रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 84

गर्मी आने वाली थी तो हम लोग पचमढ़ी जाने के लिये कार्यक्रम बनाये ।रास्ता भोपाल  होकर जाता है ।हम लोग भोपाल छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से गये ।रास्ते मे सतपुड़ा की खूबसूरत पहाड़ियों पर से गुजरते हुये बहुत अच्छा लग रहा था ।पहाड़ों से पानी रिस रहा था तो कहीं पर पेड़ की शाखें रेल से टकरा रही थी ।दूसरे दिन सुबह भोपाल पहुँच गये ।वहाँ एक होटल मे कमरा बुक किये ।नहा कर ,तैयार हो कर निकल पड़े ।

गांधी मेडिकल कालेज में मेरा देवर पढ़ता था । हम लोग उससे मिलने गये। मिलने के बाद उसके साथ ही बिड़ला मंदिर देखने गये।वहाँ पर लक्ष्मीनारायण की मूर्ति है और एक तरफ दुर्गा की मूर्ती है ।बाहर मे एक बड़ा सा शंख बना  हुआ था । हम लोग शंख के दोनों तरफ खड़े होकर फोटो खिंचवाये ।शंक के एक ओर हनुमान का मंदिर है।मंदिर के चारो ओर बगीचा है ।यहाँ से पूरा भोपाल दिखाई देता है ।यहाँ से उतर कर "बापू की कुटिया "मे खाना खाये ।न्यू मार्केट घूमने चले गये ।यहाँ पर चाय पीये ,गन्ने का रस पीये और होटल वापस आ गये ।होटल से छै बजे खाना खाने गये और सात बजे तक वापस आ गये ।होटल से सामान सहित आठ बजे  रेल्वे स्टेशन के लिये निकल गये ।यहां से रेल से पिपरिया गये ।रात दो बजे पिपरिया स्टेशन पर उतर गये।

रात दो बजे से छै बजे तक रेलवे स्टेशन पर बैठे रहे ।छै बजे वहाँ से बस स्टेंड पैदल गये ।वह पास मे ही है ।सात बजे की बस से पचमढ़ी के लिये रवाना हुये ।रास्ता बहुत ही घुमाव दार है ।इससे मुझे चक्कर आने लगा था ।एक के बाद एक चढ़ाव है ,इससे नीचे देखो तो हजारो फीट गहरी खाई दिखाई देती है ।एक ओर ऊंचा पहाड़ था ,उसके ऊपर सफेद बादल की चादर बिछी हुई थी ऐसा लग रहा था .जैसे दूध फैला हुआ है । ढाई घंटे की यात्रा के बाद हम लोग पचमढ़ी पहुंच गये ।रास्ते मे" चालीस हाली डे होम" को पार करके गये।हमनेे यहीं अपना काटेज बुक करवाये थे ।बस स्टेंड पर उतर गये ।यहाँ पर एक सिनेमा हाल और बालक विद्यालय था।

यहाँ से पैदल ही हम लोग हाली डे होम गये ।यह बहुत ही प्यारा सा था ।दो होम एक साथ जुड़े थे ।इसमे एक वरामदा ,जिसमें दो कुर्सी रखी हुई थी ।उसके बाद एक बड़ा सा कमरा था ,जिसमे एक डबल बेड लगा था ।चादर तकिया ब्लेंकेट रखा हुआ था ।उसके बाद एक किचन था और उसी को पार करने के बाद पीछे छोटा सा आँगन था ।जहां पर लेफ्ट मे टायलेट वैगरह था ।आँगन मे एक पानी की टंकी भी थी ।बाल्टी मग वैगरह रखा था ।हम लोग नहा कर तैयार हो गये और खाना खाने चले गये। पास में ही होटल और दुकाने थीं ।वहीं पर एक गाईड मिल गया जो टांगे से "धूपगढ़ " घूमाने के लिये तैयार हो गया ।वहाँ पर उगते और डुबते सूरज को देखने जाते है ।हम लोग डुबते सूरज को देखने वाले थे ।टांगा तीस रूपये मे तय  हुआ था ।

"धूपगढ़" की दूरी बारह किलोमीटर है ।टांगे से जाते हुये रास्ते मे रविशंकर भवन ,तहसील,कचहरी ,जयस्तम्भ  देखे ।धूपगढ़ का रास्ता जंगल से होकर जाता है ।बीच मे शुक्ला झील भी पड़ता है ।एक ऊंचे पहाड़ के पास जाकर टांगा रूक गया ।उसके बाद एक हजार फीट की ऊंचाई पैदल ही चढ़नी थी ।यह बात उसने वहीं पर बताई ।जीप ऊपर तक जाती थी उसका रास्ता थोड़ा अलग है ।रास्ता पत्थरों से भरा है।सभी गोल गोटे की तरह के पत्थर है।यहां पर चार ,आम ,बांस ,बरगद,अशोक के वृक्ष हैं ।नीम और थुजा भी कहीं कही पर है।डेढ़ किलोमीटर चल कर पहाड़ पर चढ़े ।ऊपर में छोटा सा मैदान सा है ।जहां से पर्वत बहुत खूबसूरत दिखाई दे रहा था । सतपुड़ा और महादेव पर्वत श्रेड़ियों का खूबसूरत जाल बिछा हुआ था ।सफेद बादलों से ढके पर्वत  पर ऐसा लगता है कि यह पानी की सतह है ।सूरज आकाश मे ही डूबता दिखाई देता है।यह वह स्थान है जहां पर 4500 फीट की ऊंचाई पर आकाश और पृथ्वी मिलते है ।सूरज क्षितिज मे ही डूब जाता है ।करीब साढ़े छै बजे  सूरज डूबा इसके बाद हम तीनो तेजी से नीचे उतरे ।जल्द ही" प्रकाश विश्रांति गृह "  पहुंचे ।साढ़े आठ हो चुका था ।यहाँ से खाना खा कर हम लोग हाली डे होम चले गये ।रात को ठंड थी ।आराम से नींद आई ।

दूसरे दिन याने नौ अप्रेल को थकान के कारण आठ बजे नींद खुली ।हमारा गाईड किशन टांगा लेकर दरवाजे पर खड़ा था ।हम नहा कर चाय पीये और साढ़े आठ बजे "प्रकाश विश्रांति गृह" मे गये ।वहां पर मै खाना खाई और दोपहर के लिये टिफिन मे खाना लेकर बड़ा महादेव देखने चल पड़े टांगा चार किलोमीटर जाने के बाद रुक गया ,उसके बाद चार किलोमीटर पैदल ही जाना पड़ा ।

रास्ते मे "हांडी खोह "देखे ।यह मुख्य सड़क से बायें हाथ कि ओर आधा किलोमीटर दूर है ।इसमे एक ओर रेलिंग लगी है और नीचे सीधी कटी चट्टान है ।यह घाटी पंद्रह सौ फीट गहरी है ।इसके भीतर आम के जंगल थे ।महुआ के पेड़ भी बहुत थे ,रास्ते मे और अंदर भी ।इसके नाम के बारे मे बताते है कि "हाँडी " नामक अंग्रेज यहाँ पर घर बना कर रहते थे ।जमीन पर कुछ प्रमाण मिलते हे जैसे घर बना रहा होगा ।उनकी मृत्यु इस खोह मे गिरने से हो गई थी इस कारण इसे "हांडी खोह" कहते  है ।उनको प्रकृति से बहुत प्यार था ।बहुत ही मनोरम जगह थी।

यहाँ से पैदल ही बड़ा महादेव देखने के लिये पैदल ही चलना पड़ा ।बहुत बढ़िया रास्ता है तीन किलोमीटर के बाद लोहे कि रैलिंग लगी है ।यह एक किलोमीटर तक होगा ।उसके बाद बड़ी सी गुफा दिखाई देती है ।अंदर जाने के पहले ऐसा लगता है कि बड़े से हॉल मे घुस रहे है ।अंदर मे बीच मे एक कुंड है जिसमे पानी भरा है और उपर से भी पानी टपक रहा है ।उसकी "टप टप" की आवाज सन्नाटे मे बहुत तेज सुनाई दे रही थी ।गुफा के बाहर दो नल थे वहाँ से पैर धोकर अदर आये थे ।कुंड के चारो ओर लोहे की रेलिंग लगी है ।उसके बाद गुफा के अंत मे एक और खोल था जिसमें प्राकृतिक लिंग है ।यहाँ भी पानी टपक रहा था ।इसके पास मे तीन मूर्तियां है गणेश,शंकर,पार्वती की ।वहाँ की ठंडकता और पानी की टप टप की आवाज बहुत प्यारी लग रही थी ।गुफा के बाहर मे एक तरफ त्रिशूल,शिवलिंग और पीतल की मूर्तिलगी हुई है ।बड़ा महादेव के बाहर मे तीन दुकाने थी।वहाँ जआते ही खाने का आर्डर दे दें  तो खाना बना देते हैं।

इसके आधा किलोमीटर की दूरी पर गुप्त महादेव है ।इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही सकरा है ।मै अंदर नहीं गई ।यहां का दृश्य बहुत ही मनोरम था ।वापस चार किलोमीटर चल कर टांगे तक आये ।हमारा गाईड बराबर हमारे साथ रहता था ।वह मेरा बहुत ध्यान रखता था ।लौटते मे एक जगह "शैलांजली " देखे जिसका  प्राकृतिक सौदर्य लदेखने लायक था ।इससे थोड़ी दूर पर राजेंद्र गिरी मे राजेंद्र पार्क है।वहाँ पर डा.राजेंद्र प्रशाद द्वारा लगाया एक वट वृक्ष है ।यहाँ से सभी पहाड़ियाँ धूपगढ़,महादेव,चौरागढ़ दिखाई देता है ।रास्ते मे शुक्ला झील या पचमढी झील भी देखे ।इतना प्राकृतिक सौंदर्य देखने के बाल सच मे लगने लगा कि यह स्वर्ग ही है ।शाम को चार बजे हम लोग वापस "हाली डे होम "मे आ गये ।शाम को वहीं पर चाय और डबलरोटी खाये ।रात को खाना खाने बाहर गये और वापस आकर सो गये ।

दूसरे दिन सुबह किशन सुबह से आकर खड़ा हो गया ।साथ मे चार लेकर आया था ।वह मुझे मांजी कहता था ।मेरे पति का भी जुड़ाव हो गया था ।उसे खाने के लिये बोलते और कुछ बीच मे भी खाने बोलते तो वह नहीं खाता था ।मैने पहले दिन झल्ला कर कहा कि जीप से चलेंगे भले पैसा ज्यादा लगे तो वह कहता नही टांगे से घूमना ठीक है जगह जगह खूबसूरती देखते जायेंगे ।उसने बताया कि यहां पर धूप मिलता है ,बिलकुल शुद्ध रहता है ।जो लोग निकालते है वही लोग पर्यटक को बेचते है ।मैने उसे आधा किलो लाने के लिये बोली ।वह शाम को भी हमारे खाने के समय तक रहता था और बोल कर रखा था कि जीस चीज की जरूरत हो बोल देगे मै ला दूंगा ।मेरे पति को किसी से काम कराने की आदत नही थी ।वह इंतजार करते रहता और ये अपना काम स्वयं करते थे ।एक दिन टार्च का सेल लाने गये तो वह दुकान मे मिल गया और बोलने लगा आप आराम करते मै ला देता ।बस ये मुस्कुरा दिये थे ।किसन धूपगढ़ में मेरे साथ फोटो भी खिचवाया ।

दस अप्रेल को हम लोग सायकिल से घूमने निकल गये ।यहाँ से चार पांच किलोमीटर पर" बी फाल" था ।यहां बहुत मधुमक्खी के छत्ते है इस कारण इसे "बी फाल"कहते है ।चार किलोमीटर पर बी कुंड या जमुना कुंड है ।हम लोग
इससे नीचे उतर गये।बहुत खूबसूरत है ।जल प्रपात के नीचे गये ।यहाँ पर बहुत से एन्थोसिरोस और फर्न थे ।चट्टानों पर लाइकेन भी रे ।मॉस सूख चुके थे । हम लोग वापस ऊपर यमुना कुंड मे आ गये।यहाँ से सायकिल से वापस आ गये ।बारह बजे थे ।खाना खाने के बाद हम लोग फिर से सायकिल से पांडव गुफा देखने चले गये ।यह गुफा दो किलोमीटर की दूरी पर है ।साधारण सी गुफा है ।इसके पास से ही मुख्य सड़क अप्सरा विहार और रजत प्रपात के लिये गई है ।

इस बार सायकिल से साथ मे किसन भी था।पहले "रजत प्रपात "देखने गये ।यह पांच किलोमीटर की दूरी पर है ।यहां पर पानी बहुत ऊंचाई से नीचे खाई मे गिरती है ।यह एक चाँदी के पतले डंडे की तरह दिखाई देती है ।इस कारण इसे रजत प्रपात कहते है ।यहीं से अप्सरा विहार के लिये रास्ता गया है ।यहाँ पर पानी दस फीट ऊपर से नीचे गिरता है ।नीचे एक तालाब सा बन गया है ।यहाँ पर उतर कर हांथ पैर धोये और बहुत सी फोटो खिंचे ।सायकिल से दूसरे रास्ते से वापस आ गये । तीश बजे तक वापस आ गये ।किसन के लिये यह आश्चर्य जनक घटना थी ।वह बता रहा था कि विदेशी लोग सायकिल से कभी कभी जाते है पर भारत के लोग को पहली बार सायकिल से जाते देखा हूँ ।पूरे रास्ते मे वह मुझे ही देख रहा था ।मै भी पहली बार सायकिल फर बैठी थी ।मै सायकिल नही चलाती इस कारण पति की सायकिल मे पीछे बैठ कर ही घूम रही थी ।

ग्यारह तारीख को  हम लोग  जटाशंकर घूमने गये ।सुबह आठ बजे ही निकल गये ।पास मे ही है ।रास्ते मे बड़ी बड़ी चट्टानें हैं।एक ही रास्ता है जो सीधे जटाशंंकर तक जाता है ।रास्ते मे पत्थर को काटकर शंकर जी की मूर्ती बनाई गई है ।इससे आगे जाने पर हनुमान जी की मूर्ति बनी हुई  है ।इसके आगे का रास्ता नीचे की ओर गया है ।लोहे की गैलरी बनी है इसी से नीचे उतरते है बाहर मे शंकर  जी की मूर्ती है और अंदर गुफा जैसे है ।वहाँ पर पानी टपकते रहता है और सैकड़ो की संख्या मे ,गुच्छों मे शिवलिंग निकले हुये है ।इसे देखकर वापस आ गये ।अब हमारा घूमना खतम हो चुका था ।किसन हमारे आस पास ही घूम रहा था  हमारे बीच कुछ तार जुड़ रहे थे ।वह एक आदमी  को लेकर आया था ।उसके पास धूप था ।पच्चीस रूपये मे आधा किलो धूप दिया ।बहुत सा चिरौंजी लेकर किसन खड़ा था ।कई बार पूछने पर भी पैसा नही बताया ।हम ँओग मुफ्त मे नहीं रखते बोले तब बोला बेटा समझ कर तो रख सकते हो ।अब तो लेना ही था ।वह बोला "मुझे फोटो भेजना मांजी के साथ वाली ।" हम लोग हाँ बोल कर चले गये ।

शाम को हमारे जीजाजी के मित्र से मिलने चले गये ।यशवंत डेकाटे जी की जुड़वां बेटी है वर्षा और ऋतु ।हम लोग मिल कर आये और शाम को उनके घर खाना खाने गये ।रात को पैकिंग कर लिये और आराम से सो गये ।सुबह दस बजे हम लोग डेकाटे के आफिस गये उनसे मिलने गये ।फिर दो बजे की बस नहीं जा रही थी तो पाच बजे की बस से पिपरिया आ गये ।आते समय फिर किसन बस स्टेंड पर मिलने आया ।हम लोग रास्ते मे सोचते रहे किसन कितनी बार मिलने आया ।पिपरिया मे रात को होटल मे रूके जहां पर पहली बार मै सैंकड़ों खटमल एक साथ देखी ।रातभर जागते रहे ।सुबह दस बजे की रेल से जबलपुर आ गये ।जबलपुर तीन बजे पहुँचे ।बस स्टेंंड मे ही रूके रहे और रात साढे आठ बजे की सुपर डिलक्स बस से रायपुर आ गये ।

रायपुर आने के बाद फोटो निकलवाये ।एक सार फिर किसश याद आने लगा ।ऐसा लगा कि कोई आपना वहाँ छूट गया है।उसकी आँखे याद आ रही थी ।जो हमेंशा कम पैसे मे अच्छे से घुमाने की सोचता था ।वह तीन दिन मे हमारे  करीब आते गया ।आने वाले दिन भी खड़ा था ।आने के पहले दिन की रात को भी खाने के समय वहीं होटल में खड़ा था ।हम लोग उसकी फोटो होटल के पते पर भेज दिये ।होटल वाले ने पहुंचने की सूचना दी ।पर हमे वह बच्चा हमेंशा याद आता रहा ।उसकी मूंछे भी नहीं आई थी ।उसे  हमसे लगाव इस कारण भी रहा हो कि कोई घूमने आये तो उसे हम उसका नाम बतायें ।पर उसने एक बार भी ऐसी बात नहीं की पर ये जरूर बोला कि आप लोग फिर आइये मै कुछ औऱ जगह घुमाऊंगा ।अभी चौरागढ़ छुटा है ।एक गाईड जो अपना सा लगा किसन।

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