रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 15


आज शिक्षक के प्रति आदर का भाव खतम होते जा रहा है ।ऐसा क्यों ?एक दिन मेंरे बेटे ने कहा "गधे गधे टीचर आते है गणित बना नहीं पाते " मुझे बहुत गुस्सा आया ।एक शिक्षक परिवार के होने के नाते एक शिक्षक के लिये ऐसा बोलना अपमान करने केजैसा था ।

दूसरे दिन स्कूल गई तो पता चला वह एम एस सी गोल्ड मैडेलिस्ट है ।प्रिंसिपल को आश्चर्य हुआ कि वह गणित तुरंत नहीं बना पाता ।जो पूछो वह दूसरे दिन बतायेगा ।शिक्षक तो बदल गये ।पर मुझे मेरे शिक्षक याद आ गये ।

चौथी पढ़ाने वाले शिक्षक का झूम झूम कर कविता पढ़ना ,राग से पहाड़ा सीखाना और गणित को बहुत ही प्यार से क्ई उदाहरण देकर समझाना ।यदु गुरु जी ,आमापारा स्कूल के माने हुये शिक्षक थे ।मै शादी केबाद भी मिलने पर रुक कर नमस्ते करती और बातें करती थी ।मुझे देखकर वे भी बहुत खुश हो जाते थे ।

सरस्वती स्कूल की बहुरा बाई साहू प्रधान पाठिका बहुत ही बढ़िया गणित और हिंदी पढ़ाती थी ।दानी स्कूल की मिडिल स्कूल की नायडू मैडम का गणित ही याद है ।

दानी स्कूल की हाई स्कूल की टीचर बेला सेन और आशा सप्रे मैडम तो मुझे आज तक याद है ।बेला सेन मैडम नौवीं और दसवीं में फिजिक्स पढाती थीं ।पर दूसरे के खाली पिरियड में जब आती थीं तो अंग्रेजी में "वर्ड बिल्डिंग " खेल खिलाती थीं ।नये नये अंग्रेजी के शब्द बनाना बहुत अच्छा लगता था ।उनके विषय में कोई फेल नहीं होता था ।

आशा सप्रे मैडम फिजिक्स के एक एक सूत्र को ऐसे समझाती थीं कि परीक्षा तक याद रहता था ।पढाई के साथ टेस्ट भी लेती थी ।रिविजन भी करवाती थी ।सयय समय पर एक्सट्रा क्लास भी लेती थी ।1971-72 की बात है ।मै दसवीं में थी ।हमारी बोर्ड परीक्षा थी ।दीपावली की पचीस दिन की छुट्टी थी ।सप्रे मैडम ने एक्सट्रा क्लास रखी थी । नौ से बारह बजे तक पढ़ाई होती थी उसके बाद प्रेक्टीकल भी करते थे ।रविवार के दिन आठ बजे हम लोग स्कूल पहुंच गये ।मैडम नहीं आई थी ।मैडम हमेंशा समय से पहले आ जाती थीं।।उस दिन नहीं आई थी ।दस मिनट के बाद सब इधर उधर होने लगे ।

कुछ लड़कियां पास के ही श्याम टाकिज में फिल्म देखने चली गई ।हम लोग 10--15 लोग ही बचे थे ।मैडम आते ही केमिस्ट्री लैब के लेक्चर हाल में बैठ गई ।हम लोग घबराकर एक एक कर के अंदर आने लगे ।मैडम चुप बैठी रहीं, फिर कहा" बाकी लड़कियां कहाँ है?" हम लोगों ने कहा "घर चली गई है "

मैडम ने कहा मुझे आने में 15 मिनट की देरी हो गई तो तुम लोग रूक नहीं सके ।पढ़ाई एक तपस्या होती है ।पुराने समय में लोग गुरुकुल जाकर सालों पढ़ते थे ।मैं अपनी छुट्टियों में तुम्हारे लिये पढ़ाने आ रही हूँ ।तुम्हारा कोर्स पूरा हो इसकी जवाबदारी मेरी नहीं है , तुम्हारी है ।तुम्हें पढ़ना है पढ़ो नहीं पढ़ना है मत पढ़ो । कल से मैं कक्षा नहीं लुंगी ।

मैडम की आंखो में आंसू आ गये ।चश्मे से बाहर आंसू बहने लगे । चश्मा उतार कर मैडम रुमाल से आंसू पोछते बैठ गई ।काफी देर तक सभी चुपचाप बैठे रहे ।हमारे क्लास की एक लड़की उषा अग्रवाल ने "सारी मैडम "कहा और पढ़ाने के लिये प्रार्थना की ।

काफी देर के बाद मैडम ने उखड़े मन से पढ़ाना शुरु किया ।अंत तक किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं आई ।हमेंशा मुस्कुराने वाला मैडम का चेहरा मुरझा गया था ।यह बात मेरे दिल को छू गई ।इस घटना को मै आज तक नहीं भूल पाई ।

मैने उसी कालेज के केम्पस से एम एस सी किया पर कभी भी गोल नहीं मारी ।मै हर दिन क्लास की कोई लड़की रहे या न रहे, क्लास के दरवाजे पर मैडम ,सर के इंतजार में खड़ी रहती ।उनके कहने पर ही "आज क्लास नहीं होगी " घर वापस जाती थी ।
मैं चौतिस साल के बाद बेला मैडम से एस सी ई आर टी में 2007 में मिली उन्होंने मुझे पहचान लिया ,यह मेरे लिये बहुत बड़ी उपलब्धि थी ।सारी यादें आंखो के सामने आ गई ।

आज बेटा कहता है मुझे क्यों नहीं ऐसे टीचर मिले ।उनके दोस्त भी यही कहते है कि आंटी विश्वास नहीं होता ऐसे टीचर होते हैं?

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