रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 30


पहले लड़कियां सुरक्षित थी ए बात सही है आज की तरह अत्याचार नहीं होता था ।कुछ दबी दबी घटनाएं होती थी समाचार पत्र तक नहीं पंहुच पाती थी ।घर की घटनाएं घर पर ही रह जाती थीं

मुझे अपनी एक सहेली की याद आ गई ।उसका नाम सुशीला शर्मा था।उसके पिताजी का धागे रंगने का कारखाना था ।एक साल की दोस्ती थी पर अंतरंग ।कभी कभी स्कूल साथ चले जाते थे क्योंकि मै तो समय से पहले पहुंचने वालों मे से थी ।यह घटना 1970 की है ।

उसके घर में उसके दो भाई थे जो उससे छोटे थे और एक मामा थे ।मामा को कारखाने के काम के लिये रखे थे ।जब मुझे देरी हो जाती तो उसके घर चली जाती थी ।उनके घर का माहौल काफी तनावपूर्ण रहता था ।मामा हमेंशा चिल्लाते ही रहते थे ।सुशीला सुबह बहुत सारा काम करके स्कूल आती थी ।उसे पढ़ने की बहुत ईच्छा थी पर वह आठवीं के बाद नहीं पढ़ी ।

वह पढ़ाई छोड़ चुकी थी और मैं आठवीं में आ गई थी।उसके घर को पार करती तो अक्सर वह निकल कर मुझसे बातें करती थी ।उसकी माँ भी बात करती थी ।कभी कभी मैं माँ के साथ जाती थी तो माँ से भी बात होती थी ।एक साल के बाद सुशीला की शादी हो गई ।उसकी माँ ने बताया तो पता चला ।

सुशीला के हाथ और पैर में छै छै ऊंगलिया थी।पता नहीं सुशीला की शादी बाद ऐसा क्या हुआ कि उनका व्यापार घटने लगा था ।रोड में लगे उसके धागे सुखाने की जगह को नगर निगम ने हटा दिया था ।शायद जगह की कमी की वजह से व्यापार सिमट रहा था ।अंदर के कारखाने में धागे को लपेटा जाता था ।

दो तीन बार सुशीला से मुलाकात हुई वह खुश थी ।एक बार बहुत बिमार सी दरवाजे पर खड़ी थी ।शाम को साढ़े पांच बजे मैं स्कूल से लौट रही थी ।उसने मुझे बैठने के लिये कहा पर मैं नहीं बैठी घर आ गई ।शनिवार को उसके पास रुक गई ।उसने बताया कि उसे तीन चार महिने से बुखार है ।उसकी माँ ने बताया कि शायद टी बी हो गई है ।

मैंने अपना स्कूली ज्ञान बघारा खाना नहीं मिलता क्या ?उसने कहा मैं तुझसे क्या बताऊं तू छोटी है न ।बाद में बताऊंगी ।माँ को मैने बताया तो माँ ने वहाँ जाने से मना कर दिया ।टी बी फैलती है ,यह हौव्वा तब था क्योंकि ईलाज नहीं थे ।

एक साल गुजर गया ।एक दिन उसने कारखाने के अंदर से हाथ हिला कर मुझे बुलाई ।मुझसे भी रहा नहीं गया ।पूरा घर उजड़ा सा लग रहा था ।उसकी माँ नही थी ।उसने जो बातें बताई उससे मेरे रोंगटे खड़े हो गये ।उसकी सास की मृत्यु के बाद घर सम्हालने के लिये बेटे की शादी की गई ।एक किराने की दुकान थी ।मारवाड़ी थे तो धंधे पर ही ध्यान देते थे ।उसका पति सुबह दुकान जाता था फिर दो बजे खाना खाने आता था ।

इस बीच वह घर का काम करती थी ।उसके ससुर आंगन में खाट डाल कर बैठे रहते और लगातार सुशीला को देखते रहते थे ।एक दिन उसके ससुर उसका हाथ पकड़ कर कमरे में ले जाने लगे उसने विरोध किया तो बोले शादी मैं अपने लिये किया हूँ बेटे के लिये नहीं । उस समय बात खतम हो गई ।दोपहर को पति के आने पर उसने सारी बात बताई ।पति ने कहा तुम झूठ बोल रही हो मेरे बाबा ऐसे नहीं है ।देखते रहने का सिलसिला चलता रहा ।

कुछ दिनों के बाद उसका पति कुछ सामान खरीदने बाहर गया ।उस रात फिर ऐसी ही घटना हुई ।वह दरवाजा खोलकर बाहर आ गई ।उसने चिल्ला कर सबको यह बात बताई और सारी रात घर के बाहर रही ।रास्ते में बैठी रही ।सुबह घर के अंदर आई ।पति आया तो सभी लोगों ने इस घटना के बारे में बताया ।कुछ लोगों ने यह भी कहा की तुम्हारे पिताजी की नजर ठीक नहीं है ।वह सुशीला को मायके में छोड़ कर चला गया ।

कुछ दिनों में उसे बुखार आया और वह छुटा ही नहीं इस बीच उसका पति उसे मायके से अपने घर ले आया पर सुशीला वहाँ काम नहीं कर पा रही थी ।दिन रात ससुर के देखते रहने के कारण असुरक्षित मसशूस करने लगी तो उसके पति ने फिर मायके में छोड़ दिया ।वह मायके में सात आठ महिने से बिमार पड़ी थी ।उसने अपनी बात पूरी की और उसकी माँ आ गई ।मै घर आने लगी तो कहने लगी सुधा मैं अब नहीं बचूंगी ।वह बैठ भी नहीं पा रही थी ।

मैं घर आ गई । माँ से सारी बात बताई ।माँ ने कहा तुम्हारी पढ़ने की उम्र है शादीशुदा लोगों के पास मत बैठा करो । वे लोग धंधे वाले है उनका जीवन अलग होता है ।हमारे लिये शिक्षा जरुरी है ।तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ।बात खतम हो गई ।मैंने अपना रास्ता बदल दिया ।अब हिंन्दूस्पोर्टिंग मैदान को पार करके पुरानीबस्ती होकर स्कूल जाने लगी ।

कुछ दिनों के बाद मैं और माँ साथ में गोलबाजार जाने के लिये निकले थे ।सुशीला की माँ दरवाजे पर खड़ी थी ।वह तुरंत सुधा करके आवाज दी और आने का इशारा की ।माँ जरा मुंह बनाते हुये उसके पास आई ।वह बहुत जोर से रोते हुये मुझे छाती से चिपका ली ।"मेरी सुशीला मर गई "कहते हुये रोने लगी। माँ चुप थी एकाध मिनट में वह सामान्य हो गई ।मुझे कहती है खूब पढ़ना शादी मत करना ।खूब पढ़ना ।माँ ने कहा अभी बाजार जा रहे है बाद में आयेंगे ।

हम लोग बाजार चले गये ।घर आकर माँ ने कहा उसे टी बी ने नहीं मन की बिमारी ने खा लिया ।कुछ साल तक वे लोग थे उसके बाद सब एक के बाद एक गुजर गये ।भाईयों ने कुछ साल पहले सब कुछ बेच दिया ।यह घटना मेरे मन से निकली नहीं ।एक पिता ऐसा कर सकता है ।हमारे घर में तो बहुएं ही बेटियां बन गई हैं ।ऐसी मानसिकता और घटनाएं ही बेटी के जन्म पर प्रश्न खड़ा करती है ।समय को कौन जानता है ?

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