रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 54


फाफी की बेटी गोदावरी को तीन साल दीदी ने रखा ।उसे सिहोर के सारे रास्ते पता थे ।उसे दुकानदार भी पहचानते थे कि मैडम के घर बच्चों को देखने के लिये रखे हैं।पर गोदावरी अपनी माँ की तरह नहीं थी ।वह कब दीदी जीजाजी के पैसे निकालती कोई नहीं जाधता था ।उसने दीदी से एक पेटी खरीदवा ली थी ।सिहोर में लाख की चुड़ियां बनती थी ।दीदी जिस बाड़े में रहती थी उसके बाहर ही चुड़ियां मिलती थी ।गोदावरी बहुत सी चुड़ियां और मेक्अप का सामान लेकर रखी थी ।

एक दिन उसने पेटी में ताला लगाया तब दीदी ने पूछताछ की ।वह ठीक से जवाब नहीं दी क्योकि वह एक फ्राक ही लेकर आई थी ।दीदी ने एक दिन ताला खोलकर देखा तब पता चला कि इतना कुछ इसमें रखा है ।कुछ नोट भी थे करीब पांच सौ थे ।दीदी ने सब कुछ वैसे ही रख दिया ।अब वह बड़ी भी हो रही थी और सुन्दर दिखने लगी थी ।उसने बाजार में कुछ लोगों से दोस्ती भी कर ली थी ।दीदी गर्मी की छुट्टियों में आई ।दीदी के कहने के पहले ही फाफी ने कहा कि अब गोदावरी को नहीं भेजेगी । दीदी ने भी हाँ कह दिया ।

भाग्य की बात थी धमतरी से गोदावरी के लिये रिस्ता आया और शादी तय भी हो गई । उसी गर्मी में शादी है गई ।गोदावरी अपना सामान लेकर आई थी ।रजाई तकिया और बहुत सा मेकअप का सामान था ।दीदी ने तीन साड़ी और मोटा पायल , एक चांदी की चेन खरीद दी ।एक हजार रुपिया दिया ।माँ ने भी तीन साड़ी और एक हजार रुपिया दिया ।साथ ही आधा बोरा चांवल दिया तब चांवल दाल बोरे में मिलता था ।एक बोरे में सौ किलो याने एक क्विंटल राशन रहता था ।बीस किलो लाखड़ी की दाल याने पांच काठा दाल दिया गया ।

बहुत धूम धाम से शादी हो गई ।लड़का बैंक में चपरासी था ।उसका जीवन बढ़िया चल रहा था । दो लड़कियां हो गई थी ।एक दिन रात को गाय को पैरा डालने गई थी उसके पीछे चिमनी जल रही थी ।अचानक आग लग गई और गोदावरी जल गई ।इतना जल गई थी कि उसकी मृत्यु हो गई ।दो बेटियों को छोड़कर चली गई ।पुलिस केस हो गया पर मृत्यु रहस्यमयी रही ।

फाफी के दूसरे पति के तीनों बच्चे नहीं रहे ।फाफी जहाँ खड़ी होती वहीं रोने लगती थी ।उसके आंसू देखकर माँ काका के भी आंसू निकल जाता था ।यह भी एक कारण था हम लोगों के प्रति प्यार का ।

माँ की तबियत खराब हुई तो फाफी ही देखती थी तब फोन नहीं था ।काका सायकिल से शंकर नगर बताने आये थे कि माँ की तबियत खराब है ।मुझे आने के लिये बोलकर चले गये ।मै दूसरे दिन गई ।बेटा भी साथ में था।चार दिन फाफी ने माँ का साथ नहीं छोड़ा।काम निपटाने के बाद फाफी माँ का पैर दबाने बैठ जाती थी ।कोई भी आता तो उसेतबियत के बारे में बताती थी ।आखिर पच्चीस साल का साथ था ।माँ भी बार बार पूछती फाफी कहां है ? फाफी दौड़ कर आती और कहती यहीं पर हूँ ।माँ कहती घर मत जाना घर को देखना गाय को देखना ।फाफी हाँ कहती और मुस्कुराती कि बीमारी मे अपने बारे में नहीं गाय की चिंता है ।

मेरे जाने के चार दिन के बाद माँ को हॉस्पिटल ले गये ।तब डी के हॉस्पिटल था वहाँ माँ को भर्ती कर लिये ।मै दिन भर रहती थी दीदी रात को सोती थी ।चौथे दिन माँ नहीं रही ।दो पैतीस की घटना है ।हम लोग चार बजे घर गये फाफी रोते जाती और तैयारी करते जाती ।माँ को पांच बजे लाये और जल्दी ही तैयार करके मारवाड़ी शमशान ले गये ।फाफी रात को आठ बजे गई ।पूरे दस दिन के काम मे सब फाफी फाफी पुकारते रहते थे क्योंकि घर का हर सामान के बारे में वही जानती थी ।

वह बार बार याद करती थी कि हॉस्पिटल जाते समय भी माँ ने घर देखने की बात की ।दस दिन के बाद मै मेरी भाई बहु इन्दु और भाई रवि ही रह गये थे ।काका ने कह दिया कि वे उसी घर में रहेंगे ।दीदी काका को लेकर आ गई ।बाद में वे मेरे पास रहे ।फाफी के लिये पूरा घर खुला था ताला चाबी उसे दे दिये ।घर में करीब पांच किलो घी था ।गाय तो बांट दिये ।

फाफी को घर की साफ सफाई के लिये और तुलसी मे तथा माँ की फोटो के पास घी का दीपक जलाने के लिये बोल कर हम सब अपने अपने घर आ गये ।मै हर शनिवार को माँ के घर जाती थी और खाना भी बनाती थी ।फाफी ने कभी खाना नहीं बनाया और न चांवल लेकर गई ।उसने कुछ नहीं लिया ।महिने के साठ रूपये दे देते थे ।भाई ने बाद में मकान बेच दिया ।सारा सामान बाट दिये ।फाफी ने एक गुंडी मांगी जो उसकी ही थी ।वह गिरवी रखी थी जो डुब गई थी ।

इन्दु उसे साड़ी और पैसे देने जाती थी ।मकान तो रहा नहीं पर पेंशन के रुप में कुछ रख ले कह कर देते थे ।सात साल उस घर की साफ सफाई करती रही ।किराये दार थे पर वह आंगन झाड़ कर आ जाती थी ।अब वह एक घर और काम करने लगी थी पर खाना अपने घर पर खाती थी ।रात का खाना एक घर पर पहले से खाती थी ।अब उसके पति की पहली पत्नी का छोटा बेटा ही सब कुछ था ।उसने मकान भी उसे दे दिया ।तीन साल पहले वह अपनी अंतिम यात्रा पर चली गई ।पहले पति की बेटी वहीं रहती है ।दोनो भाई बहन प्यार से रहते है जिनके बीच दूर दूर तक खून का रिस्ता नहीं है ।

एक घटना याद आती है ।माँ जब खाना बनाती तो फाफी आस पास ही काम करते रहती थी ।माँ कुछ मांगती तो लाकर देती थी ।सब्जी पकने के बाद माँ एक कटोरी में सब्जी निकाल कर फाफी से कहती फाफी चख तो ।फाफी को जो कहना होता कहती थी ।फाफी सब्जी को पास करती थी ।माँ भात को अग्नि देव को समर्पित करती और सब्जी को फाफी को ।तुरंत काका कहते सब्जी का भोग फाफी को लगा दिये ।माँ मुंह बना कर चुप हो जाती और काका हंसने लगते थे ।

फाफी ने राजसी जीवन से मजदूर तक का जीवन जिया पर खुश रही ।ईमानदार रही ।हमें कभी शिकायत का मौका नहीं दी ।माँ के जाने के बाद भी वो घर घर ही लगता था जैसे माँ अभी आ जायेगी । फाफी को हमारा पूरा परिवार ही नही रिस्तेदार भी याद करते हैं ।

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