रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 12


छतरपुर का हमारा रजवाड़े का पुराना घर ।रात को सभी बच्चे रास्ते मे खेला करते थे ।गर्मी के दिन थे बहुत से बच्चे घर के सामने खेल रहे थे ।मेरा भाई रवि भी दरवाजे पर बैठा था ।उसे हम लोग घर में "मुन्ना "बोलते थे ।
शाम को करीब पांच बजे दो घुड़सवार आये ।मुन्ना को एक ने गोद में उठाया और बातें करने लगा ।ठाकुर किसी काम से गया था ।माँ अन्दर ही थी ।बातें करते करते वह मुन्ना को गोद में लेकर बैठ गया ।मुन्ना से कह रहा था घूमने जायेगा? मुन्ना ने हाँ कहा और वह हमारे सामने उसे लेकर चला गया ।

ठाकुर आया और पूछा मुन्ना कहां है? हम सभी ने कहा घूमने गया है ।उसने सोचा माँ के साथ गया है।चुप बैठ गया ।थोड़ी देर में माँ बाहर आई ।ठाकुर ने पूछा "मुन्ना कहाँ है ?शाम को मुन्ना उसके साथ ही रहता था ।माँ ने कहा पता नई बाहर होगा ।अब हड़कम मच गई ।

मैंने कहा घोड़े में घूमने गया है ।अब प्रश्न की झड़ी लग ग्ई ,कौन ले गया ?कहाँ ले गया ? हमारे पास तो एक ही उत्तर था "नहीं मालूम "।ठाकुरने कहा देखते है ।शाम हो ग्ई ,छै बज गये ,सात बज गये ,हमारे घर भीड़ इकट्ठा होने लगी ।काका आये तो उन्हे पता चलते ही कहे पुलिस में रिपोर्ट करते हैं ।

ठाकुर ने कहा "साहब ये डाकू का मामला है , अभी रात को वे लोग यहाँ से गुजरेंगे तब मै पता करूंगा "।सभी चुप बैठे रहे ।माँ की ममता हनुमान जी के सामने एक नारियल रख कर बैठ गई ।

करीब आठ बजे उलटी दिशा से याने जिधर डाकू जाते थे उधर से एक टांगा आते दिखा ।सब उधर ही देखने लगे ।पीछे बैठे लोग दिखाई नही दे रहे थे ।टांगा घर के सामने रूका ।आवाज सुनकर माँ भी बाहर आ गई ।

टांगे के पीछे से एक आदमी मुन्ना को लेकर उतरा ।मुन्ना हंस रहा था ।माँ ने तुरंत उसे गोद में लिया ।मां काका नेकोई बित नहीं की मुन्ना को छुते रहे ।ठाकुर पुछ ताछ करने लगा ।उसने बताया मानसिह ने कहाथाआज मुन्ना केसाथ खेलेंगे लेकर आ जाओ ।ठाकुर ने कहा बता कर ले जाते ।

मानसिंह ने खिलोने भेजे है करके जब खिलौने उतारने लगा तब सबका ध्यान उधर गया ।पूरे टांगे में खिलौने और रावलगाव के चाकलेट ,गोलियां,क्ई पैकेट बिस्कुट रखे थे । कंचे लकड़ी का घोड़ा चिरैंया खेल ,कैरमबोर्ड रखाथा ।सब उतार कर वे लोग घर के अदर रख दिये ।औह मुन्ना को गाल छुकर प्यार करने लगे ।माँ तो ऐसे पकड़ी थी की वह हिल भी नहीं पा रहा था

रात भर माँ जागती रही दूसरे दिन अपना निर्णय काका को सुना दी "अब हम लोग वापस रायपुर जायेंगे "।काका मनाते रहे कि उन्हें अकेले रहना पड़ेगा ,अभी एक साल तबादला नहीं हो पायेगा ।तुम तीन बच्चों के साथ अकेले कैसे रहोगी ?

किसी प्रकार माँ मान गई ।यह 1963 जून की घटना है ।काका बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मे प्राचार्य थे और दीदी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी में एम ए कर रही थी ।

हम लोग दीपावली के पहले रायपुर आ गये ।हर दिन मानसिह के बारे में सोचते थे ।वह अपनी पीठ पर मुन्ना को बैठा कर घुटने के बल चल रहे थी ।सारे लोग नाच रहे थे ।भाई थोड़ा मोटा सा बहुत ही खूबसूरत दिखता था ।काका कहते थे मन का बहुत अच्छा है मानसिंह।बाद में माँ भी सोचने लगी की डाकू भी बच्चे के साथ खेलते है ।अब रात को भी डाकू लोग कभी हमें दौड़ाते तो कभी गाल छुकर प्यार करते थे ।

ठाकुर हमें रायपुर तक छोड़ने आया ।डाकू की वजह से वहाँ पर लठैत रहा करते थे ।उन्हे ठाकुर ही कहते थे ।सन्1964 के नवम्बर में हम लोग वापस रायपुर आ गये ।

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