दीदी की शादी के समय माँ ने जब अपनी पुतरी निकाल कर दीदी के जेवर बनाने के लिये दी तो माँ ने बहुत सी बातें याद कीं
माँ पांच भाइयों की सबसे प्यारी बहन थी ।बड़ी बहन और भाई इतने बड़े थे कि उनके बच्चे माँ की उम्र के थे ।मेरी नानी की मृत्यु माँ पा छै साल की थी तभी हो गई थी ।घर के काम से उनको मतलब नहीं था ।नहर तालाब के पानी में तैरना और बाग बगीचे में घूमते रहती थी ।कभी बिच्छू पकड़ कर पूंछ में रस्सी बांध कर घूमाती तो कभी कड़ाही में बनते गुड़ में भटे को काट कर डुबाना ।इस भटे को ठंडा कर खाती थी ।जीवन के मजे लेती माँ की शादी हो गई ।
भाभियों से माँ की तरह लाड़ प्यार पाती माँ अपने आप को एक गाय की तरह सास और कसाई की तरह बड़ी सास के सामने पाती है । मेरी दादी के साथ भी बड़ी दादी बहुत बुरा व्यवहार करती थी । घर पर उन्हीं का राज चलता था ।शादी के इक्कीस साल के बाद उनका एक बेटा पैदा हुआ था जिसने मेरे काका को ही सब कुछ समझा ।अपनी माँ से परेशान चाचा जी कभी खेत नहीं गये थे ।वे भी हेड मास्टर बन गये थे ।माँ ने अपने पास रख कर पढ़ाया था ।
शादी में माँ को सोने से लाद दिया गया था ।बड़ी दादी की नजर उस सोने पर रहती थी ।कभी कभी कुछ मांग लेती थी । बड़ी बुआ "तेजबती " की शादी के समय बड़ी दादी ने जेवर बनवाने से मना कर दिया ।माँ के पूरे जेवर उतरवा ली थी । शादी में मेरे बड़े मामा जी आये तो माँ पैर छुने आई ।मामा ने माँ को देखा और कुछ कहा नहीं दादा जी ने कहा इसके जेवर बाद में बनवा देंगे।मामा ने तो माँ को ऐसा देखा ही नहीं था ।उसी दिन लौट गये और नौकर के हाथ से मामियों के जेवर निकलवाकर भेजे ।दादी की नजर फिर जेवर पर अटक गई ।
छोटी बुआ की शादी हुई तो फिर दादी ने माँ के जेवर उतरवा लिये ।मामा जी आये फिर वही घटना हुई ।इस बार मामा के साथ साथ मामियां भी नाराज हो रही थी ।पैसे की कमी नहीं थी पर नियत खराब थी ।मामियों ने अपने मन से जेवर उतार कर माँ के लिये भेजा ।इस घटना के बाद मामा जी कभी हमारे गांव नहीं गये ।
दोनों दादा जी के बीच बटवारे की बात चली ।पूरी तरह से खेत और मकान बट गया तब बड़ी दादी ने जेवर बांटने की बात की ।बड़े दादा जी ने कहा कि सब अपने अपने जेवर रखे उसे क्या बांटना ।बड़ी दादी काठा लेकर बैठ गई कि मुझे मंझली बहू के जेवर चाहिये ।मंझली याने मेरी माँ ।मेरे काका लोग चार भाई और दो बहन थे ।बड़ी दादी का एक ही बेटा था ।
माँ ने जिस समय जेवर उतार कर बड़ी दादी के सामने रखा हमारी दादी रो उठी , उसने तो कभी बोलना सीखा ही नहीं था ।अत्याचारी जेठानी के सामने वह क्या बोलती ।सारा जीवन सिर्फ सुनती रही ।वही हाल उनकी बहुओं का रहा ।
दादी ने माँ के सारे जेवर धान नापने के काठा मे भरा और ले लिया ।घर के पूरे जेवर को आधा आधा कर दिया स्वयं सोना ली और चांदी दूसरी तरफ रख दिया ।ईश्वर देखता है ।माँ के लिये मामी लोगों ने अपने एक एक जेवर फिर भेज दिया ।बड़ी दादी ने अपने बटवारे के जेवर को दूध पकाने के "अंधियारी "में जमीन में गड़ा कर रखा था ।एक छोटा सा कमरा होता है जो अक्सर सीढ़ी के नीचे रहता है , जहां दूध पकाते है उसे अंधियारी कहते हैं ।
कुछ साल के बाद बड़ी दादी ने उसे खोदा तो वहां कुछ नहीं था ।चुहे ने उसे कुतर डाला था ।उस मिट्टी से आधा तोला सोना मिला ।वह गला फाड़ कर रोती रही ।लोगों ने कहा मंझली बहू के जेवर हमेंशा उतरवाती रही इस कारण भगवान ने यह सजा दी है ।वह गांव की गलियों में रोती वह लोगों के घरों में जा कर रोती ।वह अपने घर के आंगन में बैठ कर रोती पर उसे तो ईश्वर ने बता दिया कि दूसरों के साथ बुरा करने का क्या फल मिलता है ?
मेरी माँ हमेंशा अपने जेवरों को याद करती रही ।मामी भी माँ के जेवरों के डिजाइन बताती रहती थीं ।बड़ी दादी का खौफ कितना भारी था ? बहुओं ने मुंह नहीं खोल कर अपनी सास की गरिमा को बनाये रखा ।
जब माँ ने दीदी के लिये अपनी पुतरी उतारी तब उसे देने वालों के पास भी अपने बच्चे थे जिनके लिये जेवर उन्होंने बचा कर रखा था । माँ की वेदना यह भी थी कि आड़े वक्त में काम आने वाला जेवर चला गया ।अभी दो बच्चे और हैं उन्हें क्या दूंगी ?
मैने देखा कि माँ मेरी शादी के समय भी याद करती रही भाई की शादी के समय भी याद करती रही ।हम दोनों के लिये सोने से लदी रहने वाली माँ ने उधारी करके जेवर बनाये और हमेंशा कम सोना देने का दुख मनाती रही ।
हमने भी कहानियों की तरह लगने वाली खुंखार दादी को देखा था ।उसकी मौत भी अपने बहु के मायके में हुई और अ़तिम समय मे उसने माँ से कहा कि मैने तुम्हारे साथ बुरा किया पर आज तुम्हारे वजह से ही मेरा बेटा पढ़कर शिक्षक बन गया ।दूसरे दिन मर गई ।मौत भी संदिग्ध थी किसी ने उसे जहर दिया था ।यह रहस्य ही रहा ।माँ ने कभी उन्हें माफ नहीं किया था । मैने जरुर एक बात सीखी कि सबके लिये अच्छा सोचो ।ईमानदारी से रहो वरना हमारे सोने जैसे खूबसूरत जीवन को भी चुहे कुतर कर रख देंगे ।
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