शनिवार, 3 अगस्त 2019

कविता - बादलों ने रूख बदला

बादलो ने रुख है बदला ।
धरती से नाता तोड़ा ।
मैंने उससे पूछ लिया ।
क्यों इतनी बेरुखी हमसे ,
राह देखते थक गये हम ,
आ भी जाओ अब ।
बादलों ने दिखाया गुस्सा ,
गड़गड़ाहट से सबको जगाया ।
सुनो सुनो , सब सुनो
तुमने ,लगाये सैकड़ो कारखाने ,
वृक्षों को है काटा ,
कांक्रीट के बनाये जंगल,
बनाये हैं तुमने नकली झरने ,
नकली पौधे नकली वृक्ष ,
मेरा है क्या काम वहाँ ?
धुयें से दम घुटता है ,
बिन हरियाली मन दुखता है ।
जब बरसता हूँ ,
कोसते हो मुझे ।
अपनी गल्तियों पर भी
दोस देते हो मुझे ।
अब न आऊगा मैं ,
तब तक जब तक
न करोगे मांगे पूरी ।
कर लो मुझसे प्यार अब
हरियाली का लगाओ जमघट
क्योकि है मुझे हरियाली से प्यार
धुयें हो बंद ,केमिकल के रास्ते बदलो
आता हूँ मै पास तुम्हारे
आता हूँ मैं पास तुम्हारे ।
सुधा वर्मा ,रायपुर ।