रविवार, 1 मई 2016

कविता -हाँसत धरती

हाँसत धरती
मुस्कावत किसान
धरले नांगर
चलरे किसान
बतर बियासी के बेरा आगे ।
ओढ़ले खुमरी
धरले बेल पान
रद्दा म हावय धतूरा
दूध के धर लोटा
चल चल जाबो सिव धाम
हाँस़त धरती
मुस्कावत किसान
बारी बखरी हरियागे
कका दाई खुशी म मात गे ।
अंगना के मखना छानही म चघगे
बारी के खेखसी फरगे
खीरा ह दांत देखावत हे
अम्मारी पटवा पानी म नहावत हे
चल चलरे किसान
धर के नांगर ब्ईला
अउ धरले तुतारी
नाहवत हे खेत
तहूं नहा ले किसान
हाँसत धरती
अउ मुस्कावत किसान ।
सुधा वर्मा ,रायपुर

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