रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे -97

अपूर्व जब पांच साल का हुआ तो सोचे कि कही बाहर घूमने चलते हैं ।उसी समय याद आया कि मेरी सास ने पूरी मे बाहर स्तम्भ के पास बैठ कर कहा था कि नाती होगा तो उसे लेकर एक बार फिर आयेंगे।वहाँ पर कल्प वृक्ष में हम लोग धागा भी बांधे थे ।बस सोच लिया गया कि पूरी जायेंगे और बस से जायेंगे ।सन 1995 को घुमने गये ।

सात अक्टूबर से बारह अक्टूबर तक का कार्यक्रम बना लिये ।यह अपूर्व की सबसे लम्बी पहली यात्रा थी ।पूरी तो एक बार घूम चुके थे।हम लोग दुर्ग से पूरी जाने वाली बस में साढ़े पाँच बजे बैठ गये ।रात को  बस में ही खाना खाये ।करीब सौ किलोमीटर के बाद बस का चक्का पंचर हो गया ।उसे बना कर आगे बढ़े,उसके बाद एक के बाद एक छै बार पंचर हुआ ।दो बार भस्ट हो गया ।कटक से करीब नब्बे किलोमीटर पहले आखरी बार भस्ट हुआ ।एक बार तो अगला चक्का ढीला हो गया था ।नया टायर ट्यूब लेने भेजा गया था ।गाड़ी का आगे जाना मुश्किल था ।वहाँ से कई लोग गाड़ी बदलने लगे ।हम लोग भी गाड़ी बदल कर भुनेश्वर तक गये ।उसके बाद फिर गाड़ी बदल कर पुरी गये ।

कटक के नब्बे किलोमीटर पहले गाड़ी खराब हुई थी तब मौसम भीगा भीगा हो गया था बारीश हो रही थी ।पूरा बरसात का मौसम हो गया था ।बारीश तेज हो गई और यह मौसम पूरे बारह तारीख तक रहा ।रायपुर मे ऐसा मौसम ही नही था ।हम लोग वापस आये तब पूरा मौसम सूखा हो गया था ।

आठ की सुबह आठ बजे पूरी पहुंचने का समय था तो हम लोग शाम को छै बजे पूरी पहुचे ।रास्ते मे कुछ खाने को नही मिला तीन बजे एक टोस्टऔर केक बेचने वाला आया ,उससे दोनों चीजे लिये ।हमारे सामने मे एक परिवार सुबह चढ़ा था वह अपूर्व जितने बड़े बच्चे के साथ खाना खाने लगे थे ।अपूर्व मेरी गोद मे सिर रख कर सिसकने लगा ।वह अंकल चिप्स के अलावा किसी चीज के लिये जिद नही करता था । उसे बहुत भूख लगी थी ।सुबह दूध और खाना कुछ भी नही खाया था ।भूनेश्वर में उतरते ही सामने होटल था हम लोग खाना खाने का सोच ही रहे थे कि सामने बस वाला "पूरी पूरी "चिल्ला रहा था ।हम लोगों के पास सोचने को समय नही था सीधे बस मे बैठ गये ,यह सोचे कि एक घंटा और सही ,वहीं पहुंच कर खा लेंगे । पर ऐसा नही हुआ दो घंटे मे पहुँचे ,बस कई जगह गाँवों मे रुकते गई ।तेज बारीश के कारण रास्ता भी बदलना पड़ा ।चौबीस घंटे के बाद पूरी की जमीन पर खड़े थे ।

साढ़े छै बजे बैक ऑफ इंडिया के हालीडे होम मे पहुंचे ।ऊपर का कमरा था ।सीढी चढ़ते हुये देखे तो मोटी काई लगी हुई थी ।कमरे के सामने खुली छत थी । वहाँ भी मोटी काई लगी हुई थी ।लकड़ी के दो पलंग थे ।कमरा पानी से भरा था ।खपरे वाले छत से बहुत पानी टपक रहा था ।सीलन की बदबू भरी हुई थी ।चालीस वॉट का पीला बल्ब जल रहा था ।पलंग पर बहुत ही गंदा गद्दा लगा था ।चादर नही थी ।दाग से भरे गद्दे पर बैठना कठिन था ।हम लोग चादर मांगे तो बोला सिर्फ मच्छरदानी मिलेगी किराये से ।हम लोगों के पास कोई और रास्ता नही था रात गुजारनी थी ।खाना कहाँ मिलेगा बोलने पर वह पता बताया पास मे ही था ।बाजू मे टूरिस्ट का आफिस था ।वह रात को ही एक आदमी को लेकर आया और बोला ये अपनी बस मे घूमा देगा ।हम लोग ठीक सुबह बताते है बोले और खाना खआने चले गये ।रात को रोटी और सब्जी थी पर मछली थी तो हम लोग आचार रोटी खाने लगे ।अपूर्व के लिये दूध मंगा लिये थे ।वह थोड़ी देर में बोलता है कि सुबह की सब्जी खाओगे ? मैने हाँ कहा तो वह एक प्लेट लाकर दिया।चने की सब्जी थी ।खाने के बाद में, बाजू के टूरिस्ट वाले के पास गये ।

रात को लौटे तो मैं एक चादर रखी थी उसे अपूर्व और उसके पापा के लिये लगाई ।मैने अपने गद्दे के उपर एक साड़ी बिछाई ।अब अपूर्व सिसकने लगा ।उस कमरे का विभत्सव दृश्य वह देख नहीं पा रहा था .पूरी दीवार गिली थी ।उस कमरे के चारो तरफ बड़ी बड़ी खिड़कियाँ थी ।बहुत मुश्किल से हम सब को नींद आई ।रात भर याद आता रही यह चौबीस घंटे की यात्रा ।कष्टप्रद यात्रा ।

नौ अक्टूबर की सुबह पांच बजे उठ गये थे ।तीनों नहाकर तैयार हो गये छै बजे हम लोग टूरिस्ट बस मे बैठ गये ।साढ़े छै को बस चल पड़ी ।हम लोग चिल्खा झील देखने गये थे ।
वहाँ पर बस से उतर कर थोड़ा चलना पड़ा ।पहले हम लोग खाना खाये उसके बाद बोट पर बैठ कर काली माँ के दर्शन के लिये टापू पर गये ।बोट पर बैठे तो लगा कि पानी उछाल मार रहा है ।गहरे नीले रग का पानी मुझे तो डरा रहा था ।मै पआनी की गहराई से बहुत डरती हूँ ।पर उथले पानी मे बहुत कूदती हूँ ।पानी से खेलना मुझे बहुत पसंद है।हम लोग एक घंटे के बाद हम लोग टापू पर पहुंच गये ।वहां भी ऊंचाई पर चढ़ना पड़ा ।बहुत सी दुकाने लगी थी ।पूजा के सामान के अलावा फैंसी चीज़े और कपड़े भी बिक रहे थे ।हम पूजा का सामान लिये और चढ़ा कर घूमते रहे।शाम होने वाली थी ।अचानक किसी ने कहा जल्दी चलो अब ये आखरी ट्रीप है ।हमलोग जल्दी से बोट तक आये और बैठ गये ।

बोट से सात आठ इंच नीचे ही पानी था । मै तो घबरा रही थी कि कहीं डूब न जाये ।मै बार बार पानी को छूती थी ।अपूर्व एक रुमाल से खेल रहा था ।लह रुमाल पानी मे गिरा और वह झुक कर रुमाल को उठा लिया ।बोट झुक गई पर सम्हल गई .बोट वाला जोर जोर से डाटने लगा ।"अभी बोट डूब जाती ,सब गिर जाते ।"हम लोग चुप बैठ गये ।अब रात हो गई थी  ।बोट से उतरने के बाद चाय पीकर हम लोग बस में बैठ गये ।शाम साढ़े सात बजे बस पूरी पहुंच गई ।हम लोग बाजू के होटल मे खाना खाये और कमरें मे आकर सो गये ।पर नींद नहीं आ रही थी ।

नौ बजे रात को अपूर्व को बुखार आ गया ।अब नापने को कुछ नही था ।हम लोग नीचे केयर टेकर के पास आये ।उसे बताया कि बेटे को बुखार है ,नापना है ।वह बहुत नाराज था क्योंकि उसके बताये बस मे नहीं गये थे ।वह बोला यहां डाक्टर नही है स्वर्ग द्वार जाना पड़ेगा ।मै तो समझ नही पाई पर ये समझ गये ।हम लोग कुछ दवाई रखे थे ।उसे टेस्टिमाल तीन तीन घंटे मे पिलाते रहे ।सुबह कुछ कम हुआ तो कहीं बाहर घूमने नहीं गये ।रात भर मच्छर काटते रहे ।नमी और काई के कारण बहुत बड़े बड़े मच्छर थे ।मुझे लगा मच्छर काटने के कारण तो बुखार नहीं आया ।

दस अक्टूबर को हम लोग सुबह आराम से जगन्नाथ मंदिर देखने गये ।आराम से दर्शन हो गये ।पूरा मंदिर घूमे ।उस कल्प वृक्ष को भी देखे जहां पहिली बार आये थे तो धागा बांधे थे ।बाहर महाप्रशाद लिये ,कुछ फोटो खरीदे ।उस स्तम्भ को देख कर प्रणाम किये ,जहाँ पर मेरी सास ने कहा था कि नाती हो तो उसे लेकर आयेंगे ।आज सास तो नही थी पर उसकी कही बात को हम लोग पूरा कर रहे थे ।उसके बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ गये ।बड़ा सा चौक था जहां पर बहुत सा सआमान बिक रहा था ।वहां पर हम लोग चादर खरीदे और एक अंडी खरीदे ।अपूर्व के लिये कपड़ा खरीदे ।वहां से आकर खाना खाये और समुद्र की तरफ निकल गये ।रास्ते मे तेज बारीश होने लगी ।हम लोग छतरी भी खरीद लिये थे।हम तीन लोग थे तो छतरी मे नहीं आ पा रहे थे तो एक घर के बाहर रुक गये ।वे लोग दरवाजा खोल दिये और एक कुर्सी दे दिये।हम लोग उसमें बैठ गये ।वह बताने लगी उड़िसा मे कभी भी पानी गिरने लगता है पर अभी बहुत बारीश हो रही है ।पानी रुका और तेज धूप निकल गई ।

हम लोग समुद्र की तरफ चलने लगे ।सामने समुद्र दिख रहा था । बहुत बड़ा सा किनारा ।कुछ लोग नहा भी रहे थे ।हम लोग इंतजार करते रहे कि कब लहरें आ कर हमारे पैर को छु ले ।अपूर्व तो अचरज से देख रहा था ।"इतना सारा पानी " बोल कर आश्चर्य से समुद्र की तरफ देखता था ।बहुत देर तक खड़े रहे अचानक तेजी से एक बड़ी लहर आई और मेरे घुटने तक पानी आ गया ।अपूर्व की छाती तक पानी आ गया ।वह एकदम घबरा गया । वब फिर भी समुद्र किनारे से हटना नही चाहता था ।पांच बजे तक बैठे रहे फिर टूरिस्ट के आफिस में आकर सब पता किये कि कोणार्क कैसे जाना है ।सात बजे बाजू के होटल मे खाना खाये और कमरे में आ गये ।

केयर टेकर से जब बहुत बोले तब थर्मामीटर लाकर दिया ।बुखार चढ़ने लगा था ।हम लोग फिर उसे लेकर टूरिस्ट आफिस आये ।टूरिस्ट आफिस का नाम कोणार्क ट्रेवल था ।वहाँ का मैनेजर था" के के भट्टाचार्य "उसने हमारी पूरी बात सुनी और मंदिर की तरफ के वैद्य के पास भेजा ।एक रिक्शा बुलाकर बैठा दिया ।वह नही मिले तब वहाँ से स्वर्ग द्वार गये वहां पर एक बड़ा सा मेडिकल स्टोर था ।वहीं पर अंदर मे डाक्टर देखते थे ।उसने अपूर्व को देखा और तीन दिन की दवाई दी ।पर दूसरे दिन भी दिखाने के लिये कहा ।उसने कहा कुछ लोगों को समुद्री हवा सहन नहीं होती है ।इस कारण भी बुखार आ जाता है।वहां से उसी रिक्शे से अपने कमरे तक आये । वह पचास रूपये लिया पर डेढ़ दो घंटे हमारे साथ रहा ।रात भर अपूर्व का बुखार बढ़ता रहा ।हम दोनो सोये नहीं।सुबह बुखार उतर गया तो वह घूमने जायेंगे बोलने लगा ।

ग्यारह तारीख को साढ़े सात बजे  कोणार्क के लिये बस पकड़े ।रास्ते भर उसे दवाई पिलाते रहे ।महानदी समुद्र से मिलती है उस जगह पर गाड़ी रुकी सब उतर कर वहीं नास्ता किये ।उसके बाद सीधे कोणार्क मे बस रूकी ।वहा खाना खाये और घूम लिये ।पहले वहां पर इतनी दुकाने नही थी ।अब बहुत से होटल और दुकिने खुल गई थी ।पहले 1980 मे दूर से मंदिर दिखता था पर 1995 से यह पूरा बाजार बन चुका था ।वहां से निकल कर पांडव गुफा देखे ।फिर साक्षी गोपाल गये तो वह बंद था ।रात तक वापस आ गये ।उस रात को तबियत ज्यादा खराब नही हुई दूसरे दिन वापस होने की तैयारी कर लिये ।अब रुकना नही चाहते थे ।भट्टाचार्य जी ने एक आटो वाले को बोल दिया कि वह आकर उठा देगा और बस स्टेंड पर छोड़ देगा ।

बारह तारीख को तीन बजे उठ गये ।तैयार हो गये ।आटो वाला आया और हम लोग साढ़े चार बजे बस के पआस पहुंच गये ।बैठ भी गये ।साढ़े पांच बजे बस रवाना हो गई ।जाते समय भी और आते समय भी हम लोग ही लम्बी दूरी के मुसाफिर थे ।बारीश भी बंद हो गई ।अपूर्व की तबियत भी ठीक हो गई ।रास्ते मे हम लोग तीन सीट बुक किये  थे तो आराम से अपूर्व  खेलते सोते आया ।रास्ते मे खाना भी खा लिये ।रात के लिये डबलरोटी ले लिये थे ।जाते समय की दहशत मन मे थी ।खाने का बहुत सा सामान  रख लिये थे ।रात को साढ़े दस बजे रायपुर के गांधी उद्यान के पास उतर गये ।रिक्शा करके घर आ गये ।घर मे ग्यारह बजे रात को आने के बाद चाय और डबलरोटी खाये।अपूर्व तो बिस्तर पर कूद कूद कर खेल रहा था ।बहुत खुश था ।

पहली लम्बी यात्रा तकलीफ दायक थी ।विपरित परिस्थितियों की वजह से अविस्मरणीय बन गई ।हम लोग पहले आ गये तो भूनेश्वर नही गये ।पर कुछ भी और याद नही है सिर्फ बुखार दवाई ,,गंदा कमरा,बारीश और बदबू ही याद रहा ।जहां रुके थे उस कमरे के बाहर मै प्रशाद रखी थी उसे कौव्वे खा गये ।बहुत कौव्वै और चींटे थे ।छत के सामने एक घर मे कटहल बहुत फले थे ।

वहां से आने पर लगा  न जाने किसकी नजर लग गई ।अपनी कुल देवी दुर्गा है तो बम्लेश्वरी के दर्शन कर लें ।तेरह तारीख को आराम करके चौदह अक्टूबर को डोंगरगढ़ चले गये ।रात को बारह बजे तक आये ।एक लम्बी यात्रा समाप्त हो गई ।इतनी कठिनाई के बाद भी दोनो जगह भगवान के दर्शन अच्छे से हो गये ।अनजान जगह पर एक अच्छा डाक्टर मिल गया और  भट्टाचार्य जैसा इंसान मिल गया ।खाना और दूध भी मिला ।भट्टाचार्य का पत्र बहुत दिनों तक आता रहा ।वह अपूर्व के बारे  में पूछते रहता था ।

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