रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 11


शिक्षा का अधिकार तो सब को है ।कोई पढ़ पाता है कोई नहीं।कुछ ऐसे लोग भी होते है जो स्वयं पढ़ नहीं पाते परिस्थिति वश कुछ गलत करते हैं पर अपने बच्चे के लिये अच्छा सोचते है।

मानसिंह डाकू भी अपने बेटे को पढ़ाना चाहता था ।वह छतरपुर के जिस स्कूल में पढ़ता था उसी स्कूल में मेरे काका प्राचार्य बन कर गये ।दीपावली के बाद हम लोग भी चले गये ।मेरे से बारह साल बड़ी मेरी दीदी सत्यभामा और मेरे से तीन साल छोटा भाई रविशंकर के साथ मेरी माँ छतरपुर पहुँच गये ।दीदी बीए फाइनल में थी वह कालेज जाती थी ।मुझे दूसरी कक्षा में भर्ती कर दिया गया ।भाई माँ के साथ घर पर रहता था ।

एक लठैत भी दिनभर रहता था ।उसे ठाकुर कहते थे ।हम लोग जिस बाड़े में रहते थे असल में वह राजा का महल था ।खंडहर हो रहा था उसे ही जोड़ तोड़ कर रहने लायक बनाया गया था ।वहाँ बहुत से परिवार थे ।पंजाबी सिंधी भी थे ।हमारे घर के सामने एक रोड था जो शहर की ओर जाता था।बहुत से बच्चे थे हम सब मिल कर तात तक रेस टीप या छुआ छुवल खेलते थे ।

रात को वहाँ से बहुत से डाकू निकलते थे कोई पैदल तो कोई घोड़ेपर ।ठाकुर रात को बारह बजे घर जाता था ।हमारे खेलते तक वह बाहर बैठे रहता था ।

परीक्षा के दिनो में एक दिन हड़कम मच गई ।ग्यारहवीं की बोर्ड परीक्षा थी ।एक लड़का चाकू लेकर बहुत सी पुस्तकें और चिट पकड़ क र लिखने बैठा था ।दो डाकू घोड़े में बंदूक पकड़ कर खड़े थे ।काका के पास शिक्षक आये ,काका जाकर लड़के को समझाये पर वह बोला मै जो चाहूं वह कर सकता हूँ ।मैं मान सिंह का बेटा हूँ।

काका ने कहा भाई पिता जीका नाम कुछ भी हो पर स्कूल में नियम से चलना पड़ता है ।काका उसको अपने कमरे में ले आये ।उसे बहुत समझाये ,एक घंटा निकल गया तब तक मानसिंह आ गया ।वह सीधे काका के पास गया । कठिन समय था । काका ने उसे बैठा कर समझाया कि इस तरह से पास होने का कोई मतलब नहीं है ।यह कुछ भी नहीं सीख पायेगा ।तुम क्या करते हो ?यह प्रश्न उसे आश्चर्य में डाल दिया ।

वह मुंछों पर ताव देते कहता है " मैं मानसिंह हूँ " क्या करते हो ? आश्चर्य कोई मानसिंह को न जाने ? जी मैं डाकू हूँ ,आंखों में आंसू ,और कहता है ," मैं अपने बेटे को पढ़ाना चाहता हूँ ।"

काका तो अंदर से थरथरा गये ।इतना बड़ा डाकू एकाएक सामने बैठा है ।एक शिक्षक की जिम्मेदारी सामने आ गई ।काका ने कहा देखो भाई बच्चे को पढ़ाना चाहते हो तो अच्छे से पढ़ाओ । मैं इस बच्चे को पढ़ाने की जिम्मेदारी लेता हूँ ।ये बच्चा अच्छे से मैट्रिक निकल जायेगा ।आज इसे जाने दो ।

लड़के ने परीक्षा नहीं दिलाई ।दूसरे साल सभी शिक्षकों से कहा गया कि इसे अलग से पढ़ाया जाय ।सभी एक लड़के के जीवन को संवारने में लग गये ।

अगले साल लड़का द्वितीय श्रेणी से मैट्रिक निकल गया ।एक ऐसा इंसान जो मार काट में जीवन बीता रहा था उसके आंखो में आंसू ?काका के मन को झकझोर कर रख दिया ।उस बच्चे की पास होने की चाहत हर शिक्षक के मन में एक पीड़ा उत्पन्न कर दी ।

एक डाकू का बेटा बंदूक नहीं कलम पकड़ना चाहता है। क्ई लोगों ने उसी दिन जाना की वह डाकू मानसिंह का बेटा है।सब ने उसे अच्छा इंसान बनने में मदद की ।पर इस घटना ने मेरी माँ को हिला कर रख दिया ।

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