रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 81

मैने उच्च वर्ग शिक्षक के लिये फार्म भरा था ।उसमे कुछ पद व्याख्याता के लिये भी थे ।मेरे साक्षात्कार का दिन भी आ गया । मेरे पति तो साथ मे नहीं गये थे ।मेरे पिताजी  डी एस सी आफिस तक छोड़ने गये थे ।उस समय पेंंशन बाड़ा था उसके आगे की बहुत सी जगह खाली थी ।इसी खाली स्थान पर डी एस सी आफिस था ।उसके आगे कि जगह खेत के रुप मे खाली थी ।

मध्यप्रदेश था ।छत्तीसगढ़ तब बना नहीं था ।वहाँ बहुत से लोग थे ।मेरे साथ बी एड किये लोग भी थे ।कुछ रिस्तेदार भी थे ।मेरे चाचा का लड़का आया था और मेरे बुआ की बेटी भी आई थी ।वहाँ पर चाय के अलावा कुछ नहीं मिलता था ।साक्षात्कार चलते रहा लोग खाने के लिये इधर उधर घूम रहे थे ।तब बेचने के लिये वे लोग डबलरोटी और भजिया लेकर आये थे ।लोग यही खा रहे थे ।मै दस बजे खाना खाकर गई दी पर एसीडिटी की वजह से भूख लगने लगी थी ।मैने अपने चाचा के बेटे राजेंद्र से कहा कि कुछ खाने के लिये ले आ ।वह गया और डबलरोटी का छोटा पैकेट लेकर आया ।मै चाय तो नहीं पी पर सुखा डबलरोटी खा ली और पानी पी ली ।

एस की पारी आते तक शाम होने लगी था ।कुछ लोग पेड़ के नीचे लेट गये मै भी लेटी थी ।मेरी बुआ की लड़की सरस्वती की एक माह की बच्ची थी ।हम दोनों उसे पारी पारी से पकड़ते थे ।वह पहले गई तो उसके बच्चे को मै अपने गोद मे रखी थी ।उतने मे ही हमारे साथ बी एड करने वाला एक लड़का पांडव आया और बच्चे को मेरे गोद से उठा लिया ।एक हाथ से बच्चे के सिर को और एक हाथ पर अपना रुमाल रख कर नीचे के हिस्से को रख कर घूमाने लगा ।बीच बीच मे मुझे देखता था ।

सरस्वती बाहर आई और मै अंदर गई ।वह गुड़िया कहाँ है पूछी तो मैने कहा कि वह पांंडव के पास है ।वह बाहर अपने बच्चे को खोज रही थी क्योंकि वह भी पांंडव को पहचान ली थी ।मै बैठी थी तब पांडव कई चक्कर लगाया था तब मै उसके बारे मे सरस्वती को बताई थी ।कैसे वह पान खाते हुये धोती कुरता पहन कर बाबू मोशाय बन कर कालेज आता था तो कभी विवेकानंद बन कर आता था ।शर्ट पेंट पहनना तो वह यहींं सिखा था ।

मुझसे तीन प्रश्न ही पूछे गये थे ।मेरा प्रेक्टीकल मे प्रथम  स्थान  था तो मुझे परेशानी नहीं हुई ।मैं साक्षात्कार देकर वापस आई तब सरस्वती पांंडव की तरफ देख रही थी ।वह अपने रूमाल को लपेट रहा था ।मै उसके पास गई ।वह तो मुस्कुरा रहा था पर मुझे हँसी आ रही थी कि कितना उल्लू है ।वह बोला आपकी बेटी ने मेरे हाथ पर ही ची ची कर दी ।उसका चेहरा देखने लायक था ।मैने कहा " ये मेरी बेटी नही है मेरी बहन की बेटी है ।उसका नम्बर आया यो इसे मैं पकड़ी थी ।मेरे से तुम ले लिये ।" अब तो और भी देखने लायक चेहरा हो गया था ।

उसी समय सरस्वती आ गई ।उसने बच्चे को लिया और उसके रूमाल से ही चीची साफ करके किनारे फेक दी मैने कहा तुम्हारा रुमाल खराब हो गया सॉरी ।उसने कोई बात नहीं कह तो दिया पर सदमे में आ गया ।वह मेरा बच्चा है सोच कर पकड़ा और ची ची को भी अपने रुमाल मे पोछ कर पकड़े रहा ।हम दोनों बहने उस पर हंसते रहे और बाहर निकल गये ।वह हमें ठगी निगाहों से देखता रहा ।

शायद इसी तरह लड़के ठगे जाते है और लड़किया मजाक करती रहती है ।लड़की और लड़के के बीच आकर्षण रहता है और इसी चक्कर मे दोनों ही ठगे जाते हैं ।

कुछ दिनों मे लिस्ट निकल गई ।मुझे अभनपुर के पास ग्राम खोरपा मे नौकरी मिली ।मायके और ससुराल दोनों जगह मे सब खुश थे ।मै अपने काका के साथ जाकर जॉयन कर ली ।मै सायकिल और गाड़ी नहीं चलाती हूँ ।काका ने अभनपुर से एक बैलगाड़ी बंधा दिये थे ।मै अभनपुर तक बस से जाती थी उसके बाद बैल गाड़ी से जाती थी ।घर आते तक रात हो जाती थी ।

जेठानी ने काम के लिये बोलना शुरू कर दिया था ।मै पांच बजे उठ कर खाना वैगरह बना देती थी फिर स्कूल जाती थी ।स्कूल से आने के बाद सास ससुर को परसने का ही काम रहता था ।जिस दिन तनख्वाह मिली उस दिन मै बहुत खुश थी ।अब पैसा हमारे पास रहेगा ।रात को मैने अपने पति से बताया कि अब हमारे पास पैसा है तो कभी बाहर भी खा सकते  है ।वे मुस्कुरा कर सो गये ।सुषह नीचे ससुर से कुछ बात हो रही थी ।वे ऊपर आ कर बोले कि पैसा ससुर को दे देना ।मेरा गाल छूकर चले गये ।उनके जाने के बाद पूरा पैसा मैने अपने ससुर को दे दिया ।उसके बाद मैने कहा कि मुझे कुछ पैसे आने जाने के लिये चाहिये ।मुझे सिर्फ पचास रूपये  दिये और चले गये ।

मै बहुत दुखी मन से गई ।धीरे धीरे तबियत और खराब होने लगी पांच छै माह के बाद मै छुट्टी ले ली ।उसके बाद तो मै मेडिकल पर आ गई ।धीरे धीरे तीन साल चला और मैने काका के डांटने के बाद नौकरी छोड़ दी ।एक दिन काका ने कहा कि" तुम साइंस टीचर हो, तुम्हारे नहीं जाने से बच्चों का नुकसान होता है ।नौकरी छोड़ दो ।"मैने स्तीफा दे दिया ।एक एम एस सी लड़की का कैरियर ऐसे ही खतम हो गया ।

मेरे पति इसलिए खुश थे कि इतना काम करने के बाद भी पैसा तुम रख नही सकती हो तो नौकरी करने का क्या फायदा ।बस इसी तरह मै घर पर रह कर अल्सर की पीड़ा को झेलती रही ।मैने एक बार फिर कोशिश की कि नगर निगम के स्कूल मे नौकरी मिल जाये ।उस समय भी पहुंच वालों को ही नौकरी मिलती थी ।मेरे सामने ही मेरी एक सहेली को नौकरी मिल गई ।बी एस सी तृतीय श्रेणी मे थी ।उसने बी एड भी नहीं किया था ।दिल कांच की तरह टुटते जा रहा था ।

इस बीच बाहर घूमने का कार्यक्रम भी बना लिये थे ।जीवन की लड़ाई लड़ते रही ।मन की वेदना दिल को कमजोर कर रही थी ।दिल का सम्बंध पेट से होता है ।पेट भी अपना रंग दिखा रहा था ।धीरे धीरे शरीर कमजोर होते जा रहा था ।डाक्टर ने कहा कहीं बाहर घूम कर आ जाओ अच्छा लगेगा।

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