रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 3



मुझे पहली कक्षा मे भर्ती किया गया ।सालेम हिंदी स्कूल मे काका मुझे लेकर गये तो दस पंद्रह साल के बच्चों को देखकर मैं डरने लगी ।मै इतनी संख्या में इतने बड़े बच्चों को कभी देखी नहीं थी ।

मुझे भर्ती कर लिया गया ।काका घर आ गये।चुपचाप बैठी रही ।शाम को कुंवरसिंग लेने आया ।घर आ गई ।शाम को बालभारती और स्लेट पेन्सिल खरीद कर लाये ।दूसरे दिन गई तो बड़े बच्चों को ही देखती थी । पंद्रह दिनों के बाद मै भागने लगी ,घर पर भी मां को कहती थी कि बड़े होने के बाद पढ़ुंगी ।मै स्कूल से भाग कर गवर्नमेंट स्कूल के पास के चौक के नीम के पेड़ पर चढ़ कर बैठ जाती थी ।छुट्टी होने पर उतर कर भागते बगले में चली जाती ।

कुंवरसिग और माँ दोनों परेशान रहते ।एक दिन टीचर ऩे ,पहले बहनजी कहते थे ,काका से पूछा कि सुधा की तबियत खराब है क्या?क्ई दिनों से स्कूल नहीं आ रही है ।
उस दिन मेरा पिछा किया गया और रंगे हाथ पकड़ा गया । काका ने पास से बेशरम की छड़ी तोड़ी और मारते बगले तक ले गये ।
शिक्षकों की भीड़ लग गई। लोग छुड़ाने लगे पर काका एक ही बात कहते रहे ,मैं शिक्षकों को सिखाता हूँ और मेरी ही बेटी स्कूल से भाग रही है ।क्यों पढ़ना नहीं चाहती ।
माँ विद्यार्थियों के सामने नहीं आती थी ।मुझे माँ के पास पहुंचाये ।दो दिन तक घर में सन्नाटा था ।टीचर भी हमारे घर आई ।मैंने अपनी दीदी को बताया की मैं जब बहुत बड़ी हो जाऊंगी तभ स्कूल जाऊंगी ।मुझे बड़े बच्चों से डर लगता है ।उनके पैरों से मैं दब कर मर जाऊंगी ।
टीचर ने कहा कल से तुम सिर्फ खेलना पर स्कूल जरूर आना ।मैं दूसरे दिन काका के साथ स्कूल गई पर कक्षा के अंदर नहीं गई सबने बहुत प्यार किया ।
मुझे के जी ( किंडर गार्डन ) मे बैठाया गया ।

वहाँ तो मैं ऐसे रम गई की बाहर जाने की इच्छा भी नहीं होती थी ।मुझे पता नहीं था कि मैं निगरानी में हूँ।मुझे टीचर चर्च के मेस में ले जाती और अपने साथ बैठा कर खाना खिलाती थी ।बहुत से नन भी साथ में खाना खाते थे ।मुझे उनका ड्रेस बहुत अच्छा लगता था।खाने के पहले प्रार्थना करना तो और भी अच्छा लगता था ।

घर पर मै एक दिन उसी प्रकार करने लगी तो माँ ने कहा हमलोग ऐसा नहीं करते है ।माँ ने कहा थोड़ा सा खाना निकालो और कृष्णार्पण कह कर रख दो ।रोज गाय को रोटी दिया करो

स्कूल के मेस मे खाना मिला तो मैं एक रोटी निकाल कर बाजू में रख ली ।वे लोग देख रहे थे ।खाने के बाद रोटी लेकर आने लगी तो टीचर ने पूछा तो मैने कहा गाय को दूंगी ।मुझसे रोटी वापस लेकर टेबल पर रख दिया गया । मैं चुप आ गई घर पर माँ ने कहा वहाँ पर उनकी तरह खाया करो ।घर पर अपनी तरह खाया करो ।

बाद में मेरा मन वहाँ लग गया पर दोनों के बीच का ताल मेल बैठा नहीं पा रही थी ।मुझे पूरी छूट थी मैं कभी भी चर्च चली जाती थी और ईशु को देखने लगती थी ।यह आकर्षण आज भी है मेरे मन में ।एक निर्विकार चेहरा ,और उसके अदर के भाव को समझने की कोशिश हमेंशा से रही ।

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