गुरुवार, 5 मई 2016

कविता -हाँसत बिहनिया

हाँसत बिहनिया
आगे मोर अंगना
चिर ई चिरगुन चहके लगिन
गुलाब चमेली महके लगिन
धान के बाली सोन कस दिखे लगिस
सुरूज के सोनहा किरन
डारा पाना म नाचे लगिस
नान नान  लहरा ल दऊंड़ा के
तरिया के पानी हांसे लगिस
बछरु मेछरावत हे
बहुरिया लुगरा ल मुंह म
चपक के हाँसत हे
लइका ह कांख कांख के
बोरिंग ल टेरट हे
हंऊला ह पिंवरा दांत ल
निपोरत हे
वाह रे बिहनिया
कइसन खलखला के हांसत हे
हाँसत बिहनिया
बड़ सुग्घर लागत हे
सुधा वर्मा ,रायपुर
1-10-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें