रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 53


समय कैसे बदलता है? यह मैने अपने आंखों से देखा है।हमारे घर के सामने वाली लाइन के आखरी में एक मकान था ,वह पीछे तक लम्बाई में बना था ।उसके सभी कमरों के दरवाजे बाजू के गली में ही खुलती थी ।वह पूरा मकान धांधू यादव का था ।एक दो कमरे के मकान मे रहता था ।बाजू के मकान मे पहली पत्नी का एक बेटा रहता था ।एक बेटा छोटा था उसके साथ। धांधू अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहता था ।उसकी पत्नी का नाम फाफी था ।उसकी पहले पति से एक बेटी थी वह भी साथ में रहती थी ।उसकी बेटीको शादी के बाद उसके पति ने छोड़ दिया था ।

धांधू पीतल के गुंड बनाता था छत्तीसगढ़ में जिसे गुंडी कहते है ।वह गांजा भी बेचा करता था ।बाकी मकान में किराये दार रहते थे ।तब वहाँ बहुत कम मकान बने थे ।फाफी के घर पर काम करने वाली थी ।दीपावली के बाद उसके घर के छप्पर के ऊपर पर्रे में बहुत सी बड़ियां सुखते रहती थी ।बहुत से जेवर भी पहने रहती थी ।वह धनाड्य थी ।

एक दिन गांजा बेचने के जुर्म मे धांधू को गिरफ्तार करने पुलिस आई ।उसी समय धांधू की हार्टफेल से मृत्यु हो गई ।अब बड़े बेटे ने बर्तन का काम बंद करवा दिया ।धीरे से उसके जेवर बिक गये ।बेटे ने आधा मकान बेच दिया ।दूसरा बेटा स्कूल में पढ़ रहा था ।अब फाफी को घर से बाहर आना पड़ा क्योंकि उसके इस पति से एक बेटी और दो बेटे थे ।1965-66 का अकाल जहां राशन की दुकानों से भी भर पेट राशन नहीं मिलता था ।

फाफी ने एक सिंधी के घर पर बर्तन पोछा का काम शुरु किया ।हमारे घर की लाइन में ही एक घर के बाद था ।मुंह ढक कर काम करने जाती थी ।पीछे से उसके बच्चे बाहर घूंमते थे ।हमारे यहां गाय थी ।माँ उसे माढ़ पीने देती थी । एक दिन उसकी बेटी गोदावरी कहती है "बाई मेरा भाई भूखा है हम लोग दो दिन से खाये नहीं है ,पेज दे दो " वह अंदर आकर गाय के पास खड़ी हो गई ।माँ के आंसू आ गये मां ने थोड़ा दाल चांवल दिया वह बच्चा हमारे घर पर ही खा कर गया ।माँ अब पेज में थोड़ा भात डालकर उसके लिये रख देती थी ।

एक दिन बच्चा बिमार पड़ा और मर गया । फाफी का रोना पूरे मोहल्ले को रुला गया ।अब भी उसकी छोटी बेटी हमारे घर से कुछ न कुछ खाने का ले जाती थी ।माँ फाफी को गांव से चावल आता तो कनकी भी देती थी ।अब उसकी बड़ी बेटी भी उसी घर में कपड़े धोने जाने लगी थी ।साथ ही बच्चों को खिलाने के लिये दिनभर रहती थी ।वहाँ पर सिर्फ चाय देते थे ।

दो साल गुजर गये ।हमारे घर की कामवाली काम छोड़ दी थी ।माँ फाफी से घर का काम करने के लिये बहुत बोली पर वह हमारे घर काम नहीं करती थी क्योंकि पहले जब आती थी तो माँ के साथ कुर्सी पर बैठती थी ।माँ ने बहुत समझाया तो उसे अपने बच्चों के प्रति माँ का प्यार याद आया और वह काम करने लगी ।काका ने कहा परिस्थिति की मारी है हमारे खेती से चांवल आता है उसे रोज खाना दिया करो ।

फाफी हमारे घर में बहुत मुस्किल से सामान्य हो पाई ।उसकी बेटी को दीदी अपने साथ सिहोर ले गई ।एक बेटा पढ़ रहा था । उसके सोतेले छोटे बेटे की नौकरी राजकुमार कालेज मे लग गई ।अब वह हमारे घर पर दिन भर रहने लगी दोपहर को नहाने के लिये ही जाती थी फिर आकर खाना खाकर चौके में ही सो जाती थी ।धीरे धीरे गाय को दाना देना गोबर उठाना सब करने लगी ।हम लोग गाँव जाते तो भी गाय और दूध का ध्यान रखती थी ।मठा बेच कर पैसा रख देती थी ।

एक बार हम लोग मामा की मृत्यु होने पर गांव गये थे ।माँ ने कहा कि रोज अपने लिये खाना बना लेना और दूध के साथ खा लेना पर फाफी ने कुछ नहीं किया रात को अपने घर में खाती थी और दिन भर भूखे घर में बैठे रहती थी ।ईमानदारी तो जैसे कूट कूट कर भरी थी ।दीदी आती थी तो उनके बच्चों का काम भी करती थी ।उसकी बेटी भी बहुत अच्छे से थी ।।हम लोग तो फाफी को देखे वैगर रहते नहीं थे ।कहीं से भी आते तो फाफी दिखनी चाहिये वह भी हमारे आसपास ही रहती ।एक साल होली में उसके दूसरे बेटे को किसी ने मार कर नाली में डाल दिया था ।

फाफी अब बहुत अकेली हो गई थी ।अब वह रात तक टी वी देखते बैठे रहती थी ।हम लोग रात को टी वी देखते खाना खाते थे ।वह पूरा खाना लाकर कमरे में रखती ।और गाय को पैरा वैगर देती हमारे खाने के बाद माँ उसे एक रोटी देती थी उसे खाकर पूरा बर्तन चौके में रखकर जाती थी ।हमारे गेट पर ताला लगा कर बंद करके बैठक के दरवाजे से जाती थी ।

गांव से अनाज आता था तो पूरी जिम्मेदारी से साफ करके रखती थी ।गेहूं धोना सुखाना , हल्दी धनिया कुटना , पापड़ के आटे को कूट कर लोई बनाना सारे काम वह करती थी ।बड़ी बहुत शौक से बनाती और खाती थी ।अपने पुराने दिनों की याद उसके आंखों में दिखाई देती थी ।काका और माँ का यही सोचना रहता था कि वह खुश रहे ।कभी भी जिस भी खाने के चीज को फाफी याद करती माँ उसे जरुर बना कर खिलाती थी ।

फाफी हमारे परिवार का एक हिस्सा बन चुकी थी ।फाफी ने भी अपने बच्चों का इस घर से लगाव देख कर ही काम करना शुरु किया था ।कब वह काम करते करते और माँ उससे काम कराते कराते इतने करीब आ गये कि फाफी घर सिर्फ सोने जाती और माँ सात बजे का समय बीतते ही दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी ।उसके आंखों के मोतियाबिंद का आपरेशन करवाये थे तो भी माँ बोल कर रखी थी कि रोज सुबह शाम की चाय और दोपहर का खाना खाने आना ।फाफी भी रोज आती रही ।एक अनोखा रिस्ता , बेनाम रिस्ता जो पूरी ईमानदारी के साथ चल रहा था ।

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