रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 35


काका को गाय से बहुत प्यार था ।भाई के पैदा होने पर हमारी बड़ी माँ ने एक गाय भेजा था ।बंगले में ही गाय रखे थे ।बाद में उसे हमारे ईदगाहभाठा वाले घर में ले आये थे । पहले तो काका सिर्फ सुबह शाम गाय से मिल कर बात करते थे । हाँ बात करते थे ।

कैसी है माँ ?दाना खा ली ?मच्छर काट रहा है क्या ?सारी बातें हमारी चंदा ध्यान से सुनती थी और अपने तरिके से जवाब देती थी ।कभी सिर हिलाती ,कभी रंम्भाती थी तो कभी चुप रहती थी ।बस चुप रहना मतलब गाय को परेशानी है ।काका दाना को देखते और पूछते "दाना खाई नहीं "गाय ने "हूँ " कहा मतलब ठीक है पैरा को हिलाते "पैरा अच्छा नहीं लग रहा है ।"गाय कहीं और देख रही है तो काका पानी लाकर देते "प्यास लगी है ।" गाय ने पानी को मुंह लगाया और चुप हो गई , कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ।अब काका उसकी पीठ खुजाने लगे ,गाय खुश उसे प्यार चाहिये था । वह काका को चाटने लगी ,अपने गले को काका से रगड़ने लगी ।

यह प्यार रोज चलता था ।बाद में गोमूत्र का उपयोग करने लगे ।सुबह चार बजे उठने के बाद गाय कोठे का गोबर उठाते थे ।सुबह का गाय का पेशाब अपने शरीर पर लगाते थे ।उसके बाद इधर उधर घूमते और गाय को दाना देते थे ।नहाने के पहले अपनी पीठ और पेट में काली मिट्टी लगाते थे ।फिर कुछ योगा करते थे ।बी एड कालेज में एक कालखंड योग का रहता था ।वहां सिख कर सुबह घर में योग करने लगे थे।

अब नहाने का समय होता था तो उनके श्लोक बोलना शूरू हो जाता था ।उनकी वह दिनचर्या कुछ भगवान के फोटो थे हनुमान , रामदरबार , दुर्गा ,इन्ही पर फूल चढ़ाते थे ।फिर मृगछाला बिछाकर गीता निकाल कर एक अध्याय का पाठ करते थे ।

पेपर पढ़ने के पहले चाय पीते थे न हो तो दूध ।पेपर पढ़ने के बाद फिर गाय से बात करते थे ।उस गाय का नाम चंदा था ।भूरे रंग की गाय थी ,उसके माथे पर सफेद गोल टीका था इस कारण उसे चंदा कहते थे ।गाय चरने चले जाती और काका खाना खाने बैठ जाते थे ।दस बजे अपने कालेज पहुंच जाते थे ।

शाम को जैसे ही काका सायकिल अंदर करते तो चंदा "हूँ हूँ " करने लगती थी ।पहले चंदा से बात करो तभी अंदर जाओ । रात को जबसहम लोग खाना खाने बैठते थे तब वह बैठे रहती थी ।काका खाना खा कर उठते तो चंदा उठ जाती थी ।काका खाने के बाद खांसते थे तो चंदा समझ जाती थी ,क्योंकि काका चंदा को थोड़ा सा पैरा देते थे ।माँ खाने के बाद एक रोटी या थोड़ा सा दाल भात मिला कर देती थी ।भूलें ना यह चंदा का सकेत रहता था ।माँ भी पीठ थपथपा कर कहती " सो जा ।"

एक बार चंदा को ठोकर लग गई ।बहुद दवाई दिये पर ठीक नहीं हुई ।उसका पैर काटना पड़ा ।काका ऐसे रो रहे थे कि उनके शरीर का हिस्सा कट गया है ।तीन पैरों से चलते हुये देख कर काका बहुत दुखी होते थे ।चंदा को चरने के लिये जाने में भी तकलिफ होती थी ।काका ने उसे महावीर गौशाला में दे दिया ।कुछ पैसा भी देते रहते थे ।गांव से पैरा लाकर भी देते थे ।

चंदा के पैर कटने के बाद एक सफेद बराड़ी गाय गंगा घर में आ गई ।उसके तीन बछिया क्रम से हुई ।एक जर्सी क्रास की काले रंग की थीस।उसका नाम संतोषी रखे थे ।बहुत खूबसूरत थी ।हमारे घर के कमरे में भी चली जाती थी ।ए जब पैदा हुई थी तब तीसरे मंजिल के छत पर चढ़ गई थी ।जब दौड़ कर चिलाने लगी तब फता चला ।उसे बहुत मुश्किल से गाय चराने वाले ने गोद में उठा कर उतारा था ।

अब हमारे घर बराबर डाक्टर आते रहते थे ।तीन बछिया और गाय को टॉनिक देते थे ।दवाईयां देते थे ।एक बार दोसाल की संतोसी ने खाना बंद कर दिया ।बहुत ईलाज हुआ पर दिनो दिन हालत गिरती रही ।एक दिन अस्पताल लेकर गये और उसने वहीं दम तोड़ दिया ।संतोसी को घर लाये ठेले में ।पिताजी जोर जोर से रोते हुये घर आये ।"मेरी माँ चली गई ,मुझे छोड़कर चली गई "रास्ते में ही कुछ लोग उनके साथ हो लिये ।घर आकर आंगन में बैठ कर रोने लगे घर में भीड़ लग गई ।माँ की ओर सब देख रहे थे माँ के आंखो में भी आंसू थे वे काका से कहती है "इतना ईलाज करवाये न ,कोशिश तो पूरी किये ।उसकी उतनी ही उम्र थी ।"

तब तक ठेले में संतोसी आ गई ।काका ने स्वयं उसकी आरती उतारी ।घर के फूल चढ़ाये ,एक कपड़ा ओढ़ाये और ठेले वाले से बोले कि यह मौत कैसे हुई है यह जरुर बताना । वह चला गया ,बारह बजे की घटना थी ।घर में रात तक खाना नहीं बना ।कुछ लोग मिलने आते रहे क्योंकि गाय हमारे घर की सदस्य ही हुआ करती थी ।यह सभी जानते थे ।बाकी दो गाय रात भर उसे खोजती रहीं चिल्लाती रहीं ।

दूसरे दिन सुबह वह व्यक्ति बताने आया और कुछ दिखाया ।पांच छै इंच लम्बी सूई थी जो उसके जिगर में चुभी हुई थी ।इस कारण संतोषी ने खाना पीना छोड़ दिया था ।एक ऐसी चीज जिसे फालतू समझ कर कपड़े में लगा हुआ या फिर सब्जियों के कचरे के साथ फेक देते हैं ।जानवर उसे सब्जियों के साथ खा लेते है ।संतोषी की मृत्यु लोगों को एक सीख दे गई। काका ने ऐसा क्या किया था कि उनको इतना दुख दे गई ।

यहाँ पर काका के मन को" गीता "ने ऐसा सम्बल दिया कि वे सम्हल तो गये पर पहले चंदा फिर संतोषी ने उन्हें महावीर गौशाला की ओर भेज दिया ।कुछ नहीं वहां चंदा को देखने जाते कभी कुछ पैरा और चूनी भूसी दे देते । रास्ते के बीच पड़े कचरो को किनारे कर देते

जीवन के अंतिस समय में बेटे के साथ रहे पर एक रोटी गाय को देने की बात नहीं भूले ।मेरे घर रहते तो जब गाय आती तो तुरंत उठ कर कहते "बेटा रोटी दे दो "मुझे कहते थे रोटी लेकर जाओ आस पास गाय होगी तो खिला देना ।काका को दूध बहुत पसंद था रोज रात को दूध रोटी खाते थे ।सुबह भात में दूध डाल कर खाते थे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें