रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 5


मैं आज भिलाई से वापस आई तो पिछली कुछ बातें मुझे याद आने लगा ।
नेहरू जी के कहने पर लोगों ने भिलाई स्टील प्लांट के लिये अपनी जमीनें दे दी ।उनसे कहा गया था कि लोगों को नोकरी दी जायेगी ।कुछ को नोकरी मिली और बहुतो ने नौकरी को गुलामी समझ कर नहीं किया ।
बाहर के लोग काम करने आये ।जब गांव खाली हुआ ।तो कहीं पर मिट्टी के बरतन पड़े थे ,कहीं पर खेती के

औजार पड़े थे ।कुआं सुना पड़ा था ।ऐसा लगता था कि कुछ बिमारी फैलने के बाद गांव छोड़ दिया है।

कुछ समय के बाद साउथ से लोग आने लगे काम की तलाश में ।यहाँ पर बसने लगे ।पहले शायद सोमनी गांव पर बसाहट दिखी ।मेरे नाना जी का गांव छोटे महाका जाते हुये इन रास्तों को देखा करते थे ।भिलाई तीन में पुराने थाने के पास उतर कर पैदल रेल की पटरी ,ट्रेन के नीचे से निकल कर , पार करते थे।

सोमनी गांव के कुएं पर पानी पीने रुके तो मैंने देखा कि बच्चे पैसा पैसा चिल्ला रहे थे ।हम लोग देखे कि कमरे की मिट्टी की दीवार को बच्चे पत्थर से मार रहे थे तो सिक्के गिर रहे थे ।किसी ने अपने घर की दीवार पर मटके में पैसे गड़ा कर रखे थे ,ले जाना भूल गये ।

मेरी माँ अपने रिस्तों को याद करती रही और हम लोग गांव पहुँच गये ।ईस्पात नगरी मढ़रिया लोगों के क्ई गांवो पर बसाया गया है ।जोबा याने मड़ौदा डैम मेरे नाना जी की जमीन पर है ।प्लांट को पानी की जरुरत हुई तब नेहरू जी के पास समस्या रखी गई ।नेहरु जी दुर्ग आये ।रशियन लोगों ने डेम के लिये जमीन बताई और कहा यह दाऊ रामभरोसा की जमीन है इस पर डैम बनाना है और नेहरु जी स्वयं जमीन मांगने के लिये निकल पड़े ।राजकुमार कालेज से घोड़ा मंगाया गया और स्वयं वे मेरे नाना जी से मिलने चले गये ।नानाजी को दोस्त बना लिया और नानाजी ने जमीन दे दी ।वह जमीन सोना उगलती थी ,वहाँ चने की फसल होती थी ।

बाद में चौबीस रुपये में खरीदा गया कह कर पेपर पर दस्तखत कराने आये तो नाना जी ने कहा जमीन मैने दान में दिया है ,मेरे दोस्त को जरुरत थी । क्ई गांव खाली हुये आज उस पर कब्जा करके लोग रह रहे है ।क्ई सेक्टर बने ।रुही ।,रूआबांधा ,रिसाली ,सोमनी सम्पन्न गांव थे । स्टील प्लांट को देखकर अच्छा लगता है पर वहाँ के लोग खो गये ।एक इतिहास और संस्कृति खो गई ।कभी कुएं को देखकर याद आती है तो कभी सेक्टर के नाम से ।नाम की राजनीति यदि चल गई तो तो संस्कृति गजेटियर में ही दिखेगी ।यदि आज के लिखन वाले उसे खोज पायें ।

कारीकमरिया सुगंधित धान जिसकी खुशबु बस से दुर्ग जाते हुये रास्ते तक आती थी वह विकास मे दब गई ।वह इसी क्षेत्र की विशेष धान की प्रजाति थी ।कोदो से कुछ बड़ा बारिक चांवल था ।जब धान की बालियां हवा में हिलती थीतो मीलों उसकी खूशबू फैलती थी ।

कहीं पर बरगद पीपल आज भी है ।बहुत से पेड़ो को काटा नहीं गया ।आज भी गांवों में शाम को गरमी रहती है ।बाहर घूमने जाओ तो लोहे का वेस्ट फेकते है वह रेड हाट दिखाई देता है और अपनी गरमी का एहसास कराता है ।कुछ गांव को क्ई बार खाली करने कहा गया है पर वे लोग जाना नहीं चाहते ।पचास सालों में जो उन्होंने देखा है उसे दोहराना नहीं चाहते ,हमारी जमीन पर हम ही रहेंगे कोईऔर नहीं।

बैलगाड़ी ,खूशबू से भरे खेत ,रेल की पटरियां ,हर गांव के कुएं पर उतर कर पानी पीना ,तालाबों पर पैर धोना ,कमल के फूल के लिये रोना ,सब आज मेरे सामने है ।

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