रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 63


आज दशहरे मे रावन के बढ़ती ऊंचाई क्या कहना चाहती है ? मुझे तो लगता है कि रावन की ऊंचाई आज के बढ़ते बुरे कर्म को बताती है ।आज अत्याचार दुराचार भ्रस्टाचार रिश्वत खून खराबा बढ़ रहे है इसके बढ़ते आकार के कारण रावन का आकार बढ़ रहा है ।लोगों को लगता है की हम रावन जला कर इन सबको जला देंगे पर नहीं अगले साल फिर बढ़े रुप मे खड़ा हो जाता है ।

आज सब रावन को मारने एक मनोरंजन करने की तरह जाते हैं ।मेला लगता है ।मॉल में घूमने के बाद इतने इंसानों के बीच किसी बुराई करने वाले के पूतले को जलते हुये देखना एक सुकून देता है ।तरह तरह के राम हनुमान के अस्त्र शस्त्र खरीद कर बच्चे को उस व्यक्तित्व मे जीना सिखाते है ।पर सिर्फ़ लड़ाई के द्वारा बच्चा भाई का प्यार नहीं सिखता है ।एक राम और एक रावन बन कर लड़ना सिखता है ।

वह कभी केंवट की भावना नहीं समझता ।कभी शबरी के जुठे बेर की भावना को नहीं समझता है ।आज रामलीला होती नहीं और हो तो देखने के लिये समय नहीं है ।आज की पढ़ाई का बोझ पतंग उड़ाने का मजा नहीं लेने देता है ।दशहरे के दिन बड़ो के पैर छुने हम लोग घूमा करते थे अब वह संस्कृति दम तोड़ रही है ।हाँ फैशन जरुर बन गया है कि रावन मारने जाना है ।

एक समय था जब रायपुर में नौ दिन रामलीला होती थी ।दूधाधारी मंदिर में राम लीला होने के बाद भाठागांव में रावन मारते थे । रावन शंकर नगर के बी टी आई मैदान मे भी मारते थे ।यहां पर भी नौ दिन की रामलीला होती थी । मैदान में पहाड़ घर बगीचे बनाये जाते थे ।क्ई मंच रहते थे चार बजे से लीला शुरु हो जाती थी ।रोज मेले जैसा रहता था ।अब करीब पंद्रह साल से बंद हो गया है ।खमारडीह गांव मे ही होता है ।रायपुर में रामकुंड में भी रामलीला होती थी और रावन मारते थे ।इसके अलावा क्ई मोहल्ले में रामलीला करवाते थे या फिर मंडली बनी थी जो रामलीला करती थी ।पूरे नौ दिन मंदिरों में दुर्गा पूजा और जस गीत का जोर रहता था साथ ही साथ रामलीला भी होती थी ।

कालीबाड़ी रायपुर मे बहुत सालों से दुर्गा रखते हैं ।हम लोग घूमने जाते थे तो महामाया ,कालीबाड़ी ,पंडरी , स्टेशर रोड ,फाफाडीह और अंत में ब्राम्हणपारा होते हुये घर आ जाते थे । बाद में हमारे मोहल्ले में भी रामलीला होने लगी ।करीब करीब सब लोग लीला देखने जाते थे ।बच्चों को कहानियों की जानकारी होती थी ।बच्चे पात्रों के भावों को घर पर करते थे ।अच्छी बातें सीखते थे ।कथाओं के मर्म को बच्चे समझते थे उन पात्रों की तरह बनना चाहते थे

पतंग उड़ाने का काम शुरु हो जाता था ।मैने काम इसलिये कहा क्योंकि मज्जा तैयार करना पतंग बनाना
शुरु हो जाता था ।मेरा भाई रवि सब छोड़कर पतंग उड़ाने में लग जाता था ।पहले हम लोग भाठा गांव दशहरा देखने जाते थे ।भी पैदल ही चले जाते थे ।पहले दस बारह किलोमीटर तो आसानी से चल लेते थे ।एक बार हम लोग ट्रक में बैठ कर गये थे ।याद नहीं है किसकी थी ।बहुत से लोग थे।ट्रक पूरा भरा था ।रवि अपनी पतंग लेकर गया था ।वहाँ पहुंचते ही भीड़ देख कर घबरा गया ।काका उसके साथ पतंग उड़ाने लगे ।आकाश में इतनी पतंग थी कि समझ में नहीं आ रहा था कि रवि की कौन सी है ।दो पतंग कट गई ।वहाँ पर चारगुनी कीमत में दो पतंग खरीदे ।सब पतंग कट गई थी ।रवि उदास चेहरा लेकर खड़ा था ।

अब काका उसे गोद में लेकर राम लीला दिखाने ले गये ।हम सब राम लीला देख रहे थे तब मंच भी बहुत ऊंचा नहीं होता था ।रावन भी ऊंचा नहीं रहता था ।अभी भी मिट्टी का रावन बना हुआ है बस उतना बड़ा ही रहता था ।वापसी में हमें ट्रक मिल नहीं रही थी ।बहुत भीड़ थी सब उल्टा सीधा भाग रहे थे ।हम लोगों को क्ई बार धक्का लगा , एक बार मै गिर भी गई ।माँ हम दोनों भाई बहन को पकड़ कर खड़ी हो गई ।काका छोड़ कर भी नहीं जा पा रहे थे क्योंकि वापसी में मिलेंगे कि नहीं यही चिंता थी ।मोहल्ले का एक लड़का देख कर पहचान गया ।हमलोग उसके साथ चले ।ट्रक बहुत दूर मे ले गये थे ।वह पूरी ठसाठस भरी थी घुसना भी मुश्किल था ।कुछ लड़को को उतार कर हम लोगों को खड़ा किया गया ।

सांसे चल रही थी यही काफी था ।पसीने की बदबू सहन नहीं हो रही थी । ले दे कर घर पहुंचे ।आरती उतारने के पहले नहाये उसके बाद माँ ने आरती उतारी ।हमारे छत्तीसगढ़ में रावन मारने के बाद जब घर आते हैं तो महिलायें सब की पीढ़े पर खड़ा कर आरती उतारती है ।दीया चांवल के आटे से बनाते हैं ।राम का मामा घर था छत्तीसगढ़ ।इस कारण राम की विजय को बहुत ही अच्छे से मनाते है ।

उसके बाद हम लोग रावन देखने कम ही गये ।बाद में घर के पास रामूकुंड मे ही देखने चले जाते थे ।वहाँ मेले जैसा रहता था ।झुला झुलते थे ।खाने की चीजें खरीदते थे ।छत्तीसगढ़ में दशहरे में और रथयात्रा मे नये कपड़े पहनते है खास कर बच्चे । आज भी गांव में कस्बों में बहुत रौनक रहती है ।पर आधुनिकता वहाँ पर भी दिखाई देती है।गांव में रामलीला होती है ।वहाँ पर सालों से चलने वाली रामलीला चल रही है पर क्ई जगह बंद हो गई है।

फिल्म का जादू सब जगह दिखाई देने लगा है ।दर्शक की कमी ,पैसे की कमी भी अब दिखाई दे रहा है ।कलाकार कब तक भूखे रह कर काम करेंगे ।सालों से चलता दशहरा पर्व का रुप बदल गया है ।

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