रविवार, 1 मई 2016

ये दिन भी अपने थे - 89

एक बार मुझे पेट मे कुछ ज्यादा तकलिफ हो रही थी ।मेरी ननंद का दूसरा बेटा हुआ था ।मेरा देवर जो राजकोट के बीर नगर मे आँखो का सर्जन है वह भी आया था ।मेरी सास को भी बहुत पेट मे तकलिफ हो रही थी ।मुझे फिर से चार माह का गर्भ था ।पर शायद नहीं रुकेगा ऐसा लग रहा था ।सास का बेरीयम  एक्सरे कराया गया ।पता चला कि लीवर मे कैंसर है ,आखरी स्टेज है ।जिस दिन वह एक्सरे करा कर आई तो मुझसे बोली कि अब मुझे समझ मे आ रहा है कि तुम्हारा पेट दुखता था तो कैसा लगता रहा होगा ।वह मुझे अस्पताल मे ही बताती कि यहाँ दुखता है ।तुम उल्टी करती थी वैसे ही मै भी करती हूँ ।खाली पेट रह नहीं सकती हूँ ।मै हमेंशा तुमको याद करती हूँ ।उनकी आँखो की निरिहता मेरे सामने आज भी दिखाई देती है ।

मेरे लिये यह बहुत बड़ी बात थी कि मेरी सास अपनी गलती को मान कर प्रायश्चित कर रही थी ।पर वह दिन वापस लौट कर नहीं आ सकता था।हम लोग अपने घर आ गये सास अपने घर चली गई ।ननंद अपने घर आ गई ।देवरानी भी आई थी ।मुझे सास ने जचकी मे खाने वाली जड़ी बूटी और मेवे के छै लड्डू दी थी ।मै तीन लड्डू वहीं पर खाली थी ।वह मुझे बहुत गर्म कर दिया और तबियत बिगड़ गई ।सास को लेकर देवर देवरानी राजकोट के लिये निकल गये ।सास रेल मे ही बेहोश होने लगी थी ।राजकोट मे बीरनगर के हॉस्पिटल से गाड़ी आकर ले गई ।वे कोमा मे चली गई थी ।

मै भी रेल्वेस्टेशन तक छोड़ने गई थी ।आखरी समय मे उसका मेरे प्रति प्यार भी बढ़ गया था ।मै घर आई तो अचानक पेट की तकलीफ बढ़ गई ।दूसरे दिन डा. आचार्या को दिखाने गई ।उन्होने तुरंत सोनोग्राफी के लिये भेजा ।रात को नौ बजे रिपोर्ट लेकर मैडम को दिखये ।मैडम ने कहा कि तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा ।पेट मे एक गेंद की तरह ऊन से गुथा हुआ गोला है ।उसके कारण तकलीफ हो रही है ।चार मई 1989 को मुझे डाक्टर अर्चना आचार्या के नर्सिंग होम गुरुकृपा मे भर्ती कर दिये ।पांच मई को सूबह आठ बजे मेरा आपरेशन था ।मैडम रायपुर  के मेडिकल कालेज मे एसोसिएट प्रोफेसर थी ।उसके दस विद्यार्थी आये थे ।मेरा पेट जैसे ही काटा गया धड़कन बंद हो गई ।फिर कुछ प्राथमिक उपचार के बाद धड़कन शुरु हुई ।आगे जब गोले को काटा गया तो देखे की एक पूरा विकसित बच्चा है चार माह का ।मैडम अब उसे अंदर रख नही सकती थी ।वह इतना घबरा गई कि आपरेशन रूम छोड़कर बाहर आ गई ,भागते हुये ।वह तीन चार डाक्टरों को फोन की कुछ लोग आये बीस पच्चीस मिनट गुजर गये ।मेरे पति अकेले थे ।कभी इससे पूछते कभी उससे पूछते थे ।कोई आया सिस्टर कुछ बोलते नही थे बस भाग रहे थे ।आपरेशन रुम बंद हो गया और उस बच्चे को फारमेलिन मे डाल कर बरामदे मे एक टेबल पर रख दिया गया ।चार घंटे के बाद मुझे बाहर लाया गया ।तीन घंटे का आपरेशन अट्ठाइस टांके थे ।

डाक्टर पहले पसीने से भिगी निकली ।उसके बाद सारे तेरह चौदह लोग निकले ।उसके बाद मुझे निकाले । बाहर आते ही ये मेरे पीछे पीछे आये तो बता रहे थे कि सिस्टर ने डांटा कि बाद मे आना ।मुझे बिस्तर पर रखे ,बोतल चढ़ाये उसके बाद ये आकर मुझे बहुत प्यार करने लगे ।सब लोग सकपकाये थे ।मैडम तीन चार बार आई ।मेरी मां और काका देखने आये ।बस खाना लेने ये जाते थे ।रात को दीदी सोने आई । मैडम ने सारी बात दीदी को बताई ।उस बाटल के बच्चे के बारे मे भी बताई ।उस रात मेरे पति भी रुके थे ।दोनों परिवार में आपरेशन की यह पहली घटना थी ।सुबह मुझे होश आया तो मै रोने लगी कि इतनी तकलिफ सहनी पड़ रही है ।दीदी को कआलेज जाना था वह चली गईं।मेरे पति भी नौबजे मुझे चाय देकर खाना लाने चले गये ।खाना माँ भेजती थी।इस बीच मैडम आकर चली गई ।बहुत प्यार से बोलीं कि इतना पढ़ी हो ,सब जानती हो फिर रोना क्यों?खाना लाने मत जाया करो यहाँ गैस है यहीं दलिया चाय के साथ खाना भी बना सकते हो ।कुछ और चहिये तो मुझसे  ले लिया करो

दलिया वहीं बना लेते थे ।खाने मे स्वाद नही आता था ।दवाई गरम कर रही थी तो एसिडिटी बढ़ने के कारण उल्टियां हो जाती थी ।मैडम ने मेरे होमियोपैथी डाक्टरक्षबी सी गुप्ता को बुलवा ली ।रोज ताजी दही और कुछ सब्जी भी मेरे लिये स्वयं लेकर आती थीं ।मुझे बहुत प्यार करने लगी थी।हम लोगों को तब पता चला कि सब के चाय और पानी गरम करने के लिये गैस चुल्हा रखी थी ।चार दिन के बाद मुझे घुमने के लिये बोल दी ।मै बरामदे तक जाती थी ।रात को महाभारत आता था।मै छठवें दिन जाकर महाभारत देखी उसी समय मेरी नजर उस बॉटल के स्पेसिमेन पर गया ।मै उसे खड़े होकर देखने लगी।सब सिस्टर वहाँ से हट गये ।उखड़ु बैठेते है वैसा ही था ।उसकी हाथ पैर की ऊंगलियां पूरी बनी हुई थी पर चिपकी हुई थी ।एक छोटे से गुड्डे की तरह दिख रहा था ।मेरे पति ने कहा कि - यह हमारा बच्चा है ,पूरा विकसित ।मेरे आश्चर्य से भरे चेहरे को देखकर पूरी बात बताये और बोले कि डाक्टर बहुत सदमें मे थी ।उसने कहा कि नागपुर जैसे शहर मे होता तो इस बच्चे को बच्चेदानी मे रख सकते थे पर यहाँ सुविधा नही है ।मुझे पता ही नही चला कि बच्चा नली मे विकसित हो रहा है। इसकी धड़कन भी सुनाई नही दी और न सोनोग्राफी मे आया ।यह एक ट्यूमर ही लग रहा था और मै यही समझ कर आपरेशन की थी ।जांच के लिये और समय नहीं था क्योंकि तुमको सांस लेने मे तकलिफ होने लगी थी ।रात को चैन की नींद आई क्योंकि चार एबार्शन के बाद मैने अपने पांचवें बच्चे को पूर्ण विकसित देखा था ।यह सारा दुख डाक्टर के व्यवहार  से खतम हो गया ।एक मुस्कुराता चेहरा, जो हमेशा अपने मरीज के लिये तैयार खड़ी रहती थीं।

दूसरे दिन सुबह बोली कि आज छुट्टी दे देते है ।सब तैयारी करते तक काका खाना लेकर आ गये ।मेरे पति नही गये तो काका को लगा कि तबियत खराब हो गई होगी ।मेरे पति को बिल दी ,आठ हजार का था ।कुछ दवाई लिखी।काका ने कहा अरे हमको लगा कल छुट्टी होगी तो पैसा नही लाये है ।मै लेकर आता हूँ ।तब ये बोले पैसा मै दूंगा आप चलो ।काका के जाने कोई बाद बोले कि पैसा कल दूंगा मैडम ।आज तो निकाला नही हूँ ।मैडम ने ठीक है कह दिया ।मै जाने के लिये उठी उसी समय मेरे दाहिने पैर की नश पकड़ ली ।अब म फिर से गई मैडम नाम कहा कि रूक जाओ ठीक लगे तब जाना।

मै दूसरे दिन घर आई ।ये बैंक जाकर पैसे ले आये ।मै शाम को भी नही उठ पा रही थी ।मैडम रात को देखने आई ।बोली जब जाना है चले जाना ।मुझसे मिलने की जरुरत नही है ।मेरठ पति ने कहा पसा देना था तो मैडम बोली पहले इसको घर पहुँचाना फिर पैसा देना ।मै तो जब जरुरत होगी बैंक से ले लुंगी ।हम लोग रात को भी मैडम के बारे मे बात कर रहे थे ।बहुत मदद की ।प्यार भरा व्यवहार रहा ।दूसरे दिन नौ बजे हम लोग निकलं गये ।मेरे पति शाम को पैसा देने गये तब मैडम ने बताया कि "फैलोपियन ट्यूब पूरी फट गई थी तो उसे काटना पड़ा और उस तरफ की ओवरी को भी निकाल दिये हैं।एक ट्यूब और एक ओवरी मे बच्चा होने की सम्भावना निन्नियानवे प्रतिशत कम हो जाती है ।मेरी गलती नही है ।सोनोग्राफी से भी पता नही चला  था ।पर जान बच गई है ।"मेरे पति ने कहा ये मुझे दूसरी बार मिली है।मैडम ने कहा सही बात है ,इसका नया जीवन है ।ये बोले नही मेरी सगाई पांच मई को हुई थी और वह मुझे  पांच मई को मै दूबारा मिली है ।हमारा साथ बहुत लम्बा है ।

तेरह मई को मेरी सास राजकोट मे खतम हो गई ।ये मुझे छोड़कर नही गये ।उसका सब काम गुजराती विधी से वहीं कर दिया गया।एक बच्चे को देखने की लालसा लेकर वह चली गई ।मै जो कभी एलोपैथी की एक गोली नही खाई थी वह डाक्टर की वजह से खाना सीख गई ।मेरे जैसे डरपोक इंसान ने आपरेशन करा लिया ।मैडम ने हर समय मेरा साथ दिया ।पैसे लेकर सभी काम करते है पर उसमे प्यार और अपनापन है तो मरीज को बहुत खुशी मिलती है ।आज भी याद आती है उनकी दी हुई दही और  सब्जी ।वह बच्चा बॉटल मे अब तक रखा है ।

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