रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 62


एक घटना है जब मैं अपने मामा के घर गई थी तो मै और मेरे मामा की लड़की प्रभा दोपहर को तालाब गये तालाब के एक तरफ हम लोग थे और दूसरी तरफ एक परिवार नहा रहा था ।हम लोग तालाब के पानी मे उतरते उसके पहले बहन ने हाँथ की उंगली को उसकी तरफ करके चिल्ला कर बोली " ए बाहिर निकल हमन हाथ गोड़ धोबो " पूरा परिवार आधा नहाये ही बाहर आ गये ।बच्चे के शरीर पर साबुन लगा था ।वह सुखने लगा ।बेचारा बच्चा हमारी तरफ ही देख रहा था ।बहन बहुत मजे से पानी मे खेलती रही ।आधा घंटा हम लोग रहे ।वह परिवार पानी के बाहर बैठा रहा । हम लोग चलने लगे तब सभी दौड़ कर पानी में आ गये ।


मैने बहन से पूछा कि उसको बाहर निकलने के लिये क्यों बोले ? बहन ने कहा वे लोग पानी मे रहते तो हम लोग छुआ जाते ।वे लोग सतनामी हैं ।मैने पहली बार ये शब्द सुना था ।बारह साल की उम्र और एक नया नाम जाति का ।मैने अपने मामा से पूछा कि ये लोग कौन हैं ओर क्या करते है । मामा हैड मास्टर थे उन्होंने कहा ये लोग अछूत है । ये लोग किसानी का काम करते है ।मैने पूछा मरे जानवर को ले जाते हैं या जूता चप्पल बनाते हैं ,तो मामा ने कहा कि नहीं ये लोग मजदूरी करते है पर हमसे दूर रहते है ।


कुछ समझ में नहीं आया ।मै पूरी गर्मी की छुट्टी वहीं बिताती थी अब मन में एक प्रश्न था जिसका उत्तर खोजने लगी थी ।वे लोग मामी के पास मठा लेने आते थे तो दरवाजे पर खड़े हो जाते थे और अपनी गंजी जमीन में रख देते थे ।बहन उसमें मठा डाल देती थी ।कभी वे लोग पैसा देते थे तो कभी उधारी के बदले मजदूरी करते थे ।पैसे को तूरंत बहन उठा कर "गोड़धोने" के पानी से धोकर रख देती थी ।गोड़धोना याने घर के आंगन की वह जगह जहां पर बाहर आने के बाद पैर धोते हैं तब कमरे में जाते है ।इस जगह पर एक गुंड में पानी भरा रहता है और कोई भी पेड़ लगा रहता है ।पानी बहता नहीं वही पर जमीन में ही पानी चला जाता है ।बालमन को समझने में इतना समय लगा कि मैं जवान हो गई और मेंरी शादी भी हो गई ।


गांव से मै ऐसा प्रश्न लेकर आई थी जिसका जवाब किसी के पास नहीं था ।मै आने के बाद अपनी माँ से पूछी के ये लोग कौन है ? माँ का प्रश्न था तुम जानकर क्या करोगी अपनी पढ़ाई करो ।हरिजन लड़की तीसरी में मेरे साथ पढ़ी थी तो वे क्या करते है पता चल गया ।बहुत से देवार और बेलदार हिन्दूस्पोर्टिंग मैदान में डेरा डाल कर रहते थे वहाँ जा जा कर मैने उनको जाना ।सतनामी शब्द एक पहेली बन गई ।


मेरी शादी हो गई और हमने एक छोटा सा प्लाट गीतांजली नगर में ले लिया ।यह वहां का पहला मकान था जो खेतों के बीच मे था एक दो साल के बाद बालकृष्ण अग्रवाल ने एक कालोनी शुरु की कविता नगर ।वहां काम करने के लिये बहुत से मजदूर आये ।वे लोग पीने का पानी मांगने मेरे घर आते थे ।इत्तफाक से हमारे घर के बाजू के मकान में एक ब्राम्हण चौकीदार था ।उसने बताया कि इनसे घर का काम मत कराना अंदर मत जाने देना ।ये लोग इस जाति के है ।


मेरी तो बांछे खिल गई ।अब तो मुझे इनसे बहुत बातें पूछनी है ।देखते देखते चार पांच मकान हमारे कालोनी में बन गये थे ।ये लोग वहाँ काम भी करने लगे और दो घर में खाना भी बनाने लगे । मैने कुछ कहा नहीं लोग बोलने लगे ब्राम्हण है ।सभी बहुत ही खूबसूरत थे अच्छे ऊंचे थे बहुत गोरे थे ।मै उनके बनते हुये मकान तक गई ।वे लोग मेरे छत्तीसगढ़ी बोलने के कारण इधर उधर हो गये ।एक को मैने पकड़ा और पूछा तुम लोग कौन से गांव के हो ? क्या ब्राम्हण हो तो वे लोग चुप रहे और अपने आपस में ही बात करने लगे ।मैं बहुत देर तक खड़ी रही पर वे झिझकते इधर उधर हो गये ।चौकीदार ने बताया कि ये लोग धमतरी तरफ से आये है ।

मेरे मन की उलझन सुलझ नहीं रही थी ।मैने एक दिन पानी भरने आई महिला से पूछा कि तुम्हारा काम क्या है तो वह खेती बोलकर चुप हो गई ।मैने पूछा तो तुम लोगों को दूर क्यो रखते है ।उसका जवाब था " कोनजनी " याने पता नहीं ।शायद वे लोग भी अपने अछूत होने का कारण खोज रहे थे
एक दिन मेरी दीदी डाक्टर सत्यभामा आड़िल आई थीं और एक महिला पानी मांगने आ गई ।मैने दीदी से कहा कि ये लोग सतनामी है पर अछूत क्यों ? शायद मैने अपना प्रश्न अब तक सही व्यक्ति के सामने नहीं रखा था ।

दीदी ने कहा जब कर्म कांड बढ़ने लगा तो कुछ लोगों ने मूर्ति पूजा से अलग निर्गुण ब्रम्ह की ओर कदम बढ़ाये ।कर्मकांडी पंडितो ने और मूर्ति पूजा के उपासको ने इन्हें अलग कर दिया ।इनकी परछाई से दूर रहने की बातें फैलाई और इन्हें अछूत बना दिया ।ये निर्गुण ब्रम्ह को मानते है इस कारण समाज से बहिष्कृत है ।
उस समय एक क्रांति आई कि हर समाज के लोग इसमे आ गये बहुत से ब्राम्हण भी थे ।ये पूरे भारत में हुआ ।इस जाति के लोग बहुत सुंदर और गोरे भी है ।इन्होंने पूजा पाठ नियम धर्म को अपने नजरिए से देखा ।


मैने कभी अपनी दीदी से इस बारे में पूछा ही नहीं था ।पूछ लेती तो इस प्रश्न का बोझ लेकर इतने सालो तक तनाव में नहीं रहती ।मेरे मन की उलझन खतम हो गई पर उन लोगों का क्या जो आज भी बिना सोचे समझे किसी को मानसिक पीड़ा देते है ।जिसके वे हकदार भी नहीं हैं ।मुझे इतना समझने के बाद बहुत हल्का लगने लगा पर आज भी मुझे तालाब के किनारे खड़ा वह परिवार दिखता है ।बच्चे के शरीर पर लगा साबुन सुखते हुये दिखता है ।वह वेदना कभी भी मुझे झगजोरते रहती है ।मै खुश हूँ कि अब गांव शहर बन रहा है खेतों के काम मशीनों से होने लगे हैं ।अब लोग जाति पूछ कर काम पर नहीं रखते है ।वह एक जैतखम्भ सब को शांति का संदेश देता खड़ा है ।पाखंड और आडम्बर का इतिहास भी बताता है।आज शायद इसकी जरुरत है ।एक बार फिर से सामाजिक धार्मिक परिवर्तन हो ।

आडंबर से हार कर 1820 में सतनाम पंथ बना ।इसमें 64 जातियां है।यह सत्य के पथ पर चलने वाले सतनामी हैं जिसमें जातियों के लिये कोई स्थान नहीं है ।गेरौदपुरी में एक बड़ा ऊंचा सा जैतखंभ पूरी दुनिया में शांती का परचम फैला रहा है ।आडंम्बर से दूर कर्मकांड को अपना अंगूठा दिखा रहा है ।

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