रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 44


मेरे घर में तीन शिव लिंग है ।मैं जब छोटी थी तब से मिट्टी के शंकर जी बना कर उस पर बगीचे के फूल तोड़ कर चढ़ाती थी ।मेरा यह खेल ही था ।घर बनाना ,उसके पास तालाब बनाना और उसके पार में एक शिव लिंग रखना ।घर में रेत से खोज कर गोल पत्थर लाकर रखती और उसकी पूजा करती थी ।

घर मे पहला शिवलिंग हमारे ड्राइवर खान साहब ने दिया था ।उसके परिवार के लोग जबलपुर में रहते थे ।वे लोग संमरमर की मूर्तियां बनाते थे ।ओम ,कृष्ण, शिवलिंग बनाया करते थे ।तुलसी चौरा तो घर में बना था उसमें तुलसी लगी थी ,माँ उसी की पूजा करती थी ।श्रावण सोमवार को मंदिर चले जाते थे ।सन् 1966 में पहली बार हमारे घर पर एक मुसलमान शिवलिंग लेकर आये और मुझे दिये ।

अब घर पर ही पूजा होती थी ।मै बहुत मन से घर पर पूजा की तैयारी मे लगी रहती थी ।108 बेल की पत्तियों पर चंदन से राम राम लिखती थी ।कनेर धतूरे के फूल के लिये राजकुमार कालेज चली जाती थी ।तब वहाँ तार का घेरा था तो उसके नीचे से घुस जाते थे ।उस शिवलिंग को कमरे के अंदर आलमारी के नीचे खाने में रखी थी ।

श्रावण में लगातार दो साल तक घोड़ा करैत सांप निकला तो सभी बोलने लगे कि शिवलिंग को घर के बाहर रखो ।पर मेरा प्यार उसे बाहर रखने की इजाजत नहीं दे रहा था ।ले दे कर बाहर लाई थी ।

बी एड कालेज के प्रोफेसर शमशुद्दीन चाचा भी जबलपुर जाते थे ।माँ के लिये बड़ी बड़ी आचार की बरनियां लाये थे ।एक बार उन्होंने भी बरनी के साथ एक शिवलिंग लेकर आये ।चाचा ने बताया कि जिससे बरनी लिये उन्होंने यह शिवलिंग बेबी के लिये भेजा है।कितने सम्मान के साथ एक मुसलमान उसे अपने सुटकेस में रखकर लाये थे ।

अब मेरे घर पर दो शिवलिंग थे और सब उसे आश्चर्य से देखते थे क्योंकि छत्तीसगढ़ में मान्यता थी कि शिवलिंग तालाब के किनारे ही रख कर पूजे जाते है ।तालाब की दूरी के कारण अब घरों में भी रखने लगे थे ।

मेरी शादी हुई तो माँ ने कहा एक शिवलिंग ले जाओ।इसकी पूजा तुम ही करती हो ।ससुराल में सास ने बड़ा सा शिवलिंग तुलसी चौरा में रखा था इस कारण मैं नहीं लाई ।1984 में अपना घर बना कर रहने आये तो यहाँ पर मैने सिर्फ कृष्ण भगवान रखी थी ।एक बार भाई के घर भरवेली ग्ई थी तो उसके यहाँ का कोई लेबर जबलपुर जा रहा था ।वह भाई से पूछने आया था कि कुछ लाना है क्या? मै खड़ी थी मैने कहा एक काले रंग का शिवलिंग लाना ।

वह चला गया तो भाई ने कहा वह मुसलमान है ये सब नहीं लायेगा , दूसरे से मंगा देंगे । पर चार दिन के बाद भाई शिवलिंग लेकर आया और कहने लगा एक मुसलमान होकर भगवान लेकर आया है ।मैने कहा पैसा दे देना तो भाई ने कहा कुछ लाते है तो ये लोग पैसा नहीं लेते । वह तीसरा शिवलिंग भी एक अंजान मुसलमान ने दिया था ।माँ के जाने के बाद माँ के घर का एक शिवलिंग मै ले आई ।

आज दो शिवलिंग मेरे पास है ।सांप्रदायिक एकता का प्रतीक ,दंगो को चिढ़ाता मेरे आंगन में विराजमान है ।मैने देखा है और अनुभव किया है कि सांप्रदायिकता सिर्फ सोच के कारण है ।वरना हम सब तो एक ही है । तीज का त्यौहार और श्रावण मास आते ही मुझे ये सब लोग याद आने लगते है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें