रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 68


बिदाई के बाद रात को अपने मायके की तरह खुले छत मे सोना पड़ा ।उस समय कुलर नहीं होता था ।पंखे रहते थे ।अधिकतर टेबल पंखा होता था ।सिलिंग पंखा तो बड़े बड़े घरों मे रहता था ।पर मैने तो सिलिंग पंखे का सुख लिया था ।सुबह मेरी जेठानी ने जल्दी उठा दिया क्योंकि बहुत सी रस्मे बाकी थी ।सुबह नहा कर फिर से मंडप पर बैठा दिया गया ।अब एक खेल खिलाया गया ।पहले तो दोनों ने एक दूसरे के हाथों मे बंधा कंकन खोला । यह भी मजेदार खेल है सारी की सारी सात गठान बिना काटे खोलना रहता है ।उन्होंने तो मेरे हाथ का कंकन खोल दिया पर मै नहीं खोल पाई ।उसे आखरी में काटना पड़ा ।यह गठान न खुले करके उस पर तेल डाल दिया जाता है ।तेल अपना असर तो दिखाता ही है ।उसके बाद इस पीले धागे को और एक चांदी की माला के साथ जिसमे सिक्का भी रहता है रोचन पानी मे डालते है

रोचन पानी बनाने के लिये हल्दी और सोडा मिला कर घोला जाता है ।इस पानी को लड़की के फेरे के समय पैरो के पास रखा जाता है जिस पात्र में रखा जाता है उसे "गहिरही " कहते है ।याने जो गहरा होता है ।अक्सर यह पात्र बासी खाने के काम में आता है । छत्तीसगढ़ की बासी को तो सभी जानते है।जो नहीं जानते उनके लिये बता देती हूँ कि रात को पका चांवल याने भात को पानी मे डुबा कर रख देते हैं।सुबह इसमे नमक डाल कर खाते हैं ।साथ में अचार हो आम का या लहसुन लाल मिर्च की चटनी हो या फिर रात की बची अरहर की दाल में लाल मिर्च पाउडर डाल के खायें तो बासी का स्वाद बढ़ जाता है । इसे पहले काली हंडी मे पकाया और डुबाया जाता था तो उसका स्वाद थोड़ा खट्टा रहता था और खाने मे स्वादिष्ट रहता था इसका कारण था कि मटकी मे छोटे छोटे छिद्र रहते है जिससे बासी मे किण्वन कि क्रिया होती थी और उसका स्वाद बढ़ जाता था ।शोध से पता चला है कि इसमे बहुत से अच्छे बैक्टिरिया पैदा हो जाते है जो शरीर को ताकत देते है ।बहुत से विटामिन भी रहते है।

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गहिरही " में रोचन पानी और थाली में पीला चांवल रखते है।चांवल का टीका लगा कर और दोनों के पैरों पर रोचन पानी डाल कर दहेज या उपहार का सामान देते है ।इस पूरी क्रिया को टिकावन टिकना कहते हैं ।यह सब लड़की के घर पर होता है ।वह रोचन पानी को लड़की के साथ विदाई के समय लड़के के घर भेजा जाता है ।इस रोचन पानी मे लड़के के घर वाले अपना और रोचन बना कर मिलाते है ।अब इस पानी मे खेल खिलाया जाता है

खेल में जो आखरी मे जीतता है उसी की पूरे जीवन चलती है ।यह मान्यता है ।यह खेल हंसी मजाक का होता है ।लड़की इस हंसी मजाक मे अपना दुख भूल जाती है । मेरे साथ भी वही हुआ ।सबेरे जो कमी मायके की लग रही थी वह इस मंडप के खेल के बाद खतम हो गई ।ननंद इनकी तरफ तो सास मेरे तरफ थी । अब हमें कुल देवता के पैर छुने के लिये ले गये ।

वहाँ पर एक मजेदार घटना हो गई ।देवता के सामने बहु पायली में धान भरती है और बेटा उसे पैर से गिराता है धान की जगह चावल भी ले सकते है । ।मैने चांवल भरा और इन्हे पैर से गिराने के लिये कहा गया ।इन्होंने इतने जोर से मारा कि वह पायली बाजू के कमरे मे चली गई सब सन्न रह गये ।मेरी ननंद लाने गई तो वह पायली सीधी रखी हुई थी सिर्फ ऊपर का चांवल ही गिरा था ।सब हंसने लगे ।इनका तमतमाया चेहरा देखकर सब चुप हो गये ।इनसे सब डरते थे ।दूसरी बार मैने भरा तो बोले कितने जोर से मारना है ।तो मेरी ननंद ने कहा सिर्फ गिराना है ।वे बोले पहले मारो क्यो बोले , मैने ताकत से मार दिया ।स्पीड बतानी चाहिये ।सब चुप चुप हंस रहे थे और ये चुप थे।आखरी बार जब गिराये तब हंसे ।

रस्मे पूरी हो गई थी ।अब सबका पैर छुना था ।मेरी ननंद पहले रिस्तेदारों का पैर छुते जा रही थी उसके बाद मै और ये दोनों पैर छुते हुये आगे बढ़ रहे थे ।यही मुंह दिखाई की रस्म होती है ।बहु पैर छुती है और लोग पैसे सामान जैसी कोई चीज देते है ।मुझे बहुत सा पैसा मिला उस समय करीब सात रुपये थे ।मेरी जेठानी ने चांदी की सिंदूर दानी दी और कोई चार आना तो कोई आठ आना दिया ।मैने तो ऐसा अपनी याद में नहीं देखा था कि कोई चार आठ आना भी देता है ।खाना खा कर सब सो गये ।चार बजे मुझे उठा कर तैयार होने के लिये कहा गया ।मै तैयार होकर एक जगह बैठ गई ।

अब यह समय रिसेप्शन का था ।उस समय रिसेप्शन का चलन शुरु ही हुआ था ।स्वल्पाहार का समय था ।अब बाहरी लोग बहु देखने आने लगे ।मेरे देवर के दोस्त थे ।मेरे दो देवर है ।मेरी एक ननंद है उसकी सहेलियां आई थी ।एक जेठ थे वे पी एच ई मे इंजीनियर थे उनके आफिस के लोग थे ।इनके बैंक के लोग थे ।अड़ोस पड़ोस के लोग थे ।सभी पहले मुझे देखते और गिफ्ट देते उसके बाद बाहर मे खड़े इनसे और मेरे ससुर से मिलते थे ।फिर नास्ता देते थे ।लोग चले जाते थे ।आज और कल का रिसेप्शन ? कितना फर्क है ।पहले पत्तल में खाते थे ,जमीन में बैठते थे ,प्यार से परसते थे ।पूछ पूछ कर खाना दिया जाता था । चार आठ आना आज भी याद आता है क्योंकि उस समय ग्यारह रुपये सबसे कम था देने के लिये ।पर एक बात और याद आ रही है कि दिखने मे पैसे वाले लोग अंदर से कैसे होते हैं ।उस समय के सिंचाई मंत्री श्री बृजलाल वर्मा जी मुझे मायके में भी पांच रुपये और ससुराल मे भी पांच रुपये दिये थे मै बात पैसे की नहीं कर रही हूँ पर एक पैसे वाले का दिल कितना छोटा होता है यह बता रही हूँ ।

आज दोनों तरह के लोग मिलते है जो सोचते है बस शादी मे आकर आशीर्वाद दे दें ।कुछ लोग उपहार के आकार के हिसाब से व्यवहार करते है कुछ लोग उसके कीमत से सम्बधो को तौल लेते है।कुछ लोग तो शादी मे ऐसे ही लोगों को बुलाते है जो पैसे वाले है।पर लिफाफा उनको रूला देता है ।यह समाज मे तेजी से फैल रही है ।

मुझे तो मेरे सात रुपये आज भी याद है ।प्यार की मुंह दिखाई जिसमे दिखावा नहीं था गरीब है तो है ,शान है ।

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