रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 25


धंधा या व्यापार में दोस्ती नहीं होती ।यहाँ पर पैसा ही सब कुछ होता है ।काका रिटायर हो गये पर पेंशन शुरू नहीं हुई सात आठ महिने के बाद पेंशन मिला ।इन सात आठ महिने की पीड़ा आंखो के सामने आ जाता है ।

हमारे घर के पास ही रीझूमल का घर था ।उसका व्यक्तित्व भी निराला था ।धर्मेंद्र की तरह दिखता था और हीरो बनने के सपने देखता था ।अपनी फोटो क्ई जगह भेजते रहता था ।मुम्बई भी होकर आ गया था ।एकलौती संतान होने के कारण उसे कोई रोकता नहीं था

वह दुकान जाते समय हमारे घर से एक बड़ा सा लाल गुलाब तोड़ कर अपने शर्ट में लगा लेता था ।उसके गेट खोलते ही मैं गुलाब के पेड़ के पास आकर खड़ी हो जाती थी ।मैंने कभी गुलाब तोड़ कर भगवान में भी नहीं चढ़ाई थी और आज भी नहीं चढ़ाती हूँ ।

हमारे घर का पूरा सामान उसके दुकान से ही आता था ।दुकान ग्रेट ईस्टर्न रोड पर था ।बहुत भीड़ रहती थी ।पूरे महिने सामान लेते रहते थे और एक तारीख को पैसा देते थे ।दोनों परिवार मे बहुत प्यार था ।गांव से चार गाड़ा मे सामान आता था ।धान ,लाखड़ी ,राहर,चना , लकड़ी ,गाय के लिये पैरा आता था ।जब गाड़ा आता था तो देखने वालों की भीड़ लग जाती थी ।माँ चना बांटती भी थी ।

काका रिटायर हुये तब हम लोग उसको पुराना पैसा नहीं दिये और अगले महिने का सामान लेकर आ गये ।दूसरे महिने भी सामान लेकर आ गये ।अब दो महिने का पैसा बाकी था और तीसरा महिना शूरू हो गया ।बीच बीच में काका कहते थे "रीझू"तुम्हारा पैसा नहीं दिया हूँ ।मेरा पेंशन अभी बना नहीं है । जैसे ही पेंशन मिलेगा पूरा पैसा दे दूंगा ।देखना बच्चों को तकलिफ न हो । पर तीसरे महिने की शुरुआत ने मुझे पसीने से तर कर दिया ।पहिली बार बेईज्जती सहनी पड़ी ।

मैं महिने के सामान की लिस्ट लेकर गई ।सामान लेने मैं ही जाती थी ।रीझू ने कहा "बेबी " पैसा लाई हो ?मैने कहा अभी काका को पेंशन नहीं मिला है ,मिलेगा तो दे देंगे ।उसने साफ कह दिया कि पहले का पैसा देने के बाद ही सामान दूंगा ।मेरी धड़कन बढ़ गई । पसीने से तर हो गई ।पहली बार बेईज्जती हुई थी। मै घर आते आते सोच रही थी कि माँ को क्या कहूँगी?

लिस्ट वही छूट गई ।मैं धीरे धीरे घर आई ।धड़कन अभी भी तेज थी । खाली हाथ देख कर माँ बोली "सामान रीझू लेकर आयेगा क्या ?"नहीं कहते हुये मेरी आंखो से आंसू टपकने लगे । मैने माँ से कहा नहीं रीझू ने सामान देने से मना कर दिया है ।उसने कहा पहले का पैसा पटाने के बाद ही सामान देगा । उस वक्त मेरे फूफा जी केशव राम गांव से आये थे ।उन्होंने पूछा "क्या हुआ ?" माँ ने पूरी बात बताई और कहा पता नहीं कब पेंशन बनेगा। फूफा जी ने कहा तकलीफ मे एक दूसरे के काम आना चाहिये ।मैं कल पैसा भेजता हूँ ।

शाम को रीझूमल सफाई देने आया था ।कह रहा था क्या करें पैसा मिलेगा तभी तो समान लाऊंगा ।वह चला गया माँ भी दुखी थी क्योंकि ऐसा पहिली बार हुआ था ।पूरे मोहल्ले में पता चल गया ।कोई शासन को तो कोई रीझू को दोस दे रहा था । सुबह फूफा जी ने पैसा भेज दिया ।एक नौकर पैसा लेकर आया। मैं पैसा देकर आ गई ।दोपहर को रीझूमल सामान लेकर घर आया ।उसका घर हमारे घर के दो घर के बाद ही था ।माँ ने कहा अब तुम्हारे यहाँ से सामान नहीं लेगे ।माँ ने बिल देख कर तुरंत पैसा दे दिया।वह पैसे नहीं ले रहा था कहने लगा गलती हो गई अम्मा अब जब तक पेंशन न आये तब तक सामान ले लेना ।मोहल्ले के लोग भी उसको जाकर डांटे थे ।माँ ने कहा बारह साल से सामान ले रहे है तुम्हारा पैसा कभी रुका है ।आज मुसिबत आ गई तो अविश्वास पैदा हो गया ।इतनी खेती है ,इतना बड़ा घर है क्या तुम्हारा पैसा खा जाते क्या ?तुम्हें ये सब बेच कर पैसा देते ।

उसके चेहरे का रंग उड़ गया था ।झेंप रहा था ।बार बार अब ऐसा नहीं होगा कहते रहा ।बहुत देर के बाद घर गया ।दूसरे दिन फूल तोड़ने आया तो मुस्कुरा रहा था ।माँ ने नमस्ते का जवाब नहीं दिया ।मैने भी कहा नहीं फूल मत तोड़ा करो ।इस घटना ने मुझे भी ताकत दी थी नहीं कहने का ।अब जो दरार आ गई थी वह कभी नहीं भरी ।

सामान लाते थे पर तुरंत पैसा देकर ।माँ कपड़े भी उधारी लेती थी ।इस घटना के बाद सारी उधारी बंद हो गई ।कपड़े वाले कहते थे क्या हुआ ? माँ ने एक अच्छी बात कही कि उधारी लेने से बेहिसाब खरीद लेते हैं।नगदी खरीदने से हिसाब से खरीददारी होती है ।

इस घटना ने मेरे मन में ऐसा प्रभाव छोड़ा किसमैने कभी उधारी खरीददारी नहीं की ।मेरी कोई पहचान की दुकान भी नहीं है ।जिधर जाती हूँ उधर से ही सामान खरीद लेती हूँ ।रीझूमल के घर पर कुछ भी होता तो बुलाते पर माँ दिल से नहीं गई ।पेंशन को बनने में छै माह लग गये ।वो छै माह मेरे और माँ के दिमाग में ऐसा असर किया कि पैसा और उधारी दोनों से सतर्क रहने लगे ।

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