रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 29


आज लड़कियों की सुरक्षा बहुत बड़ी समस्या बन गई है ।रायपुर में पहले आये दिन हड़ताल होते रहती थी ।कभी कालेज में परीक्षा की तारीख बढ़ाने के लिये या फिर कुछ और कारण से ।सन् 1970 की बात होगी जब आचार्य तुलसी का प्रवचन हो रहा था ।उन्होंने सीता माता पर कुछ कह दिया था तो रायपुर में हड़ताल हो गई ।रायपुर बंद हो गया ।मैं दानी स्कूल में थी ।हम लोग स्कूल पहुँच चुके थे ।

बहुत से लड़के आकर स्कूल बंद करने को कहने लगे ।शहर में 144 धारा लग गई है और साइंस कालेज के आस पास कर्फ्यू लग गया है । प्राचार्य ने कहा कि बच्चों को समय पर छोड़ेंगे ,आने जाने की समस्या है ।लड़के कहने लगे किसी को कुछ नहीं होगा ।सब लोगों को घर पहुँचाने की जिम्मेदारी हमारी है ।मैडम से पता नहीं और क्या बात हुई, तुरंत स्कूल की छुट्टी हो गई ।

स्कूल के दो गेट है ।दोनों गेट खुल गये ।सब लड़कियां बाहर आकर अपने अपने हिसाब से चले गये ।हम लोग तो संवेदनशील क्षेत्र में रहते थे ।ब्राम्हण पारा का चौक पार करना था ।मेरे साथ मेरी सहेली वीणा तिवारी थी ।कन्हैयालाल तिवारी की पोती और पंकज तिवारी की बेटी ।

हम लोग स्कूल से बूढ़ातालाब के तरफ के गेट से निकले ।जैसे ही टॉकिज के पास आये तो कुछ लड़को को पुलीस दौड़ा रही थी ।वे लोग सदर बाजार की तरफ से आ रहे थे ।हम लोग श्याम टॉकिज में घुस गये ।वहाँ पर मैनेजर ने कहा कि सिनेमा देख लो ,पैसा नहीं लेंगे ।तीन बजे तक शहर शांत हो जायेगा ।हम लोग सिनेमा देखने बैठ गये ।हाँ उस सिनेमा का नाम याद नहीं है क्योंकि तनाव में बैठे थे ।माँ क्या सोच रही होगी ?घर के लोग चिंता कर रहे होगे ।

सिनेमा छूटा ,हम लोग बाहर आये ।शांती थी ।जगह जगह लड़के खड़े थे ।हम लोग सदर बाजार की तरफ गये ।सदर बाजार में रायपुर के नामी गुंडे खड़े थे ।एक ने तो पूछ लिया कि स्कूल छुटे तीन घंटे हो गये अभी तक कहाँ थे ? जवाब वीणा ने ही दिया और हम लोग आगे बढ़ गये ।थोड़ी थोड़ी दूर पर लड़के खड़े थे ।

लड़के हमारे वहाँ तक पहुंचते ही चिल्लाते "इनको ठीक से जाने दो ।" हम लोग ब्राम्हण पारा पहुंचे तो चौक में बहुत से लड़के थे ।हम लोग सिर झुका कर चल रहे थे ।वीणा का घर चौक पर था ।अब मै अकेले जाने से घबरा रही थी ।वीणा के एक भैय्या मुझे आमापारा से आगे स्वीपर कालोनी तक छोड़ दिये ।वहां से हिन्दूस्पोर्टिंग मैंदान तक मैं अकेले चली गई ।

घर में माँ चिंतित थी पर उसे लग रहा था कि मैं किसी सहेली के घर पर होंगी ।कहाँ क्या हुआ यह सब भैय्या लोगों से सुनते रहे ।फोन तो था नहीं ।समाचार के लिये दूसरे दिन तक अखबार का इंतजार करो या रेडियो सुनो ।शाम को सब रेडियो के पास ही थे ।

रात को लोगों को एक ही चिंता थी कि लड़कियों को ऐसे ही छोड़ दिया गया ।दूसरे दिन के अखबार मे कोई भी खराब खबर नहीं थी ।स्कूल के शिक्षक कालेज के छात्रो की तारीफ कर रहे थे ।आज हम लोग ऐसा सोच भी नहीं सकते है ।स्कूल जाते या आते लड़कियों का अपहरण ,बलात्कार की घटनाएं हो रही है ।

लड़कियां समय पर लौट कर आ जाये ऐसा लगता है जब छेड़छाड़ के नाम पर फिल्मी गाने ही हुआ करते थे ।कभी कभी छोटे कपड़े पहनने पर कहते "कपड़ा नहीं है तो कल ला दें क्या ?कल ठीक से कपड़े पहन कर आना "कहीं घूर कर देख रहे है इससे आगे कुछ होता नहीं था ।पर आज लड़कियों पर होने वाली शर्मनाक घटनाओं ने भी भ्रूणहत्या की ओर बढ़ने को मजबूर कर दिया है ।

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