मैं एक दिन बैठ कर पुरानी डायरी देख रही थी जिसमें मुझे "प्रेम और पुरुष " पर लिखा कुछ मिल गया। आप भी पुरानी डायरी के पन्नों को पढ़िये।
" प्रेम एक अलौकिक वरदान है। प्रेम, ममता वातसल्य नारी के पास अपार रुप से होती है परन्तु पुरुष इससे दूर दिखाई देता है। दिखने में नारियल की तरह कठोर दिखने वाला पुरुष अंदर से कच्चे नारियल के भेले की तरह नरम और दिल नारियल के पानी की तरह स्वच्छ साफ मीठा होता है। एक पुरुष में प्रेम देखना हो तो उसके अंदर जाना पड़ता है। नारियल के टूटने से तरल पदार्थ याने मीठा जल बाहर आता हैऔर सबको तृप्त कर देता है।
एक पुरुष के प्रेम को पाने के लिये या देखने के लिये उसके सक्त परत को तोड़ने की जरुरत होती है। पुरुष अपने मुंह से बहुत सी बातें नहीं कहते हैं परन्तु उनकी आँखे कह देती हैं। शब्दों की जरुरत ही नहीं होती है। जब पत्नी दुखी हो तो कंधे पर रखा एक हाथ पत्नी में असीम उर्जा का संचार करता है। आफिस से लौटते समय एक मोंगरे की माला खरीद कर घर पहुंच कर पत्नि के हाथो पर उसे रखता है तो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देता है। पत्नि शरमाते हुये जब वेणी लेती है तब उसकी झुक नजरें पति की कठोरता को ऐसे तोड़ कर रख देती है कि उसके दिल की निश्छलता मुस्कान से टपकने लगती है। एक पुरूष का निश्छल प्रेम
गोद में बैठी बिटिया जब गालों को छूती है तब वात्सल्य के रुप में प्रेम छलकता है तो बिटिया के गालों पर एक चुम्न अंकित कर देता है। ताली बजाती बिटिया को देख क कठोरता टूट जाती है और प्रेम की धारा बहने लगती है। यह प्रेम की धारा बिटिया की बिदाई पर आँसू बनके टपकने लगती है। पत्नि के विछोह पर भी आँसू गंगा जमना की तरह बहने लगती है परन्तु बाहर की कठोरता उसे जल्द.ही अपने घेरे में ले लेती है। पुरुष अपने प्रेम को हर छण प्रगट नहीं करता है। वह तो ईश्वर की अराधना में चढ़ते फल की तरह कभी कभी ही बाहर आती है। एक पुरुष के प्रेम का प्रशाद विशेष छणों में ही मिलता है। यह एक प्रकृति का दिया उपहार है।" यह पन्ना दो अप्रेल 2011 का है जिसे आज फिर लिखने की जरुरत है।
आज प्रेम की परिभाषा बदल रही है. यह अलौकिक वरदान अब अभिश्राप भी बनते जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी शारिरिक सम्बध बनाने के लिये इस पवित्र प्यार का नाटक करते है। यह नाटक और असल में फर्क समझने की भावना अब कमजोर हो रही है। असल और नकल के भेद को समझने की क्षमता को आज शोसल मिडिया के प्रेम ने समाप्त कर दिया है। समय रहेगा तभी तो हम प्रेम को समझेंगे। प्रेम क समझने और महसस करने के लिये पर्याप्त समय चाहिये, मशीनी जीवन नहीं।
" प्रेम एक अलौकिक वरदान है। प्रेम, ममता वातसल्य नारी के पास अपार रुप से होती है परन्तु पुरुष इससे दूर दिखाई देता है। दिखने में नारियल की तरह कठोर दिखने वाला पुरुष अंदर से कच्चे नारियल के भेले की तरह नरम और दिल नारियल के पानी की तरह स्वच्छ साफ मीठा होता है। एक पुरुष में प्रेम देखना हो तो उसके अंदर जाना पड़ता है। नारियल के टूटने से तरल पदार्थ याने मीठा जल बाहर आता हैऔर सबको तृप्त कर देता है।
एक पुरुष के प्रेम को पाने के लिये या देखने के लिये उसके सक्त परत को तोड़ने की जरुरत होती है। पुरुष अपने मुंह से बहुत सी बातें नहीं कहते हैं परन्तु उनकी आँखे कह देती हैं। शब्दों की जरुरत ही नहीं होती है। जब पत्नी दुखी हो तो कंधे पर रखा एक हाथ पत्नी में असीम उर्जा का संचार करता है। आफिस से लौटते समय एक मोंगरे की माला खरीद कर घर पहुंच कर पत्नि के हाथो पर उसे रखता है तो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देता है। पत्नि शरमाते हुये जब वेणी लेती है तब उसकी झुक नजरें पति की कठोरता को ऐसे तोड़ कर रख देती है कि उसके दिल की निश्छलता मुस्कान से टपकने लगती है। एक पुरूष का निश्छल प्रेम
गोद में बैठी बिटिया जब गालों को छूती है तब वात्सल्य के रुप में प्रेम छलकता है तो बिटिया के गालों पर एक चुम्न अंकित कर देता है। ताली बजाती बिटिया को देख क कठोरता टूट जाती है और प्रेम की धारा बहने लगती है। यह प्रेम की धारा बिटिया की बिदाई पर आँसू बनके टपकने लगती है। पत्नि के विछोह पर भी आँसू गंगा जमना की तरह बहने लगती है परन्तु बाहर की कठोरता उसे जल्द.ही अपने घेरे में ले लेती है। पुरुष अपने प्रेम को हर छण प्रगट नहीं करता है। वह तो ईश्वर की अराधना में चढ़ते फल की तरह कभी कभी ही बाहर आती है। एक पुरुष के प्रेम का प्रशाद विशेष छणों में ही मिलता है। यह एक प्रकृति का दिया उपहार है।" यह पन्ना दो अप्रेल 2011 का है जिसे आज फिर लिखने की जरुरत है।
आज प्रेम की परिभाषा बदल रही है. यह अलौकिक वरदान अब अभिश्राप भी बनते जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी शारिरिक सम्बध बनाने के लिये इस पवित्र प्यार का नाटक करते है। यह नाटक और असल में फर्क समझने की भावना अब कमजोर हो रही है। असल और नकल के भेद को समझने की क्षमता को आज शोसल मिडिया के प्रेम ने समाप्त कर दिया है। समय रहेगा तभी तो हम प्रेम को समझेंगे। प्रेम क समझने और महसस करने के लिये पर्याप्त समय चाहिये, मशीनी जीवन नहीं।
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