहा ।मैने अपने पति को बताया तै वे बोले बहुत गलत हुआ है ।रवि और मुन्नी की शादी की बात चल रही है ।मुन्नी को ऐसा नहीं करना था ।मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रहा है ।

दूसरे दिन कालेज मे भाई के और दोस्तों को यह बात पता चली ।लोग भाई का मजाक बना रहे थे कि जो लड़की दो सिनेमा के लिये तेरा कॉलर पकड़ सकती है उसे कोई भी सिनेमा दिखा कर कही भी ले जा सकता है। वहीं पर रवि से उसके दोस्तों ने कहा कि तू उस लड़की से शादी मत कर ।भाई भी तैयार हो गया कि उसे अब मुन्नी से शादी नहीं करनी है ।

मै जब मायके गई तो भाई ने साफ कह दिया कि उसे मुन्नी से शादी नहीं करनी है ।ससुराल वाले तो अकेला बेटा और इंजीनियर देख कर लार टपका रहे थे ।खेती भी अच्छी थी ।सम्बन्ध अब बिगड़ने लगा था ।हमारे घर से कोई भी पहल नहीं हुआ ।ये लोग गये पर पिताजी चुप रहे ।मैने सास को बताया कि कॉलर वाली घटना के बाद रवि शादी नहीं करना चाहता है ।

एक दिन सब लोग मुझसे लड़ने लगे कि जाकर अपने भाई से बोलो कि मुन्नी से शादी करे।मुन्नी भी बहुत मुंह खोल रही थी ।उसने कहा कि ये तो मजाक था ।इतनी सी बात के लिये धोखा दे रहे है ।धोखेबाज है ।शादी करेंगे बोले है तो करना चाहिये ।झगड़ा हो रहा था उसी समय मेरे पति भी आ गये ।बस सब उनको बोलने लगे कि तुम जाकर बोलो कि हमारी लड़की से शादी करे ।वे तो चुप ही रहे।सब निपट कर खाने बैठ गये ।बहुत देर हो गई थी ।मेरे से कोई बात नहीं किये पर उम्मीद की एक किरण मेरे से ही नजर आ रही थी ।

सब अपने अपने कमरे मे चले गये ।दो तीन दिन मे सब सामान्य हो गया ।हमारे घर के सामने कुत्ते के पिल्ले थे मुन्नी ने उसका नाम रवि रख दिया .घर के मुर्गे को रवि घर बछड़े को रवि नाम दे दिया था ।हर तरफ रवि ।अब मेरे और उसके बीच दूरी शुरु हो गई थी ।इस लड़ाई के चलते मेरा एक एबार्शन हो गया। डाक्टर देवर के आने पर बहुत लड़ाई हुई ।इसमे मुन्नी ने कहा" जाकर रवि से कहो कि मुझसे शादी करे ।"डाक्टर ने भी कहा "ये तो मजाक था ,असल मे उनकी नियत ही नहीं थी शादी करने की ।अपनी लड़की दिये हैं तो हमारी बहन को भी ले।"

इस झगड़े और तनाव के कारण मेरा एबार्शन हो गया ।उस समय डाक्टर कमल वर्मा को दिखाये थे ।डाक्टर ही लेकर गया था ।वह डाक्टर वर्मा हमारी परिचित थी वह मेरे मायके के रहन सहन को जानती थी ।उसने कहा कि "इसको खाना खिलाते हो कि नहीं ।तुम डाक्टर हो तुमको पता होना चाहिये कि यह कमजोर है और किसी तनाव की वजह से यह हुआ है ।इतनी पढ़ी लिखी है इसका ध्यान रखा करो ।दवाई देती हूँ रुकना होगा तो रुकेगा आगे ईश्वर की ईच्छा ।एक डाक्टर के घर मे ऐसा होना ठीक नहीं है ।"

हम लोग वापस आ गये ।सब इस बात से दुखी तो थे पर मेरी जेठानी को कोई फर्क नहीं पड़ा ।डाक्टर बी सी गुप्ता जो मेरे पेट दर्द का ईलाज कर रहे थे वे भी कहते थे कि खाने का ध्यान रखो ।पर खाने का हाल तो बहुत खराब था। मुझे शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाने मे बहुत मेहनत करनी पड़ी पर मन का क्या वह तो मष्तिस्क पर प्रभाव डालता ही है ।