रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 59


विद्यार्थी जीवन बहुत ही खुशियों से भरा रहता है ।बहुत सी यादें रहती है ।रायपुर में शासकीय महिला महाविद्यालय के आस पास बहुत से सिनेमा हाल थे ।कुछ अभी भी हैं ।एम एस सी में दिन भर लैब में काम करते करते थक जाते थे तो नीचे मैंदान में घूमने आ जाते थे ।मैंदान से बाहर नहीं जाते थे पर गेट तक जाके चना जरुर खरीदते थे ।उस समय कुरकुरे चिप्स जैसी चीजें नहीं मिलती थी । हम लोग फुटा चना खाकर बहुत खुश होते थे ।टिफीन भी ले जाते थे पर चने का अपना मजा होता था ।

जब भी सर या मैडम नहीं आते थे तो हम बारह से तीन की फिल्म देखने चले जाते थे ।वनस्पति शास्त्र का यह फायदा था कि लोगों को लगता कि हम लोग मैदान में हैं ।कभी बाबूलाल टॉकीज तो कभी श्याम टॉकीज में जाते थे ।सिनेमा देखना याने मस्ती करना रहता था ।

फिल्म शुरू हुई और हमारी मस्ती शुरु ।बाहर का सीन है तो पौधे कितने होगे? उनकी जाती प्रजातियों की बात करने लगते थे ।फूलो के बारे में बोलने लगते , कहाँ पाया जाता है ? यह सब जोर जोर से बोलते थे । महिलाओं का चिल्लाना शुरु हो जाता था ।ऐसा लगता था कि झगड़ा हो रहा है ।हम लोग अपना बोल रहे है और बाकी महिलाएं हम पर चुप रहो चुप रहो चिल्ला रही हैं ।कभी गेटकीपर आ जाता था ।

जब प्यार का सीन आता तो धड़कन की बातें शुरु कर देते थे ।स्पीड कितनी है ? समुद्र आता तो कितनी लहरें आ रही है वही गिनने लग जाते थे ।गाड़ी चल रही है तो उसकी स्पीड की बात शुरू हो जाती थी ।हीरोइन की साड़ी कैसी है ? कितने की होगी ? इस पर हमारा भी मतभेद शुरु हो जाता था ।

एक बार बारिश हो रही थी ।दिसंबर का महिना था ।हम लोगों में से एक के पास शॉल था ।हम पांच लोग हल्की बारिश में शॉल की ही छतरी बना कर मैदान में घूमने लगे ।तीन चार दिन पहले ही लैब में रुम हीटर आया था ।पानी से भीग कर हीटर के सामने बैठ कर हाथ सेकते रहे ।दूसरे दिन हल्की सर्दी और तीसरे दिन बुखार में पड़ गये ।हंसी बंद होती ही नहीं थी प्रोफेसर डी के तिवारी सर रुम हीटर हटा दिये ।तीसरे दिन आधे लोग तबियत खराब होने के कारण गायब रहे ।एक सप्ताह के बाद पता चला कि पूरा लैब बिमार है ।फोन का जमाना था नहीं।पैसे वाले या बड़े पदों मे रहने वाले ही फोन लगाते थे ।सर को लग रहा था कि सारे लोग गोल मार रहे हैं। सर ने किसी लड़की से पता करवाया पर सब बिमार है यह पता नहीं चला ।एक एक कर सब आते गये।पंद्रह दिन के बाद चटकिली धूप में हम सब एकत्र हुये ।सर ने कहा रुम हीटर के मजे निकल रहे है सब हंसते रहे और खांसते रहे पर सर को पता ही नहीं था कि हम लोगों ने एक शॉल के नीचे घूमने का कितना मजा लिया था ।

एक बार हम लोग एक सर के न आने पर फिल्म जाने का कार्यक्रम बनाये ।एक लड़की जाकर टिकट ले ली ।मै अपनी माँ को लेने घर चली गई ।हमारे साथ माँ भी कभी कभी चली जाती थी ।फिल्म में बहुत हल्ला गुल्ला मचाये , मस्ती किये और चार बजे तक कालेज लौटने लगे ।हम लोग कालीबाड़ी चौक से कालेज की ओर आ रहे थे हंसते खिलखिलाते और अचानक सामने दास सर दिख गये ।वे कालेज से बाहर आ रहे थे ।सब एक साथ रुक गये ।सर ने ये नहीं पूछा कि कहाँ गये थे ? हममें से एक ने कहा सर आज आप नहीं आये थे तो झट से सर ने कहा "मतलब तूम लोग घूमने जाओगे ? दो बजे तक रुक नहीं सकते थे ,अभी छै बजे तक प्रेक्टिकल करना है ,समझे ।" हम हंसते लौट कर लैब में आ गये

हंसना अब बंद हो चुका था लैब अटेंडेंट ने बताया कि दास सर दो बार लैब आकर लौटे थे ।वैसे तो आते ही नहीं थे ।कभी कभी ही आते थे ।हम लोग चुपचाप पांच बजे तक बैठ कर कुछ काम किये ।सब एक साथ सीढ़ियों से उतर रहे थे तब भी चुप थे ।दूसरे दिन की सुबह कैसी होगी यही सोच रहे थे ।हमारी धजर में सबसे खड़ुस सर थे जो मुस्किल से हंसते थे ।दूसरा दिन सामान्य ही रहा ।वही फिल्म आखरी फिल्म थी जब हम लोग साथ गये थे ।यादें रहीं पर ऐसा जीवन लौट कर नहीं आया ।

इसे जब भी याद करो लगता है अपने उसी उम्र में पहुंच गये हैं ।इस कम होते उम्र का एहसास सच में उम्र को कम कर देता है ।छात्र जीवन लौट कर नहीं मिलता पर हम अपने बच्चों को डांटते रहते है।उन्हें भी थोड़ा जीने दे ।मै अपने बेटे को कभी भी फिल्म जाते नहीं देखी हूँ ।आज घर पर टी वी और लैपटॉप पर देख लेते हैं ।जीवन के इस खुशहाल माहौल के बारे में तो सोच भी नहीं सकते ।आज यह सब खतम हो चुका है ।

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