रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 27


आज ही नहीं पुराने समय से बेटे की लालसा रही है।मरने पर पानी कौन देगा ? यह सोच कन्या भ्रूण की हत्या तो नहीं करता था पर लड़कियों की लाइन जरुर लगा देता था ।पहले की सोच थी कि बच्चे भगवान की देन हैं ।पर इसमें बेटी के लिये सम्मान कम नहीं होता था ।य। छत्तीसगढ़ है ।मै यहाँ की बात कर रही हूँ ।

यहाँ पर लड़का हो या लड़की सभी के लिये गांव में पोंगा जरुर बजता था ।पोंगा याने लाऊडिसपीकर ।छट्ठी के नाम पर कांके पानी और नास्ता जरुर बटता है ।यहाँ पर बेटी के पैदा होने पर भी उतनी खुशी मनाई जाती है जितने बेटे के लिये ।

मेंरी दो पहले की बहने नहीं रही ।एक तीन साल की थी और मेरे बड़े पिताजी की बेटी भी तीन साल की थी ,दोनों माता निकलने की वजह से मर गई ।मेरी बड़े पिताजी की दूसरी लड़की रही पर मेरी दूसरे नम्बर की बहन भी पंद्रह दिन में खतम हो गई ।उसके दो साल के बाद एक जनवरी को मेरी दीदी का जन्म हुआ सुबह चार बजे ।

काका खलिहान में आग ताप रहे थे ।सुबह चार बजे उन्हें रायपुर के लिये निकलना था ।किसी ने आकर काका को बताया कि उनकी लड़की हुई है ।वे हाँ बोलकर रायपुर के लिये निकल गये । लोगों ने कहना शुरू किया कि लड़की होने के कारण देखने नहीं आये ।बच्चे को नहलाना फिर दिखाना तब तक एक घंटा हो जाता ।स्कूल जाने में देरी हो जाती इस कारण बिना देखे निकल गये ।एक जनवरी उन्नीस सौ चवालिस की बात है जब काका जगदलपुर में शिक्षक थे ।

हाँ एक बात जरुर थी कि बच्चे के प्रति मोह खतम हो गया था ।उन्हें लगता था कि यह भी नहीं बचेगी ।यही कारण था कि पढ़ाई भी दीदी माँ के साथ ही करती थी ।सात आठ साल के बाद ही काका दीदी की तरफ ध्यान देने लगे ।बड़े पिताजी के एक बेटी के बाद एक बेटा फिर एक बेटी हुई । दीदी की उम्र बढ़ने के साथ दादी की चिंता की बेटा नहीं है और बच्चा भी नही हो रहा है काका को दूसरी शादी के लिये कह दिया ।

काका माँ को साथ डोंगरगढ़ ले गये ।काका वहीं प्राचार्य थे ।घर नहीं आये ।माँ गर्भवती हुई और जगदलपुर तबादला हो गया ।दीदी ग्यारह साल की थी जब मेरा जन्म हुआ ।अब काका की शंका ,की बच्ची नहीं बचेगी दीदी के प्रति प्यार को बढ़ाया साथ ही मेरे प्रति भी प्यार बढ़ा ।मेरे से तीन साल छोटा भाई है ।पर जो प्यार भाई हमारे लिये था वह मुझे अपने भाई के लिये नहीं दिखता था ।शायद यह गलत फहमी हो ।

शिक्षा को बढ़ावा देते थे खास तौर से लड़कियों के लिये ।यह एक उदाहरण था कि मेरी दीदी पहली एम ए और पी एच डी थी ।हमारे समाज में लड़कियां पढ़ रही थी पर सातवीं आठवीं तक ।दीदी के बाद लड़कियां आगे आई ।मैने अपने समाज मे सबसे फहले एम एस सी कीया ।इसमें मेरे पिता जी की ही प्रेरणा रही ।हमेशा दीदी को आगे बढ़ाते रहे।भाषण प्रतियोगिता ।कहानी के साथ साथ नाटकों में भाग लिया करती थी ।साइंस कालेज से रात को नाटकों में भाग लेकर आती थी पर कभी किसी ने काका की तरफ उंगली नहीं उठाई।लोग उनसे अपनी बेटियों को मिलाने लाते थे और पैर छुते थे ।

शादी में जो भी समस्या आई उसे उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया ।लोगों की जो बेटी होने पर गलतफहमी पैदा हुई थी वह समय के साथ खतम हो गई ।हमारे परीवार को शिक्षित परिवार के रूप में ही जाना जाता है ।बेटियां मेट्रिक से नीचे नहीं पढ़ी हैं ।हमारे घर में बेटियों के बाद बहुओं को स्थान दिया गया है ।डांट हमेंशा बेटे को पढ़ती है बहुओं को नहीं ।बहुओं को बहुत सम्मान दिया जाता है ।

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