हम लोग दिल्ली घूमने जाने का सोच रहे थे ।अपूर्व के तिरंगे और लालकिला का प्यार देख कर लगता था कि उसे यह सब एक बार दिखा दें ।अपूर्व आठ साल का था जब हम लोग दिल्ली घूमने के लिये निकले । सात सितम्बर सन् उन्नीस सौ अनठियानवे को हम लोग यहां से दिल्ली के लिये निकले।शाम को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से निकले ।आराम से ,रेल मे अपूर्व खेलता रहा और हम लोग दूसरे दिन रात दस बजे दिल्ली पहुंच गये ।
नई दिल्ली मे उतर गये ।सामने ही "यात्री निवास" था ।हम लोग रिक्शे से वहां पहुचे ।पता चला कि वहां एक हजार रूपये तक का कोई कमरा खाली नही है। अब दूसरे होटल की तलाश में निकल गये ।रात को एक होटल मिला ।यहां रात भर रुके और दूसरे दिन याने दस अक्टूबर को एक होटल "indo continental " मिला ।हमलोग 11-30 को यहीं एक कमरा एक हजार रुपये प्रति दिन के हिसाब ले लिये । इस दिन हम लोग आराम किये ।अपूर्व के पापा अकेले ही आस पास घूम लिये ।खाने के लिये होटल देख कर आ गये।
पहले दिन जिस होटल मे रुकने थे वहा रात को ग्यारह बजे ले देकर बचा हुआ खाना लाया ।एक रोटी जो सूख चुकी थी ।थोड़ी सी सब्जी ,जो शायद कढ़ाई से चिपकी हुई रही होगी जिसे चम्मच से रगड़ कर निकाला गया था ।एक कटोरी चाँवल था।151 रुपये का एक थाली खाना था ।फिर एक गिलास दूध लिये ।
दूसरे होटल मे खाना भी मिल रहा था ।हम लोग दोपहर को नहाँ कर यही नहा कर खाना खाये ।यह तीन सितारा होटल था और कुछ दिन ही पहले खुला था। खाना 150 रूपये थाली था ।करीब ग्यारह बजे पैदल ही घूमने निकल गये ।आटो से प्रगति मैदान के अप्पू घर पहुंच गये ।साढ़े बारह बजा था ।एक घंटा घूम कर बाहर आ गये ।यहाँ से पैदल ही गुड़िया घर ( डॉल म्यूजियम ) पहुंच गये ।गुड़िया मुझे बहुत पसंद है ।कपड़े की गुड़िया मै बनाती भी हूँ।मुझे तो लग रहा था कि किसी सपनों की दुनिया मे पहुँच गई हूँ ।वहाँ से 35 रूपये में आटो करके होटल वापस आ गये ।अपूर्व बहुत थक चुका था ।शाम को आठ बजे खाना खाने गये ।
शाम को घूमने निकले थे ।तभी एक होटल जो ये देखकर गये थे हम लोगों को वहाँ ले गये।उसका नाम था "गुरुदेव दा बासा " (होटल )।हम लोग रोज रात को वहाँ खाते थे ।अपूर्व रोज दस रुपये का एक प्लेट खीर और 1-50 पैसे की एक तवा रोटी खाता था ।एक दो बार पास के एक होटल मे खाये थे तो वहाँ पर जले तेल की बदबू आती थी ।बहुत तीखा खाना रहता था ।रात को खाना खाने के बाद हम लोग वापस आ रहे थे ।हमारे पास डबल रोटी थी हम लोग उसे फेकने के लिये जगह ढुढ़ते रहे कहीं नही दिखा ।एक जगह कुछ झोपड़ी थी वहाँ पर कचरा फेकने की जगह लग रही थी पर साफ थी ।हम लोग वहां डबल रोटी रखे तो कुछ लोग आ गये ,क्योंकि वह पेपर से लिपटा था ।एक पुलिस वाला उस डंडे से हिला कर पेपर निकाला और बहुत से लोग घेर कर खड़े हो गये ।मै पलट कर देखी तो मेरी नजर उन लोगों से मिली तभी एक आदमी ने कहा कि यहाँ कुछ फेकना नही ,चारो तरफ पुलिस है ।बम के धोखे मे पकड़ लेंगे ।हम लोग चुपचाप आ गये ।कमरा सीढ़ी से चढ़ते ही पहिली मंजिल मे था ।दो तरफ बड़ी बड़ी खिड़की थी ।बढ़िया पर्दे लगे थे।पूरे कमरे और वरामदे मे गलीचे बिछे थे ।अपूर्व बहुत खुश हो गया था ।
दूसरे दिन ग्यारह अक्टूबर को ए सी बस होटल से ही हमें लेकर गई ।150रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से तीन सीट बुक किये थे ।पूरा दिल्ली घूम लिये ।सुबह सात बजे निकले थे ।सबसे पहले लाल किला देखे ।यहाँ पर अपूर्व ने तिरंगे के साथ लाल किला की बहुत सी फोटो खिंचीं ।अंदर राजा का सिंहासन देखे और कपड़े ,बर्तन की प्रदर्शनी देखे आकाशवाणी,दूरदर्शन,बिड़ला भवन ,राजपथ ,इंडियागेट ,पार्लियामेंट ,नेहरु भवन,इसी के पास नक्षत्र शाला ( प्लेट़ोरियम )है राज घाट, शक्ति स्थल,लोटस टेम्पल देखे ।कमल के फूल की तरह है ,इसकी आठ पंखुड़ियां है ।अंदर एकदम शांत वातावरण है ।बस से उतरने के बाद बहुत लम्बा चलना पड़ा।कुतुबमीनार पास से देखने पर बहुत ही सुंदर लग रहा था ।इसमें नक्कासी है साथ ही कुरान की आयतें लिखी हुई हैं ।शाम को सात बजे हम लोग होटल वापस आ गये ।दोपहर का खाना ताल कटोरा स्टेडियम मे खाना खाये थे ।रात को होटल मे खाना खाने के बाद वापस आ कर सो गये ।
दूसरे दिन हम लोग आगरा मथुरा और वृंदावन गये ।सात बजे निकले और पहले ताजमहल देखने गये ।रविवार होने के कारण बहुत भीड़ थी ।एक सेव और पारले बिस्कुट का पैकेट नही ले जाने दिये तो उसे रख कर टोकन लेने मे मुझे बहुत समय लग गया । अंदर गये तो बहुत ही मजा आ गया ।सच मे यह एक अचरज ही है । इतना सफेद और ऊंचा है कि वास्तव मे लगता है कि इसे कैसे बनाया गया होगा ?
वापसी मे मथुरा गये ।करीब साढ़े सात बजे पहुंचे थे ।बहुत बड़ा सा मंदिर है ।बगल मे ही मस्जिद बन रहा था ।हम लोग जैसे ही मंदिर प्रांगण मे पहुंचे वैसे ही एक इंट का टुकड़ा मस्जिद से नीचे गिरा ।कुछ पुलिस बंदूक लेकर आ गये। पूरा दृश्य फिल्म की तरह लग रहा था ।मंदिर के लोग भी दौड़ते आये ।एक ने चिल्ला कर पूछा "क्या हुआ ?" थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा ।मस्जिद के ऊपर से आवाज आई " कुछ नहीं एक ईंट गिर गई है !"मंदिर से लोग बोले ठीक है ,और सब अपने काम मे लग गये ।पता भी नहीं चला कि तनाव हुआ था।
हम लोग कारागार देखे जहाँ पर कृष्ण का जन्म हुआ था ।बड़े बड़े पत्थरो से उसकी दीवार बनी है ।एक सकरा रास्ता पार करने के बाद हम लोग उस कारागार के कमरे मे गये जहां पर कृष्ण पैदा हुये थे ।एक बड़ा मा पत्थर का चबुतरा बना हुआ है ।उस पर बेल बुटे बने हैं।उस कमरे की दीवारों पर लाल निशान है जो खून की तरह है ।खून छिटके हुये भी दिखते है ।यह उस बात के प्रमाण हैं जब कंस ने देवकी के बच्चो को दीवार पर पटक कर मारा था।यह सच लगता है क्योंकि एक सांप को हमारे घर पर पत्थर पर मारा गया तो उसको लाल तांबे की तरह का निशान पड़ गया जो कभी नही मिटा ।वहाँ से निकल कर बाहर आये तो देखे कि बाहर भी बहुत पुलिस थी ।हम लोग अब वृंदावन की ओर चले गये ।यहां मथुरा के पेड़े लिये ।आगरा मे आगरा का पेठा लिये ।
रात को यहाँ से बाइस किलोमीटर दूर वृंदावन पहुंचे तो सिर्फ बांके बिहारी का मंदिर ही देखे ।यहाँ कई गलियाँ भूल भुल्लैया लग रही थी ।मै और अपूर्व ही मंदिर देखने गये ।वहाँ की दही खरीद कर खाये ।यहां से सवा नौ बजे निकल कर करीब निकले और एक खुले रेस्ट्रा मे खाना खाये ।बहुत बड़ा था ।एक बजे रात को होटल पहुंचे।
12 अक्टूबर को हम लोग होटल से निकल कर साढ़े ग्यारह बजे खाना खाकर आटो से पालिका बाजार चले गये ।आटो का तब बारह रूपये दिये थे ।हम लोग एक बजे पालिका बाजार के गेट नम्बर एक पर खड़े थे ।वहां पर मेरी बहन के बेटे विवेक और मनीष मिलने आये थे ।विवेक वही रहता था और मनीष मारुति मे साक्षात्कार देने गया था ।हम लोग साथ मे ही घूमें।वे दोनों स्कूटर पर थे और हम लोग आटो में थे ।पालिका बाजार मे कुछ कपड़े खरीदे और नेहरू प्लेनेटोरियम गये ।वह सोमवार होने के कआरण बंद था ।वहां से साइंस म्यूजियम गये ।45 रूपये आटो वाले को दिये ।शाम हो गई थी हम लोग होटल आ गये ।साइंस म्यूजियम मे सबसे अच्छा लगा पतंगो का जीवन चक्र।इसमे अंडे से पतंगे तक को एक पुट्ठे पर चिपका कर रखा गया है ।बहुत से जानवर मै पढ़ी थी पर वहां पहली बार देखी ।गणित को लकड़ी के ब्लाक से समझाया जा रहा था ।रात को खाना खाने गये और वही खीर और रोटी खा कर आये ।
13अक्टूबर को सुबह आठ के पहले तैयार होकर निकल गये ।40 रूपये मे आटो करके रेल म्यूजियम देखने चले गये ।नौ बजे पहुँच गये और साढ़े नौ को अंदर चले गये ।बहुत अच्छा लगा लकड़ी की रेल से अब तक की रेल ।देश आजाद हुआ उस समय का रेल्वे स्टेशन का कमरा कैसा था ।यहाँ से हम लोग इंदिरा गांधी स्मारक गये ।यह 7-सफदरगंज रोड पर है ।वहाँ पर एक प्रदर्शनी लगी है जो इंदिरा गाधी के निवास स्थान पर ही है ।उनकी सारी चीजें वहा रखी है।यहां तक का आटो का 20 रुपये था ।यहां से 10 रूपये में नेहरू प्लेनेटोरियम गये ।वहां पर सेवन वांडर ( सात आश्चर्य ) देखे ।अपूर्व तो आंख बंद ही नही कर रहा था ।हमारे लिये तो आश्चर्य था ही, पर उस आठ साल के बच्चे के लिये तो और भी आश्चर्य था ।यहां से बाल भवन गये ।वहाँ का म्यूजियम ढाई बजे खुलता है तो हम लोग करीब एक घंटा बैठे रहे ।अपूर्व वहां पर मन से खेलता रहा।म्यूजियम खुलने पर देख कर हम लोग आटो से चांदनी चौक पराठा गली मे आ गये। आटो वाले ने 20 रुपये लिये ।उस गली को बहुत खोजना पड़ा जब मिला तो इतनी देर हो गई थी कि बिना खाये वापस आ गये ।
हम लोगों को होटल मे छोड़कर ये रेलवे स्टेशन गये ।प्लेट फार्म का नम्बर और रेल का समय देख कर वापस आ गये ।रात को खाना खाने गये ।वहाँ से ब्रेड खरीद कर लाये ।रात को मै और अपूर्व सो गये ।ये रात को जागते रहे ।तीन बजे रात को उठा दिये ।मै और अपूर्व नहा कर तैयार हो गये ।कमरे के अलावा चाय दूध और कभी खाये थे उसका पैसा दिये ,बैरे को टिप दिये होटल वाले ने आटो बुला दिया ।हम लोग समान सहित 3-30 को होटल छोड़ दिये ।20 रपये मे आटो और 25 रुपये बैरे को दिये ।नौ नम्बर के प्लेट फार्म पर आ गये।गाड़ी आधा घंटे लेट थी ।विवेक और मनीष भी आये थे ।चार बड़े बैग लेकर आये थे जिसे रायपुर लाना था ।विवेक दिल्ली छोड़ रहा था ।यह सामान उसी का था ।रेल सवा छै बजे छूट गई ।दोपहर और रात का खाना रेल में ही खाये ।
पंद्रह अक्टूबर को सुबह रेल मे ही ब्रेड पकोड़ा खाये।रेल साढ़े बारह बजे दोपहर को रायपुर पहुंची ।15 रूपये कुली और 30 रूपये रिक्शे वाले को देकर घर पहुंच गये ।पुरी की यात्रा से यह दिल्ली की यात्रा बहुत सुखद थी ।अपूर्व के लिये बहुत सी दवाई लेकर गये थे ।
यहां पर हमें किसी ने धोखा नही दिया ।आटो से लेकर होटल के कमरे तक के लिये बार्गेनिंग करनी पड़ती है यह पता नही था ।यहां तक टेक्स के नाम पर जो पैसा लेते थे वह भी छोड़ देते थे ।माँ बेटे दोनों स्वस्थ्य रहे ।आगरा जआते समय हमारे बस के पहले की बस की टक्कर हो गई थी ।बस का अगला हिस्सा पिचक गया था ।भगवान को धन्यवाद की हम लोग सही सलामत वापस आ गये थे ।अपूर्व ने बहुत फोटो खींची ।वह हमेशा आगे चलता था ।वह कहीं गुम न जाये यह डर बना रहता था ।टूरिस्ट बस वाले ने बहुत लुटा ।हम तीन सितारा होटल मे थे तो हमसे ए सी बस के नाम पर चार सौ प्रति व्यक्ति और किसी से तीन ,दो और अस्सी रुपये भी थे ।इस बात को लेकर बस मे बहुत लड़ाई भी हुई ।इस यात्रा ने एक सकारात्मक सोच दी ।राजधानी देखने की इच्छा पूरी हुई ।सबसे बड़ी बात अपूर्व ने उस लाल किला और तिरंगे को देखा जो उसके हर चित्र मे रहता था ।वह बहुत खुश था ।वहा से आने के बाद उसने हुबहु लालकिले का चित्र बनाया ।वह अपने दोस्तो को किले की बात और प्रदर्शिनी की बाते बताता था ।पूरी का समुद्र और दिल्ली का लाल किला और सात आश्चर्य उसके लिये बात करने का विषय बन गया था ।सात अक्टूबर को निकले थे और पंद्रह अक्टूबर को घर आ गये पर ऐसा लगा कि हमने बहुत बड़ी दुनिया देख ली ।
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