रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 90

जीवन में कभी कभी चमत्कार भी होते है ।इतने दिनों की तकलिफ के बाद कुछ खुशियां दरवाजे पर तस्तक देने लगी।आपरेशन के चार माह के बाद मेरे पेट मे अचानक फिर दर्द उठा ।शाम का वक्त था ।मेरे पति बैंक से आये तो मै उनको बताई ।वे तुरंत डाक्टर आचार्या के पास लेकर गये ।पूछताछ करने के बाद तुरंत मैडम ने डाक्टर साहू के यहाँ सोनो ग्राफी के लिये भेज दिया। रात को साढ़े आठ बजे रिपोर्ट आई ।उस दिन मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन दिन था ।उस दिन मैने भ्रूण को अपने अंदर घूमते हुये देखा और उसकी धड़कन सुनी ।वह टक -टक की नहीं टाक-टाक की आवाज थी ,एक तेज धड़कता जीवन दिखाई दिया ।अब तक कभी देखी नही थी ।एक चार माह के बच्चे के जाने के बाद एक आने वाले बच्चे की धड़कन सुनना बहुत ही रोमांचक था ।मैडम उस दिन रात को नागपुर जाने वाली थी हम लोग नौ बजे मैडम के पास गये  ।मैडम तो खुशी से फूली नही समा रही थी ।शायद मै भी खुश हो रही थी पर पांच बच्चे को खोने का दर्द खुश होने नही दे रहा था ।तभी मैडम ने भी कह दिया कि यह बच्चा नली के पास ही है ।यह किस तरफ बढ़ेगा कुछ कह नही सकते है ।इस कारण बिल्कुल आराम करो उचकना नही ,कूदना नही और शरीर को धक्के से बचा कर रखना ।खतरा तो है ।

मैडम ने कुछ दवाई दी और अगले महिने आने को कहा ।एक माह के बाद गई तो फिर सोनोग्राफी हुई ।पहले मै एक माह सात दिन का भ्रूण देखी थी ।अब करीब ढाई माह का देख रही थी ।हर माह लक्षण बदलते रहे।दवाईयां सूट नही करती थीं।तो मुझे लोहे के कढ़ाई मे सब्जी बनाने के लिये बोली ।लोहे के झारा डुआ का उपयोग करती थी ।अब तक करती हूँ ।पीतल कांसे के बरतन का उपयोग करने के लिये कहा गया ।चटनी पीसने के लिये सिलबट्टे का उपयोग करती थी ।इससे सिलिका मिलता था ।खाने मे भी दलिया और भाजी के साथ हरी सब्जियो का उपयोग करती थी ।उस डाक्टर ने मुझे पुरी तरह से प्राकृतिक चीज़ो का उपयोग सिखाया और स्वस्थ्य रखी ।कोई भी दवाई नही खा पाती थी ।एसिडिटी होती थी और उल्टी हो जाती थी ।

घर के बाहर मैने तीन अमलताश के पेड़ लगाये थे ।उसमे से एक पेड़ बचा था ।उम्र पांच साल और ऊंचाई करीब दस फीट थी।एक दिन शाम को मैने देखा की करीब पांच फीट की ऊंचाई पर पांच सात अंगुर के दाने की तरह कुछ लटका है ।मै घर के बाहर जाकर देखी तो अमलताश के फूल का एक गुच्छा था ।मेरे मन मे बहुत ही खुशी हुई ।अब घर मे फूलों की बहार होगी मन मे ऐसे विचार आते रहते थे ।

फिर मैने चार माह के बच्चे को देखी पूरी तरह से हिलते हुये।वैसी ही ऊंगलियां और वैसे ही पैर ।आँखे पलक से ढकी हुई थी।बाल नही आये थे ।पांच माह होने को थे ।सब पूछते थे कि बच्चा हिलता है ? तो मुझे आश्चर्य होता ,मुझे तो कोई आभास नही होता ।माँ अक्सर यह सुनकर दुखी हो जाती थी ।मैने महाशिवरात्री को घर पर पूजा रखी ।माँ काका ,दीदी ,जीजाजी आये थे ।पूजा खतम हो गई दोपहर का खाना खाकर सब आराम करने लगे ।माँ तो माँ है ,वह मुझसे पूछती है कि कुछ हिलता है ? मैने कहा "नहीं"।शाम को चार बजे जब हम लोग लेटे थे तो मुझे नींद मे ऐसा लगा कि पेट के अंदर कोई चीज तैर रही है ।मै उठ कर बैठ गई ।यह मेरा पहला अनुभव था ।मुझे कुछ गुदगुदी सी हुई ।माँ को बताई तो माँ ने चैन की सांस ली ।माँ ने तब बताया कि शरीर तो बन जाता है पर उसमे प्राण चार माह मे ही आता है ।तभी बच्चा हिलता डुलता है ।यह बात तो मुझे समझ मे नही आई ।

अब हर माह बच्चे को सोनोग्राफी मे  देखती थी ।उसकी आँखे खुली हुई देखी तो डर गई कि बच्चे की आँख खराब तो नही है ।मेरे सैकड़ों पश्न का उत्तर आचार्या मैडम देती थी ।कुछ प्रश्न सोनोग्राफी वाले डाक्टर साहू से पूछती थी ।ये लोग मुझे बहुत समय देते थे ।शुरु के दो माह दीदी के घर पर रही ।फिर माँ के घर आती जाती थी ।एक बार कुछ ज्यादा तकलिफ हो रही थी तो रात को आठ बजे मैडम के पास गये ।मैडम देखी और कुछ दवाई लिख कर दे दी ।इन्होने अचानक कहा कि मुझे बच्चा नही चाहिये।मै चाहता हूँ ये ठीक रहे ।इतनी तकलीफ को यह सह नही पा रही है।रात भर सोती नही है ।हमारा परिवार नही है कि इसको कोई देखे।डाक्टर सकपका गई ।मै भी सोचने लगी कि ये क्या बोल दिये ।

हम लोग रात को पैदल ही डी के हास्पिटल के सामने लक्ष्मी मेडिकल से दवाई लिये और पैदल ही शंकर नगर आये ।मै चल नही पा रही थी ।बार बार बोलते "अब बच्चा नही चाहिये बहुत हो गया ।इतनी तकलीफ देख कर मै परेशान हो गया हूँ।" हम दोनों  ही चुप रहते थे ।अब शादी के बारह साल के बाद घर में खुशी आ रही थी तो बैंक के मैनेजर ने इन्हे तीन बजे घर भेजना शुरु कर दिया ।ऐसे मैनेजर फिर कभी नही मिले ।अगले महिने मैडम ने कहा कि बच्चे का वजन कम है पर बिलकुल ठीक है ।उसका विकास भी ठीक हो रहा है ।ज्यादा तकलिफ होगी तो मै इसे सात माह मे आपरेशन करके निकाल दुंगी ।बच्चे को कुछ नही होगा।अब तो हम दोनों ही खुश थे क्योंकि सातवां महिना आ गया ।अब पूरी उम्मीद थी कि बच्चा ठीक ठाक पैदा होगा ।इस विश्वास को मैडम ने अपनी बातों से भी पूरा कर दिया ।सातवें महिने के सोनोग्राफी मे मैने पूरी हड्डियों को देखा । हाँथ, पैर ,और रीड़ की हड्डी को देख कर बहुत अच्छा लगा ।मैडम ने कहा कि बच्चे की जिम्मेदारी मेरी है बस तुम थोड़ा चलना शुरु करो ।बच्चा आपरेशन से ही होगा ।

मै अपनी माँ के पास चली गई ।ये अपने ही घर पर थे ।एक एक दिन गिन रहे थे ।मैडम के चेहरे की निश्चितंता हमारे आत्मविश्वास को बढ़ा रही थी ।देखते देखते नौ महिने गुजर गये ।डाक्टर ने दो दिन के बाद भर्ती होने के लिये कहा था पर मै नही गई ।कुछ महिलाओं ने कहा कि रुक कर जाओ ।तकलिफ हो तो जाना ।पर मुझे तेरह जुलाई को शाम को  तकलिफ शुरु हुई ।मेरी सहेली डाक्टर है उसने कहा चिंता मत कर कल आराम से खाना खाकर जाना ।तकलिफ बढ़ने लगी ।मेरी भाभी भी आई थी ।मेरे पति अपने घर मे थे ।माँ  के घर मे एक किरायेदार रखे थे ।उस साल जून मे बहुत ओले गिरे थे और जुलाई मे बारिश शुरु नहीं हुई थी ।बहुत गर्मी थी ।

रात को दस बजे रिक्शा बुलाकर मुझे बैठा दिये ,हास्पिटल जाने के लिये ।किरायेदार की स्कूटर मे मेरी भाभी इंदू बैठ गई ।रिक्शा और स्कूटर साथ साथ चलने लगे ।बस उसी समय तेज हवा चलने लगी ।मै हास्पिटल मे पहुँच गई ।मुझे एडमिट कर लिये ।बच्चा नार्मल हो इसके लिये सूई लगा दिये ।समय है करके ये लोग मेरे पति को बुलाने चले गये ।तब तब तूफान शुरु हो गया ।ये लोग हमारे घर पहुंचे तब तक बारिश भी शुरु है गई ।हमारे घर के गेट के ऊपर की बेल पूरी गिर चुकी थी ।गेट खटखटाने से और आवाज देने से भी अंदर सुनाई नही दे रहा था ।वैसे भी मेरे पति कभी भी घंटी बजाने से या आवाज देने से उठते नही थे ।अंदर कूद कर खिड़की से आवाज देने पर उठे ।सब बात सुनकर  रेनकोट पहन कर तुरंत हास्पिटल की तरफ चल पड़े ।मै दर्द मे पड़ी थी और दो बजे रात को  सब भीगे हुये पहुंचे ।ये बोले आज तो लग रहा है दूसरा कान्हा आयेगा ।सब हँसने लगे ।इंदु को घर भेज दिये क्योंकि मेरी माँ को कभी कभी चक्कर आता था तो दो दिन तक आते रहता था ।उसी दिन दोपहर से बिस्तर पर थी ।

मैडम आकर देखी बोली सुबह तक नही हुआ तो छै बजे आपरेशन कर देंगे ।मैने तारीख दी थी तो दो दिन बाद आये हो ।बच्चे को अंदर तकलिफ हो रही है तुरंत निकालना पड़ेगा ।अब तो हम दोनों सकपका गये ।याद आने लगा कि मैडम ने पूरे नौ माह हमारा बहुत ख्याल रखा और आखरी मे हम लोग गलती कर दिये ।मेरी दीदी को बुलाने गये ।दीदी सुबह चाय लेकर आई ।बस दीदी और मेरे पति दोनो ही थे ।

मुझे आपरेशन रुम मे ले गये ।इनके बैंक से एक व्यक्ति खून देने आया था ।आपरेशन रुम  पिछली घटनाओं को याद दिला रहा था ।सारी नर्स और आया वही थी ।पुरानी घटना से सब दहशत मे थे ।मैडम दो डाक्टर को और  बुला ली थी ।बार बार बी पी चेक कर रही थी ।डरना नही ,डरना नही बोल कर शायद अपने ही डर को खतम कर रही थीं ।बस पूरी आपरेशन की तैयारी कर ली थी ।सभी अपने ड्रेस मे थे ।अचानक दर्द उठा और बच्चा पैदा हो गया।मै बेहोश हो गई ।जब होश आया तो ये लोग मुझे बेटे को दिखा रहे थे ।"देखो बेटा हुआ " बेटा रो रहा था पर मुझे देखने की ईच्छा नही हो रही थी ।मैडम ने कहा "अरे बेटा है तुम्हारा उसे प्यार से देखो ।देखो मैने वायदा किया था कि तुम्हारा बच्चा ठीक ठाक होगा ,और वह ठीक ठाक है ।"

बच्चे को लेकर नीचे चले गये ।मेरे पति आपरेशन रुम के बाहर थे ",उन्होंने पूछा क्या हुआ है ?"तो नर्स ने कुछ नही कहा और बच्चे को लाकर कमरे मे दीदी को दे दी ।थोड़ी देर मे मुझे भी लेकर आ गये ।तब दीदी ने इनको बताया कि लड़का हुआ है ।इनके चेहरे पर कोई भाव नही मुस्कुरा कर मेरा हाल चाल पूछने लगे ।बच्चे के गाल को छु लिये ।वे ऐसे ही प्यार करते थे।बार बार बच्चा नही चाहिये कहते थे करके सब इनसे नाराज थे ।

डाक्टर ने कहा कि मिठाई खिलाओ तो इन्होंने कहा "साला लड़का हो गया ,लड़की होती तो मिठाई खिलाता ।"सब को साड़ी बांट दिये पर मिठाई नही खिलाये ।उस साल एक माह तक लगातार पानी गिरता रहा ,झड़ी लग गई थी ।मै दो माह बीस दिन माँ के घर पर रही ।चौदह जुलाई को बेटा पैदा हुआ और  सितम्बर अक्टूबर मे मै अपने घर आई ।माँ मुझे छोड़ने आई थी ।घर मे बाई नही थी ।वे पूरा घर पोछ कर आँगन धोकर रखे थे ।मेरे पूरे गमले हरे भरे थे ।हम लोगों की आरती उतार कर अंदर ले गये ।बेटे को टीका लगाया ।शाम को माँ को छोड़ने गये ।

बेटे का नाम अपूर्व रखे क्योंकि यह अनोखा ही है ।बच्चा पैदा नही हो सकता बोलने के बाद सवा  साल मे पैदा हो गया ।मैडम ने मेरी फोटो ली थी कहीं भेजना है करके।मैडम ने मेरे बारे मे एक लेख तैयार किया ।ऐसी घटना हजारों मे एक होती है ।उन्होंने मेरी फोटो के साथ यह लेख एक जर्नल मे छपवाया था ।मैडम मुझे कभी भूली नही और न मै मैडम को ।हमारे बीच आज भी एक प्यारा सा सम्बंध है ।मेरा यूटरश भी उन्होने ही निकाला ।मै मैडम के अस्पताल मे चार बार भर्ती रही पर हर बार मुझे एक मातृत्व का एहसास हुआ ।हम लोग "नईदुनिया "अखबार मे एक साथ एवार्ड के लिये नामिनेट हुये थे ।तब वे मुझे अपनी कार से घर तक छोड़ने आई थी ।एक डाक्टर जो पैसे से बंधा होता है उसका एक अलग रुप मैने देखा ।बेटे को मिलाने भी कभी कभी ले जाती थी ।

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