रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 82

हम लोग घूमने का कार्यक्रम बनाने लगे ।बहुत सोचने के बाद हम लोग पूरी जाने का सोचे।तैयारी करने लगे थे कि मेरे मन मे आया कि सास ससुर को भी ले जाते है ।आखिर माँ बाप हैं ।फिर पति ने कहा कि मुन्नी को भी ले चलते है ।आखिर बहन है ।शादी के बाद घूम पायेगी कि नहीं ? इन्होने नीचे सास ससुर और मुन्नी से भी चलने को कहा । सब तैयारी मे लग गये ।

रास्ते में खाने के लिये रोटी सब्जी सास ने बनाया था।मैं कुछ सूखा नास्ता और फल बिस्कुट रख ली थी ।चौका अलग हो चुका था ।यह यात्रा हमें पास ला रही थी ।पूरा खर्च हम लोग कर रहे थे तो सास ससुर बहुत खुश थे । घर से सब सुबह निकले और रेलवे स्टेशन पहुँच गये ।मेरी ननंद पहली बार ट्रेन मे बैठी थी । रायपुर से पुरी तक के रास्ते की हरियाली मन को मोह रही थी ।सभी खेत एक से थे बस अंतर था तो मेड़ पर लगे पेड़ो मे पलाश,बबूल,सीरसा, की जगह नारियल के पेड़ आ गये थे ।सागोन सभी जगह की शोभा बड़ा रहे थे।

सुबह  भुनेश्वर पहुँच गये । पास में ही भुनेश्वर  होटल था ।पांच मिनट पैदल चलने के बाद आ गया ।हम लोग वहाँ दो कमरा किराये पर लिये ।नहा कर तैयार हो गये ।उसी दिन बस से पूरी मंदिर के दर्शन के लिये निकल गये ।

पुरी पहुँचने के बाद पैदल मंदिर तक गये ।पूरा मदिर आराम से देख लिये ।वहाँ पर एक कल्प वृक्ष है ।उसमे मैने बच्चे के लिये एक धागा बांधा ।मंदिर का पट बंद हो चुका  था ।पंडा ने कहा कि पैसे दो तो अंदर से दर्शन करा देंगे ।पति ने उसे पचास रुपये दिये । वह पंडा हम लोगों को बाजू के दरवाजे से अंदर ले गया ।हम लोग जगन्नाथ भगवान के सामने खड़े थे ।वहाँ पर आरती हो रही थी ।एक थाल मे भोग रखा था ।जगन्नाथ भगवान की मूर्ति के सामने हम लोग बिल्कुल छोटे से लग रहे थे ।अच्छे से दर्शन हो गया ।अंदर में काउंटर से सूखा प्रशाद खरीदे । बाहर निकल कर महाप्रशाद खरीदे । वापसी मे लोहे के स्तंभ के पास बैठ कर मेरी सास ने कहा कि भगवान अब एक बेटा बेटी हो जाये तो फिर दर्शन करने आयेंगे ।तुरंत मेरे ससुर ने कहा कि चलो एक बार आ गये अब क्या बार बार आयेंगे चलो ।मेरी सास बहुत जोर से हँस दी ।

मंदिर से निकलने के बाद हम लोग पूछते हुये हिंद महासागर की ओर बढ़ गये ।दो बजे से आगे घड़ी का काटा सरक चुका था ।रास्ते में एक साधारण से होटल मे हम लोग खाना खाने बैठ गये ।वहाँ पर एक बड़े से थाल मे मछली साफ करके  रखे थे ।मेरी सास ने कहा कि हमारे खाने के बाद इसे छौकना ।उसने हाँ कह दिया ।खाने बैठे वैसे  ही मछली छौक दी पर मेरी सास तो खा ली पर मै गंध की वजह से नहीं खा पाई ।खाना पत्तल पर परसा गया था । मेरी सास ने पूरा पत्तल उठा कर रख ली और मुझे हाथ धोने के लिये भेज दी ।हम सब समुद्र की ओर बढ़ गये ।रास्ते मे एक घर के बाहर चबूतरा बना था ।सास वहाँ पर बैठ गई तो हम लोग भी बैठ गये ।वहां पर वह मुझे पत्तल के खाने को खाने के लिये बोली ।वहीं पर मै बैठ कर खाना खाई ।ऐसा महशूस हो रहा था कि भिखारी हैं ।मुझे बहुत खराब लग रहा था ,पर सब मेरे बाजू मे खड़े हो गये थे कि रास्ते चलने वाले न देखें ।उसी समय घर के लोग बाहर आ गये और मुस्कुराने लगे ।स्वर्गलोक जा रहे हो ? हम लोग चुप रहे ,कुछ समझ मे नहीं आया ।हम लोग आगे बढ़ गये ।

समुद्र के किनारे पहुँच चुके थे ।अथाह पानी अरब सागर की याद दिला रहा था ।पर यहां बहुत से सीप और छोटे छोटे शंख बिखरे थे ।मै उसे बीनने मे लग गई ।सास अपने कपड़े के थैले से नारियल निकाली ,कुछ फूल भी रखी थी ।फिर ससुर जी से  पैसे ली ,एक रुपये का सिक्का और सब लोगों को हाथ लगाने बोली ।सबने उसे छुआ फिर सास ने उसे समुद्र की लहरों मे फेक दिया ।फूल और नारियल को लहरों के साथ आते जाते देखते रहे और वह आंखो से ओझल हो गया ।शाम होने लगी थी ।सूरज क्षितिज की ओर पहुँच चुका था ।उस डुबते सूरज की लालिमा से समुद्र की गहराई का आभास होने लगा ।उसकी विशालता को मन मे लेकर लौट चले ।बस स्टेंड पहुंच कर भुनेश्वर के लिये बस पकड़ कर भुशेश्वर पहुच गये ।

मै बहुत से सीप और शंख लाई थी उसे कमरे के कोने मे रख दी थी ।रात को नींद मे भी मुझे समुद्र दिखाई दे रहा था ।सुबह नींद खुली तो लग रहा था कि रात भर समुद्र के किनारे मे ही घूम रही थी ।दूसरे दिन बस से कोनार्क गये ।समुद्र के किनारे बना यह मंदिर अद्भुत है ।वहाँ के एक होटल मे खाना खाये और मंदिर की तरफ चले गये ।मंदिर को सूर्य मंदिर कहते है ।यहाँ पर पूजा नहीं होती है । मंदिर के बाहर की तरफ सूर्य भगवान की मूर्ति बनी है ।सूर्य की पहली किरण एक मूर्ति के पैरों पर पड़ती थी तो पश्चिम की किरणे दूसरी तरफ की मूर्ति के पैरों पर पड़ती हैं ।मंदिर बब़े बड़े आठ चक्के पर बना है ।चक्के के ऊपर खुदाई से मूर्तियां बनी हुई है।मंदिर के बाहर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं ।मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया गया है ।मंदिर के अंदर नहीं जा सकते है ।समुद्र उस मंदिर से दूर है ।मंदिर के बाहर भी मंडप बने हैं ।इसे देखकर हम लोग चाय पी कर बस से पीपली गये ।बस वहीं तक जा रही थी ।

पीपली मे एक टेबल क्लाथ खरीदे ।वहा पर बहुत से घरों मे एप्पलिक वर्क का काम होता था ।कुटीर उद्योग अच्छे से फल फूल रहा था ।पीपली एक गांव है ।उस गांव के लोग एप्पलिक वर्क का काम करते है ।इस कारण इस काम को  पीपली वर्क भी कहते है ।चादर ,टेबल क्लाथ, वाल हैंगिग ,लैम्प शैड ।कुशन कवर इत्यादी बनाते हैं ।

यहाँ के होटल मे चाय पी कर बस के लिये खड़े हो गये ।अब आठ बज गये थे ।जो भी बस आती  वह विपरीत दिशा की ओर जाती थी ।एक ने बताया कि अब भुनेश्वर के लिये बस नहीं मिलेगी ।हम लोग घबरा रहे थे ।इतने मे एक मेटाडोर आई ।कुछ सामान छोड़ने के बाद वह वापस भुनेश्वर जा रही थी ।उसमे कुछ लोग बैठ रहे थे ।एक लड़का बोला कि ये लोग भुनेश्वर जायेंगे बैठा लो ।सभी लोग मजदूर थे तो हम लोग बैठने मे झिझक रहे थे ।वह लड़का बोला माँ बैठो नहीं तो यही रास्ते मे रात को सोना पड़ेगा ।

मेरे पति ने पूछा कि कहां छोड़ोगे? तो वह लड़का बोला होटल मे छोड़ देगा ।वह बस किराया के बराबर पैसा ले लिया ।कुछ लोग खड़े थे।कुछ लोग  बैठ गये ।एक आदमी मेरे ननंद के पास खड़ा था ,बार बार ननंद से टकरा रहा था  तुरत एक लड़के ने हम लोगों को बैठा दिया और सबसे बोलने लगा कि टूरिस्ट है ।"जगह दो जगह दो, माँ हैं"।सब चुप हो गये और हम लोग बहुत मजे से बैठकर आ गये ।हम लोगों को खाना खाना था इस कारण पति ने कहा कि रोड मे छोड़ दो तो वह सुन नहीं रहा था ।वह बोला  नहीं आप को होटल मे ही छोड़ुंगा ।वही पर आप लोग खाना खा लेना । हमको बोला गया है कि  होटल मे छोड़ना  जो वहीं छोड़ुंगा ।हमें जिसने इस गाड़ी मे बैठने के लिये कहा था उसने इससे कहा था कि ठिक से होटल मे छोड़ना तो वह उसी की बात को मान कर  हमें रास्ते मे छोड़ना को तैयार नहीं हुआ ।

मेटाडोर मे अंत मे हम लोग  ही बचे थे ।हम सब लोग बोले तब वह हमे होटल के पास एक दूसरे होटल मे छोड़ा।हम लोग खाना खा कर पैदल होटल पहुँच गये ।तेईस नवम्बर को मेरा जन्मदिन बहुत अच्छे से बीत गया।उस दिन मेरी ननंद का जन्मदिन भी रहता है ।हम दोनों बहुत खुश थे । तीसरे दिन नंदनकानन बगीचा और चिड़ियाघर देखने गये ।बाटेनिकल गार्डन गये ।शाम को होटल आ गये ।चौथे दिन याने पच्चीस तारीख को बस से भुनेश्वर घुमे ।लिंगराज मंदिर ,राजारानी मंदिर देखे ।दो गुफा देखे ।रात को निकल कर दूसरे दिन रात तक रायपुर आ गये ।

उड़ीसा के लोग याद आते रहे ।बहुत सरल लोग मिले ।होटल का मैनेजर भी बहुत अच्छा था ।पीपली की घटना याद आती रही  इतने अच्छे लोग जिन्होने प्यार से बैठाया , हमे अपने होटल के पास छोड़ा ।चाहते तो ज्यादा पैसा ले सकते थे पर ऐसा नहीं हुआ ।हर समय हमें अच्छे लोग मिले ।एक यादगार यात्रा थी ।यह हमारे सास ससुर और मुन्नी के साथ की आंतिम यात्रा थी ।बच्चे के साथ याने नाती नातिन के साथ एक बार और आने का वायदा किया था सास ने ।

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