गुरुवार, 12 मई 2016

कविता - आँख मिचौली




कहाँ हो तुम ?
कैसी हो तुम ?
आ भी जाओ ,
कहाँ हो जाती हो गुम?
वाष्प तुम्हे बुला रही हूँ ।
आओ कुछ छण साथ हो लें
तप तप कर बेचैन हूँ
अपनी ही टकराहट से
अपने को ही जला रही हूँ ।
कहाँ गई वह छप्पर ?
सुखरु तुमने खपरे बनाना
क्यों बंद कर दिया ?
मैं कहाँ जाऊं ?
चारो तरफ सीमेंट के
जंगल ही जंगल
किसे अपना घर बनाऊ ?
छप्पर पर बैठा करती थी
खपरों के रंध्रो से
कमरों मे झांका करती थी
दो छण का विश्राम
लिया करती थी ।
लाल मटके के पानी की
ठंडकता को सहसूश करती थी ।
काली मरकी के बासी को
झांका करती थी ।
चुन्नु मुन्नु के साथ
छुपा छुपी खेला करती थी ।
रंध्रो से जब कमरे में जाती तो
मुझे देख अपने हथेलियों से
छुना चाहते थे
बार बार मुझे पकड़ा करते थे ।
मै अटखेलियां करती और
वापस लौट आती थी ।
खप्परों पर विश्राम कर
चुन्नु मुन्नु के संग खेल
मटकों को छूकर
बासी को छांक कर
मै जब वापस लौटती
तो मेरी गरमी शांत हो जाती ।
आज सुखरु खो गया
चुन्नु मुन्नु रहने चले गये
पक्के मकानों में।
सीमेंट के छत पर
सर फोड़ती हूँ
बार बार टकरा कर
अपने आप को कोसती हूँ ।
तप तप कर जल रही हूँ ।
आओ वाष्प एक बार
मेरे साथ  खेल लो
इस आँख मिचौली में
तुम ही रहती हो मेरे साथ
वाष्प की बूंद इठलाती बोली
नहीं धूप तुम और तपो
जितनी सह सकती हो सहो
फिर आती हूँ मैं
खूब खेलेंगे आँख मिचौली
छुपा छुपी
देखना एक दिन तुम्हे मै
आकाश में  बंद कर दूंगी
फिर मै ही रहुंगी ।
आज तुम हो ,कल मैं
यही आँख मिचौली खेलेंगे
आँख मिचौली ।
सुधा वर्मा ,  9-4-2016


गुरुवार, 5 मई 2016

कविता -हाँसत बिहनिया

हाँसत बिहनिया
आगे मोर अंगना
चिर ई चिरगुन चहके लगिन
गुलाब चमेली महके लगिन
धान के बाली सोन कस दिखे लगिस
सुरूज के सोनहा किरन
डारा पाना म नाचे लगिस
नान नान  लहरा ल दऊंड़ा के
तरिया के पानी हांसे लगिस
बछरु मेछरावत हे
बहुरिया लुगरा ल मुंह म
चपक के हाँसत हे
लइका ह कांख कांख के
बोरिंग ल टेरट हे
हंऊला ह पिंवरा दांत ल
निपोरत हे
वाह रे बिहनिया
कइसन खलखला के हांसत हे
हाँसत बिहनिया
बड़ सुग्घर लागत हे
सुधा वर्मा ,रायपुर
1-10-2015

रविवार, 1 मई 2016

कविता -हाँसत धरती

हाँसत धरती
मुस्कावत किसान
धरले नांगर
चलरे किसान
बतर बियासी के बेरा आगे ।
ओढ़ले खुमरी
धरले बेल पान
रद्दा म हावय धतूरा
दूध के धर लोटा
चल चल जाबो सिव धाम
हाँस़त धरती
मुस्कावत किसान
बारी बखरी हरियागे
कका दाई खुशी म मात गे ।
अंगना के मखना छानही म चघगे
बारी के खेखसी फरगे
खीरा ह दांत देखावत हे
अम्मारी पटवा पानी म नहावत हे
चल चलरे किसान
धर के नांगर ब्ईला
अउ धरले तुतारी
नाहवत हे खेत
तहूं नहा ले किसान
हाँसत धरती
अउ मुस्कावत किसान ।
सुधा वर्मा ,रायपुर

कविता -तर्पण

तर्पण --
पिता का कर त्याग
खुशियां मना रहा
पिता गये हरिद्वार का ढोल बजा रहा ।
पांच वर्षों बाद एलान हुआ
पिता ने तोड़ा दम हरिद्वार में
शोक नहीं मनाना है
जो आता है उसे जाना ही है
गीता ने हमें बताया है
आत्मा अमर है ।
पिता जी अमर है
खाना पीना तो फिजूल खर्च है।
पर हर वर्ष होता एक आयोजन
पित्रपक्ष पर गरीबों का भोजन ।
एक दिन पिता ने सोचा
देख आऊं बेटे को
हो अब रंजीस दूर ।कुछ पल जी लूं बच्चों के संग ।
पिता खड़ा द्वार पर
बेटे ने पहचाना नहीं
था उस दिन भोज वहाँ
पंक्ति में बैठ पिता ने
अपने बेटे के हाथों से खीर पूरी पाई ।
बेटे ने कहा सबसे
मेरे पिता कि आत्मा को शांति मिले ,
दुआएं देना
मुझे और कुछ नहीं चाहिये
पिता के मन की शांति चाहिए ।
बेटे के हाथों से खीर पूरी ले तृप्त हुआ मन ।
पिता के अश्रु लगे झरने ।
बेटे ने पूछ लिया , कुछ और चाहिये ?
पिता ने कहा नहीं तुम मुझे मेरा बेटा नहीं दे सकते ।
बुझे मन से लौट गया
पित्र पक्ष का पितर
जिवित ,पर
मन को आंसूऔं के तर्पण से भिगोता
फिर निकालता  , फिर डुबोता
जैसे मन नहीं , काला तिल हो
वह पिता
काला तिल हो / वह पिता ।
सुधा वर्मा , रायपुर
5-10-2015

कविता -नन्ही परी की पहली सुनहरी सुबह

नन्ही परी की पहली सुनहरी सुबह।
बधाई हो तुम्हें इस दुनिया में
आने के लिये
पिता को नन्हे हाथों से छुने के लिये
बाट जोहती माँ को
अपनी किलकारी सुनाने के लिये
अब गुंजेगी तुम्हारे पायल की छुनछुन
सजे कमरा तुम्हारे घरौंदो से
साड़ियों से बनाओगी घर तुम
छोटे छोटे हाथों से
बनेगी रसोई तुम्हारी
आंगन की अल्पनाओं में डडियां खींचती
जीवन को जोड़ना सीखती
रंगोली में रंग भरती
जीवन को रंगने के लिये
अपने को तैयार करती
आ गई नन्ही परी ।
सुनहरे रंगो से भरा हो
जीवन तुम्हारा
सूरज ने भेजा है
आशीष तुम्हें
अपनी पहली
किरण से
हवा ने भेजी है खूशबू
अपने चमन से
चिड़ियो की चहचहाहट ने
जीवन से लड़ने का पैगाम भेजा है
प्रकृत देगी हमेंशा साथ तुम्हारा
क्योंकि सूरज ने सबको
पहली किरण से मुस्कान भेजा है
माँ की मुस्कुराहट हो तुम
पिता का प्यार हो तुम
घर की शान हो तुम
ले लो पहली किरण की
बधाई तुम
ले लो पहली किरण की
बधाई तुम ।
सुधा वर्मा , रायपुर
9-10-2015

कविता -निभुर

उज्जर चंदैनी
निभुर निंदिया ।
सुग्घर बिहनिया के
अगोरा म
सुतजा अब
खोर के बेड़ी ल लगा दे
पलंग तरी
एक लोटा पानी रख दे
नीक बिहनिया के
अगोरा म
सुग्घर चंदैनी ल
निहार ले
सुत जा निभुर
सुधा वर्मा ,रायपुर
13-10-2015

कविता -जन्मदिन हो रोशन

जन्मदिन हो रोशन -
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बार बार यह दिन आये
घर आंगन हो रोशन
कांटो पर चलते देख
आसमान भी रोया था
बहा अपने आंसू
चरण तुम्हारे धोया था
हवा ने कहा फूलों से
रंग भर दो जीवन मे
कांटो को दूर ही रखना
चिड़ियों ने छेड़ी मिठी तान
तारों ने  भी दी थपकी
कर लो आराम रोशन
बड़ी दूर तुम्हें जाना है ।
कभी छू लेना हमें भी आकर
इंतजार रहेगा तुम्हारा ।
प्रगति के पथ पर
निरंतर बढ़ते रहना ।
रहेगा इंतजार तुम्हारा
जब कर दोगे तुम दुनियां को रोशन ।
रोशन , कर दोगे रोशन ।
सुधा वर्मा  रायपुर
7-11-2015

कविता -अपनेपन का नशा

अपनेपन का नशा
_________________________

नींद का तो है नशा किसी को ।
किसी को है नशा पैसे का ।
दोस्त भी पिला रहा
दोस्ती का पैग
चढ़ रहा नशा अब दोस्ती का ।
दूर खड़ी प्यार भी
चढ़ा रही नशा
बिन पिये प्यार का ।
इसके सामने रह गये
सब नशे बेअसर।
अब चढ़ रहा नशा
भूमि में अपनों का
अपनेपन का ,
रहा न  कोई सामने
इस नशे के
न रही बोतल
न रहा गिलास
रह गया बस
अपनो का प्यार ।

सुधा वर्मा -15-1-2016

-

कविता -ममा दाई

ममा दाई आबे त
लाबे बेल
अउ कलिंदर
तरिया के पैठू
म हाबे बुचरवा
ममा दाईलाबे
बुचरवा वो
ममा दाई वो
ममा दाई वो
लाबे बोइर के
मुठिया ,
अउ लाबे
अमली के लाटा
ममा दाई वो
ममा दाई वो
झटकुन आबे
ममा दाई वो
सुधा वर्मा -1-3-2016--
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कविता -श्रद्धांजलि,पवन दीवान जी को


एक दीवाना चला गया
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आया एक पवन का झोका
दीवाना था वह
छत्तीसगढ़ का ।
जन्मा था वह इस माटी पर
लड़ा था इस माटी के लिये
इस कारण पुकारा सब ने
छत्तीसगढ़ का गांधी।
छत्तीसगढ़ी को बना हथियार
करता रहा अट्हास ।
एक हंसी की गूंज सुन उनकी ,
दौड़ पड़ते सब
कब पहना गेरुवा ,
पता ही न चला ।
छत्तीसगढ़ की धरती
और भाषा के लिये लड़ा सदा ।
पावन धरती राजिम
बनी उसकी अपनी धरा ।
छोड़ा नही समाज को ,
बन सांसद रहा अपनो के बीच ।
जीवन की सीख सिखाते ,
नैतिकता का पाठ पढ़ाते
धर्म को दिशा देते
ले लिया एक विश्राम ।
त्रिवेणी की पावन धरती पर ,
लगा हुआ है कुंभ का मेला ।
आये हजारोंं संतो के बीच,
चुना एक नई राह।
कहा संत ने ,
करो विदा मुझे ,
जाना है अब अपने धाम ।
हजारों संतो ने किया ,
उसके जाने की राह आसान ।
गया संत पवन दीवान ,
छोड़ गया अपने
आदर्शो का पाठ ।
नैतिकता की बात ,
अपनी भाषा ,
अपनी धरती का प्यार ।
कह गया ,आँसू नहीं मुझे ,
भाषा का प्यार देना ,
अपनी धरती को कभी छोड़ न जाना ।
पवन का झोका चला गया ,
छत्तीसगढ़ की धरती का दीवाना
चला गया ।
स्वर्ग है यहीं ।
स्वर्ग है यहीं।
सुधा वर्मा -2-3-2016
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कविता -बिहनिया

बिहनिया
----------
नीक बिहनिया ।
सुग्घर बिहनिया ,
नाचत बिहनिया ,
खेलत बिहनिया ।
हाँसत बिहनिया ,
अटियावत बिहनिया,
राम राम करत बिहनिया ।
जय जोहार ।
सुधा वर्मा ,31-3-2016
🌾💃🏻🌾🌾🌻🌾🌾🌺🌾🌾👯🌾🌾🌝🌾🌾🌞🌼

कविता -गरभ झन कर

गरभ झन कर -
-------------------
हवा के रुख बदलथे
मौसम म परिवर्तन होथे ,
सुरुज कभू उत्तर होथे.
कभू दक्छिन होथे.,
नक्छत्र बदलथे
कभू रासि बदलथे ,
चँदैनी के दिसा बदलथे
चँदा घलो अपन अकार बदलथे ।
बदलत हावय जग सारा
दिन बदलथे तारीख बदलथे
अउ बदलथे बछर
एक बछर जाथे तब.दूसर बछर आथे ।एक जीवन जाथे
तब दूसर जीवन आथे
परिवर्तन ह अटल आय
अउ सब छन भंगुर ।
गरभ झन कर मनुख ।एक दिन सब छोड़ के जाबे
आज करले मौज मस्ती
काली अपन आप ल
समसान के राख म पाबे ।
गरभ झन कर ।
सुधा वर्मा ,2014

समीक्षा
वाह दीदी, जीवन के सत ल संदेस देवत कविता म सुग्घर ढाले हव। चाँद तारा सूरज के बिम्ब ल फलियारे बर थोकुन दिमागी कसरत घलव होये ल चालु होंगे।
नवा छंदमुक्त कविता एकांतिक (?) पाठ के मांग करथे इहि एखर असल आभा ये, घेरी बेरी पढ़े ले नई कविता अपन अरथ ल विस्तारित करथे।
(थोकन जादा गियान बघार डारेंव बड़े भाई मन छिमा कारिहव 😳)
संजीव तिवारी ।6.-4-2016

संस्मरण - डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़ी)

हमर संग म एक डोकरी चघिस ।ओसमय म सीढ़ी नई बने रहिस हे 1974 के बात आय ।मै अपन ममा के बेटी शशि दीदी संग गे रहेंव।ओखर एक बछर के बेटा के मुंडन कराये बर गे रहेन ।

हमध करीब तीन बजे जघे बर शुरु करेन ।एक चट्टान के बाजू म बड़े जन खोह रहिस हे ।जीजीजी  भागबली वर्मा डिप्टी रेंजर रहिस हे ।वो ह कहिस के ये मेर शेर हावय ओखर गंध आवत हावय ।ओखर ठीक पहिली एक झन डोकरी मिलिस ।एक ठन लौठी धरे रहिस हे ।हमर सियान मन लुगरा पहिरे वइसने लुगरा पहिरे रहिस हे ।मइलखोड़हा लुगरा ।बाल बिखरे रहिस हे ।

हमन ओ खोह.ल देखे बर चल देन ।बाद म देखेन के डोकरी आगू आगू जात हे ।हमन भी दीदी के कारण बइठत बइठत चढ़त रहेन ।
जब उपर के सीढ़ी ल चढ़े के शुरू करेन तब ओ ह पाछू म रहिस हे ।हमन चढ़ गेन ।उहें नाऊ रहिस हे ।लइका के मुंडन होगे ।ओ डोकरी दिखत नई रहिस हे ।अब साझ होय ले लगगे ।पुजारी ह कहिस अब जल्दी उतरव नही त रात हो जही ।जानवर आ जथे ।हमन कहेन एक डोकरी हमर आगू आगू आवत रहिस हे..ओ ह पहुँचे नईये .पुजारी कहिस अकेल्ला डोकरी नहीं भाई नई आ सकय ।एक पानी भरत रहिस हे तेन ह हऊंला लेके उतरीस ।हमन उतरेन ।पुजारी उतरिस ।डोकरी कोनो मेर नई मिलिस ।नीचे के दुकान मन म पुछेंन त सब कहिन के अइसना कोनो डोकरी इंहा नई दिखय ।अब तो हमन थरथरा गेन।कोन रहिस हे ।भूत परेत तो नोहय।हमन शेर के बात बतायेन ।डोकरी अऊ शेर के बात सुन के नीचे के पुजारी कहिस भागशाली आव भाई तुमन देवी कोई आरो पा लेव अउ देख घलो लेव ।वो देवी आय अपन सवारी संग साक्षात तुमन ल अपन धाम तक लेगे ।
अइसे हमन वास्तव म अनुभव करे रहेन ।मोर काका ( पिताजी ) डोंगर गढ़ के हाई स्कूल म प्राचार्य रहिस हे ।मोर बड़े बहिनी डा. सत्यभामा आड़िल के बाद कोनो संतान नई रहिस हे ।तब हमर बड़े दादी ह दूसर बिहाव करे बर कहि दिस ।काका चार साल तक गांव वापस नई अइस । हमर माँ के सहेली मिश्रा चाची रहिस है ।ओ ह मानता रखिस अउ मै पैदा हो गेंव ।बड़े दीदी ले बारह साल छोटे ।तब तक काका ह जगदलपुर म प्राचार्य होगे रहिस हे ।चाची के बेटी जेन मोर ले एक साल बड़े हे ओखरो नाम सुधा हे।ओ चाची अपन बेटी के नाल ल हमर माँ ल पिलाये रहिस हे ।एक माँ के मातृत्व दूसर माँ के गोद सुना नहीं देख सके ।एक माँ ,एक सहेली के बहुत बड़े उदाहरण आय मिश्रा चाची ।हमर घर म खुशी आगे ।येला मिश्रा चाची ह डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी दाई म एक हऊंला पानी अउ एक माला  साल भर चढ़ा के पूरा करिस ।ये मोर बिहाव होय के बआद भी चढ़ावत रहिस हे .बारहो महिना चढ़ावय अउ साल म एक बेर जाके पइसा देवय ।ऊक माँ जेन अपन लइका के नार जेन ल जमीन म गड़ाय जाथे तेन ल मोर माँ ल पियइस ।माँ के दरबार म मानता रखिस,अउ ओला सालो साल पूरा करिस ।एक मोर माँ जेन जनम देय के बाद बम्लेश्वरी ल नई भुलइस ,मोर मुंडन भी उहें होय हावय ।हमन जाते राहन ।मोर लइका बर भी मोर माँ ऐखरे अँगना म लेगिस ।मै तै तीन माँ के परेम पायेंव ।एक बेर बम्लेश्वरी संग भेट होगे ,अपन होय के आभास देवइस फेर हमन नई पहचान पायेन ।अतका सुरता हे के मैं जब थकव त ओखरे बाजू म बइठ जौव ।ओ ह मोर संग संग चलय ।दीदी काहय टोनही होही दूरिहा रह ।येला मै मुलावंव नही ।आज भी ओखर रूप दिखथे ।
सुधा वर्मा ,18-4-2016

ये दिन भी अपने थे -103

सन 2000 से 2002 तक अपूर्व मे बहुत परिवर्तन आया ।वह ग्यारह साल का हुआ तब पूजा करके ग्यारह लोगों को कपड़ा बांटे ।वह जब पैदा हुआ था तो मेरी माँ ने कहा कि बहुत दिनो मे पैदा हुआ है तो इसे खरीद कर कपड़े मत पहनाना ।दिये हुये कपड़े ही पहनाना ।अब हम लोग इस ग्यारहवें जन्म दिन को अच्छे से मनाये और कपड़े बांटे ,मिठाई खिलाये ।उसमे आत्मविश्वास भी  बढ़ रहा था ।

उसी साल 2011 में गणेश के कार्यक्रम में वह अकले डांस करने चला गया।शाम को अपने दोस्त शशांक को पांच रूपये प्रवेश शुल्क देकर आया ,।अपने दोस्त शशांक का भी पैसा दिया ।दोनों एक ही गाना पसंद किये थे ।दोनों साथ में भी करने का सोच रहे थे पर सब बदल गया ।वह हमारे घर पर चार बार प्रेक्टिस भी किया था।फिल्म "दिल चाहता है क्या " का गाना था "हम हैं नये अंदाज क्यों हो पुराना "  हम लोग आठ बजे खाना खा रहे थे तब शशांक का  फोन आया कि वह डांस नही करेगा। तबियत खराब होने का बहाना बना दिया ।अपूर्व फिर से नाम लिखाने गया और पाँच रूपये प्रवेश शुल्क देकर आया क्योंकि शशांक ने पैसा नही दिया था ।रात नौ बजे कार्यक्रम था ।वह अकेले चला गया ।बीच में मरघट पड़ता है पर वह तो डरता ही नही है ।हम लोग चुपचाप साढ़े नौ बजे गाड़ी से देखने के लिये गये। वह आगे की कुर्सी पर बैठा था ।हम लोग पीछे खड़े थे थोड़ी दूर में कि वह देखे मत ।उसका नाम पुकारे तो वह तुरंत उठा ,अपना कैसेट दे दिया और मंच पर चढ़ गया ।

गाना बजने लगा "हम हैं नये अंदाज क्यों हो पुराना "दिल चाहता है फिल्म का ।वह पूरे जोश और आत्मविश्वास के साथ मंच पर अकेले डांस करने लगा।साटन का हरे रंग का फूल शर्ट और काला जिंस पहना था। उसने पूरे डांस को खुद ही कंम्पोज किया था ।सिनेमा हमारे साथ ही एक बार देखा था ।मै तो कत्थक सीखी थी और मंच पर बहुत कार्यक्रम दी थी पर उसके पापा तो कभी सोचे भी नही थे कि अकेले मंच पर जायेगा।वह यही देखने गये थे कि वह नही कर पायेगा पर वह उनकी बात को गलत कर दिखाया।वह अपने स्कूल में बहुत नाटक और नृत्य में भाग लेता था पर और भी बच्चे साथ में रहते थे ।चम्मच का सेट ईनाम में मिला ।बहुत खुश था।

28 सितम्बर 2001,को सुबह आठ बजे उसके पापा ने अपना जन्मदिन का केक काटा।अपूर्व ने फोटो खिंची।वह अपने पापा को एक लिफाफा दिया और एक गिफ्ट दिया ।गिफ्ट स्वयं की पैक की हुई थी ।वह यह सब देकर स्कूल चला गया ।उसके जाने के बाद लिफाफा खोले तो ग्रिटिंग थी उपर अंग्रेजी मे प्यारे पापा और नीचे मे मम्मी एंड गुल्लु ।उसके पापा ज्यादा प्यार आने पर गुल्लु कहते थे ।गिफ्ट को खोले तो उसमें पेन था ।बहुत आश्चर्य हुआ कि यह सब वह कैसे खरीदा कभी कभी टॉफी के लिये पैसे मांगता था पर वह टॉफी न खाकर पैसे जमा कर लिया था ।वह एक डिब्बे में भी पैसे जमा करता था ।उसके पापा अपने अंतिम समय तक उस पेन से ही लिखते रहे ।एक यादगार घटना ।

उसके नाम पर एक प्लाट लिये थे वहां पर जब अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो नाबालिग होते हुये भी उसे वोट डालने के लिये कहा गया ।वह बहुत खुश था ।उसने 1 नवम्बर 2001 को अपना पहला वोट डाला ।पूरे आत्मविश्वास के साथ अकेले जाकर ठप्पा लगाकर आया ।

एक दिन वह अपने दोस्त के साथ सायकिल से घर से चार पांच किलोमीटर दूर शारदा चौक चला गया।वहां पर जैराम टॉकिज के पीछे रोहणी बिल्डिंग में बैंक आफ इंडिया था ।उसके पापा वहीं थे ।वह पीछे जाकर जब "पापा "बोला तो इनको लगा कि मुझे धोखा हो रहा है अपूर्व यहां कैसे आ सकता है पर पीछे देखे तो अपूर्व ही खड़ा था ।वह बोला "देखो दिनेश भी आया है ।तुम्हारा बैंक दिखाने लाया हूँ ।" पापा ने कहा पानी पी लो ,शू शू चले जाओ और बीस रूपये दिये कि टॉफी खा लेना ।पूरा ट्रैफिक वाला जी ई रोड मे इस तरह से आना बहुत ही बहादुरी का काम था। वह लौट गया ।इसके पहले भी चार तारीख को इसी का जुड़वा भाई दीपक को होलीक्रास स्कूल कापा दिखाने ले गया ।वहां से अपने पापा के दोस्त जीनो एन्थोनी के घर मोवा चला गया ।दीपक को घुमाने ले गया था ।एक घंटे में घर भी वापस आ गया ।एक भरा हुआ रास्ता जहाँ अधिकतर दुकाने है ।  ग्रामीण लोग ,ट्रक बस के अलावा हर तरह की गाड़ियां वहां पर चलती हैं ।रोड पार करने के लिये बड़ों को सोचना पड़ता है वहाँ ये बच्चे घूम कर आ गये ।आत्मविश्वास बढ़ते जा रहा था ।

अपूर्व ने ट्रैंडी चलाना सीखा और रोज शाम को अपने पापा के आने के बाद गाड़ी चलाता था।उसे घर के पास मे बी टी आई मैदान है वहां गाड़ी सिखाने ले जाते थे।अब वह गाड़ी चलाना सीख गया। अपने पापा को भी बैठा कर चला लेता था ।रविवार 3 फरवरी 2002 को दोपहर को अपूर्व और उसके पापा बाजार से सामान लेकर आये थे ।अपूर्व हमेंशा कई तरह गाड़ी रखते ही एक बार चला कर आता हूँ करके गाड़ी लेकर चला गया ।घर के सामने ही आठ दस मकान के चक्कर लगा लेता था ।वह घूम कर लौट रहा था तभी हमारे घर के दो घर पहले चौक है वहां पर एक मेटाडोर उसे ठोक दी ।वह बिजली के खम्भे के पास गिर गया ।वह बच गया ।थोड़ी सी चूक मे सर लग सकता था .ट्रेडी का सायलेंसर फट गया था ।अपूर्व गाड़ी को उठा कर चलाते हुये  घबराते हुये घर की तरफ आया ।मै आवाज सुनकर बाहर आई वह मेटाडोर वाला भी भागते आया और अपूर्व को डांटने लगा गाड़ी ठीक से नहीं चलाता है।पैसा निकाल मेरी गाड़ी का हेंडल टेढ़ा हो गया है ।मैने कहा हमारी गाड़ी को तुम बनवाओ ,वह अपनी बात रख रहा था और मैं।आखिर वह भाग गया ।मैंने कहा कि हम लोग पुलिस के पास जाते हैं।वह चला गया पर अपूर्व के पापा कांप रहे थे ।उन्हे लगा कि बच्चे को कुछ हो जाता तो ।थोड़ा सा भी बुखार आये या कुछ और तबियत खराब हो तो छाती के ऊपर ही सुलाते थे और जागते रहते थे ।

चार अगस्त से दस अगस्त तक अपूर्व के पापा की ट्रेनिंग थी भोपाल में ।वह बहुत खुश था अपने पापा से बोला मैं माँ के साथ रहुंगा ,माँ को देखुंगा ।हम लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे ।उस समय उसे बुखार था ।स्वयं बीमार था और कह रहा था माँ को देखुंगा।उनके जाने के बाद रोज रात को आँगन की लाइट बंद करता था ।गेट में ताला लगाता था ।रात को मेरे को सो जाओ माँ बोलता था ।ग्यारह तारीख को ये लौटे ।

हम लोग तिरोड़ी जाने वाले थे ।वहां पर मेरा भाई रहता था ।वहाँ मैंगनिज माइंस मे मैनेजर था।अपूर्व इस कारण भी खुश था कि शिखा दीदी और चीकू के पास जा रहा है ।मेरी भतीजी और भतीजा ।बीस तारीख को अहमदाबाद से गये थे ।भंडारा से उतर कर जीप से तिरोड़ी जाते हैं।पूरे पांच दिन रहे ।पांचो दिन बारीश होती रही ।बहुत बड़ा बंगला था ।बहुत से आम और पीपल के पेड़ थे।खूब बड़ा बगीचा था।जहाँ हल्दी प्याज और कई प्रकार की सब्जियां लगी हुई थी ।बड़ा सा कमरा जिसमें बड़ी बड़ी खिड़कियां थी।बंदर आ कर दीवार पर बैठ जाते थे ।लंगूर की तरह के बंदर आते थे ।बाइस तारीख को राखी थी।तेइस तारीख को शिखा का जन्मदिन था ।

रात को कमरे की सभी खिड़कियां खुली रहती थी जंगल की ठंडी हवा आते रहती थी। कमरे में पंखा भी चलते रहता था ।अपूर्व रात को पहिली बार अकेले सोया।रात को ठंड लगने पर अपने आप चादर खींच कर सोया ।पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन रहा था ।बच्चे तीन सिनेमा देखे ।"ओम जय जगदीश " "जानी दुश्मन " "डाक बंगला "

तेईस को जन्मदिन मनायें उस दिन भी अपूर्व ने डांस किया ।"मितवा ओ मितवा "डांस में तीनो थे शिखा चीकू और अपूर्व ।बारीश मे बंगल के बगीचे के गड्ढों के पानी में छपाक छपाक खेलते रहा पर उसे छिंक भी नहीं आई ।

चौबीस को हम लोग रामटेक गये ।बहुत अच्छी जगह है ।कालीदास ने शाकुन्तलम की रचना यहाँ पर की है ।मै छत्तीसगढ़ के रामगढ़ को तो नहीं देखी हूँ पर यह जगह लगती है वैसी ही जैसे कालीदास ने लिखा है ।पहाड़ी पर पत्थर की सिढ़ियों से चढ़ते हैं ।एक किला सा लगता है ।यहाँ पर लक्षमण का मंदिर भी है।पहाड़ी के ऊपर से पूरा शहर बहुत ही सुंदर लगता है ।नीचे में एक स्थान पर शाकुन्तलम के चित्र बने है ।संस्कृत मे लिखे हुये हैं ।चित्रो के माध्यम से कथा को समझाया गया है ।बीच में फव्वारा बना है।पूरा दृश्य शकुंतला को दिखा रहा है।पहाड़ी के ऊपर बादल आते जाते रहते हैं, लगता है सच मे ये बादल संदेश ले जा रहे हैं ।

इस रामटेक में भी बहुत बंदर है ।इनको चना चाहिये ।लोग इनको चना खिलाते रहते हैं ।कभी कभी लोगों कआ सामान भी ले लेते है ।मेरा पर्स ले लिया था ।मेरी भाभी ने बंदरों को चना दिया तब पर्स को छोड़े ।

मंदिर के नीचे में नदी है जहां पर कर्मकांड होता है ।अस्थि विसर्जन का काम होता है ।पिंड दान होता है ।हम लोग घूम कर मजे से आ गये ।अपूर्व तो यह सब देख कर बहुत खुश था।रात को हम लैग बंगले मे पहुंचे ।दूसरे दिन टाटा सूमो से मै शिखा ,मेरी दीदी और अपूर्व वापस आ गये ।अपूर्व एक जिम्मेदार बन रहा था। 2001-2002 अपूर्व का ही था ।यह जिम्मेदारी बढ़ रही थी ।अब वह एक पूरा व्यक्ति का एहसास दिलाने लगा था ।किशोरावस्था के पहले का समय ।जब बच्चा बच्चेपन के एहसास से आगे बढ़ना शुरू करता है ।

ये दिन भी अपने थे -102

19 अप्रेल को हम लोग रात करीब 1-40 को टैक्सी पर बैठ कर सिलिगुड़ी के लिये निकल गये ।तीन बच्चे  मै मेरे पति और मेरी ननंद ही थे ।दो घंटे चलने के बाद कार रूक गई ।बताया गया कि आगे डाकू का इलाका है इस कारण एक घंटे के बाद चलेंगे।सुबह करीब साढ़े आठ बजे गाड़ी के चक्के का स्प्रिंग टूट गया ।उसे बनवाने मे एक घंटा लगा ।शाम साढ़े छै बजे सिलिगुड़ी पहुंचे ।17 घंटे मे पहुंचे जो कि 12-13 घंटे में पहुंचना था ।रात को सिलिगुड़ी के एक होटल में रूके।होटल एकदम नया था ।रुकने मे भी अच्छा लगा ।रात को होटल के पीछे गहराई थी जिसमे बड़े बड़े पेड़ थे ।बहुत ही हरियाली थी ।

दूसरे दिन सुबह याने 20 अप्रेल को सुुबह सात बजे दार्जिलिंग के लिये निकल गये ।रास्ते का सौंदर्य देखने लायक था।हम लोग ऊंचाई की तरफ जा रहे थे ।हमारे साथ साथ छोटी रेल कई पटरी चल रही थी ।नीचे खाई दिखती थे पर उसकी हरियाली देख कर डर खतम हो जाता था।खाई से लगी पटरियां ऐसी लग रही थी कि एक पत्थर सरकेगा या नीचे गिरेगा तो रेल भी गिर जायेगी ।हम लोग गये तब तो यह रेल बंद थी ।रास्ते मे सुधार काम चल रहा था।रेल  ऊपर में ही थी ।हम लोग पटरी को पार करके शहर की तरफ गये तो रेल वही पर खड़ी थी ।जगह जगह चट्टानों से पानी निकल रहा था ।उसमें पाइप लगा कर रास्ते के किनारे में लोग कपड़े धो रहे थे।कुछ लोग होटल लगाये थे तो बर्तन धो रहे थे ।कुछ जगह पर काफी बना रहे थे तो उसके बर्तन धो रहे थे ।

रास्ते में बौद्ध मठ था ,उसे देखे ।बहुत बड़ा था ।मैं खुशी के कारण दौड़ कर  उपर चढ़ गई ।अचानक साँस रुकने लगी ।सब लोग मेरे पास आ गये।बच्चे तो बहुत ही घबरा गये थे ।मेरे पति ने कहा ऊंचाई पर आक्सीजन कम होता है इस कारण साँस रूकने लगती है ।धीरे धीरे साँस लो और धीरे धीरे चलो ।थोड़ी देर मे ठीक लगा पर अब मैं घबरा गई थी ।पचमढ़ी मे ही धूपगढ़ मे मुझे कुछ तकलिफ हुई थी ।वह तो करीब चआर हजार फीट ही है पर यह तो करीब सात हजार फीट ऊंंचा है । जैसे ही आगे बढ़े गाइड लोग रोकने लगे।सब अपना कमरा और किराया बता रहे थे ।तीन सौ ,चार सौ था एक ने सात बेड का दो सौ पचास कहा तो उसके साथ चले गये ।पूरा बाजार पार करके और ऊपर चढ़ना पड़ा ऊपर में एक टॉवर था ,पानी की टंकी थी ।उससे ऊपर कुछ नही था। बारह से ऊपर हो चुका था ।"सरोजनी होटल "हम लोग खाना वही खाये ।चने की सब्जी थी ।खाना ठीक था।दो कमरे थे बीच में दरवाजा नही था ।करीब दस लोग सो सकते थे।

करीब साढ़े बारह बजे हम लोग टाटा सूमों मे घूमने निकले बताशिया लूप देखे।यहाँ से अपनी गाड़ी छोड़नी पड़ी ।वहां पर गोरखा लोगों का यूनियन है तो उन्ही की गाड़ी में घूमने जाना पड़ा ।एक कार किये जिससे फाइव प्वाइंट देखे ।रेस कोर्स , रोप वे देखे ।यह तो बहुत रोमांचक था ।गहरी हरी भरी खाई के ऊपर से रोप चल रहे थे ।सामने मे ही बहुत गहराई हरे भरे पेड़ थे ।कुछ लोग ट्रेकिंग सीख रहे थे।चाय बगान देखे ।दूर दूर तक सिर्फ चाय के पौधे थे।इसके अंदर जाकर कैसे पत्तियां तोड़ते होंगे यह मेरे लिये एक प्रश्न ही रह गया ।फिल्मों मे देखना अलग है पर कई किलोमीटर अंदर तो गाड़ियां भी नहीं जाती हैं।शाम को बाजार मे खूब घूमे पर कोई वस्तु सस्ती नहीं लगी ।स्वेटर खरीदे ।हमारे पास ही बहुत से स्वेटर थे ।मै अपने हाथ से बनायें स्वेटर ,मफलर दास्ताने लेकर गई थी ।वह ही हमारे लिये पर्याप्त था।पर एक निशानी के तौर पर खरीद लिये ।वहां पर नास्ता भी किये ।अपने कमरे में आ गये ।

कमरे मे जाते ही मेरा दिमाग काम करना बंद कर दिया ।अपने आप हसी आती थी ,कभी धड़कन तेज हो जाती थी तो  कभी सिर इतना भारी हो रहा था कि फट जायेगा ऐसा लग रहा था।अपूर्व को भी साँस लेने में तकलीफ होने लगी ।हम लोग होटल में डा. का पता पूछे और सब कोई नीचे आ गये ।डा. नही थे पर किसी ने कहा कि ऊंचाई पर बी. पी . कम होने के कारण हो रहा है नमक खाओ।अपूर्व को भी आक्सीजन की कमी के कारण  साँस लेने में तकलीफ हो रही है। अब हम लोग फिर कमरे की तरफ बढ़े ।जैसे जैसे बढ़ते वैसे ही तकलीफ शुरु हो रही थी ।अब रात काटनी थी रात को वही चने की सब्जी और रोटी ,चाँवल लाये ।हम लोग बोले थे हरी सब्जी बनाना पर ऐसा नही हुआ।

नमक खाती रही ,मेरी हालत वैसी ही थी ।रात को फिर बाहर घूमने आये तब तबियत ठीक हो गई ।हँसी भी आती थी और रोना भी ।बहुत ठंड थी बादल आ रहे थे ।बिलकुल हमारे सिर के ऊपर ही बादल थे ।हाथ से छू लो ऐसा लगता था ।रात को देखे कि कमरे मे बिस्तर के सामने दीवार नही काँच की बड़ी खिड़की थी ।वह खुलती नही थी ।हम लोग ओढ़ कर सोने लगे पर मैं और अपूर्व आपस में चिपक कर बैठे रहे ।रात को बारह बज गये ।घने बादल आने लगे थे ।बिजली चमक रही थी ।बादल गरज रहे थे ।बादल की रोशनी कमरे में आ रही थी ।बाहर कभी दूध की तरह सफेद तो कभी काले बादल तेजी से चलते हुये दिख रहे थे ।एक अनोखा सा दृश्य आँखों के सामने था ।अपूर्व सोने लगा था पर मेरी तकलीफ बढ़ रही थी ।नमक खा खा कर उल्टी भी होने लगी ।मेरी ननंद जाग गई ,हम दोनो बात करते रहे ।पीने का पानी भी बर्फ की तरह था ।तीन बजे सब उठ गये ।

रात को ही एक टैक्सी तय किये थे 1000 रूपये में ।चार बजे करीब हम लोग टाइगर हील से सूर्योदय देखने निकल गये ।वहां बहुत देर तक खड़े रहे बदली थी तो सूरज नही दिखा पर निकलते समय की हल्की रोशनी देखे ।वहां पर दो बआर काफी पिये ।अब गंगा माया पार्क  देखने के लिये चले गये ।यह गहराई में है ।रास्ते मे भी चाय के ही पेड़ थे ।इसकी तलहटी मे रॉक गार्डन था उसे देखे ।नौ बजे के पहले हम लोग निकल गये ।आने के बाद ही पेस्ट किये ।किसी को भी नहाने की ईच्छा नहीं हुई ।गार्डन में ही हम लोग हाथ मुंह धो लिये थे ।होटल आकर सब सामान लेकर हम लोग गंगटोक के लिये निकल पड़े ।

नौ बजे निकले थे और ढेड़ बजे हम लोग गंगटोक पहुंचे ।तिस्ता नदी के किनारे किनारे उसकी खूबसूरती को देखते हुये आगे बढ़ रहे थे ।कई जगह पर उसमे झरने और पतली नदी आकर मिल रही थी ।गंगटोक में भी अपनी गाड़ी मे नही घूमने देते हैं ।यहाँ पर एक दूसरी टैक्सी किये ।400 रुपये में पूरा शहर घूम लिये।फ्लावर शो देखे ।आर्कीड के फूल थे ।वहा पर हम लोग कीट भक्षी पादप प्लांट देखे ।पिचर प्लांट कहते हैं ।पुस्तकों मे देखे गये फूल साक्षात दिख रहे थे ।बौद्ध मठ देखे वहाँ पर चक्र भी घुमाये ।बहुत बड़ा सा बगीचा था ।भिक्षु आ जा रहे थे ।वहां पर पेड़ो के ऊपर आर्कीड के पौधे थे ।कुछ में फूल भी थे ।तने मे मॉस उगा हुआ था। वहां से सूसाइट पाइंट देखने के लिये गये ।बहुत सी सिढ़ियां चढ़ कर ऊपर गये ।वहां के राजा किसी को मृत्यु दड देता था तो उसे इस ऊंचाई से फेका जाता था ।गिरने के बाद यदि बच गया तो वह चला जाता था ।क्योंकि जहां गिरते थे वह रोड के किनारे था ।बाद में हम लोग उसी रास्ते से सिलिगुड़ी के लिये निकले थे ।म्यूजियम और हाथकरघा की दुकाने बंद थी ।बाद में वहाँ बाजार में नाश्ता किये ।पूरे हिन्दूस्थान की चीजें वहा मिलती थी।दोने और पत्तल का उपयोग किया जा रहा था।सम लोग सिंदूर दानी लिये तो उसे पेपर मे लपेट कर धागे से बांध कर दिये ।सभी दुकानो के बाहर एक एक पीपा रखा था ।उसी मए सब कचरा डालते थे ।इसे रात को गाड़ी आकर लग जाती है ।इडली ,छोले खाये औरक्षफिर हम लोग सूमो में आकर बैड गये ।पांच बजे शाम को हम लोग गंगटोक के लिये निकल पड़े ।पर यादें साथ थी।बच्चे भी बाहर खुले में पेशाब नही करेगे ।पालीथिन का उपयोग वहाँ नही होता ।हर जगह तेल के पीपे रखे रहते थे कचरा उसी में फेकना है ।कोई भी कचरा बाहर नही फेकेगा ।

शाम पांच बजे निकले और दोपहर 1-40 को हम लोग बैरकपुर पहुंच गये ।बहुत से यादों के साथ ।रात को आँखो के सआमने ही दुर्घटना हो गई ।एक ट्रक मे छड़ भरा हुआ था ।पेट्रोल भरवा कर वह निकल रही थी ,पीछे दूसरी ट्रक थी ।अचानक छड़ वाली ट्रक पीछे हो गई ।छड़ दूसरे ट्रक के सामने को छेदकर पीछे डीजल भरे टैंक में छेद कर दी ।डीजल बहने लगा ।एक जगह हमारा ड्राइवर सोने लगा था ।गाड़ी लड़खड़ा गई ।हम सब लोग उउसके ऊपर चिल्लाये तो वह एक ढाबा में गाड़ी रोका और सीधे एक खटिया बिछी थी उस पर जाकर सो गया ।करीब दो घंटे सोया फिर उठा और मुंह धोकर आया ।वह बोला मेरी आंख खुल ही नही रही थी ।अब पांच बज चुके थे हम लोग एक जगह चाय पीने रूके ।वहीं सब टॉयलेट से निपट गये ।फिर रास्ते मे कई दुर्घटनाओं को देखते मानसिक और शारीरिक थकान से भरे चुप बैठे रहे ।1-40 को बैरकपुर अपने घर पहुंच गये ।नहा खा कर तैयार होकर  आराम किये ।

शाम को बैरकपुर का बाजार घूमे ।बड़ी जगह है ।मोनू लोरिक के लिये हम लोग चूता और कपड़े खरीदे ।ननंद के लिये कुछ बर्तन खरीदे ।अपने लिये भी फूटपाथ से कुछ पूजा के बर्तन खरीदी ।सबने चाऊमिन खाये ।यह स्वाद मए भी बढ़िया था और कीमत भी रायपुर से आधी थी । वहां के रसगुल्ले खाये ।रात साढ़े नौ बजे घर लौट आये ।अब हम लोग दार्जिलिंग और गंगटोक की खूबसूरती को याद कर रहे थे ।

23 अप्रेल की सुबह अपना सारा सामान पैक करके हम लोग लोकल रेल से सिलदाह रेल्वे स्टेशन आये ।हम लोग सामान को पांच छै बैग में रख लिये थे ।सब लोग एक एक बैग उठा लिये थे ।सिलदाह से ट्राम में बैठ कर हावड़ा गये ।हावड़ा ब्रिज पैदल ही पर किये ।हावड़ा रेल्वे स्टेशन के पास से 90 रूपये में टैक्सी किये और बोटेनिकल गार्डन देखने चले गये।मेरा सपना था उस गार्डन को देखने का ।बहुत बड़ा सा गार्डन है ।पेड़ो पर उसके नाम लिखे थे ।सबसे अनोखा तो बरगद का पेड़ था ।जो डेढ़ एकड़ में फैला है ।उसका मुख्य तना अब नही है उस जगह पर चबूतरा बना दिया गया है ।पर उसके  दो सौ तने जमीन के अंदर गये हैं ।ऐसा लग रहा था कि यह बरगद का पेड़ इस दो सौ तने पर ही टिका है ।अब तो समझ में नही आता कि असली कौन सा है ।उसके नीचे चने बेचने वाले ,चाट और फल बेचने वाले बैठे थे ।नारियल पानी मिल रहा था ।ऐसा लग रहा था पेड़ो की साखों के बीच घर है ,एक पूरी बस्ती है ।शाम पाँच बजे वहाँ से निकले ।सीटी बस में बैठ कर हावड़ा रेल्वे स्टेशन गये ।पौने छै बजे पहुंच गये ।बीस  नम्बर मे गाड़ी लगने वाली थी वह उन्नीस में लगी ।सही समय पर आठ बजकर पाँच मिनट पर गाड़ी रवाना हो गई ।मुन्नी ,अशोक ,मोनू ,लोरिक उदास मन से वापस हो गये ।अपूर्व को घर लौटने की खुशी थी पर दोस्तों से बिछुड़ने का दुख था।

लौटते समय हमारे पास सिर्फ सौ रुपये बचे थे ।वहां बच्चों ने जो कहा वो  खिलाये और खरीद कर दिये ।पूरा खर्च दोनों परिवार का हम लोग ही किये थे ।जब क्या खाओगे पूछते थे तो कुछ भी बोलते थे पर जैसे ही खाने की थाली आती थी तो चुप बैठ जाते थेे। पूरा खाना खाना बेकार हो जाता था और पैसा देना पड़ता था ।वे तीनो माँ बेटे समोसा ,भजिया या चाऊमिन ही खाते थे ।हम लोग तीन दिन के बाद समझे।आते समय रेल में भी मेरे पति ने कहा कुछ पैसे दे दो तो मैं छै सौ दे दी ।और स्वयं पाँच सौ बहन को दे दिये।सम्बधों में देना लेना चलता है और बहन हो तो हम उसके घर का क्यों खायें यह भावना रहती है ।छत्तीसगढ़ मे तो बेटियों को दिया ही जाता है ।मैने कहा मेरे पास अब सौ रुपये ही बचे हैं तो इनको आश्चर्य हुआ और बोले" अरे मेरे पास तो पचास ही बचे हैं ।चलो कल तो घर पहुंच जायेगे ।" हम लोग एक थाली खाना मंगाये और अपूर्व को खिला दिये बाकी हम लोग बांट कर खा लिये ।सुबह अपूर्व आइसक्रीम के लिये बहुत रोया हम लोग उसे तबियत खराब होगी करके नही खिलाये ।बहुत रोया और बर्थ पर सो गया ।सुबह एक एक कप चाय लिये और दस चालीस को हम लोग रायपुर स्टेशन पर उतर गये ।बच्चे का रोना और आइसक्रीम का नहीं ले पाना आज भी याद आता है जैसे गुलाब के बीच में कांटे होते हैं ।इतनी खूबसूरती देखे मन खुश हो गया ।दिल खोलकर वहाँ सबके लिये कुछ न कुछ खरीद कर दिये उससे भी सब खुश हो गये। अंत मे अपने बच्चे को एक आइसक्रीम खरीद कर नही दे पाये यह टीस आज भी मन में है ।रेल्वे स्टेशन से चालीस रूपये मे आटो किये ।मै घर तक आई और ये डी के हास्पिटल के सामने उतर कर अपने बैंक चले गये ।हम लोग घर आ गये।

आइसक्रीम के लिये तो ऐसा हो गया कि अब मुझे नहीँ खाना है ।हम लोग बहुत सी फोटो खिचे थे ।दो रील थी ।दूसरी रील कैमरे मे ही थी ।दो तीन खीच सकते थे ।मैं लालच के कारण एक दिन बाहर फूल की फोटो खिचने निकाली तो रिवाइंड का बटन दब गया पूरी फोटो खराब हो गई ।बरगद की फोटो भी थी ।जिसमें अपूर्व ने भी खिंचा था ।उसे वह पेड़ बहुत अच्छा लगा था ।वह फोटो नहींआई तो अपूर्व का रोना शुरु हो गया।वह बोला "आज ही कलकत्ता चलो और फोटो खिचेंगे ,मुझे वही फोटो चाहिये ।" हम लोग बोले कि मोनू को फोन कर दे वह फोटो भेज देगा ।वह फोन भी किया पर एक पत्रिका कि फोटो उसने भेज दी ।यह यात्रा बहुत सी यादों को समेटे हुये है ।इसके बाद मुन्नी के घर हमारा कभी जाना नही हुआ ।वह खूबसूरती चाय बगान और छोटी रेल आज भी मन में बसी हुई है ।