रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 78



मेरा खाना दिनों दिन कम होने लगा था पर भूख बढ़ रही थी ।दिन मे थोड़ा थोड़ा खाने की ईच्छा होती थी ।डाक्टर ने भी क्ई बार खाने के लिये कहा था ।पर भेरी भूख कुछ अजीब सी थी ।रात को सोने के बाद भी उठ जाती थी कि कुछ खाने को चाहिये ।रात को एक कटोरे मे दाल चांवल सब्जी सब मिलाकर रख लेती थी कभी पूरा खा लेती थी या फिर कभी बच जाता था ।

शाम को सब लोग सात बजे खा लेते थे और सो जाते थे ।कभी मेरे जेठ देर से आते थे ।कभी मेरे पति ट्रेन के छुटने से या फिर ओवर टाइम करने के कारण देर से आते थे ।जिसके पति देर से आये उसे ही जागना पड़ता था ।मेरे पति देर से आते थे तो मै सोई रहती थी क्योंकि दस बजे तक जागने की आदत नहीं थी ।मै खाना भी नहीं देती थी ।

सुबह पति के टिफिन के लिये रोटी सब्जी बनाती थी तो मै भी उसमें से एक रोटी खाने लगी क्योंकि भूख लगती थी । फिर वही ग्यारह बजे दाल चांवल खाती थी ।उसके बाद बहुत देर तक पेट खाली रहता था क्योंकि शाम को आठ बजे खाते थे ।शाम को भी मै सात बजे सास ससुर को परसने के बाद खाने लगी ।क्ई बार सास कहती थी कि पति के खाने के बाद खाना ।शाम को सात बजे आते थे तो सब साथ खा लेते थे पर रात को दस बजे आने लगे तो मै भूख की वजह से शाम को ही खाने लगी ।

दोपहर को भूख लगने लगी तो मै जेठानी को बताई तो उसने कहा कि भात बचा रहता है तो खा लिया कर ।दाल सब्जी कभी कभी ही बचती थी तो मै खाली चांवल ही नमक के साथ खा लेती थी ।इसे सास ने भी कभी देखा तो कुछ बोली नहीं पर कहने लगी कि सब्जी बचा कर रख लिया कर ।यह ज्यादा दिन नहीं चला ।मेरे जेठ का लड़का गुड्डु करीब पांच साल का था ।वह मुझे खाते देख कर वह भी भात खाने की जिद करने लगा पर वह बिस्कुट खाने वाला बच्चा था भात कहाँ से खाता ? भात लेकर छोड़ देता था मै जुठा खाती नहीं थी तो सब गाय को दे देते थे । मेरा कमरा ऊपर था मै कहीं भी जाती थी तो सभी मेरे पायल की आवाज से जान जाते थे।मै सीढ़ी से उतरती थी तो गुड्डु सीधे भात पकाने के बर्तन से ही भात निकाल कर सुखा खाने लगता था ।अब मै उसे नही खाती थी और भूख से पेट जलने लगे तो पानी पीती थी ।वह किसी के कहने पर नहीं अपने मन से करता था ।

मैने यह बात अपनी माँ को बताई ।माँ ने कहा कुछ नास्ता बना देती हूँ ।मुझे तेल की चीजें मना थी तो कुछ नहीं बनाये । माँ ने काका से कहा और काका बहुत सा टोस्ट और काजू किशमिश लाकर रख दिये ।अगली बार जब मै माँ के पास गई तो यह सब लेकर आई ।काका ने कहा दूध बंधा लो पी लिया करो ।मैने कहा पैसा नहीं है तो काका ने कहा कि पैसा मै दूंंगा ।चौक मे घर था तो सब कुछ मिल जाता था ।सामने दूध का बूथ था ।एक पाव दूध मैने लेना शुरु कर दिया ।अब मै कमरे मे ही दूध टोस्ट खा लेती थी ।काका हर महिने एक पाव काजू , एक पाव बादाम , आधा किलो अखरोट और दूध का पैसा देने आते थे ।उनके साथ कोई बात नहीं करता था बैठने के लिये भी नहीं बोलते थे ।इसका कारण मुन्नी की शादी थी ।उस समय एक पाव दूध का महिने भर का साढ़े सात रुपये होते थे ।एक रुपये किलो दूध मिलता था ।

पानी के लिये भी मुझे परेशानी होने लगी तो मै अपने कमरे मे ही एक पीतल की बाल्टी मे पानी भर कर रखने लगी ।एक गुंड मे पानी भरते थे उसमे भी एक ही गिलास मे सभी पानी पीते तो कोई ऊपर से पीता तो कोई उसे जुठा करके पीता था । शरीर पौष्टिक आहार मांग रहा था पर मेरा खाना तो बिना सब्जी के दाल चांवल ही था । मेवे और टोस्ट उसकी जगह नहीं ले पा रहे थे ।अब तो रोज शाम को और रात को उल्टी होने लगी थी ।कभी कभी रात को भी दस ग्यारह बजे डाक्टर के पास जाना पड़ता था ।

एक दिन सास ने कहा कि कहाँ कि बिमार लड़की को बहु बना लिये ।हमारी लड़की को भी बहु नहीं बना रहे है ।कभी मायके कभी ससुराल आना जाना चलते रहता था । इसी बीच मैने शासकीय नौकरी के लिये फार्म भरा ।उसका साक्षात्कार भी हुआ और शासकीय शिक्षक की नौकरी मिल भी गई ।अभनपुर के पास खोरपा गांव मे ।इतनी तबियत खराब मे मै ज्वायन कर ली ।मै गाड़ी चलाती नहीं थी तो अभनपुर से बैलगाड़ी मे आती जाती थी ।

अब जेठानी ने भी तेवर दिखाये ,खाना बनाने के लिये तो मै चार बजे उठ कर सब खाना बना कर जाती थी और आने पर खा कर सो जाती थी ।इस परेशानी मे मुझे अल्सर हो ही गया और मै मेडिकल छुट्टी पर रहने लगी यह चार साल चला ओर मैने एक दिन काका के डांंटने पर इस्तीफा दे दिया ।

अधिकतर समय लेटे लेटे ही बीत रहा था ।खाना बनाते हुये भी जमीन पर लेट जाती थी ।सब लोग कहते कि खाना नहीं बनाने का बहाना है ।सुबह का खाना मै पूरा बनाती थी तो शाम का जेठानी बनाती थी ।अब काम बट गया था ।रात को मै आराम करती थी ।एक दिन मैने देखा कि रात को मेरे पति खाने के लिये उतर नहीं रह रहे थे , ठंड के दिन थे ।मैने पूछा कि खाने नहीं जा रहे हो? तो बहुत जिद किये कि आज तू निकाल कर देना ।

मै नीचे आकर खाना निकाली ।भूसे की सिगड़ी तो कब की ठंडी हो चुकी थी और उस पर रखा भात भी ।
बस उस रात जो देखा तो मै रोज खाना देने लगी ।आखीर मैने देखा क्या ?

जीवन कट रहा था ।एक साल एक युग बन गया ।दूसरा साल और भी कांंटो से भरा चल रहा था ।शादी मुझे एक बोझ लग रही थी ।खाना जब माँ देती तो नहीं नहीं बोलते थे ।दस बार दूध पी लो बोलती ।नास्ते से भरे डिब्बे अब सपने मे आते थे यहाँ कपड़े खुद धोते थे ।मायके मे एक दाग हो तो फाफी पर चिल्लाते थे ।घी के बिना दाल नहीं खाते थे ।हर दस दिन मे खीर पूड़ी बनती थी ।

कितना बदल गया था जीवन ? खुशियों को दूर से देखते थे छुने की कोशिश मे ऊंगलियां जलती थी । पेट की जलन पेट मे ही रही ।ऊंगलियों की जलन ऊंगली मे ही रही ।कभी मिले नहीं ।यह जलन कभी मन मे नहीं उठी , आंंखो पर नहीं आई ।पता नहीं तब क्या होता ?

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