रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 14


बचपन में मै जगह बदल बदल कर पढ़ती रही तो दोस्त भी अलग अलग बनते रहे ।आमापारा स्कूल में जब पढ़ने गई तो वहाँ सिर्फ पांच लड़कियां थी ।पर मेरी दोस्ती सुखबती नाम की लड़की से हुई ।सुखबती स्कूल और मेरे घर के बीच मेहतर पारा में रहती थी ।

वह नाक के दोनों तरफ डिजाइन वाला फुल्ली पहनी थी । मैं उसे अजूबे की तरह देखती थी ।उसके पास से एक अलग तरह की गंध आती थी ।हम पांच लड़कियों में हम दोनों ही अधिक से अधिक प्रश्नों के उत्तर दिया करते थे ।धीर धीरे हमारे बीच दोस्ती हो गई ।

हमारे घर जाने का रास्ता भी एक ही था ।एक दिन मैं स्कूल जाते हुये उसे देखकर उसके घर चली गई ।मैने ऐसा घर गांव मेही देखा था ।छोटे छोटे दो कमरे और लम्बा सा बरामदा था । बरामदे के दोनों किनारे पर छोटी सी दीवार थी जिस पर बैठ सकते थे ।

मैं उस छोटी सी दीवार पर बैठ गई । उसके घर के लोग अजूबे की तरह देख रहे थे ।हम लोग स्कूल आ गये । कुछ दिनों के बाद मेने उसकी माँ को हमारे घर के सामने का रोड़ झाड़ते हुये देखी । मैने माँ से बताया की इसकी बेटा सुखबती मेरे साथ पढ़ती है और मेरी सहेली है । मै उसके घर भी गई थी ।

बस यह सब सुनकर माँ का गुस्सा फूट पड़ा "अरे वे लोघ मेहतर हैं उनके चर क्यों गई थी ,उससे दूर बैठा करो । अब स्कूल से आकर नहाया करो ।" मैने पूछा "क्यों"? तो माँ ने कहा अछूत है ,देखो गंदगी साफ करते है और सब के घरों की टट्टी साफ करते हैं ।

मै तो सब भूल गई खेलने लगी पर रात को माँ ने काका से बताया ।काका ने कहा स्कूल में सब साथ पढ़ते है ।इसे ये सब मत सिखाओ।गाँधी जीने इनका उद्धार किया है । इन्हें हरिजन कहा है ।ये मेहतर नहीं हरिजन हैं ।

समय गुजर गया ।मैने स्कूल बदल दिया ।बाद में छठवीं में दानी स्कूल चली गई ।एक दिन मैने देखा वह हमारे घर का पैखाना साफ करने आई थी ।वह सामने से गुजरी तब दोनों की नजरें मिली ।वह बताई कि उसकी शादी हो गई है ।कभी कभी आती थी ।

मैं उसे हमेंशा याद करती थी ।कभी कभी उस बस्ती में दूसरे घर की तरफ दिखती थी ।एक दिन मैं अकेले जा रही थी तो वह दिख गई । हमलोग बहुत देर तक बातें करते रहे । उसने अपने घर चलने को नहीं कहा और मैं सोचती रही कि वह पहले की तरह अपने घर ले जायेगी ।अब जब भी मिलते मुस्कुरा देते बात नहीं करते थे ।

यह दोस्ती एक याद बन कर रह गई ।दोस्त बनते है ।याद भी रहते है । बहुत से दोस्त इसी तरह से बिछड़ जाते है ।काका ने कहा जरुर की गाँधी जी ने इनका उद्धार किया है पर समाज ने उसे हमेंशा अपने से दूर रखा ।कुछ शादियां भी हुई थी पर समाज ने उसे स्वीकार नहीं किया । जातिगत दूरियां आज भी दिखाई देती है ।

आज एक समाज की बात भी करते है ।आरक्षण हटाने की बात करते है ।पर जातिगत एकता को स्वीकार नहीं करते ।आज के युवा जाति को नहीं पेशा को एक मान कर विवाह कर रहे है ।पेशे का भी वैश्वीकरण हो रहा है ।जातियां टुट रही हैं ।एक नया समाज बन रहा है ।जिसे अब हर परिवार स्वीकार कर रहा है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें