रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 13


एक बंदर ने कैसे मेरे बचपन के कुछ समय में दहसत फैला दिया यह एक प्रश्न के रूप में आज तक खड़ा हुआ है ।

छतरपुर में जब पढ़ रही थी तभी एक दिन मै स्कूल नहीं गई उस दिन एक बड़ा सा बंदर ,लंगूर की तरह हमारे घर आया ।घर के पीछे आंगन में ही कमरे के दरवाजे खुलते थे ।आंगन बहुतही बड़ा था। आंगन के बाद कुछ हिस्सा खंडहर के रुप में पड़ा था ।

मैं कमरे के अंदर ही थी कुछ खेल रही थी ।काले मुंह का बड़ा सा बंदर कमरे के दरवाजे में आकर बैठ गया ।मेरा बस्ता और वही आलमारी मे मेरी पुस्तकें और कापी रखे हुये थे ।बंदर पुस्तकों की ओर देख रहा था ।मैने "माँ " करके चिल्लाई ।माँ दौड़ते आई ।बंदर को देखकर बोली कि "देखो तुम आज स्कूल नहीं गई हो इस कारण आया है "।मेरी और बदर की नजरें मिली ।मैंने मन में कहा कल स्कूल जाऊंगी ।वह थोड़ी देर बैठा रहा फिर चला गया ।

एक दिन फिर आया जब मुझे स्कूल जाने की इच्छा नहीं हो रही थी ।मैने तुरंत बस्ता उठाया और भागी ।वह मुझे दोड़ कर देखने लगा ।ऐसा क्ई बार हुआ ।मेरे स्कूल जाने के बाद भी आता था ।माँ कहती वह तुम्हें देखता है कि पढ़ रही हो की नहीं ।समय गुजरा हम लोग रायपुर आने के लिये निकल पड़े ।

हम लोग घूमते हुये आये ।चित्रकूट गये मंदाकनी नदी देखे ।यहां पर भी बंदर थे पर नदी के इस पार लाल मुंह का और उस पार काले मुंह का था ।जब हम लोग नांव पर थे तो एक उसी तरह का बंदर नाव के साथ साथ दौड़ रहा था ।माँ ने कहा देखो तुम कहाँ जा रही हो यह देखने आया है ।काका ने कहा नहीं दूसरा बंदर है ।माँ ने कहा नहीं वही है वह लगातार हमारी ओर देख रहा है ।

बंदर मुझे देखता रहा मै उसे हम लोग वापस घाट पर आ गये ।वहा हलवाई की दुकान से जलेबी खरीदे ।बाहर में टंगा तोता पूरी चौपाई बोल रहा था ।
"
तुलसीदास चदन घिसे तिलक लेत रघुबीर"

हम लोग खजुराहो ,पन्ना, धुबेला ,आल्हा उदल की लड़ाई की जगह देखते हुये रायपुर आ गये ।दीपावली के तीन दिन पहले आये थे स्वयं घर की पोताई किये सब मिल कर ।खरीददारी हुई और प्यार से दीपावली मना लिये ।

स्कूल में मुझे जगह नहीं मिली ।हर जगह तीस बच्चों की सीट फुल थी ।दो महिने के बाद आमापारा के प्राथमिक शाला में लड़कों के साथ भर्ती हुई ।पांच लड़कियां थी ।अभी तक तो मैं बंदर को भूल गई थी ।एक दिन जब मैं स्कूल नहीं गई तब वह बंदर हमारे घर के छप्पर पर आ कर बैठ गया ।बच्चे पत्थर मारने लगे वह हमारे आंगन मे उतर गया ।यहाँ सब उसे लंगूर कह रहे थे ।कुछ लोग कह रहे थे कि इतना बड़ा बंदर तो यहाँ कभी भी नहीं देखा गया ।मै घर के अंदर घुस गई ।

एक घंटे में वह चला गया ।अब फिर मेरे मन में डर आ गया ।माँ अक्सर कहती इतनी दूर से यह हमें खोजते यहाँ तक आ गया ।मै तो डरी हुई थी ।कभी भी स्कूल नहीं जाना नहीं कहती ।वह क्ई बार आया ।मेरे परीक्षा के समय आया ।गर्मी की छुट्टियों में आया ।वह तीन साल तक आता रहा ।वह मुझे ही लगातार देखता था ।काका असमंजस में थे कि कोई बंदर पीछा करते यहाँ तक आ सकता है ? माँ ने तो अपना निर्णय सुना दिया "यह वही बंदर है ।"

मुझे भी लगता यह वही बंदर है ।मै उसकी आंखो को देखती थी ।पहली बार जो उसकी नजरों में था हर बार वही रहता था ।उत्सुकता ,प्यार,और कुछ कह नई पाने की निराशा ।उसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया ।अंतिम बार बच्चों ने उसे पत्थरों से बहुत मारा था ।वह क्ई घरो की छत पर गया ।उसके बाद वह कभी नहीं आया ।यह उसका अंतिम बार आना था ।

उसे हम सब याद करते थे ।माँ काका तो है नहीं पर मेरे सामने यह बंदर एक प्रश्न के साथ खड़ा है ।यह प्रश्न मरते तक साथ रहेगा जिसे मैं सुलझा नहीं सकी ।

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