रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 91

एक महिला जिसका नाम इंद्राणी था ।नाम इंद्राणी पर काम ? इस पर प्रश्न है ।इसके काम की समीक्षा पाठक ही करेंगे ।जब मेरी शादी हुई तब उसके दो बच्चे थे ।बच्चे कभी कभी ही माँ के पास आते थे । उनके पापा जब आते थे तब डबलरोटी और आइसक्रीम या बिस्कुट  लेकर आते थे ।तभी बच्चे माँ को दिखाने जाते थे ।पूरे दिन दादा जी ही देखते थे ।नहलाना, तैयार करना कपड़े पहनाना ।दादी पाउडर लगाती थी बाल बनाती थी ।छोटा बेटा माँ का दूध पीता था ।वह दूध पीने के लिये आता था ।कभी बुखार हो या फिर कुछ अलग तबियत खराब हो तभी माँ के पास रहते थे ।ठीक होते ही दादा के पास चले जाते थे ।

दादा जी सुबह बच्चों के लिये दाल मे दो आलू डाल देते थे ।उसको छिल कर नमक डाल कर खिलाते थे ।खाना खाने के समय अपने साथ ही खिलाते थे ।थोड़े बड़े होने पर अलग से छोटे से टेबल कुर्सी पर बैठा कर खिलाते थे ।उसके पापा लोसहे की छोटी कुर्सी और टेबल बनवाये थे ,उसे प्लास्टिक के तार से गुथवाये थे।

इंद्राणी के पति रोज रात को शराब पीकर आते थे ।इंद्राणी कहती थी कि घर मे पूरी तनख्वाह ले लेते है करके रात को पीकर आते है ।पैसा कहाँ से आता है ? पी एच ई मे इंजीनियर थे तो मजदूरों का पैसा गड़बड़ करके कमाते थे ।रात को दस बजे मोटर साइकिल से आते थे तो दरवाजे पर गाड़ी रोककर खड़े हो जाते थे ।कभी गाड़ी अंदर करते थे तो कभी  वही खड़े रहते थे ।गाड़ी की आवाज से इंद्राणी निकलती थी ।यदि उसके पति अंदर आँगन मे हैं तो वे अंदर आ जाते थे ।पर रोड मे ही है तो वह बआहर जाकर गाड़ी स्टेंड करती थी फिर पति को उतारती थी .पति को पूरी तरह से पकड़कर कमरे तक लाती थी ।पति चिल्लाते रहता ,कभी गाली भी देते रहता था ।

सास ससुर कहते थे कि शादी के बाद ससुराल गया तो उसके ससुर ने पीने को दिया था और बोले थोड़ा सा लेना चाहिये इसे ताकत आती है ।एक बॉटल साथ मे दे दिया ।इंद्राणी बड़े गौरव से खाने के साथ पीने कै देती थी ।लह कहती थी कि मेरे पिताजी पीते है तो तुम भी पी लो ।अमीरों की पहचान है। इसकी वजह से ही तो चार औरते रखे हैं ।यह गौरव ने उसे लत मे डुबा दिया ।आये दिन पीकर आते थे । पीकर नही आते थे तो घर मे खाना खाकर पीते थे ।खाने मे रोज हरी सब्जी के अलावा मांस भी रहता था ।कुछ नही तो अ़ंडा रहता था ।

उनका तीसरा बेटा हुआ ।खुशी तो बहुत मनाये थे ।पीना बढ़ता रहा अब तो चाय की जगह शराब ही पीते थे ।बिमार पड़ने लगे ।पूरे समय नशा और नींद ने बीबी को परेशान कर दिया ।अब वह चाहती थी कि वह शराब छोड़ दे पर ऐसा नही हुआ ।डाक्टर ने कह दिया कि लीवर कमजोर हो रहा  है ।पीना छोड़ दो ।पर जब नही पीते थे तो उठ कर चलने मे भी लड़खड़ाते थे ।हाथ की उंगलियाँ कांपती थी ।अब तो इंद्राणी कुछ घबराने लगी ।उसका पति से सम्बंध कम होने लगा था ।वह सिर्फ पैसे और बच्चे तक सिमटने  लगी थी ।

एक दिन दुखी इंद्राणी ने गुस्से मे शराब पी लिया ।थोड़ी लड़खड़ाई पर रात को सो गई।दूसरे दिन भी यही हुआ ।अब वह पीने लगी थी ।एक बार वह दिन को भी पी ली थी।बड़ी एकादशी के दिन घर मे उत्पात मचा दी ।मै मायके मे थी ।दो दिन बाद आई तब सब पता चला ।ससुर ने उसे एक झापड़ लगा दिया था ।मेरे आने पर वह शिकायत की कि मुझे मार रहे है ।

मैने देखा कि वह नीलम की अंगुठी पहनी है ।उस अंगुठी को वह एक मुसलमान लड़के के लिये बनवाई थी ।वह लड़का बाहर गया था तो वह उस अंगुठी को स्वयं पहन ली थी ।वह लड़का मेरे देवर का दोस्त था ।वह एकादशी के दिन चूहामार दवाई खा ली थी ।वह यह दवाई क्यो और कैसे खाई यह पता नहीं चला था ।मै उस अंगुठी को तुरंत उतार कर रख दी ।उसको आँगन मे बिठा कर उसके ऊपर पानी डाल रहे थे क्योंकि ऐसा सोच रहे थे कि गर्मी चढ़ गई होगी ।थोडी देर में ठीक हो गई पर उसे तीन दिन की घटना याद नही थी ससुर ने मारा बस यही याद था ।

इस घटना का कारण शराब था या फिर वह अंगुठी का नीलम था यह तो पता ही  नही चला ।क्यों और कैसे चूहामार दवाई खाई थी यह तो समझ मे आ गया ।अब वह देवर के उसी दोस्त के साथ जिसके लिये अ़गुठी बनवाई थी उसके साथ  शाम रात को ताश खेलते रहती थी ।एक दिन अचानक दस बजे उसे गलत तरिके से ससुर ने देख लिया ।उस दिन उसके पति बहुत पी कर बेहोश थे ।रात को उस लड़के को डंडा दिखा कर भगाया गया । घर के बाहर बहुत लोग इकट्ठे हो गये थे ।उसके बाद तो उसकी निडरता बढ़ गई थी ।दिन रात  नशे मे रहती थी और शाम रात को उस लड़के के साथ मोटर सायकिल पर घूमने चली जाती थी ।कई बार उसे मना किये पर रात को सबके सोने के बाद वह लड़का आ जाता था ।

धीरे से उसका तबादला अंटागढ़ करा दिये ।वे लोग चले गये ।दोनों बड़े बच्चों को ससुर ने जाने नहीं दिये ।एक छोटा बेटा एक साल का था उसे लेकर चले गये ।वहाँ जाने के बाद सास ससुर उसे देखने गये।वहां पर रह कर भी आये ।वह लड़का वहां भी कभी कभी जाता था ।पर वहाँ  इद्राणी की एक और से दोस्ती हो गई ।उसके पति के दोस्त वहीं उसी मकान के एक हिस्से मे रहते थे जिसमें ये लोग रहते थे ।उसे चौथा बच्चा होने वाला था ।एक साल वहाँ रही ।जाँच कराने दो बार रायपुर आई थी ।बच्चा वहीं पैदा हुआ ।उस समय सास गई थी .तो इंद्राणी ने तीसरे बेटे को सास के साथ भेज दिया ।अब उसके पास चौथा बेटा ही था ।उसके पति बहुत बीमार थे । उसे रायपुर आना पड़ा। तबियत ज्यादा खराब हो गई तो  ससुर इंद्राणी को लाने गये ।पर वहां तो कुछ और ही नजारा था ।साथ का आदमी ,याने उसके पति के दोस्त का तबादला कहीं और हो गया था ।वह सारा समान बेच दी थी कुछ बचा था पलंग बर्तन था ।और चाबी पड़ोस मे दे दी थी और उस अपने पति के दोस्त के साथ भाग गई थी ।ससुर को तब बहुत सी बातें पता चली ।यह सब बहुत दिनो से चल रहा था ।

एक पूरी फिल्म की कहानी आँखो के सामने आ गई ।"साहब बीबी और गुलाम "पीना तो उसका चलता रहा पर एक बार चौथे बच्चे को भी साथ मे ले जाने को ससुर को दे रही थी ।जब वे उसके पति को लाने के लिये गये थे । वे पूरे एक साल बिस्तर पर रहे ।वे इंद्राणी और अपने तीन बच्चों के नाम से ग्रामीण बैक मे आवर्ती जमा खाता याने आर डी खोले थे ।उसमे पैसा जमा होते रहता था ।इंद्रणी उसे देखने भी नही आई ।बच्चो को भी याद नहीं की ।सास तो मर गई थी ।ससुर ही खाना बनाकर तीन बच्चे और बेटे को खिला रहे थे ।उसका पता लगाकर ससुर उसे लाने गये पर वह नहीं आई ।अब तो पूरा साल ऐसे ही गुजर गया ।उसकी माँ की बरसी की पहली रात को वे गुजर गये ।फिर एक बआर इंद्राणी की तलाश हुई ।उसे खबर भेजी गई पर वह.नहीं आई ।उसके बच्चे दसवीं फेल ही रहे सभी।वह भी दसवीं फेल ही थी ।बड़े बेटे को अनुकंपा नौकरी मिल गई थी ।एक खाना बनाने वाली लगा लिये थे ।

एक बार पैसा निकालने बच्चे दादा जी के साथ ग्रामीण बैंक गये थे ।उसी दिन इंद्राणी भी पैसा निकालने गई थी ।तब बच्चों को देखकर भी उसे दया नहीं आई ।बच्चों का वास्ता देकर उसे पैसा नही लेने के लिये बोले तो वह आपना पैसा भी नही ली ।वह चली गई ।सब कुछ छोड़कर ।वह शराब जो उसके पिता से शुरू हुआ था वह.इसके पूरे परिवार को ले डुबा ।एक सीधी साधी दसवीं तक पढ़ी मालगुजार की बेटी ने अय्याशी ही देखी थी ।उसके लिये पिता की चार पत्नियाँ और शराब ही एक ऊंचा स्तर था ।एक मालगुजार के जीवन  को वह अपने पति के साथ जीना चाहती थी ।पर यह पासा उसकी तरफ पड़ा ही नहीं ।वह जीवन के जुये मे हार गई ।फिल्मो और गुलशन नंदा के उपन्यासों मे डुबी इंद्राणी का जीवन भी एक फिल्म बन कर रह गई ।बच्चे भी बिखर से गये ।बड़े नाती की शादी तय किये और शाम को अचानक खतम हो गये ।तेरह दिन के बाद उसकी शादी कर दिये और बहु आकर सब सम्हाल ली ।पर मुझसे तो सम्बंध पहले ही खतम हो गया था जब सास खतम हुई थी ।सम्बंधो का टुटना भी कभी कभी अच्छा होता है ।इंद्राणी मेरी जेठानी थी ।उसके भागने से पहले ही मेरा सम्बंध उन लोगों से खतम हो चुका था ।

कभी कभी मै सोचती हूँ कि जो घटनाएं घटती हैं उस पर लेखक कुछ कहानियां लिखते हैं।इसका उल्टा भी होता है ,कहानियां यथार्थ मे बदल जाती है।घटनाक्रम बदलते रहता है ।"साहब बीबी और गुलाम " की कहानी दोहराई गई ।शायद  इंद्राणी ने शराब इस कारण शुरू किया कि पति छोड़ देगा पर वह स्वयं इसकी आदी हो गई ।शरीर से कमजोर बीमार पति को छोड़ कर दूसरे की तरफ बढ़ गई ।पर उसे गुरुदत् की तरह कोई नही मिला ।आज भी वह जिवित है ऐसा कहते है ।बैंक मे देखने के बाद उसे किसी ने नही देखा है।

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