रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 80



मै एक बार मायके से आई तो देखी कि सीढ़ी पर कुछ बर्तन रखे थे । बर्तन भी एक डुआ दाल सब्जी निकालने का , दो चम्मच , दो गिलास , तीन कटोरी , एक पीतल की गंजी बस ।मै इसे देखकर अपनी जेठानी सभी पूछी तो उसने कहा कि तुम्हारा खाना अलग बनाना ।मै बर्तन ऊपर लेकर चली गई ।आने के बाद सास ससुर के पैर छुई तब उन लोगों ने कुछ नहीं कहा था ।

शाम को मै नीचे चौके मे बैठी थी तो जेठानी ने कहा कि तुम लोगों का खाना बनान के लिये मना की है । मुझे समझ मे नहीं आया कि अभी कुछ भी नहीं है तो मै अलग से खाना कैसे बनाऊंं? रात तक रूकी रही ।इस तरह की घटना मे देखी भी नहीं थी और सुनी भी नहीं थी ।मुझे कुछ समझ मे नहीं आया ।मुझे भूख लग रही थी तो जेठानी ने छुपा कर मुझे दे दिया था ।मै तो खा ली पर मुझे इनकि चिंता होने लगी ।रात को पति आये तो मैने सारी बात बताई ।उन्होने कहा कल काका से बात करता हूँ ।रात को भूखे ही सो गये ।फोन मोबाइल का जमाना था नहीं ।जेब में भी पैसे नहीं थे कि बाहर से खा कर आते ।पैसा भी डाक्टर देवर को भेज दिये थे ।

यह घटना तनख्वाह मिलने के तीन चार दिन पहले की थी ।सुबह काका याने ससुर से बात किये तो वह बोले कि नहीं अपना इंतजाम कर लो ।अब तीन दिन की बात थी ।ये यो बिना खाना खाये ओर बिना टिफीन के ही चले गये ।टिफीन दोस्तों ने खिला दिया ।मुझे बोल कर गये थे कि अपने मायके चले जाना पर मै नहीं गई ।दोपहर को सामने रहने वाले उनके। मुसलमान दोस्त के घर खाना खाकर आई ।उस भाभी को पूरी बात बताई ।रात को भंगू भैय्या रास्ते मे खड़े रहे और इनके आने पर जबरदस्ती अपने घर ले जाकर खाना खिलाये ।ऐसा दो दिन हुआ तीसरे दिन मै माँ के घर गई और सब हालचाल सुनाई ।

मेरा भाई बोला कि "मेरे कारण यदि तेरे को तंग कर रहे हैं तो मै मुन्नी से शादी कर लेता हूँ पर उसे शादी करके उसके मायके में छोड़ दूंगा।" मैने कहा यह तो और भी कष्टदायक रहेगा ।उसका पूरा खर्च तो हमे ही उठाना पड़ेगा ।माँ ने कहा चल बाजार से सामान खरीद ले ।मैने कहा पैसा नहीं है ।मां तो माँ होती है ।उसने अपना जमा पैसा निकाला और सामान खरीदने निकल पड़े ।

बेलन पटा दाल पकाने का लोटा चिमटा वैगरह लिये ।किराना दुकान से बिस्कुट का खाली पीपा लेकर उसमे चांवल आटा दाल और तेल खरीद कर रख दिये ।एक कोयले की सिगड़ी खरीदे ।शक्कर चायपत्ती और दूध का डब्बा लिये मसाला माँ ने अपने पास का ही दे दिया ।ससुराल मे घर के सामने ही कैंंडी कोयला मिलता था वहाँ से चार रूपये मे एक बोरी कोयला खरीदे ।लकड़ी का कोयला भी लिये ।अब मेरे पिस तवा नहीं था माँ देने वाली थी पर भूल गई ।यह सब सामान करीब एक सौ सत्तर रुपये का था ।

रात की तैयारी कर ली थी मैने अपनी सास से दहेज का पीतल का गुंंड और कुकर मांगा पर वह नहीं दी ।दाल पकाने का होटा तो लाई थी पर दो सिगड़ी नहीं थी । मै पीतल के गंंज मे चांवल पकाई और रस वाली सब्जी बनाई ।कामहो गया थाली नहीं थी मुझे लगा था सास कुकर थाली लोटा तो देगी पर ऐसा नहीं हुआ। रात को ये बैंक से उस दिन सात बजे ही आ गये और मेरी तैयारी देख कर खुश हो गये ।रात को इन्होंने कढ़ाई के ढक्कन मे खाना खाया और मै कढ़ाई मे खाना खाई ।परात भी नहीं था ।

दूसरे दिन सुबह मै सास का तवा लेकर आई और रोटी बना कर वापस कर दी ।दो दिन के बाद जेठानी ने सास का नाम लेकर ले जाने के लिये मना कर दिया ।मैने देखा था कि एक फुटे तवे पर राखड़ निकाल कर फेंकते है ।मै उस तवे को अच्छे से साफ करके रोटी बनाने के लिये ले आई ।पर वह भी मना हो गया ।जेठानी ने कहा कि उसे मत ले जाया कर हम लोग राखड़ निकालते है ।अब वह उस तवे को पीछे बाड़ी मे न रख के चुल्हे के पास ही रखती थी ।

दो दिन के बाद ही ससुर को पैसे नहीं मिले तो बोले कि तुम लोग इस महिना खाना खाये हो वह पैसा देना पूरा एक सौ पचास रुपये ।ये बोले कि अब मै अलग खाऊंगा तो पैसा कहांं से आयेगा ? मै इस महिने का पैसा थोड़ा थोड़ा दे दूंगा बोल कर चले गये ।रात को बताये तो मैने कहा कि माँ का पैसा बाद मे देंगे यहा काका का पैसा पहले दे दो ।पचहत्तर रुपये दे दिये ।

अब बिजली का बिल आया तो पहले आधा पैसा लिये बाद मे कहने लगे कि तुम लोग यहां रहते हो यो किराया नहीं लेता हूँ इस कारण बिजली का पूरा बिल और मकान का टेक्स तुम देना ।यह बात बाद मे मुझे बताये और कहने लगे कि एक बाप ऐसा होता है मै सोच भी नहीं सकता ।धीरे से कहने लगे कि तुम्हारे ऊपर मै अठ्ठारह हजार खर्च किया हूँ ।मैने इनसे कहा कि हो सकता है कि यह पैसा भी मांगे ।

घर के सामने ठेला आता तो सब्जी खरीद लेती थी एक बर्तन वाला भी आता था उससे कुछ कटोरी ली थी ।तब वह कटोरी तीन चार रुपये मे आ जाती थी ।एक ही कमरे मे रहते थे वहीं खाना बनाना और वहीं सोना ।कोई आये तो उसे भी वहीं बैठाना ।धीरे से ससुर का पैसा और माँ का पैसा दिये उसके बाद ओवर टाइम करके लक्षमी चेयर खरीदे ।कमरे मे पर्दा लगा कर दो हिस्से मे बांटे ,एक तरफ सामान और चौका तथा दूसरी तरफ पलंग और कुर्सी रखे थे ।एक कमरा चार हिस्से में हो गया था ।स्टोर , चौका , बैठक और सोने का कमरा ।अब कुछ राहत थी ।मै उनके आने के समय पर ही खाना बनाती थी ।

मै कुकर को मांगती रही पर सास ने नहीं दिया ।वह सारे बड़े बर्तन मुन्नी को देने के लिये रखी थी ।छोटे बर्तन थाली गिलास लोटा कटोरी सब बेच दी थी ।दो बहुयेंं आई थी पर घर में बर्तन नहीं था ।सोना भी मेरे पास था जिस पर नजर रखी थी ।जेठानी ने बताया था कि जेवर सास को मत देना वह बेच देगी ।"मेरा सब बेच दी है ।एक चेन अपने लिये बना ली है ।"मेरे जेवर बचे रहे ।मेरे से बात कम होती थी पर धीरे धीरे मै नीचे के चौके मे भी काम करने लगी अपना खाना बना कर नीचे मदद कर देती थी ।

मैने ये देखा कि यहां पर आपसी प्यार नहीं था ।सब भाई बहन एक जगह बैठते थे तो खाने के समय ,वह भी रविवार को । बहुत हंसी मजाक होता था पर अंंत पैसे की बात से होता था ।एक लड़की जिसने परिवार मे प्यार देखा था उसे बिखरे हुये प्यार के बीच रहना पड़ रहा था ।जहाँ पर आज इसके नाम की सब्जी तो उसके नाम की सब्जी सुनना पड़ता था ।आज की सब्जी जो खरीदेगा उसे ज्यादा खाने के लिये मिलेगा ।ब्रेड खाना है तो अपना खाओ ।उस घर मे सास ससुर नहीं देते थे तो कुछ खरीद कर दो तो पहले "नहीं तुम लोग खाओ "सुनने को मिलता था ।मिल बांंट कर बहुत कम खाते थे ।उसका कारण पैसा था ।

इंंसान खाने बैठे और कुत्ता भी आ जाये तो उसे भी एक टुकड़ा रोटी का दे देते हैं ।उस घर मे तीन दिन भूखा रहना पड़ा बहुत बड़ी बात थी ।एक माँ अपने बच्चे को भूखा सोते हुये कैसे देख सकती है ? यह बात मुझे कहावत लगती है ।मैने आंखों से बच्चे को भूखे सोते देखा है एक बार बहु भूखी सो जाये बात समझ मे आती है पर बेटा?

"एक कानी कौड़ी नहीं दिये , एक फूटा बर्तन नहीं दिये " इस कहावत को चरितार्थ होते देखी हूँ ।शायद कहावतेंं भी ऐसी ही बनती हैंं ।एक सौ सत्तर रुपये की गृहस्थी है मेरी ।यह मै आज भी सबको बताती हूँ ।

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