रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 58


एम एस सी में विषय चुनने का समय आया तो मैंने वनस्पति शास्त्र ,रसायन शास्त्र और अंत में जीव शास्त्र भरा था ।मेरे नम्बर अच्छे आये थे तो मुझे रसायन शास्त्र मिल गया ।रसायन से मेरे मन मे हमेंशा से भय रहा था तो मैने वनस्पति शास्त्र के लिये आवेदन दे दिया ।मुझे अब जीव विज्ञान मिल गया ।

प्राचार्य के पास जाकर मैने फिर आवेदन दिया ।मुझे डांट पड़ी कि कितनी बार विषय बदलोगी ? मैने कहा "मैडम मैने वनस्पति शास्त्र पहले भरा है और वही लेना चाहती हूँ ।मैडम ने कहा तुम्हें अच्छे नम्बर मिले है तो पहले तो तुम्हें रसायन शास्त्र ही देंगे उसके बाद जीव विज्ञान मिलेगा ।अब तुम्हारा विषय नहीं बदलेगा ।एक बार ही मिलता है । जीवविज्ञान की प्रोफेसर ने कह दिया है कि सुधा वर्मा यहींरहेगी उसका विषय नहीं बदलेगा ।

जीवविज्ञान की प्रयोगशाला से आती फारमेलिन की गंध से मेरा दम घुटने लगता था ।बी एस सी तक तो मै डिसेक्शन कर ली अब और नहीं करना चाहती थी ।मुझे ये सब बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था ।एक माह बीत चुका था ।मैने फिर आवेदन दिया ।भाग्य अच्छा था कि वनस्पति शास्त्र में कम लोग होने की वजह से मुझे यह विषय मिल गया ।

मै अपने विभाग में आ गई ।हमारा विभाग ऊपर था ।नीचे रसायन विभाग और जीवविज्ञान विभाग था ।मैं सीढ़ी से चढ़ते हुये सर और मैडम को नमस्ते करती तो कोई जवाब नहीं मिलता था ।बाद में समझ आया कि दोनों विभाग के लोग मेरे से नाराज हैं ।मै भी अब बच कर चलने लगी की नमस्ते करना न पड़े ।बाद में पता चला कि वनस्पति शास्त्र का कोई महत्व नहीं है ।इसे कोई लेना नहीं चाहता है, बचे हुये लोगों को दे देते है ।जिनके नम्बर कम होते हैं उन्हें यही विषय मिलता है ।

मै तो यही विषय लेना चाहती थी ।मुझे पौधौं से प्यार था ।कहानियों में सुनती थी कि पौधे बात करते हैं ।लोगों की मदद करते हैं ।आखिर यह पौधे होते क्यों हैं ? उनकी अचरज भरी दुनियां के बारे में पढ़ते रहती थी ।हर विषय की कुछ विशेषता होती है ।मैनें हजारों तरह के पौधों के परिवार को जाना ।उसके प्रजनन और बीजों के प्रसारण के अचरज भरे तरीके को समझा ।

मैं इन पौधों को कहानियों से जोड़कर देखना चाहती थी ।मै पौधों से बातें करती हूँ तो वह बातें उन तक पहुँचती है कि नही यह जानना चाहती थी ।बी एस सी तक विभिन्न प्रकार के जीवों को समझी थी ।अब पौधों की बारी थी ।कभी कभी लगता था कहानियां सिर्फ कल्पना नहीं है कुछ तो है ।

एक दिन पता चला कि पौधे भी सोचते हैं ।उनका दिल होता है ।बिल्कुल कहानियों की तरह ।जगदीशचंद बसु ने सन् 1911 में रजोनेंट रिकार्डर बनाया और सन् 1914 में आस्किलेटिंग रिकार्डर बनाया था ।इस यंत्र से वृक्षो में जीवन के स्पंदन का सूक्ष्म अनुभव सम्भव हुआ ।सन् 1917 में "क्रेस्कोग्राफ" यंत्र बनाया जिसके द्वारा बताया की पौधों में भी मनुष्यों की तरह ह्रदय होता है जो निरंतर धड़कता है ।"मैगनेटिक केस्कोग्राफ " के द्वारा पता चलता है कि पौधों पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है ।पौधों को काटने पर पीड़ा होती है ।पानी देने पर खुशी होती है ।

उन्होंने एक प्रयोग किया और इस मीटर से नापा । वे अपने बगीचे के एक तरफ के पौधों को रोज डंडे से मारते थे और दूसरे तरफ के पौधों को पानी देते थे तथा हाथों से छुते थे ।एक सप्ताह के बाद केस्कोग्राफ से देखने पर पता चला कि जिन पौधौं को मारते थे वे पौधे
उनके आते ही पीछे हट जाते थे ।जिन पौधों को प्यार करते थे वे पौधे उनकी तरफ झुक जाते थे ।

जगदीशचंद बसु का जन्म 30 नवंबर सन् 1858 को पैदा हुये थे ।उनका निधन 23 नवम्बर सन् 1937 को हुआ। लोक कथायें तो हजारों सालों से चल रही है समय के साथ कथायें बदलती रहीं पर ऐसा कुछ तो था जो सच था ।उस सच को शायद हमारे पूर्वज जानते थे ।समय के साथ वह कहानी बन गई ।कुछ ने इसे अंधविश्वास भी समझ लिया ।

मैने इसे विज्ञान की नजर से देखा ।कहानियों में दर्शन भी रहता है ।मेरा वनस्पति शास्त्र लेना सार्थक हो गया। मैने पौधे के अलावा उनके भावनाओं को समझा ।कुछ दर्शन को दूसरों से जाना ।मेरा वह विषय बदलने के लिये घूमना सार्थक हो गया था ।आज भी मुझे लगता है मै पौधों को समझती हूँ ।उसे क्या तकलिफ है यह जान जाती हूँ

कहानियों मे मरी हुई लड़की पेड़ बन जाती है जहां दर्शन है तो वह पेड़ आने वाले लड़के की तरफ झुक जाती है ।वह लड़का उसका पति रहता है या होने वाला पति होता है । किसी कहानी मे पेड़ उसकी टहनियो को साफ करने वाले व्यक्ति को सोना चांदी देती है।फल सोने के हो जाते है।मुझेलगता है यह उसके अच्छे भाव हैं जो फलित हो जाते है ।इस अचरज भरी पौधों की दुनिया अनोखी है ।जितना उसे जानने की कोशिश करो उतनी उत्सुकता बढ़ती है।

मैने अपनी वनस्पति शास्त्र से मन की उत्सुकता को शांत किया है ।पौधों की संवेदना को जाना है ।

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