ठंड बहुत पड़ रही
थी ।उस दिन मेरे पति रात को दस बजे आये ।कमरे मे कपड़ा बदलने के बाद लेट गये ।मैने
कहा खाना नहीं खाना है क्या ? उन्होने कहा " नहीं , आज तुम निकाल कर दोगी तब खाना खाऊंंगा ।"
मैने कहा भाभी तो देती है न । उन्होंने कहा नहीं मै स्वयं निकाल कर खाता हूँ ।मुझे
आश्चर्य हुआ कि वह तो जागती है और जेठ को खाना देती है तो इनको भी देती होगी ऐसा
मैने सोचा था ।
मै तुरंंत उनके
साथ नीचे गई ।वे हाथ पैर धोने लगे और मै खाना निकाली ।भात बहुत ठंंडा हो चुका था
।भूसे के सिगड़ी का भूसा और लकड़ी के कोयले सब राख बन चुके थे ।भात निकालने के बाद
दाल का लोटा उठा कर दाल पूरा ढाल दी क्योंकि और कोई तो खाने वाला था नहीं पर यह
क्या ? बिल्कुल थोड़ा सा
दाल था ।मैने लोटे के अंंदर के दाल को हाथ की उंगलियों से पूरा निकाला।सब्जी भी
थोड़ी सी ही थी ।उन्होनें मुझसे कहा कि दो हरी मिर्च देना ।मै अंदर से दो हरी मिर्च
लाकर दी ।
उन्होंने मिर्च
को भात के उपर खड़ा रखा और मजे से खाने लगे ।वे खाते तक कभी पानी नहीं पीते थे
।पूरा दाल और भात को मिला लिये थे ।उसमे सब्जी भी मिला लिये और मजे से एक कौर भात
खाते थे और मिर्च खाते थे ।मै तो चुपचाप देख रही थी ।मुझे लगा कि खेत से काम करके
आने के बाद नौकर को बचा खाना देते है और वह हरी मिर्च क साथ चुपचाप खा लेता है , वैसे ही खा रहे
है ।यह सिलसिला एक सप्ताह तक चला ।उस बीच रात का तापमान एक दिन आठ डिग्री हो गया
था । इतनी ठंड और ठंडा खाना देखकर मै सोची कि रात को मै अलग से उनके लिये भात बना
लिया करुं।मै अपनी जेठानी से बात की तो उसने मना कर दिया और कहा कि सास कहेगी कि
अलग से खाना बनाना चाहती है ।मै चुप रही ।
एक दिन मै खाना
परसने के बाद देखी कि भात कम है ।एक कटोरी ही था ।दाल को मै अलग कटोरी मे निकाल कर
रख देती थी ।सब्जी का भी ध्यान रखती थी ।मै तो उपर चली गई ।रात को दस बजे आने के
बाद मै साथ मे नीचे आई और भात निकालने लगी तो मैने देखा कि बहुत सा भात है ।उसे
निकालने पर देखी कि पचपचा रहा था ।याने पानी छूट रहा था ।मुझे याद आया कि सुबह
बहुत सा भात बचा था तो मै अंदर देखने गई ।मैने देखा कि बड़े से कटोरे मे भात नहीं
था पर वह वैसे ही रखा था ।मै तुरंंत समझ गई कि यह भात सुबह का है ।अब मन मे कुछ
सोच कर सो गई ।
दूसरे दिन मै
अपनी सास से बोली कि भात छै बजे बनता है , यह रात को दस बजे तक ठंडा हो जाता है ।मै रात को भात पका
लूं क्या? पहले तो वह चौकी , उसके चेहरे पर
आश्चर्य का भाव आया और थोड़ा सोच कर बोली कि बना लेना ।मै उस दिन नहीं बनाई पर खाने
का ध्यान रखी ।रात को इनके आने के बाद बात की कि कल से मै अलग से भात बना दूंगी
।वह भी पहले चौके फिर ठीक है बोले ।
मै खुश थी कि अब
गरम खाना मै अपने पति को खिला सकुंगी । मै दूसरे दिन भात बनाने के पहले भूसे की
सिगड़ी और कोयले की सिगड़ी को गोबर से लिपी ।मै वहा कभी भी चुल्हा और सिगड़ी कै लिपते
नहीं देखी थी ।कभी कभी मेरी सास ही लिपती थी ।मै सिगड़ी भर कर साढ़े नो बजे चांवल
चढ़ाई ।दस बजे तक बन गया ।दाल ओर सब्जी को भी गर्म कर ली ।
आने के बाद खाने
बैठे तो बहुत खुश थे ।सुबह तो एकदम गर्म दाल भात खा कर जाते थे ।खाना सास ही देती
थी ।एक कटोरे मे दाल देती थी । भात के उपर थोड़ा सा दाल डालते थे और बाकी दाल पीते
थे ।सब्जी भी एक प्लेट भर कर देती थीं ।टिफीन मे छै रोटी और एक पाव भिन्डी या आलू
बना कर रखते थे ।वे दोस्तों के साथ खाते थे ।
एक दिन मै पूछ ली
कि दिन को इतना सारा खाते हैं और रात को सूखा भात मिर्च के साथ खाते है ।ऐसा क्यों? मै तो देख चुकी
थी पर उनसे जानना चाह रही थी ।वे बोले सुबह माँ देती है रात को भाभी तो अंतर तो
रहेगा ।मुन्नी जागती रहती थी मैने पूछा कि मुन्नी क्यों नहीं देती तो बोले देती थी
मैने मना कर दिया ।इतनी रात को क्यो लोगों को परेशान करुं ।स्वयं निकाल लेता हूँ
।मैने कहा भाभी नहीं देती क्या ? तो बोले नहीं वह रात को अपने कमरे मे रहती है ।जागती है तब
भी नही देती।हम तीनों भाई जब भी देर से आते हैं तो निकाल कर ही खाते है ।अब तो
शादी हो गई है तो तुम देती हो तो अच्छा लगता है ।मै मुस्कुरा दी ।मुझे अफसोस हुआ
कि अब तक मै ध्यान क्यों नहीं दी ।
धीरे धीरे जेठानी
जब जेठ की थाली निकाल कर कमरे मे ले जाती थी तभी मै इनके लिये भी दाल और सब्जी अलग
कर देती थी ।जेठ ये सब नहीं खाते थे पर उनकी थाली मे बहुत सी चीजे दिखनी चाहिये थी
।वे तो रोज रात को मुर्गा मटन ही खाते थे ।अब सास को भी अच्छा लगता था कि सुबह
चौका साफ सुथरा गोबर से लिपा हुआ मिलता था ।
यह ज्यादा दिन
नही चला ।मुन्नी की शादी न होने के कारण किसी न किसी बात पर गुस्सा होती तो कहने
लगती कि बड़ी साफ सफाई वाली आई है ।भात अलग से बनाती है पानी अलग से भरती है ।कपड़े
अलग से धोती है।मेरे कपड़े बाई नहीं धोती थी तो मै स्वयं धोती थी ।इनके कपड़े भी सास
डुबा कर रख देती थी और मुझे धोने बोलती थी ।मै धोकर रखती थी तब ससुर उसे प्रेस
करवा कर लाते थे ।
दो कमाने वाले
बेटे थे ।पैसा ससुर के हाथ मे देते थे पर खाने मे भेद था ।कभी एक माँ ने भी नहीं
देखा कि बेटा रात को क्या खाता है ।जेठानी पर सबका बहुत विश्वास था ।वह सबका करती
हूँ कहती थी ।बेटे भाभी के विरुद्ध कभी आवाज नहीं उठाये ।छोटा देवर तो उसे भाभी
माँ ही कहता था ।इस तरह कि घटनाये और घरों मे भी होता रहा होगा पर मैने नहीं देखा
था ।हमारे घर मे सब बराबर खाते थे और सब को माँ परस कर देती थी ।
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