रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 6


कल 27 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम जी नहीं रहे ।उन्होंने कहा था कि आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं तो मेरे निधन पर छुट्टी मत रखना ।ज्यादा काम करना ।ऐसा हुआ नही ।एक महान व्यक्ति की अंतिम ईच्छा ईच्छा ही रह गई शायद यह उनकी पहली और आखरी ईच्छा थी ।उन्होंने ने जो सोचा वह पूरा किया ।उनकी इस ईच्छा की पूर्ति तो दूसरों को करनी थी ।

मृत्यु और छुट्टी का गहरा सम्बन्ध है ।किसी की मौत किसी की खुशी हो सकती है ।हम लोग जब स्कूल में पढ़ते थे तो हर दिन सोचते थे कि आज कोई ऐसा व्यक्ति मरे जिससे हमें छुट्टी मिले और हमलोग फिल्म देखने जायें ।ऐसे दिन सिनेमाघरों में रौनक हुआ करती थी ।

मेरी सहेली थी ,वीणा तिवारी जिसके साथ मैं स्कूल जाती थी ।वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैया लाल तिवारी की पोती और पंकज तिवारी की बेटी थी ।उनके घर पर उसकी मौसी पढ़ने आई थी ।हम लोग बी एस सी कर रहे थे और वह बी ए में थी ।उसका नाम राधिका था ।

दिखने में बहुत ही सुंदर थी ।उसे एक बार बुखार आया फिर उतरा ही नहीँ ।वह कालेज जाना बंद कर दी ।एक दिन उसे डी के अस्पताल में भर्ती कर दिया गया ।हम लोग कालेज की तरफ से ही देखने चले जाते थे ।

वह बहुत ही खुशमिजाज थी ।वहाँ भी हसी मजाक करते रहती थी ।एक डा.शरण थे उन्हीं के कहने पर दवाई खाती थी ।एक दिन कहने लगी मैं इस डाक्टर से शादी करुंगी डा चुप रहते ।एक दिन बोले मेरी तो शादी हो गई है ।वह दुखी हो गई ।दूसरे दिन से फिर वही मजाक शुरु हो गया । वह अब खाना भी नहीं खाती थी ।अचानक तीन दिनों से वीणा कालेज नहीं आई ।मैं उसके साथ ही जाती थी ।उसने कहा था मुझे बुलाने मत आना ।मैं आ जाऊंगी । राधिका को ब्लड केंसर था ।

उसके पड़ोस की लड़की ने बताया की मौसी बहुत सिरियस है।हमारा पहला पिरियड 9-40 को रहता था मै नौ बजे उसके घर के पास से निकलती थी ।उनका घर ब्राम्हण पारा चौक में ही था । मैने देखा कि उसके घर के सामने पैरा पड़ा है ।जमीन गोबर से लीपा हुआ है ।मै समझ गई की मौसी राधिका नहीं रही ।कालेज गई तो धड़कन तेज थी ।पहिली बार किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हुई थी जिसकेसाथ रोज मिलते थे हंसी मजाक करते थे ।

कालेज में मैंने मैडम को बताया ।उस मोहल्ले केऔर लड़कियों ने भी बताया । आडिटोरियम हाल के सामने मै बैठी थी ।लड़कियों का झुंड आने लगा और बाते होने लगी ।कोई कह रहा था अच्छा हुआ आज पढ़ने का मूड नहीं था ।किसी ने कहाअब कल किसकी पारी है ,रोज एक लड़की को मरना चाहिए तो छुट्टी मिलते रहे गी ।बहुत से लोगों ने सिनेमा जाने का कार्यक्रम बनाया ।

शोक सभा हुई नहीं थी ।खुशियों का कार्यक्रम बन गया ।मुझे उसके साथ बिताए पल याद आने लगे ।अंतिम समय का दर्द दिखने लगा ।मेरा मन अंदर से रोने लगा ।शोक सभा हुई ।कालेज की छुट्टी हो गई ।मैं अकेले खड़ी थी ।सब लोग हंसते निकल रहे थे ।अलग अलग सिनेमाघरों की ओर सब चले गये ।कुछ लोग बचे थे ।एक ने मुझे भी सिनेमा चलने के लिये कहा मै चुप रही वह आगे चली गई ।

मैंने पहिली बार सोचा कि कोई अपना मरता है तो कैसा लगता है ।देश का कोई व्यक्ति मरता है तो वह सभी का होता है ।शोक तो शोक होता है ।फिर हम एक दिन किसी के लिये अपनी संवेदनायों को समर्पित नहीं कर सकते ? इस घटना ने मेरे मन पर बहुत ही घहरा असर डाला । मै किसी भी नेता की मृत्यु पर खुशियों का कार्यक्रम नहीं रखती हूँ ।अपने परिवार के लिये तो सभी करते है ।कभी दूसरों के लिये भी करके देंखे कितना अपनापन लगता है ।

आज कलाम हर घर के सदस्य बन गये है ।एक दिन उनकी ईच्छा केअनुसार ज्यादा काम करके देखें तो वे हमारे और करीब आ जायेंगे ।

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