छब्बीस नवम्बर को
दोपहर तीन बजे जबलपुर पहुंचे ।बस स्टेंड के पास पवाल होटल मे एक कमरा लिये ।नहा कर
तैयार हो गये और घूमने निकल गये ।शीला टॉकीज मे "काला पत्थर " फिल्म लगी
थी , हम लोग उसे देखने
चले गये । साढ़े दस बजे आकर एक थाली खाना मंगा लिये और खा कर सो गये ।
दूसरे दिन सुबह
छै बजे उठ कर तैयार हो गये और भेड़ा घाट जाने के लिये निकल गये ।रास्ते मे समोसा खा
कर चाय पीये और दो पैकेट नमकीन और एक पाव रसगुल्ला खरीद कर रख लिये ।मुझे रसगुल्ला
बहुत पसंंद है । एक टेम्पो मे बैठ कर धुआंधार देखने चले गये ।प्रति व्यक्ति ढाई
रूपये के हिसाब से वह ले जा रहा था ।वहाँ पहुँचने के बाद सीढ़ी से चढ़ कर उपर गये ।
रास्ते मे क्ई
धाराये बह रही थी जो जाकर एक जगह मिलती थी ।मिलने के बाद एक मोटी धार नीचे गिर रही
थी ।वह स्थान चारो तरफ से संगमरमर की चट्टान से घिरी हुई थी ।पानी की तेज धार जब
नीचे गिरती थी तो पानी की छोटी छोटी बूंदे उपर उछल कर धुआं सा बना देती थी ।इस
कारण इसे धुआंधार कहते हैं ।कुछ लोग सिक्के फेंक रहे थे जिसे कुछ बच्चे पैसे के
लालच मे कूद कर पैसा निकाल भी रहे थे ।दर्शक उन्हें ईनाम मे पैसे दे रहे थे । हम
लोग वापस लौटने लगे तब मै बहती नदी मे पैर डुबा कर खेलने लगी ।कुछ पत्थर बटोर ली
।रास्ते मेंं कृष्ण बुद्ध की मूर्ति और शिवलिंग खरीद ली ।
यहाँ पर नमकीन और
रसगुल्ला खा लिये ।यहां से एक किलोमीटर की दूरी पर भेड़ाघाट मे चौसट योगिनी है उसे
देखने गये । यहां से घाट तक आये और नौकाविहार के लिये निकल गये । प्रति व्यक्ति दो
रुपये के हिसाब से घूमा रहा था । बंदर कूदनी तक गये थे ।यहां पर नदी के ऊपर दोनों
तरफ की संगमरमर की चट्टाने इतनी पास हो गई है कि बंदर कूद सकता है ।इस कारण इसे
बंंदर कूदनी कहते है ।
रास्ते मे पहले
नीला संगमरमर था उसके बाद दोनों तरफ गुलाबी संंगमरमर की चट्टाने थी ।उसके बाद तीन
रास्ते दिखते है ।इसे भूलभुल्लैया कहते है ।यहां सही रास्ते पर जाने से ही बंदर
कूदनी तक जा पाते है ।यहां से पीछे पलट कर देखें तो नीले सफेद और पीले चट्टान दिखते
है ।नीले चट्टान पर देखने से लगता है कि सूरज की रोशनी बादलों से छन कर आ रही है
।पीले चट्टानों पर देखने से लगता है कि सूरज का प्रकाश सीधे यहाँ आ रहा है ।सफेद
चट्टानों को देखकर लगता है कि सुबह की चमकीली किरणें उस पर पड़ रही है ।
रास्ते मे हाँथी
पांव , त्रिमुख (
ब्रम्हा विष्णु महेश ) तथा गणेश जी की गुफा दिखाई देती है ।यहीं पर मध्य की चट्टान
पर शिवलिंग बना है। कहते है कि रानी दुर्गावती ने इसकी स्थापना करवाई थी ।इसके बाद
बंदर कूदनी है ।पूरे ऊपर तक दूध की तरह सफेद चट्टान है ।यहाँ पर पानी की गहराई छै
सौ फीट है ।पानी की गहराई के कारण एक डर सा मन में आ रहा था।नाव भी बहुत धीरे सरक
रही थी ।यहाँ से हमारी नाव वापस होने लगी ।अचानक नाव ने सरकना बंद कर दिया नाविक
के पसीने छुटने लगे ।उसे देखकर हम सब घबरा गये ।पांच सात मिनट के बाद नाव सरकी और
नाविक तेजी से हाथ चलाने लगा ।
हम लोग घाट पर आ
गये ।नाव से उतरने के बाद मै बहुत देर तक पानी मे खड़ी रही ।इस एहसास को अपने साथ
रखना चाहती थी । सारी इच्छाये पूरी हो गई थी ।बस अब कुछ और देखने की ईच्छा नहीं हो
रही थी ।हम लोग बस स्टेंड आते ही डिलक्स बस मे रिजर्वेशन करवा लिये ।रात को साढ़े
आठ बजे हम लोग वापस रायपुर के लिये निकल गये।
बचपन से भेड़ाघाट
देखने का शौक पूरा हो गया ।घूमने का पूरा चक्र जन्मदिन के नाम पर ही रहा ।यह मेरे
पति के तरफ का एक बहुत बड़ा तोहफा था ।मैने जितनी कल्पना की थी कहीं उससे अधिक
खूबसूरती को मैने देखा और अपने मन मे संजो कर रख लिया ।
दूसरी बार जब मै
जबलपुर गई तो यह सुन्दरता नहीं दिखाई दी बहुत कुछ बदल गया था ।भेड़ाघाट पूरा बारिश
के पानी से भरा था ।मै अपने एक सहेली के साथ दूसरे सहेली के घर गई थी ।उस दिन बाढ़
का पानी उतरा था ।जब भेड़ाघाट गये तो कांक्रीट का रोड बना था जो पूरा डुबा हुआ था
।प्रपात पूरा जमीन के ऊपर से बह रहा था ।न वह नदी थी और न वह खूबसूरती ।मैने भगवान
को धन्यवाद दिया कि अच्छा हुआ मेरे मन मे वही सुन्दरता बसी रहे ।प्यार का वह एहसास
भी बना रहेस।यह हमारी हनीमून यात्रा थी ।एक उपहार था ।
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