रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 67


शादी के बाद बिदाई एक ऐसा समय होता है जब लड़की घर छोड़ कर जाती है ।वह घर जहां पैदा हुई थी ,जहां उसका बचपन बिता था ,अब उससे बिछड़ रहा है ।हल्दी लगने पर लगता है कि शादी हो रही है ।बारात जब आती है तब लगता है कि उसके फेरे होंगे ।जब फेरे के लिये बैठती है तब लगता है की शायद यह घर छुटने वाला है ।जब फेरे हो जाते है तो मन में खुशी रहती है कि अब शादी हो गई ।विदाई वह छण होता है जब लगने लगता है कि यह आंगन अब छुट रहा है ।माँ का पैर छुना तो बिदाई पर ठप्पा लगा देता है और मन में परायेपन का ऐहसास भर देता है ।यही वह छण होता है अब आंसू नहीं रुकते ।माँ काका सभी रो उठते है ।अब सुबह बेटी के पायल की आवाज नहीं आयेगी । काका को लगता है कि बेटी अब मुझे दरवाजे तक छोड़ने नहीं आयेगी ।हर दुख में खड़ी बेटी अब नहीं दिखेगी ।यह मार्मिक छण माँ काका और बेटी के लिये असहनीय हो जाता है ।

मुझे हल्दी लगी बुआ ने आपने सारे नेंग किये ।हमारा परिवार बट गया था ।मेरे बड़े पिताजी के बेटे और मेरी शादी एक ही दिन थी ।दोनो मे से किसी का भी मुहुर्त हटा नहीं ।माँ ने बहुत कहा कि दोनों की शादी रायपुर में कर देते है पर हमारी बड़ी माँ तैयार नहीं हुई ।ले दे कर दो बुआ में से एक बुआ हमारे घर आई। सारे मेहमान बट गये थे।बहुत कम लोग थे।जो थे वे सब रायपुर के परिचित थे । एक दिन में ये सारे रस्म हुये दूसरे दिन फेरे थे ।

अब समय बदल रहा था ।तीन चार दिन की शादी की जगह अब दो दिन में शादी होती थी ।आज यह एक दिन में होने लगी है ।रात को मेंहदी लगाये ।तब मेंहदी लगाने का व्यवसाय नहीं था । परिवार के लोग ही लगा देते थे ।रात को परिवार के लोग बहुत रात तक जागते रहे और परिवार के और लोगों की शादी को याद करते रहे ।

सुबह से लोग हल्दी लगाने फिर उतारने मे लगे रहे ।बारात एक बजे आ गई ।शाम को गोधुली बेला की शादी थी ।बाराती नाश्ता किये फिर दो बजे खाने बैठे। चार बजे ही मंडप पर बैड गये ।पहले कुंवारी पूजा हुई।उसके बाद ससुराल की तरफ से "चढ़ाव "आया ।साड़ी जेवर चप्पल और मौर था ।चप्पल वापस कर दिया गया , मौर वापस कर दिया गया ।

हमारे यहाँ पर कन्या दान करते है तो लड़के वालों से सिर्फ लड़की के लिये साड़ी जेवर ही लेते हैं ।उस पूरे सामान की पूजा हुई ।उसके बाद अंदर ले जाया गया ।उस साड़ी और जेवर को पहन कर फिर मंडप पर आई ।फिर मैने पूजा किया और अंदर चली गई ।अब मुउस साड़ी को उतार कर पीली साड़ी पहननी थी ।मुझे पीली साड़ी दीदी ने पहनाई फिर मायके का पूरा जेवर पहनाया गया । मायके की चप्पल और मौर पहनाया गया और मंडप पर लाकर बैठाया गया ।

मंडप पर उस बीच दुल्हे को लाकर बैठाया जाता है तो उन्हें लाकर बैठाया गया था ।शादी की रस्मे शुरु हो गई ।फेर भी हो गये ।मंडप से उठ कर कुल देवता को प्रणाम कर फिर सब बड़ों को प्रणाम कर बैठ गये ।अब सब का खाना होने लगा ।दूसरे दिन शनिवार था तो बिदाई ग्यारह बजे हो गई ।

बिदाई के पहले मेरी सहेलियां मिलने आती रहीं ।कुछ आस पास के लोग भी मिलने आते रहे ।उसी समय मेरा भाई अपने दोस्तों के साथ आया ।सभी मजाक कर रहे थे ।अचानक भाई ने कहा चलो अच्छा है अब दीदी नई रहेगी ,मै अकेले ही रहुंगा ।मुझे समझ मे आ गया कि कि वह अपने आंसू छुपा रहा है ।उसके सभी दोस्त हंस रहे थे पर उपर से ही ।मेरे आंसू निकलने लगे तो रुके ही नहीं ।खाना भी नहीं खा पाई भाई के साथ उसके सारे दोस्त के आंसू निकल रहे थे ।

रात को बिदाई हुई तो भाई बिल्कुल पास मे ही था ।परिवार के कम लोग थे ।पर मौहल्ले के लोग थे पहले यही तो एक आत्मियता रहती थी ।सारे लोग रास्ते में खड़े थेस।बिदाई कार से हुई ।उस समय यह बहुत बड़ी बात होती थी ।बिदाई के बाद गौने के लिये ये अकेले ही आये ।मै कार में बैठी थी ।कार घर से थोड़ी दूर पर खड़ी थी , हिन्दूस्पोरटिंग मैदान के पास ।वहाँ पर मेरे भैय्या वैगरह और भाई के बहुत से दोस्त खड़े थे

यह वह छण था जब सभी उन लम्हों को याद कर रहे थे जब भाई के पीछे उसे खोजने जाती थी ।घर पर माँ की डांट से बचाती थी ।रात को दरवाजा खैलती थी ।कही जाता था तो उसका सामान पैक करती थी ।शाम को खेलकर आता था तो उसके पसंद का नास्ता बनाती थी । बस थोड़ी देर मे मै अपने ससुराल राजातालाब की ओर और भाई लोग वापस अपने घर की ओर चले गये ।आंसू रुक नहीं रहे थे एक अकेले पन का एहसास होने लगा ।जहां पर मेरा कोई नहीं होगा ।मै किसी को पहचानती नहीं थी अपने सास ससुर के अलावा ।

रास्ते मे हनुमान जी का मंदिर था उसे खुला रखा गया था ।उतर कर वहाँ दर्शन किये फिर घर की ओर चले गये ।रात को मौर सौपने की रस्म हुई ।सारी रस्मे सुबह हुई ।जो आत्मियता पहले दिखती थी आस पड़ौस और लोगों मे वह अब नहीं दिखती ।शादी के समय सिर्फ परिवार के लोग ही रहते है ।बाकी सब लोग रिसेप्शन मे ही दिखते हैं ।

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