रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 65


शादी एक जरुरत है ।इस जरुरत को पूरा करने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते है इसकाअच्छा खासा अनुभव हुआ ।सन् 1979 मे कम पढ़ी लिखी लड़कियां मिलती थी ।जो लडकियां स्नातक थी उनकी शादी तो ले दे कर हो जाती थी पर जो स्नातकोत्तर है उनकी शादी लगाना याने हिमालय मे चढ़ना होता था ।मै छत्तीसगढ़ मे अपने समाज की पहली एम एस सी लड़की थी ।ऐसे तो एक साल से लोगो का आना जाना हो रहा था ।

काका तो बी एस सी के बाद ही लड़का खोजने लगे थे । पर 1975--76 से ही पढ़ी लिखी लड़कियो की शादी की समस्या शुरु हो गई थी ।विज्ञान विषय भी एक समस्या हो रही थी ।काका ने एम एस सी करने से मना कर दिया पर मै आगे पढ़ना चाहती थी ।मेडिकल मे नहीं गई तो क्या अपनी पढ़ाई यही रोक दूं ? यह प्रश्न हथौड़े की तरह मेरे दिमाग मे घुमता रहता था ।मैने एम एस सी मे प्रवेश ले लिया ।काका ने फार्म पर दस्तखत कर दिये ।उन्हें लग रहा था कि मै बी एड कर लुं पर मै तैयार नहीं थी ।एम एस सी भी हो गया ।अब बी एड में आ गई ।

अब तो लड़के की तलाश तेजी से होने लगी ।क्ई लोग देखने आये ।खाना खाते थे और चले जाते थे ।एक लड़का स्वयं देखने आया था ।उसे खीर पुड़ी खिलाये ।बड़े प्यार से खा कर गये अभी बताते हैं कह कर गये ।काका रोज सोचते अब खबर आयेगी तब खबर आयेगी ।तीन माह बाद पता चला कि उसने दूसरे जगह मेट्रिक पास लड़की से शादी कर ली ।एक भोतिक शास्त्र मे पी एच डी कर रहा था ।उसने देखा नहीं पर बात होती रही सब सोच रहे थे अब पक्का होगा पर उसने गांव की आठवीं पास लड़की से सगाई कर ली ।एक डाक्टर की माँ साल भर से आ आ कर बाते करती थी ।उसने स्वयं ही कहा कि वह मुझे बहु बनायेगी पर समय पर उसके बेटे ने कहा कि वह इतनी ज्यादा पढ़ी लड़की से शादी नहीं करेगा ।

काका जब तब सिर पकड़ कर बैठे रहते थे । एक परिवार था मेरे काका के दोस्त का जो कभी कभी बैठने आते थे ।अपने बड़े बेटे की शादी के समय भी काका से ही सलाह लिये थे ।वे अपने तीसरे बेटे के लिये लड़की देख रहे थे और अपनी फरेशानी बताये कि दूसरा बेटा बैंक मे है वह शादी नहीं करना चाहता है ।काका उनके साथ लड़की देखने लगे ।काका रिटायर होने के बाद कल्याण कालेज भिलाई में बी एड विभाग मे प्रोफेसर थे तब दूसरे नम्बर के लड़के वहीं गणित मे व्याख्याता थे ।काका उनको जानते थे ।रायपुर से रेल में आना जाना करते थे तब भी देखते थे ।बाद मे उनको बैंक आफ इंडिया में नौकरी मिल गई थी ।वे भिलाई सिविक सेन्टर रोज आना जाना करते थे ।लड़की देखने का सिलसिला चल रहा था ।

एक दिन जीजा जी ने कहा कि आप अपने दोस्त के बेटे के लिये लड़की देख रहे हैं , आप लोग आपस में ही समधी क्यों नहीं बन जाते । काका ने कुछ नहीं कहा पर उनके दोस्त ने कहा सही है । चलो हम लोग समधी बन जायेंगे ।कल लड़के से पूछ कर बताता हूँ कह कर चले गये ।

अपने घर मे बात किये होगे तो यह तय हुआ कि दूसरे लड़के की शादी मेरे साथ होगी ।अब दूसरे दिन ही वे आकर बताये कि हम लोग लड़की लेंगे पर दूसरे नम्बर के लड़के के लिये ।काका ने कहा वह तो शादी नई करने वाला था ।तो काका के दोस्त ने कहा कि उसने कहा है मै इस लड़की से शादी करुंगा ।यह मेरे लिये ठीक है वरना शादी ही नहीं होगी ।सब ने हाँ कर दिया ।अब लड़के को छोड़कर सबने मुझे देखा ।सभी खुश थे ।पांच छै महिना आना जाना चलता रहा ।

इस बीच मेरी टीचिंग लगी थी तो रिक्शे से उतरते समय मेरा पैर मुड़ गया तो एक माह बिस्तर पर रही पैर की हड्डी मे हल्का क्रेक आ गया था । ले दे कर ठीक हुई सिकाई चलती थी ।नवम्बर दिसम्बर मे सगाई के क्ई तारीख निकली पर हो नहीं पाई । शादी में इतनी रुकावट ? पहले लड़के तैयार नहीं हो रहे थे अब लड़के वाले और लड़का तैयार है तब भी रुकावट ।

सगाई का दिन तय हुआ था ।मेरे बड़े पिताजी आये और बोले कि ये लोग तुम्हारे मामा ससुर के गांव के है उनके रिस्तेदार है यह शादी नहीं होगी ।छै सात पीढ़ी का अन्तर होना चाहिये ।काका और बड़े पिताजी सगाई के पहले दिन उनके घर जाकर पूछताछ की तब पता चला कि गांव मे ऐसे ही किसी को चाचा मामा कह देते हैं वैसा ही है।कोई खून का रिस्ता नहीं है ।

अब दूसरी तारीख तय हुई ।अब बड़े पिताजी एक और समस्या ले के आ गये ।अब बोले कि लड़का बहुत ही मोटा चस्मा लगाता है ।बहुत अधिक नम्बर है बाद मे हमारी बेटी को परेशानी होगी ।शादी नहीं होगी ।अब सब खतम हो गया था ।लड़के ने मुझे नहीं देखा था ।वह हमारी दीदी के घर गये और बात किये ।साफ बात कि उनकी कितनी तनख्वाह है ।उनकी क्या रुचियां है।तब पता चला कि वे एस्ट्रालाजी और पामेस्ट्री के अच्छे जानकार है ।दीदी ने बताया कि शादी नई करने का कारण चस्मा नहीं होना चाहिये ।मेरी शादी तो इसी से होगी नहीं तो नही होगी ।दीदी ने कहा कि लड़की देख लो ।

उन्होंने बहुत अच्छी बात बोली कि लड़की को क्या देखना ।सभी एक जैसी ही होती हैं ।वह कितना साथ देगी यह देखना चाहिये और चले गये दीदी के सामने एक अद्भुत छाप छोड़ कर ।शाम को दीदी काका से बात करने हमारे घर आई ।काका ने, जीजाजी ने ,और दीदी ने सभी ने इस बात पर चर्चा की और तय किया कि अब बड़े पिताजी को मनाया जाय ।दूसरे दिन काका बड़े पिताजी से बात करने गांव गये ।बहुत मुस्किल से बड़े पिताजी तैयार हुये ।

दूसरे दिन वे लोग आकर सगाई की तारीख तय किये ।अब तैयारी हमारे घर पर हो गई ।हर बार उनके घर पर मेहमान आकर लौटते थे ।सुबह उनका तीसरा बेटा पूछने आता है कि आज सगाई करने आना है न? हमारे यहाँ सब परेशान हो गये कि पूछने क्यों आये हैं ।उसने कहा कि दो बार मना कर दिये थे इस कारण पूछने आया हूँ ।अब बारी हमारे परेशान होने की थी ।वे लोग डेढ़ बजे आये ।अब खाने की तैयारी मे तेजी शुरु हो गई ।

पांच म्ई को सगाई की रस्म हुई ।मुझे मेरे ससुर ने एक सौ एक रुपये सिक्के के रूप मे दिये और एक मोटा पायजेब दिये ।साड़ी और श्रंगार का सामान भी था ।आज की तरह पार्टी नहीं थी ।बहुत ही आत्मिय वातावरण था ।सभी घर का बना खाना खाये ।माँ के साथ रिस्तेदार महिलाएं भी थी । आज सिर्फ मेकअप और होटल के ताम झाम मे सब कुछ फिल्मों की तरह लगने लगता है।सब बैठ कर बाते करते रहे पहले महिलाये नहीं आती थी ।

बार बार सगाई न होने के कारण पर सभी हंसते रहे । सब चले गये ।रात को माँ काका बैठ कर यही बातें कर रहे थे कि तीन साल कि परेशानी ऐसी खतम होगी सोचा भी नहीं था ।लड़के ने लड़की देखने से मना कर दिया ।एम एस सी गणित गोल्ड मेडेलिस्ट है पर
ऐसी अच्छी सोच ।उस समय काला गोरा छोटा बड़ा यही देखते थे ।लड़का स्वयं लड़की छांटता था ।काका की परेशानी समाप्त हो गई ।मै भी अच्छे सोच के लड़के के कारण सोच रही थी कि मुझे औरों की तरह परेशानी नहीं होगी ।अंततः एक जून उन्नीस सौ उनयासी को शादी हो गई ।

आज भी इसी परेशानी को देख कर और दहेज जैसे दानव को देख कर लड़कियो के पैदा होने पर खुशी नहीं होती ।एक लड़की एक माँ एक पिता की मनोदशा कैसी होती होगी जब एक के बाद लड़के देखने आते हैं ।बाजार की तरह नुमाइश होती है ।फिर किसी डिफेक्टिव माल की तरह लड़की को किनारे कर दिया जाता है ।आज वह सेल की तरह हो गई है ।एक मे एक मुफ्त लो की तरह अपनी बेटी के साथ नगद और भारी भरकम सामान दिया जाता है ।आज लड़की इंसान नहीं एक वस्तु हो गई है ।यही वजह है जब वह प्रेम विवाह की ओर कदम बढ़ा रही है ।

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