रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 26


मदद करने की बात आती है तो लोग पीछे हट जाते हैं ।मदद पैसों की हो तो लोग अब घर चलते हैं कह कर उठ जाते हैं ।एक बार ऐसा ही हुआ था ।हम लोग ईदगाह भाठा में नये आये थे ।मेरी दीदी एम ए फाइनल में थी ।

वह लायब्रेरी से पुस्तकें लेकर पढ़ती थी । हिंदी विषय की किताबें थी ।दीदी ने किताबें बिना देखे लीं और घर आ गई ।पढ़ते पढ़ते देखीं की किताब में किसी पंक्ति के नीचे लाइन खींची हुई है ।दीदी को लगा कि लायब्रेरी वालों ने देख लिया होगा ।

पढ़ाई खतम होने के बाद किताबें जमा कर दीं ।बाद में उन्हें परीक्षा का प्रवेश पत्र नहीं दिया गया ।दूसरे दिन पेपर था ।लायब्रेरियन ने कहा कि सौ रुपये देना है ।पैसा जमा करो और प्रवेश पत्रले जाओ ।कल सुबह परीक्षा के पहले भी ले सकते हो ।

दीदी बहुत देर तक सोचती खड़ी रहीं और बाद में घर लौट गईं ।माँ से सारी बात बता कर रोने लगी । बेटी जिसे समाज से लड़ कर आगे पढ़ा रहे हैं उस बेटी के आंखो में आंसू ।माँ का दिल रो उठा ।यह समस्या आई भी तो ऐसे समय में जब काका एक माहसके लिये अहमदाबाद गये थे ।वहाँ पर सेमीनार था ।

पैसा, वह भी सौ रुपये ,कौन देगा ? कभी जीवन में ऐसा हुआ नहीं कि तुरंत पैसे की जरुरत हो और काका न हो ।वे हमेंशा जाने के पहले पूरा इंतजाम करके जाते थे ।माँ अब अपनी पिटारी खोलकर बैठ गई ।चार आना ,आठ आना ,एक आना ,दो पैसे सब जोड़कर भी पूरा सौ नहीं हो पाया ।पूरे एक साल की मेहनत पानी में बहने को तैयार है ।

कभी चमत्कार भी होते है।बस तीन बजे हमारे फूफा जी आ गये ।उनका गांव रवेली घर से करीब पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर है ।हमेंशा खरीददारी करने रायपुर आते रहते थे ।उस दिन भी आ गये ।

फूफाजी को देखते ही माँ की आंखों से आंसू गंगा जमुना की तरह बहने लगे। बहुत पूछने पर दीदी ने सारी बातें बताई ।फूफा जी ने कहा "सत्यभामा " तुम सायकिल से आ सकती थी ।मास्टर साहब नहीं है तो परिवार तो है ।परिवार होता किस लिये है ? मैं कल सुबह पैसा भेजता हूँ ,अभी तो कालेज बंद हो गया है ।फूफा जी चाय पीकर चले गये पर जाते जाते एक बात बोलते गये "तुम लोग हमको परिवार नहीं समझते तभी तो इतनी बड़ी बात छुपा लिये ।"

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परिवार होता किसलिये है "

दूसरे दिन सुबह दो सौ रुपये लेकर नौकर आया ।वह भी सुबह चार बजे ।माँ रात भर सो नहीं सकीं ।दीदी पूरी रात पढ़ती रहीं सुबह नौकर और पैसा आने के बाद तो जैसे उजाला फैल गया ।दीदी उठ कर नहा ली ।माँ चाय बनाने लगी ।सब दातून कर मुंह धोकर चाय पीने बैठ गये ।नौकर बैठा रहा ।माँ नहा कर पूजा करने लगी ।मै भी स्कूल जाने को तैयार हो गई । माँ दीदी के बाल बना रही थी ।दीदी के बहुत मोटे और लम्बे बाल थे ।माँ हमेंशा दीदी के बाल बनाती थी ।

छै बजे दीदी अपनी सायकिल से कालेज जाने निकल गई ।नौकर भी गांव जाने के लिये निकल गया । दीदी कालेज में सभी को बता रही थी कि यह निशान पहले से था ।लायब्रेरियन ने कहा "किताब देख कर लेना चाहिये ,उसी समय बताना था ।" एक सीख के साथ दीदी ने प्रवेशपत्र लिया और परीक्षा देने बैठ गई ।

मै स्कूल चली गई ।दीदी घर आ गई ।पेपर बहुत अच्छा बना था ।माँ बता रही थी कि वह पूरे तीन घंटे भगवान को याद करती रहीं कि दीदी का साल खराब नहो ।दीदी मुझे हमेंशा कहती थी कि किताब खराब मत करो ।लाइन मत खिंचना ।मै स्वयं उस पीड़ा की साक्षी थी कैसे दीदी की बात नहीं सुनती ? माँ सबसे ज्यादा सतर्क हो गई ।काका आने के बाद सारी बातें सुन कर माँ को शाबाशी दे रहे थे कि अकेले रहने से आदमी बहुत कुछ सीखता है ,तुमने इतनी परेशानी को सुलझा लिया बहुत बड़ी बात है ।

काका के आंखों मे आंसू तो आ रहे थे पर उसे छुपा गये ।दीदी का एक पूरा साल खराब होने वाला था ।मुझे तो बहुत कुछ सीखा गया ।

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