रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 85

मेरे ससुराल मे सभी छतीसगढ़ी बोलते थे ।मै अकेले ही हिंदी बोलती थी ।मेरे मायके मे छत्तीसगढ़ी बोलने के लिये मनाही थी क्योंकि हिन्दी राष्ट्र भाषा है तो उसे सीखना जरुरी है ।माँ ही दूसरों से या गांव से आने वालो से छतीसगढ़ी में बोलती थी ।ससुराल के लोग 1951 से रायपुर मे थे पर घर मे छत्तीसगढ़ी ही बोलते थे ।सास को हिंदी आती ही नही थी ।कुछ महिने तक ये लोग मुझे हिंदी बोलते देखते रहे फिर एक दिन मेरे जेठ ने कह दिया कि "सुधा छत्तीसगढ़ी मे बात करे तभी उससे बात करना ,नहीं तो कोई बात नही करना। "इस बात का असर तेजी से हुआ ।अब मै शरमा कर छत्तीसगढ़ी बोलती और ये लोग हंसते थे ।मेरे छत्तीसगढ़ी शब्दों का उच्चारण सही नहीं रहता था ।मै धीरे धीरे सीखने लगी ।

मै अपनी यह समस्या अपनी दीदी के सामने रखी ।पहले तो वह हंसी कि हमें हिंदी तो बोलना ही चाहिये क्योंकि दूसरे राज्य मे जायेंगे तो हिंदी ही बोलनी पड़ेगी ।हिंदी पूरे देश को जोड़ती है ।फिर तो मेरे आँसू निकलने लगे ।दीदी ने तब कहा "तुम लिखती हो तो छत्तीसगढ़ी मे कुछ लिखो और बोल कर लिखो !"यह बात मुझे उचित लगी ।आखिर एक हिंदी के प्रोफेसर की सलाह थी ।मैने लिखना शुरू किया ।

मेरी मुलाकात उस समय दुलारी नाम की महिला से हुई ।यह काल्पनिक नाम है पर चरित्र सच है ।वह कभी कभी अपने बारे में बताती थी ।वह बी एड कर रही थी और हमारे घर पर  ही परिवार सहित रहती थी ।उसका एक लड़का था ।उसके पति अपनी नौकरी छोड़ कर घर पर ही उसकी देखभाल करता था ।सुबह खाना बनाना ,उसके बाद दुलारी को बी एड कालेज छोड़ने जाना ,बच्चे को नहलाना खिलाना ,सुलाना ये सब करने के बाद स्वयं खाना खाता था फिर दुलारी को खाने के लिये लेने जाता था ।खाने के बाद उसे पहुंचाता था ।आने के बाद बच्चे को शाम को साथ लेकर दुलारी को लाने जाता था ।रात का खाना दोनों मिलकर बनाते थे ।पूरी तैयारी दुलारी का  पति करता और सब्जी भर दुलारी बनाती थी ।

एक दिन एक लड़का हमारे घर की तरफ पत्थर फेंक रहा था ।पत्थर हमारे घर के सामने लगे बिजली के खम्भे को लगा ।आवाज सुन कर मेरी सास निकली और चिल्लाने  लगी ।तभी मेरी जेठानी और ननंद भी बाहर आ गये ।वह बच्चा बोला "जान से मार दूंगा ।" मै पूछी तो किसी ने कुछ नहीं कहा ।शाम को मेरी सास ने दुलारी से कहा कि तुम लोग दूसरे जगह चले जाओ ।दोनों चुप रहे ।

रात को मै जेठानी से पूछी वह कुछ नही बोली ।रात को अपने पति से पूछी उन्होंने भी कुछ नही कहा ।बस कह दिया चुपचाप सो जाओ इधर उधर की बातों पर ध्यान मत दिया करो।सुबह सब सामान्य था ।मै सोचती रही कि कैसे मै दुलारी से पूंछु।एक दिन मौका मिल गया ।घर मे सास ससुर नहीं थे ।वह मुझसे लेशनप्लान के बारे मे पूछ रही थी ।मैने उससे पूछा कि उस बच्चे से तुम्हारा कुछ सम्बंध है क्या ? दुलारी बोली हाँ वह मेरा बेटा है मैने उसे जन्म दिया है ।उसने कहा ये मेरे दूसरे पति है ।मेरे चेहरे में आश्चर्य का भाव था और जानने की उत्सुकता थी ।दुलारी ने कहा कि दीदी मै रात को बात करती हूँ ।कभी कभी  हम लोग रात को बैठ कर बातें किया करते थे ।

मुझे रात का इंतजार था ।खाना खाने के बाद हम लोग घर के बाहर दरवाजे पर बैठ गये ।रात आठ बजे थे पर नूरानी चौक मे चहल पहल कम थी ।पान खाने वाले और घर लौटने वाले  ही चल रहे थे ।मैने कहा बताओ दुलारी अपने बारे मे? दुलारी बोली इस सामने के घर मे हम लोग रहते थे ।मै अकेली संतान थी ,मेरे पिताजी हनुमान मंदिर मे पुजारी थे ।सुबह शाम माँ और पिताजी बाहर ही रहते थे।घर मे एक कमरे में एक ठाकुर लड़के को किराये से रखे थे ।मै दसवीं मे थी ।माँ ने उससे कहा था कि वह मुझे पढ़ा दिया करे ।वह साइंस कालेज मे पढ़ता था।मै समझ नही पाई और बड़ी पढ़ाई हो गई।मेरी तबियत खराब होने पर माँ पदीना पीने देती थी ।जब तबियत ठीक नही हुई तब डाक्टर को दिखाये तब पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ ।मेरी पढ़ाई घर पर होने लगी ।उसे बताने पर उसने पिताजी से कहा कि वह मुझसे  शादी करेगा पर पढ़ाई पूरी होने के बाद ।

मै बी ए तक पहुंच गई ओर तीन बच्चे हो गये ।उसे  पुलिस कि नौकरी मिल गई ।वह अपने घर गया तो उसकी शादी कर दिये ।उसने तब भी कहा कि मै तुम्हे नही छोड़ुंगा ।पर ऐसा रहना तो एक रखैल का  होता है ।मैने ये बात कह दी ।अबकी बार वह बहुत दिन तक नहीं आया ।ये दूसरे पति  इसी घर में रहते थे ।ये मेरे पास बैठने आते थे  जान पहचान थी और इस घर मे मेरा आना जाना भी था ।एक दिन इन्होंने कहा कि तुम मुझसे शादी कर लो ।मै भी तैयार हो गई ।ये बच्चों को छोड़ने की बात करते थे ।लम्बा समय गुजर गया ।एक दो बार वह ठाकुर आया भी ।इस बीच सदमें में माँ मर गई।मेरा एम ए हो गया ओर नौकरी लग गई सरकारी ।मैने और एक बेटी को भी जन्म दे दिया।

एक दिन एक साल की बच्ची को लेकर मै इनके साथ चली गई ।एक माह के बाद मुझे एक को चुनना था बच्चा या इनको ।मेरे लिये बेटी को छोड़ना कठिन था पर मैने सोच लिया इस बेटी को छोड़ दूंगी ।और एक दिन शाम को बच्चे को इन्होंने इस सामने वाले घर पर छोड़ दिये ।ये अकेले ही उसे  छोड़ने आये थे ।

मैने पूछा -दुलारी ,एक औरत विधवा होती है तब भी वह अकेले अपने बच्चे को पालती है ।तुमने ऐसा क्यों किया ? बच्चों के रहते दूसरे पति की जरुरत क्यों? उसने कहा कि पहले आदमी ने मुझसे शादी नहीं की ,फिर वह मुझसे नहीं मेरे शरीर से प्यार करता था ।और ये मुझसे प्यार करता है ।तभी तो इसे मै बैठाल कर खिला रही हूँ ।ये हमेशा मेरे और हमारे बच्चों के साथ रहेगा ।

मैने पूछा माँ का दिल तो अपने बच्चों मे ही लगा रहता है ।क्या तुम्हारे बच्चे तुम्हे  याद नही आते ।यह सुनकर उसके आँखो मे आँसू आ गये ।उसने कहा मै अपने बच्चो को कभी नहीं भूली ।ऐसे उम्र मे पैदा हुये थे जब मै स्वयं बच्ची थी ।उन बच्चो के प्यार के बीच मे उस स्वार्थी का चेहरा आ जाता है ।जिसने मुझसे नहीं मेरे शरीर से प्यार किया ।जब जरुरत  हुई आया और चला गया ।अपनी शादी की बच्चे हुये और उसी मे खुश है ।मै उसके लिये मनोरंजन का साधन रही ।

उसने  कहा कि बच्चो को प्यार करते समय एक दाग दिखाई देता है ।मैने कहा चाँद की तरह।उसने कहा हाँ दीदी चाँद के दाग की तरह प्यार मे दाग ।इस कारण बच्चों की याद आते ही वे दूर हो जाते है ।हम दोनों ही आँसू पोछते अंदर आ गये ।एक अलग प्यार को मैने देखा और महशूस किया ।

मुझे कहानी मिल गई ।मै उसके जीवन पर छत्तीसगढ़ी में लिखने बैठ गई ।कुछ सच कुछ कल्पना ने एक उपन्यास का रुप ले लिया ।उस समय पाकेट बुक चलते थे ।उतना ही बड़ा लिख कर समाप्त कर दी ।उसे कई बार पढ़ी और छत्तीसगढ़ी को सुधारते रही ।यह छत्तीसगढ़ी मेरे मकान बनने के बाद भी सुधरती रही ।यहां के मजदूरों से छत्तीसगढ़ी बोलती थी और नये नये शब्द सिखती थी ।2002 मे मुझे देशबंधु के मड़ई के सम्पादन का भार दिया गया ।इसका कारण था कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मेरे बहुत मे लेख ,कहानी ,और परिचर्चा देशबधु मे छपे थे ।छत्तीसगढ़ी सीखने के बाद कभी कभी लेखन करती थी ।पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लेखन की गति बढ़ गई ।

जनवरी 2003 से यहाँ पर छत्तीसगढ़ी अंक "मडई  " का संम्पादन करने लगी जो सतत चल रहा है ।भाषा जो मेरे से दूर थी आज इतनी करीब है कि सोचती हिंदी मे हूँ और लिखाई छत्तीसगढ़ी मे होती है ।इतनी पुस्तकों का प्रकाशन भी हो गया ।जब छत्तीसगढ़ी भाषा का माध्यम और एक विषय की बात करतें है तो मै अपने आप को सामने रख देती हूँ ।

मेरा घर मे छत्तीसगढ़ी भाषा के लिये बहिष्कार,फिर छत्तीसगढ़ी सिखना ,एक जीता जागता पात्र का मिलना ,उस पर एक उपन्यास लिखना और भाषा परिमार्जित करना मेरे लिये आसान रहा ।दुलारी ने इससे भी शादी नहीं की थी डोगरगढ़ मे जयमाला डाल लिये थे ।उसके इस पति से तीन बेटे और एक बेटी है ।बेटे वकील , इंजिनियर,डाक्टर  हैं।बेटी बी ए की है ।आज सबकी शादी हो गई है ।बहुओं के साथ सुखी है ।मेरी मुलाकात बारह साल पहले हुई थी ।एक नारी का कठिन जीवन दुलारी मे दिखाई दिया ।

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