रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे -101

अपूर्व का पत्र लिखना चल रहा रहा था ।वह अपने बुआ के घर पत्र लिख कर हाल चाल पूछता और बताता था ।अब उसकी बुआ कलकत्ता आ गई थी ।बैरकपुर के आकाशवाणी में उसके फूफा जी अशोक का तबादला हो गया था।वो लोग बैरकपुर मे ही रहते थे ।हम लोग दार्जिलिंग घूमने का सोच रहे थे ।इसी बीच उनका तबादला भी बैरकपुर हो गया ।बच्चे परीक्षा के बाद मिलना चाहते थे तो हमलोग जाने का कार्यक्रम बना लिये ।

15 अप्रेल 2000 को हम लोग रायपुर से निकले ।बाम्बे हावड़ा मेल यहां से शाम पांच बजे छुटती है ।हम लोग उसी में बैठ गये ।घर से खाना ले गये थे ।रात को पूड़ी सब्जी खा कर सो गये ।अपूर्व पहिली बार ऊपर के बर्थ पर अकेले सोया था ।मैं रात भर उठ उठ कर देखती रही ।सुबह साढ़े चार बजे ही नींद खुल गई ।साढ़े सात को हावड़ा पहुंचने वाली रेल पौने नौ बजे पहुंचीं।उतर कर अशोक के लिये रूके रहे ।पांच मिनट में अशोक आया ।हम लोग लोकल ट्रेन के प्लेट फार्म की ओर बढ़े ।

हावड़ा मे चालीस प्लेट फार्म है ।यहां से ओवर ब्रिज पआर करके लोकल ट्रेन के प्लेट फार्म में आये ।पांच मिनट लगा ।पर उस भेड़ चाल की भीड़ मैं पहली बार देखी थी ।इतने लोग तेजी से चलते हुये।मुझे तो लग रहा था मै खो जाऊंगी ।एक बार मैं रुक भी गई तब अशोक आकर बोला बस चलते रहो देखो मत लोकल ट्रेन के प्लेट फार्म में ही रूकना। साथ मे लेकर गया ।एक घंटे के सफर के बाद सेवड़ा फुल्ली पहुंचे।यहां से उतर कर सेवड़ाफुल्ली के लाच घाट पर गये ।दस मिनट पैदल चलना पड़ा।यहाँ से बैरकपुर के घाट का टिकट लेकर चढ़े और वहां पर उतर गये ।16 रुपये का टिकट लेकर आटो से बैरकपुर रेल्वे स्टेशन पहुंचे ।यहाँ से पैदल आनंदपुरी सेंट्रल अपार्टमेंट पहुंचे।11 बजे पहुंच गये ।नहा खा कर हम लोग बैरकपुर मे बच्चों के साथ मेला घूमने चले गये ,अशोक अपने आफिस और मोनू के साथ मेरे पति दार्जिल़िग जाने के लिये या सिलिगुड़ी तक जाने के लिये या पूरा घूमाने के लिये टूरिस्ट बस का पता करने चले गये ।रविवार के कारण सब बंद था ।

17 अप्रेल को सुबह साढ़े आठ बजे हम लोग रेल से विद्यानगर स्टेशन तक गये ।आने जाने की प्रति व्यक्ति की टिकट पांच रूपये मे मिली ।यहाँ से 80 रुपये मे टैक्सी करके साइंस सीटी गये ।15 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से प्रवेश शुल्क दिये ।फिर यदि रोप वे से जाना है तो 30 रूपये प्रति व्यक्ति अलग से ।हम लोग रोप वे से गये ।

वहाँ पर दो बडे भवन थे ।एक डायनेटोरियम और दूसरा डायनोसोर का।डायनेटोरियम में एक खंड में विज्ञान के तेरह तरह के चमत्कार प्रयोग के रुप में दिखाये गये है।इसमें से एक लॉफिंग मिरर भी है।बहुत से दर्पण है एक जगह खड़े हो तो हर दर्पण मे अलग अलग आकृति दिखाई देती है।बहुत हंसी आई ।इस तरह के दर्पण मैं महोबा में भी देखी थी ।यह भवन चार पांच मंजिल का वृत्ताकार है ।दूसरा खंड स्पेश थियेटर का है ।यहां पर टाइम मशीन है ।यहाँ पर एक शो का टिकट 35 रुपये था। एक एक घंटे का शो होता है ।बंगला और अंग्रेजी पारी पारी से चलते रहता है ।हम लोग "ग्रेट नेचुरल वांडर्स " देखे ।हमारे ठीक सिर के ऊपर स्क्रीन होता है और चारो तरफ नीचे तक होता है ।इतने बड़े स्क्रीन में पानी ,बाढ़ बड़े बड़े वृक्ष को देखना बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था ।जब बाढ़ के पानी का दृश्य आया तो लगा कि मैं भी गले तक डुब रही हूँ ।सारे डर रोमांच और आश्चर्य के भाव से बाहर आ कर हम लोग डायनोसोर के भवन की ओर बढ़े ।यहां पर बड़े बड़े डायनोसोर हिलते डुलते चिल्लाते दिखाई दे रहे थे .पूरे वर्किंग माडल थे ।छोटे बच्चे भी थे ।हमारे विज्ञान के अचरज भरी दुनिया से बाहर निकल वापस टैक्सी से विद्यानगर रेल्वे स्टेशन आ गये ।

यहां से मेट्रो रेल में बैठ कर मेदान रेल्वे स्टेशन आये ।यहां से पैदल  करीब दस मिनट चल कर विक्टोरिया मेमोरियल आये ।यह बंद था ।हम लोग बाहर में ही घूमते रहे ।यहां बर नीबू पानी पीकर टैक्सी से वापस सीलदाह आ गये ।40 रूपये मे टैक्सी किये थे ।यहाँ पर बहुत बड़ा बाजार लगता है ।हम लोग घूमने वाले थे पर मुन्नी खो गई तो उसे खोजने मे लगे ।थोड़ी देर बाद देखे कि वह केला लेकर आ रही है ।हम लोग घूमना छोड़कर वापस आने के लिये लोकल ट्रेन में बैठ गये ।करीब सवा आठ बजे हम लोग बैरकपुर पहुंच गये ।

करीब नौ बजे टैक्सी वाले से बात करने गये ।दार्जिलिंग के लिये टैक्सी तय किये जो दूसरे दिन रात दस बजे आनी वाली थी ।तो सुबह के लिये एक टैक्सी मंगा लिये  कलकत्ता घूमने के लिये ।

18 अप्रेल को सुबह आठ बजे टैक्सी आ गई ।उस दिन हम सब लोग साथ में गये ।सबसे पहले आदिशक्ती काली माई के मंदिर गये।उसके बाद दक्षिणेश्वर टेम्पल गये ।वह कुटिया देखे जहां स्वामी रामकृष्ण जी रहते थे ।माँ शारदा रहती थी ।बहुत ही अच्छा लगा ।मै बचपन से विवेकानंद आश्रम रोज शाम को जाती थी।एक लगाव सा था ।इस जगह को देखने के बाद मन बहुत ही अच्छा लग रहा था ।वेलूर मठ गये ।इसके बाद अलीपुर का "जू "देखने गये ।करीब डेढ़ बजे पहुंचे ।वहाँ पर चार सौ साल का बड़ा सा कछुआ था ।बहुत से जिराफ ,कंंगारू ,गोरिल्ला देखे ।स्नेक पार्क भी देखे ।वही पर खाना खाये और दो बजे वहाँ से निकल गये ।इंडियन म्यूजियम याने जादूघर देखे ।करीब साढ़े चार बजे हम लोग बिड़ला मंदिर गये ।भोपाल और दिल्ली मे भी मै बिड़ला मदिर देखी थी ।सब बिल्कुल एक जैसे ही हैं।यहाँ से करीब सवा पांच बजे निको पार्क गये ।बड़े बड़े झुले थे ।तरह तरह की ऊपर नीचे चलने वाली गाड़ियां थी।कुछ पानी से भी गुजर रही थी ।एक झुले पर ही अपूर्व अपने फूफा जी के साथ बैठा था । हम लोगों ने यह सब सिर्फ देखे और सात बजे वहाँ से निकल गये ।करीब साढ़े आठ बजे हम लोग बैरकपुर पहुंच गये । बहुत मजा आया ।एक बड़े शहर को देखने में।

पूरा कलकत्ता देख लिये ।ट्राम मे बैठे भी और कंडक्टर से बहुत सी बातें किये ।बहुत ही अच्छा लग रहा था जब एक साथ ट्राम ,बस ,कार और रिक्शा चल रहे थे ।हाथ से चलने वाले रिक्से पर भी बैठे ।हावड़ा ब्रिज तो एक अनोखी रचना लग रही थी ।पूरी तरह से लोहे की सलाखों से बना ।अभी सौ साल होने पर इंग्लैंड से कुछ इंजीनियर आये थे।उन्हे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि अंग्रेजों द्वारा सौ साल पहले बनाया गया यह ब्रिज आज भी मजबूत है और जंगरोधक है ।दो शहरों को जोड़ता यह ब्रिज वाकई बहुत ही सुंदर है ।वहाँ से पूरा शहर और नदी भी बहुत सुंदर लगता है ।शहर को बहुत ही करीब से देखे ।बस शहर के अंदर की पतली गली से भी गुजरती है ।सकरे रास्तों के दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे भवन ।लाल गेरु से पुते या सफेद चुने से प्राचीनता का एहसास दिला रहै थे ।

खाना खाकर उस टैक्सी का इंतजार कर रहे थे जो दस बजे रात को आने वाली थी ।समय गुजर रहा था ग्यारह बज गये ,बच्चे सो गये ।हम लोग भी बात करते करते ऊंघने लगे थे ।अशोक ने कहा हम सब सो जायें ।अशोक नही जा रहा था तो उसने कहा मैं जागता हूँ तुम सब लोग सो जाओ ।हम लोग सो गये ।एक बजे रात को एक बजे टैक्सी  आई ।अब सब सामान रखने लगे ।बच्चों को उठाये ।सब ऊंघ रहे थे ।1-40  को टैक्सी चली।अब हम सब सिलिगुड़ी जा रहे थे ।एक और खूबसूरत जगह को देखने ।

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