रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 60


मैने एम एस सी के बाद ही बी एड कर लिया ।बी एड याने शिक्षा देने की कला को जाना उसके इतिहास को जाना।मैने शासकीय शिक्षा महाविद्यालय रायपुर मे एडमिशन लिया ।वहाँ पर अलग अलग उम्र के लोग थे ।बहुत से शिक्षक थे जो अपने डिपार्टमेंट की तरफ से आये थे तब मध्यप्रदेश था ।बस्तर कांकेर के लोग भी थे ।हम लोग प्राइवेट कर रहे थे ।हम लोग ज्यादा नहीं थे करीब बीस लोग रहे होंगे ।

शुरु शुरु मे अटपटा सा लग रहा था ।इतिहास और मनोविज्ञान पढना रुचिकर नहीं था मै किसी से घुलमिल नहीं पा रही थी प्राथमिक स्तर के बाद लड़कों के साथ कभी पढ़ी नहीं थी ।धीरे धीरे लोगों से बात करने लगी भिलाई दुर्ग रायपुर के शांतिनगर और गुड़ीहारी की लड़कियों से दोस्ती हो गई ।सांईस कालेज के प्राचार्य खांडेकर की बेटी ज्योति और दुर्ग के एक प्राचार्य की बेटी सुलभा शिरपुरकर से खास दोस्ती थी। हम एक ही रिक्से से कालेज जाते थे ।सुलभा दुर्ग से बस से आती थी और विवेकानंद आश्रम के पास उतर जाती थी ।हमारे घर आकर लेशनप्लान तैयार करते थे फिर कालेज जाते थे ।

दो गुप्ता मीना और मंजु थी ।एक बोस और एक महापात्र थी ।सब कालेज में एक साथ ही रहते थे रोज टिफिन में अपने घर की खास चीजें खाने के लिये लाते थे ।उसे कैसे बनाते है इस पर चर्चा करते थे ।हर त्यौहार को मनाने का तरीका जानते थे ।हम सभी ने "आडियोविजुवल " लिया था जिसमे फोटो खिचना और उसका प्रिंट निकालना सिख रहे थे ।सफेद साड़ी में स्कूलों में पढ़ाने जाते थे ।धीरे धीरे मै उस दिनचर्या से अभ्यस्थ हो गई ।

कुछ विद्यार्थी उलजुलुल हरकत करते थे बहुत अजीब सा लगता था ।एक पांडव था जो बस्तर की तरफ से आया था ।वह हमेंशा धोती कुर्ता पहनता था ।एकदम काला और ठिगना था ।एक दिन वह विवेकानंद की तरह कपड़ा पहन कर आया ।जानबूझ कर देर से आया था ।शमसुद्दीन सर पढ़ा रहे थे ।विवेकानंद के पोज में दरवाजे पर खड़ा हो गया और कहने लगा सर अंदर आयें ।सारे लोग उसको देखने लगे ।सर ने उसे देख कर अनदेखा कर दिया ।वह खड़ा रहा ।हम लोग हंसते रहे ।वह ढीठ की तरह सर के मना करने के बाद भी अंदर आकर गैलरी में सबसे पीछे बैठ गया ।सर उसे देख कर बोले "गेट आउट " वह खड़ा होकर पोज देने लगा ।सर ने फिर जाने के लिये कहा पर वह हिला नहीं ।सर रजिस्टर उठा कर चले गये ।कुछ लोग हंसते रहे ।कुछ लोग डांटते रहे ।

वह धीरे धीरे पेंट शर्ट भी पहनने लगा था हमेंशा नौटंकी करके लोगों का ध्यान अपनी ओर खिंचता था ।लड़कियों को लाईन मारते रहता था पर सब उसका मजाक उड़ाते थे ।हमारे क्लास में एक सर थे ज्यादा उम्र के थे उनका नाम गणपति लाल श्रीवास्तव था ।शमसुद्दीन सर जब अटेंडेंस लेते तो मिस्टर लाल कहते थे । वे खड़े होकर कहते थे " नो सर गणपति लाल श्रीवास्तव ।" सर कहते यस मिस्टर लाल ।फिर कहते नो सर मिस्टर श्रीवास्तव सर ।यह पूरे साल चलता रहा ।समझ में नहीं आ रहा था कि शमसुद्दीन सर समझ क्यों नहीं रहे थे ।अपने नाम से परेशान गणपति सर का नाम खो गया था ।एक तो दुबले पतले सा़ंवले से दिखने वाले सर मोटा चस्मा भी लगाते थे ,।सूखे से दिखने वाले सर और सूख चुके थे ,हमेंशा चेहरे पर परेशानी रहती थी अपने नाम को लेकर ।दूसरे सारे सर मैडम उनका सही नाम लेते थे पर शमसुद्दीन सर के रजिस्टर में नाम सही होते हुये भी समझ में अंतर था ।

गरबा में मैने भाग लिया था ।यह भी इत्तफाक था कि मेरी शादी की बात चल रही थी और मेरी होने वाली सास और ननंद देखने आये थे ।मेरी बड़े ससुर की बहु मेरी जेठानी मेरे साथ बी एड कर रही थी ।

मेरी टीचिंग खालसा स्कूल में लगी थी । तीन घटनाएं हुई ।पहली तो दसवीं कक्षा के एक छात्र ने हमारे साथी को आंख मार दिया। हम लोग पीछे बैठे थे सामने वह पढ़ा रही थी ।वह कक्षा से बाहर आकर रोने लगी ।उस दिन हम लोग वापस आ गये ।वह दूसरे स्कूल मे पढ़ाने चली गई ।दूसरी घटना थी जिसमें मै वहां के शिक्षक से बात कर रही थी हम दोनों के बीच एक बड़ी सी मकड़ी छत से जाले के साथ उतर रही थी ।हमने उसे नहीं देखा पर एक लड़का तुरंत हमारे बीच आकर मकड़ी को पकड़ कर बोला " "पकड़ लिया " हम दोनो चमक कर दूर चले गये ।लड़के हंसने लगे ।वह लड़का तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं ऐसे चला गया ।

मुझे उसी नौवीं कक्षा को पढ़ाना था जिसमे यह मकड़ी वाला लड़का भी था । मै पुष्पक्रम पढ़ा रही थी ।बहुत से फूलों के साथ शहतूत का फूल भी था ।मैडम रांऊड पर आईं और उसी समय मैने शहतूत का फूल सबको दिया ।उसके बारे में बताने के बाद मैने ये भी बता दिया कि इसे खाते भी हैं।बच्चे उठा कर फूल खा गये ।मैडम कुछ लिख पाती तब तक बच्चों के पास से फूल गायब हो गये , मैने तुरंत कुछ बचे फूल बांट दिये ।यह मेरी फाइनल टीचिंग थी ।

मुझे खुशी हुई कि इस प्रायोगिक परीक्षा मे मै प्रथम आई थी ।ऐसा कम होता है ।इस स्कूल में ही जब मै रिक्श से उतर रही थी तो पैर मुड़ गया था । पैर की हड्डी में हल्का सा क्रेक आ गया था ।एक माह तक घर में आराम की ।उसके बाद गरबा भी की ।यह एक साल कुछ नये लोगों से मिलने में और शिक्षा के कुछ नये अनुभव लेने में बीत गया ।पता नहीं चला ।

एक शिक्षक कैसा होता है यह हमने अपने बी एड कालेज के सर मैडम को देखकर जाना ।एक शिक्षक कैसा पढ़ता और पढ़ाता है यह मैने अपने साथ के डिपार्टमेंटल शिक्षक को देखकर जाना ।गलत हरकतें और गलत तरीके से पढ़ाने की आदत को बदलपाना कितना कठिन होता है । अनजाने मे शिक्षक वे सब हरकते कर जाते थे जिसे करना नहीं चाहिये ।

इस एक साल में शिक्षक के जीवन और दिनचर्या को समझने को मिला ।कठिन और त्याग पूर्ण जीवन है ।इसे हम अपना ले तो एक बहुत ही अच्छे युवा तैयार कर सकते हैं ।त्याग ही नहीं रोचक भी है ।बहुत कुछ पढ़ना पड़ता है।बच्चों के साथ मनोरंजन भी करते है ।नृत्य गीत बागवानी के साथ साथ भाषण वादविवाद का आयोजन भी इस जीवन से जुड़ा है ।जो एक अलग सा ही रंग भरता है ।नये बच्चे और उनको दिशा देने के बाद फिर कुछ नये बच्चे आते जाते है ।

शिक्षक तो आगे युवायो को गढ़ते जाता है पर वह गढ़ा हुआ युवा लौट कर पेर छुता है या नमस्ते करता है तो शायद शिक्षक को तनखे के साथ बोनस भी मिल जाता है ।हमेंशा इस बोनस के लिये प्रयास करना चाहिये ।मैने इस बी एड के एक साल में बोनस मिलते भी देखा है ।हमने अपने शिक्षकों का सम्मान किया है ।

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